अस्पताल की छत से वह आज चुपचाप महसूस करना चाहती थी-- साँसें जो उखड रहीँ थीं चंद घड़ियों का बस एक प्रश्न था….. लय में बीब करती उपकरणों की आवाजें क्योंकि दिल अभी रुका ना था ……. सहमे से थे लोग सभी उनका अपना जुदा होने को था... एक तीखा दर्द अभी महसूस हुवा था लगा, शरीर सेआत्मा का रिश्ता बचा हुवा था… तभी गडगडाहट शुरू हुवी मशीनों की ऑक्सीजन, डीफ्रिब्लेटर और थपथपाहट सीने में घुपता तीखा दर्द सुई का.. यह बहाना न चलेगा अब कोई और बहाना होगा जाने का फिर कभी वह जिद छोड़ छत से नीचे उतर आई पसर कर फिर से बस गई अपने टूटे घर में क्योंकि समय अभी शेष था देह का |
डॉ नूतन गैरोला … १३ / ०७ /२०११ १६:२४ |
16 comments:
क्योंकि समय अभी शेष था देह का |
यूं भी होता है कभी ..
भावमय करती शब्द रचना ।
जब तक समय ना आया हो तब तक कुछ भी सम्भव नही सुन्दर रचना नुतन जी
kuch bechain se ehsaas...hai n ?
नित नित जीने की चाह हो।
नूतन जी चक्र चाल है जीवन ...... मन स्थिति और परिस्थिति दोनों का शरीर पर असर होता है..... समय से पहले कुछ भी नही होता.... बहुत ही भावात्मक रचना ... मुस्कराने रहिए ... शुभं
aap kitni dard bhari sateek rachna likti hain
jeevan ka yahi satya hai
aap ki post manav jeevan se gahre taq judi hoti hain aur bahut prabhavit karti hain.aabhar.
यही तो द्वन्द्व है जीवित रहने का।
बहुत ही भावात्मक रचना|
'यह बहाना न चलेगा अब
कोई और बहाना होगा जाने का फिर कभी
वह जिद छोड़ छत से नीचे उतर आई'
कमाल की हिम्मत ऐसा ही होना चाहिए
गिनती की सासें .... जब तक बाकी तब तक जीवन ...द्वन्द में जीती रचना है ...
jivan ki sachhai ko byan kia hai aapne ...us pal ko mehsus kia ho jaise....sunder rachna ..anter tk hila deti ....
घनीभूत पीड़ा छलक रही है . भावनाओ के ज्वार भाटे में फंसा इन्सान . उदास कर गयी पंक्तियाँ
Near Death experience से वापसी .बहुत सुन्दर बिम्ब -देह का समय अभी बाकी था वरना शरीर पूरा हो जाता .आत्मन देह को छोड़ चला जाता अनंत की ओर इसलिए तो कहा गया -मौत का एक दिन मु -अई-अन (तय शुदा ) नींद क्यों रात भर नहीं आती .आपके ब्लॉग पर आके अच्छा लगा .कई जगह आपका नाम देखा पढ़ा आज साक्षात ब्लॉग दर्शन किया .शुक्रिया .मरीज़ के मानसिक कुन्हासे का बेहद खूबसूरत चित्रण .
in panktiyon men dard aur bechaini jhalakati hai
बहुत ही मार्मिक वर्णन के साथ सार्थक रचना
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