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Friday, February 4, 2011

एक लड़का और सेब का पेड़- डॉ नूतन डिमरी गैरोला ‘नीति’

यह बहुत ही मार्मिक, शिक्षाप्रद कहानी चित्र मुझे नेट पर मिला था जिसे मैंने फेसबुक में शेयर किया था | आज यहाँ मैं हिंदी अनुवाद के साथ चित्रों को लगा रही हूँ | और कुछ अपने विचारों को रख रही हूँ | उम्मीद है, कहानी  आप सब को भी उसी तरह पसंद आएगी जिस तरह मुझे आई थी ………

 

लड़का और सेब का पेड़ 


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बहुत समय पहले एक बहुत बड़ा पेड़ था |


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वह एक छोटे लड़के को बहुत प्यार करता था, लड़का भी रोज वहाँ आना और पेड़ के इर्दगिर्द खेलना पसंद करता था | 

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वह पेड़ के ऊपर चढ़ता

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सेब खाता

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पेड़ के नीचे आराम करता

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वह पेड़ को प्यार करता था , पेड़ बहुत खुश था |

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समय गुजरता गया

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एक दिन लड़का पेड़ के पास वापस आया | पेड़ ने कहा “आओ और मेरे साथ खेलो |” 

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“मैं अब बच्चा नहीं रहा,अब मै पेड़ का चारो ओर नहीं खेलने वाला”

“मुझे खिलौने चाहिए और मुझे उन्हें खरीदने के लिए पैसों की जरूरत है |”



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    माफ़ी चाहूँगा. लेकिन मेरे पास पैसे                      लड़का बहुत खुश हुवा उसने

नहीं ..किन्तु तुम मेरे सारे सेब तोड़ कर                      तुरंत सारे सेब निकाल लिए                                                                             लिए

उन्हें बेच सकते हो| तब तुम्हारे पास पैसे हो जायेंगे|            और खुशी खुशी                                                                                           चल दिया|      

                                                                पेड़ बहुत खुश  था |



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लड़का सेब तोड़ने के बाद कभी वापस नहीं आया |

पेड़ दुखी था | 


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एक दिन, लड़का जो अब बड़ा हो गया था और आदमी बन गया था, वापस आया उसे देख पेड़ बहुत खुश और उत्साहित हो गया| “आओ आओ मेरे साथ खेलो “ पेड़ बोला |


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मेरे पास खेलने के लिए समय नहीं है| मुझे परिवार के लिए काम करने हैं |

हमें घर की जरूरत है “क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो ?” 


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“माफ करना,मेरे पास कोई घर नहीं है|
किन्तु तुम मेरी शाखाओं को काट कर अपना घर बना सकते हो|”


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तब आदमी ने पेड़ की सारी शाखाएं काट कर खुशी खुशी घर चल दिया|

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पेड़ यह उसे खुश देख कर बहुत प्रसन्न हुवा किन्तु वह आदमी उसके बाद कभी वापस नहीं आया|

पेड़ दुबारा फिर अकेला हो गया और दुखी हो गया |

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एक गर्मी में आदमी वापस आया और पेड़ बहुत खुश हुवा और  बोला - “आओ, आओ और मेरे साथ खेलो|“

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मैं बुढा हो रहा हूँ| मैं समुद्री यात्रा पर जाना चाहता हूँ ताकि मुझे कुछ आराम मिले | “क्या तुम मुझे एक नाव दे सकते हो?”  आदमी ने कहा|



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“ मेरे तने का इस्तेमाल कर तुम नाव बना लो|”  पेड़ बोला | “तुम समुद्री यात्रा में दूर तक जा सकते हो और खुश रहो| ”


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तब आदमी ने नाव बनाने के लिए पेड़ का तना काटा| वह समुद्री यात्रा पर निकल गया और फिर काफी समय तक वापस नहीं आया |

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आखिरी में एक दिन, काफी सालों बाद वह आदमी वापस आया|

“माफ करना मेरे बेटे| अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं बचा | तुम्हें देने के लिए कोई सेब भी नहीं मेरे पास ..”पेड़ बोला
“कोई बात नहीं अब मेरे सेब खाने के लिए दांत नहीं हैं” - आदमी ने जवाब दिया

 
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“अब कोई शाखा या टहनी भी नहीं जिस पर तुम चढ सको |”

“अब मै बहुत बुढा हो चला हूँ ऐसा नहीं कर सकता हूँ अब”- आदमी बोला


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“ अरे हाँ ! पुराने पेड़ की जड़ें पसरने और आराम करने के लिए बहुत अच्छी जगह होती हैं”

आओ, आओ मेरे साथ बैठ जाओ और आराम करो |


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और आदमी जड़ पर बैठ गया पेड़ बहुत खुश हो गया और उसके खुशी के आंसूं बहने लगे ..


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जिस तरह वह पेड़, उस लड़के  को उसके बाल्यकाल से ले कर उसके बुढ़ापे तक अपना सर्वस्य परित्याग कर समर्पित करता रहा - इस एकमात्र इच्छा के लिए कि वह बच्चे को हर स्तिथि में खुशी दे सके चाहे इस खुशी देने के लिए उसे अपने शरीर के टुकड़े ही क्यों न करने पड़े हों, जबकि वह लड़का बहुत ज्यादा स्वार्थी था और पेड़ के पास सिर्फ काम पड़ने पर आता था और पेड़ अकेले उदास हो जाता था किन्तु पेड़ फिर भी अपने पास कुछ ना होते हुवे भी अपने बचे अंशो से ही उसे खुशी और आराम देने के साधन जुटाता रहा |

 

उसी तरह हम सबके जीवन में हमारा एक सेब का पेड़ है जो हमें हर हाल में खुश देखना चाहता है और वो हमारे बुडापे तक भी, अगर वो है तो अपनी हर सांस भी हमें देने के लिए तैयार रहता है चाहे हम कितने भी स्वार्थी और लालची क्यों ना हो, चाहे हम उस सेब के पेड़ की बेकदरी क्यों ना करे, लेकिन उसकी आत्मा तो सिर्फ हमारी खुशियों को देख कर खुश और संतुष्ट होती है |

और

वह सेब का पेड़ और कोई नहीं, हमारे माँ  -पिता हैं

जो बच्चों की खुशी के लिए खुद का सब कुछ लुटा देते हैं| स्वयं  जब वो बूढ़े हो जाते है तब भी अपनी बची-खुची उर्जा अपने बच्चों के लिए सहेज, उन्हें देने के लिए तैयार रहते हैं चाहे बच्चे उन्हें उपेक्षित रखते हों, इस बात का दर्द वो दिल में दबा लेते हैं और निस्वार्थ भाव से बच्चों और उनके बच्चों की भी  देखभाल करते हैं और सदा उन्हें खुश देखना चाह्तें हैं |

 

ध्यान रहे कि हम कहीं इस कहानी के बच्चे की तरह स्वार्थी तो नहीं हो रहे| कहीं हमारे माँ पिता अकेले और उपेक्षित तो नहीं हो रहे हैं|

 

आज हमारे माता पिता जिस जगह पर हैं कल हम वहाँ होंगे .

आज हम जिस जगह पर है कल हमारे बच्चे उस जगह पर होंगे |

और जो हम करेंगे उन्हीं संस्कारों का बच्चे वहन करेंगे |

 

यूं तो दिल शरीर के अंदर धडकता है किन्तु बच्चे, माँ पिता के शरीर से निकला हुवा उनका वो दिल है जो बाहरी दुनिया में धडकता है - माता पिता के लिए बच्चे उनका कलेजे का टुकड़ा, आँखों का तारा होते हैं इसी लिए इन मुहावरों की उत्पत्ति हुवी | …………. यूं तो बच्चे को जिंदगी माता पिता देते हैं  किन्तु बच्चे के जन्म के बाद माता पिता अपनी जिंदगी बच्चे को दे देते हैं | …………  उनका अपने बच्चों से  जो निर्विकार, निस्वार्थ, अविरल, अविरत प्रेम है उसकी सम्पूर्ण व्याख्या कोई ग्रन्थ भी नहीं कर पाया …………ये प्रेम सिर्फ महसूस होता है …..… हम अपनी संवेदनाओं को ना खो कर अपने माता पिता के प्रेम को महसूस करें | उनको अपना साथ दें, उनका मान रखें , उनकी जरूरत का ख्याल करें |…….. उन्होंने हमें बड़ा बनाने के लिए हमारी साफ़ सफाई, सुरक्षा, भोजन, भाषा, रहन सहन, कपडे लत्ते, पढाई लिखाई, शिक्षा घर क्या नहीं उपलब्ध करवाए और हमें काबिल बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहे| हमारी भावनाओं का भी ख्याल रखा, अपने प्रेम से हमें सिंचित किया   और हमें बड़ा बनाने के लिए किन किन कठिनाइयों का सामना किया होगा, वो बातें भी हमें ज्ञात ना होंगी| अब हम बड़े हो गए हैं, समझने लगें है  …………वो वृद्ध हो चले हो और थोडा देर से समझते हों, आँख कम देखते हों, कान कम सुनते हों, याददाश्त कमजोर हो, या जल्दी चिढते हों या शारीरिक कमजोरी हो, जो भी तकलीफ हो उन्हें, सहनशील हो कर उनका सहारा बन कर न सिर्फ हमें एक तृप्ति का अहसास होगा, बल्कि हम कर्तव्य के मार्ग में भी चल रहे होंगें |…………. बच्चे मूक दर्शक होते हैं वह इन सब बातों को चुपचाप समझते हैं और आत्मसात करते हैं क्यूंकि माता पिता उनके लिए आदर्श होते है अतः  हम अपने बच्चों को जिस मार्ग पर ले जाना चाहते है, हमें स्वयं उस मार्ग पर चलना होगा|  
 

 

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आप कितने भी व्यस्त हों, कुछ समय आप अपने माता पिता के साथ जरूर बिताएं |

 

डॉ. नूतन गैरोला

25 comments:

Barthwal Pratibimba said...

नूतन जी..कहानी पहले पढी थी..आपके द्वारा प्रस्तुति अच्छी लगी,भावो को और विचारो को आपने अंत मे सुंदरता से हम तक पहुंचाया.. शुक्रिया एवाम शुभकामनाये!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" said...

बहुत ही उपयोगी शिक्षाप्रद कथा आपने प्रस्तुत की है!
इससे तो हम जैसे उम्रदराज लोगों को भी शिक्षा मिल गई!

Patali-The-Village said...

वह सेब का पेड़ और कोई नहीं, हमारे माँ -पिता हैं

Really Nice..........

Kailash C Sharma said...

बहुत प्रेरक कथा..मन को गहराई तक छू गयी..आभार

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

देख तमाशा लकडी का :(

विशाल said...

बहुत ही शिक्षाप्रद .आपने बहुत ही अच्छा सन्देश दिया.
लेकिन अफ़सोस! हम जान कर भी नहीं जानते .
हम सीख कर भी नहीं सीखते.

बहुत शुभ कामनाएं.

Kunwar Kusumesh said...

बड़ी प्यारी और दिल छूने वाली कहानी.
काश आज के बच्चे इसे पढ़ते और इसके मर्म को समझ पाते.

डॉ॰ मोनिका शर्मा said...

हृदयस्पर्शी नूतनजी... और आपके प्रस्तुतीकरण की तो क्या कहूँ ...हमेशा कमाल का होता है..... इस सुंदर सन्देश को साझा करने का आभार

चैतन्य शर्मा said...

बहुत अच्छी बातें बताती सुंदर कहानी ... थैंक यू

Dorothy said...

बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Anand Dwivedi said...

नूतन जी कहनी तो मार्मिक है ही..आपका उपसंहार ही सबसे अच्छा है यद्यपि कहनी पहले पढ़ी है और तब भी अच्छी लगी थी....पर आज एक नयी बात...जो ये है की हमें उस पेड़ के साथ अपने माता पिता को जोड़ के देखा.....बहुत बहुत धन्यवाद आप डा. नूतन जी.!

Anupriya said...

ye kahani mujhe mere pita ne sunai thi...tab bhi bahut kuch sikha kar gai aur aaj bhi...jab aapne ise naye tareke se prastut kiya...aapka dhanyawaad ! ek sarthak post ke liye aur mere blog par aane ke liye bhi.

DR. ANWER JAMAL said...

नूतन जी कहनी तो मार्मिक है ही..आपका उपसंहार ही सबसे अच्छा है यद्यपि कहनी पहले पढ़ी है और तब भी अच्छी लगी थी....पर आज एक नयी बात...जो ये है की हमें उस पेड़ के साथ अपने माता पिता को जोड़ के देखा.....बहुत बहुत धन्यवाद
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यह एक अभियान है मां के गौरव की रक्षा का .
मां बचाओ , मानवता बचाओ .
http://pyarimaan.blogspot.com/2011/02/blog-post_03.html

जयकृष्ण राय तुषार said...

डॉ ० नूतन जी बसंत के पर्व पर आपको हार्दिक शुभकामनायें |बहुत ही शिक्षाप्रद कहानी के लिए भी आपको बधाई |

Dorothy said...

स्नेहमयी शुभकामनाओं के लिए आभार.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.

Udan Tashtari said...

मर्मस्पर्शी कथा..सीख देती.


आपने ’देख लूँ तो चलूँ’ पढने की इच्छा जाहिर की है. अपना पोस्टल एड्रेस मुझे sameer.lal AT gmail.com पर भेजें, मैं भारत में आपको भिजवाने का प्रबंध कराता हूँ.

डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish') said...

नूतन जी, इस प्‍यारी सी रचना को हमारे साथ साझा करने का शुक्रिया।

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समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्‍म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।

अपर्णा said...

ek aisi kahani jise adhik se adhik bachchon aur badon mein share karna zaroori hai ..
aaj ka din laabhprad raha ..

धीरेन्द्र सिंह said...

चित्रमय कथा में मनोरंजन का भी अनुभव हो रहा था पर इस कथा पर आपकी टिप्पणी इतनी प्रभावशाली थी कि मन भावुक हो उठा और निगाहें भींग गईं।

संजय भास्कर said...

आदरणीय डॉ.नूतन जी
नमस्कार !
बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.

कविता रावत said...

Nutan ji! aapki yah chitramay prastuti man ko darvit kar gayee.. saarthak prastuti ke liye aapka aabhar

संतोष कुमार said...

बहुत पहले पढ़ा था !
आज दुबारा पढ़ कर बहुत अच्छा लगा !
बहुत धन्यवाद !

Dr Varsha Singh said...

चित्रमय कथा ....प्रस्तुति अच्छी लगी... शुक्रिया

डॉ. हरदीप कौर सन्धु said...

Maan ko chu gayee aap kee yeh kahani...
ekdam sach !
aap ka likhne ka andaz bahut achaa hai.
aap kee kalam ko salam. !

सतीश सक्सेना said...

काश हम कुछ समझ सकें....एक अच्छा और खूबसूरत ब्लॉग ....हम अपनी रचनाओं से पहचाने जायेंगे !
शुभकामनायें !