पहाड़ के लोग सीधे साधे .. और तब और ज्यादा जब कि वो दूर-दराज के रहने वाले हो -- ऊपर से जब कोई वृद्धा की बात हो | ऐसी ही एक सीधे साधे पहाड़ी वृद्ध माता ( रुक्मा - काल्पनिक नाम ) की बात लिख रही हूँ .. ,, बात तब की है जब उत्तराखंड आन्दोलन जोर पे था | पहाड़ में माहोल बहुत शांतिमय रहा करता था .. लोगो ने दंगा फसाद नहीं जाना ना देखा था ... और फिर कर्फ्यू का क्या मतलब ? लोग गाँव के खेती किसानी में व्यस्त और कभी मेला ठेला होता तो वहां चरखी में घूमना .. सर्कस देखना .. तब चाट गोलगप्पे खाना .. रंगबिरंगी चूड़िया पहनती महिलाये, बालों के लिए चुटिया खरीदती .मेले में बिकते बुडिया के बाल खाती ...यही मौका होता जब काम से दूर सहेलियों के साथ हंसी ख़ुशी मनाते.. या फिर कही देवी भाग्वत होता, कथा प्रवचन होता तो खेत से आने के बाद नहा धो कर कथा सुनने जाते और प्रसाद पा कर धन्य हो जाते ...
ऐसे भोले भाले लोग जिन्होंने टेढ़ी बात देखी ना सोची, ... एक दिन वहां के छोटे छोटे शहरों में कर्फ्यू का ऐलान हो गया | लोग घरों में बंद .. रुक्मा विधवा वृद्धा .. खेतों में काम करते समय बातो बातों में सुना कि आज शहर में कर्फ्यू लगा है |जैसे कोई मेला लगा हो | रुक्मा ने पूछा अन्य महिलाओ से कि ये कर्फ्यू क्या होता है... महिलाओं ने बताया कि हमने सुना है पर देखा नहीं... सुना है उधर शहर में जाने नहीं दे रहे है... रुक्मा के मन में भाँती भाँती की मिठाइयों की दुकाने, झूले , प्रदर्शनी, मेला ,सर्कस, कथा प्रवचन घुमने लगे .. शायद कर्फ्यू ऐसा ही कुछ होता होगा .. फिर उसने पूछा कि कोई मेरे साथ कोई चलेगा देखने .. वहां पर काम करती महिलाओं ने कहा बच्चे अभी घर पर रो रहे होंगे हमें तो घर जाना जरूरी है .. घर गए तो फिर बाजार नहीं जा सकेंगे .. देर हो जाएगी .. गाँव खेत से दुसरी तरफ है शहर बाजार दुसरी तरफ .. फिर उन महिलाओं ने मिल कर वृद्धा को कहा -बोडी ( ताई ) तू चली जा ना - घर में कौनसे कोई तेरा इन्तजार कर रहा है.. और बताना कैसा था कर्फ्यू .. कल हम भी साथ चलेंगे .. आज कपडे भी अच्छे नहीं पहने हैं .. . रुक्मा जो गाँव के सहयोग में आगे रहती थी सोचा कि चलो आज मैं चली जाउंगी ..कल इन लोगो के साथ मैं फिर चली जाउंगी... और फिर रुक्मा ठहरी अकेली घर में, बच्चे भी बहुत दूर कहीं देश ( पहाड़ से दूर ) में .. कोई पूछने वाला भी नहीं.. सो वह कथा प्रवचन , रामलीला , मेले में जाना पसंद करती .. इस तरह से वो अपना बुडापा काट रही थी |
रुक्मा शहर की ओर चली | खेतों को पार करके जंगल और फिर शहर की ओर जाता तीखा ढलान | ढलान को पार कर के वो जंगल के दुसरे छोर जा निकली ... वहां स्कूल को पार किया तो किसी ने पूछा माता जी कहाँ जा रही हो ? वह बोली बेटा कर्फ्यू देखने जा रही हूँ | व्यक्ति बोला वहां मत जाना ..मनाही है पुलिस भी लगी है | ठीक है बेटा .. मैंने तो कोई अपराध नहीं किया मुझे क्यों पुलिस पकड़ेगी ..पुलिस का कुछ नहीं बिगाड़उंगी | किसी का बुरा नहीं करुँगी .. चुपके से कर्फ्यू देख कर लौट आउंगी ..
बुडी रुक्मा पुलिस और कर्फ्यू का आपसी सम्बन्ध न समझ पाई | ये आखिरी ढलान थी जहाँ दोनों ओर बेतरतीबी से बिखरे पहाड़ी शहर के मकान थे | खिड़की से एक औरत ने आवाज लगायी - ए बड़ी जी ( ए ताई जी ) कहाँ जा रही हो ? वहां मत जा बडी- पुलिस लगी है | बड़ी( रुक्मा ) ने कहा सिर्फ कर्फ्यू देखने जा रही हूँ | महिला बोली बड़ी हिम्मत है - लोग तो नहीं जा रहे |
रुक्मा ने सोचा एक तो आज तक कभी कर्फ्यू नहीं लगा यहाँ " पहली बार लगा है .. कैसे सोये लोग हैं ये जो मेला तो देख लेते है जो साल में दो बार लगता है...और कर्फ्यू पुलिस की डर से नहीं देख रहे है ...पुलिस वाले भी तो हमारे बेटे ही है... गाँव का रग्घू भी तो पुलिस वाला है ... कितना अच्छा बच्चा है ... और फिर मैंने तो पूरी उम्र ही बिता दी पर कभी कर्फ्यू नहीं लगा .... इतना ख़ास है ये कर्फ्यू - सुना है कि बाहर से पुलिस भी आई है... फिर क्यों ना देखें - कल तो मेरे गाँव की महिलायें भी आएँगी -
रुक्मा बाजार पहुँच गयी - अरे ये क्या ? बाजार बंद है लोग भी नहीं दिख रहे है... रुक्मा सोचने लगी -- हाँ~~~~ ये कर्फ्यू का कमाल है | इतना सुन्दर प्रोग्राम होगा तो सभी दुकाने बंद कर कर्फ्यू देखने गए है.. रुक्मा तेज़ी से कदम बड़ा कर कर्फ्यू वाली जगह ढूंढने लगी | तभी एक पुलिस वाले की कर्कश आवाज कान में गूंजी - ऐ बुडी कहाँ जा रही है - रुक्मा बोली - बेटे ! कर्फ्यू देखने - कहाँ है वो ? पुलिस वाले ने और सख्त और कर्कस आवाज में कहा - चुपचाप घर फौरन चली जा | जाउंगी जाउंगी .. पुलिस वाला बोला ठीक है | रुक्मा तेज कदम से आगे बढने लगी पुलिस वाला भी दुसरी राह हो लिया... रुक्मा सोच रही थी इतनी दूर से थक हार के यहाँ आई हूँ अब ऐसा कैसे हो कि कर्फ्यू ना देखूं | फिर कोई बताने वाला भी नहीं कि कहाँ पर कर्फ्यू का पंडाल सजा है | .. थोड़ी दूर पर एक पुलिस वाला दिखाई दिया रुक्मा सड़क की दुसरी तरफ जाने लगी तो पुलिस वाला बोला - माता जी कहाँ जा रही हो - वापस घर जाओ - रुक्मा बोली कर्फ्यू देखने - पुलिस वाला बोला क्या मजाक है - सीधे सीधे वापस जा - रुक्मा बोली नहीं जाउंगी - कर्फ्यू कहाँ है ? कैसा होता है ? सब लोग कर्फ्यू देख रहे है यहाँ ..आज तो मैं कर्फ्यू देखे बगैर नहीं जाउंगी| पुलिस वाले ने कहा कहना नहीं मानेगी तू ... और यह कह कर एक बहुत तेज़ डंडे का वार रुक्मा की पीठ पर कर दिया | रुक्मा पीड़ा से चिल्लाई .. दर्द से करहाते हुवे बोली यह क्या है क्यों मारा तुने ? पुलिस वाला बोला यही कर्फ्यू है अब ले कर्फ्यू का मजा यह कह कर उसने रुक्मा के पैरों पर तेजी से डंडे के प्रहार किये ... रुक्मा का बुड्ढा शरीर इन अप्रत्याशित वारों को झेल ना पाया -एक तीखी चीख के साथ उसकी उसकी आवाज गले में फंस गयी ... उसकी आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगा ........................................
लेखक - डॉ नूतन गैरोला - २०/१०/२०१० १८ : ४५
40 comments:
5.5/10
पोस्ट में नयापन है
पता नहीं घटना में कितनी सच्चाई है
किस्सागोई दिलचस्प होने के साथ ही दिल में संवेदना भी जगाती है साथ ही पहाड़ की सादगी और भोलेपन को दर्शाती है
rukma ka bholapan sajeev sa lagta hai....
katha ka ant vichlit karta hai!!!
nice post!
regards,
dukhad sthiti hai .. police ki barbarta sharmnaak hai.
बहुत दुखद लगा, पर लगता है आज भी कहीं वैसा का वैसा है.
रामराम
घटना दुखद है पर उसको पेश करने का तरीका लाजवाब है
प्रतिबिम्ब बडथ्वाल जी नूतन जी, गांवो रह रहे लोगो ने हमेशा शांति को अपनाया है.. फिर कर्फ्यू जैसा उनके लिये एक मेला ही हुआ.. आपने बहुत सुंदर तरीके से इस दर्द को बयान किया है।
Wednesday at 8:57pm · UnlikeLike · 3 people
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Aparna Manoj नूतन , घाटकोपर का कर्फ्यू याद आ गया , हमारे flats के बाहर फल वाला बैठता था ... जिस दिन दंगे हुए और कर्फ्यू लगा उसने फलों की लारी बचाने के आशय से हमारे flats में आने की इज़ाज़त मांगी .. किन्तु उसे अन्दर आने की permission नहीं मिली और वह इसी त...रह के ज़ुल्म का शिकार हुआ ...
वाकई दिल दहलाने वाली कहानी और इससे भी ज्यादा द्रवित होता है मन जब उतरांचल के निष्कपट मन से होकर गुज़रता है ...
share करने के लिए आभार !
Saroj Negi Kalsi Di.... bahut hi marmik kahani hai.... sahi me hamare garhwail loog bahut seedhe hote hain.... mujhe yaad hain ek bar hamare papaji ke doost jo Uttrakhandi the ki sadi hui... hamari dadiji ne poocha beta sasural se kya mila un hone kaha.... ghadi, cooker(Pressure cooker) ...etc. hamari dadiji sooch me pad gai aur hamari maa se kaha ... hamare time par to bartan, jewar daan diye jate the.... ab ye cooker (kutta) kyun daan kiya jata hai...
Wednesday at 10:12pm · UnlikeLike · 2 people
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Adita Lakhera बड़ा दर्दनाक वर्णन है ..रुकमा की नासमझी
उसके लिए बहुत महंगी साबित हुई ..
Trivedi Pankaj डॉ. नूतन,
इतने भोले लोगों पर जुल्म गुज़रने वाली हमारी पुलिस ये भी नहीं समाज पाई की ये बुढ़िया मजाक नहीं करती होगी...! सत्ता का अभिमान विवेक और बुद्धि को अँधा कर देता hai | उन्हें अपनी माँ का चहेरा भी याद न आया? बहुत ही दर्दभरी घटना है ये ! ... आप ऐसे भोले लोगों की सेवा कर रही हैं, जानकर प्रसन्नता भी हुई | इस ज़माने में लोग शहर की और भागते हैं, मगर आपने पहाड़ियों के बीच सेवायज्ञ शुरू किया है |See More
Wednesday at 10:21pm · UnlikeLike · 2 people
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Manmohan Dimri bahut khubsurati se ye lekh likha hai nutan g ne......
pahar k gaon ki bholi bhali janta ke sachche aur sant swaroop ki apni lekhani se yahan mitron k samne prastut kar diya hai aapne.......
aapki kalam badi khamoshi se is vritaant ko bayaa ...karti hai ki isske pathak vichoron mai dubte huwe is kalpana mai khokar ghanta wali jagah per apne ko pahuncha sa mahsuus karte hain.....
achcha aur behatreen saarthak prayaas...
keep it up....
well done nutan..!!!!!!!!!!!
Geeta Chandola DIDI..thanks,4 TAG ME..
es mai kut-2 ke shachai bhari hai..HAMARE PAHAD KE ZADA TAR LOG BAHUT SHIDE HOTE HAI..
rona bhi aayaa KAHANI ko padkar..but I LIKE IT..
Wednesday at 10:28pm · UnlikeLike · 2 people
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Anu Joshi Bahut achcha likha hai Nutan ...... graminon ki saralta aur police ki barbarta ka satik chitran hai .... marmik abhivyakti ......
Thursday at 8:05am · UnlikeLike · 2 people
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Sonu Nautiyal g8t
Thursday at 8:48am · UnlikeLike · 2 people
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Uttarakhand Vichar नूतन जी कल से सोच रहे हैं की कुछ कमेन्ट करें पर आपकी इस भावुक ओर कुछ सोचने पर मजबूर करते वर्णन के लिए हम लोगों के पास शब्दों की कमी है ..sorry....................teem uttarakhand vichar
Thursday at 9:51am · UnlikeLike · 2 people
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Alok Mittal aapki likhi sachchi ghatana main bahut dard hai...karfu ko wahi janta hai jo isko jhel chuka ho....jab aadami aadmi se na mil sake aur khane ko bhi kuchh na mile...bachche khelane na ja sake to kitna dard hota hai ye wohi janta hai........aapne bahut hi sunder tarike se isko likha... hai
Thursday at 9:49am · UnlikeLike · 2 people
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Bhanu Pratap Singh @डॉक्टर नूतन ठाकुरः उत्तराखंड आंदोलन के घाव कभी भर नहीं सकते। तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने कितने जुल्म किए थे। अखबारों पर भी हल्ला बोल दिया था। आपने इस कहानी के माध्यम से शब्दों पर पकड़ सिद्ध कर दी है।
Thursday at 5:58pm · UnlikeLike · 2 people
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Inderjeet Singh Rawat Indu करुण वेदनाओं से परिपूर्ण आपकी सत्य पर आधारित यह कथा, अत्यंत ह्रदय स्पर्शी है....आप द्वारा बहुत ही कुशलता से इस कथा को पंक्तिबद्ध किया है....इस रचना के लिए आपको हार्दिक शुभ-कामनाएं....नूतन जी...!!!
Thursday at 9:57am · UnlikeLike · 1 person
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Sunder Singh Negi अकल और उर्म की मुलाकात नही होती है.
Yesterday at 11:26am · LikeUnlike
Divvya Shukla नूतन आपने जो लिखा है उस पर क्या कमेन्ट करें यही सोच रहे है रुकमा का भोलापन ....या तत्कालीन मुलायम सरकार का जुल्म ..
Thursday at 11:51pm · LikeUnlike · 1 person
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Dinesh Srivastava seedhee baat. man ko chhu gayee.
Thursday at 6:40pm · UnlikeLike · 1 person
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Saroj Negi Kalsi Nutan Di pata hai aap ka leakh pad kaar mere man me vichar aata hai ki hamari pahari janta to bhaut sidhi sadhi hai.... par vardi ki jarmi itni hai ki bhola pan gayab ho jata hai... jo bujurg ka saman aur bhola pan nahi dekh pate hain vardi pahan kar....aur darinde ban jate hain....
20 hours ago · LikeUnlike · 1 person
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Surya Bhatt body kaya haal chan
22 hours ago · LikeUnlike
Narender Rawat thanks nutan ji ..
Thursday at 9:27am · UnlikeLike · 1 person
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Mayank Thapliyal So Much Desency in The Story!! And A Vivid Range Of Imagination!! Superb Story!!
Thursday at 9:53am · UnlikeLike · 1 person
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Naveen Singh Rana m also 4m karnparyag......nd ya people out dere r so innocent nd simple...
Shobhna Manral thanx nutan ji !!!!!!!!!
itni achi or sachi rachana ke liye.........
Thursday at 12:56pm · UnlikeLike · 1 person
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Ram Rawat ये वो अँधेरा है जिसमें रौशनी तो होती लेकिन दिखाई कुछ भी नहीं देता ...कर्फ्यू में उन लोगों का कुछ नहीं होता जो ये सब दंगा करवाते हैं ..बल्कि गरीब पब्लिक इसका शिकार हो जाती है . मेने भी कर्फ्यू देखा है जो खेल मुलायम सिंह ने खेला था उत्तराखंड काण्ड,,,और गुजरात में .गोधरा काण्ड ..जिंदगी हताश सी बन गयी थी ...
Thursday at 3:00pm · UnlikeLike · 3 people
You, Uttarakhand Vichar and Sakshi Rawat like this. ·
Archana Balodi nice
Thursday at 2:02pm · UnlikeLike · 2 people
You and Deepak Kathait like this. · Archana Balodi thanks for write this yaar its really great
Thursday at 2:24pm · UnlikeLike · 3 people
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Karan Bisht This is a true stroy, i still remember uttrakhand andolan, i was only 8 years old when that happen. but i can still remember the atmoshphere of gopeshwar. thanhs Nutan Ji for your great words
Thursday at 6:55pm · UnlikeLike · 2 people
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Hrs Rana दादी परणाम :)
Thursday at 5:11pm · UnlikeLike · 2 people
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Vinod Rana acha likha hai....sidha dil ko chuta hai...
Thursday at 8:35pm · LikeUnlike · Vinod Rana dhanyvaad negi ji aur dhanyavad nutan ji........
Thursday at 8:39pm · LikeUnlike ·
Kundan Singh Rawat nutan ji apka bahut bahut dhanyabad jo apne hamare logon ke boolopan ko apni es satya ghatna par bayan kiya.
Yesterday at 5:24am · LikeUnlike ·
Alok Rawat It was just a small incident happened at Karnprayag... when an old lady asked a police wala, what is curfew, i want to see it... thats it...Media and writers had made fool of our garwali "Body" :) thats sad!
Thursday at 10:21pm · LikeUnlike ·
दुखद्स्थिति। सुंदर शैली में सजीव विवरण।
चित्रण सजीव लगता है.
कुँवर कुसुमेश
सत्य घटना ....सोचने पर मजबूर करती हुई ...जब वहाँ कोई दंगा फसाद नहीं था तो कर्फ्यू क्यों ? और यदि गाँव के लोगों को पता नहीं था तो क्या यह ज़िम्मेदारी नहीं थी प्रशासन की कि बात को समझाया जाता ...पुलिस में रह कर व्यक्ति संवेदनशीलता खो देता है ?
दुखद और मार्मिक चित्रण ..सजीव चित्रण
बेहद मार्मिक चित्रण्………पहाडी लोगों के भोलेपन को बखूबी उकेरा है।
bahut maarmik chitran.. sach mein kitne bhole hote hai hamare pahadee log.. aaj bahut kuch badal gaya hai phir bhi bhole logon ke kami nahi..
aabhar
Dr Sahib,
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