हमने अँधेरा देखा है
एक अहसास बुराई का
ये दोष अँधेरे का नहीं
ये दोष हमारा है
हमने क्यों मन के कोने में
इक आग सुलगाई अँधेरे की
खुद का नाम नहीं लिया हमने
बदनाम किया अँधेरे को.......
एक पक्ष अँधेरे का है गुणी
कुछ गुणगान उसका तुम करो
अँधेरा है तो दीया भी है
अँधेरे सा निर्विकार प्रेम तुम करो |
अँधेरे की प्रीति दीये के संग
दीये के अस्तित्व को लाती है
फिर मिटा देता है खुद को ही
और दीये की रौशनी छाती है ......
पूजा न जाता दीया मगर
बलिदानी न होता तम अगर
खो गया वो उपेक्षित और उपहास लिए ,
गुमनामी के अंधेरो में |
तुम तम सम रोशनी के लिए
कुछ त्याग करके तो देखो
एक चिंगारी सुलगा के तो देखो
तुम दीप जला-के तो देखो
अँधेरा मिटा के तो देखो |
डॉ नूतन गैरोला
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17 comments:
सुन्दर भाव!
सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
बहुत खूबसूरत सन्देश देती रचना ....
bahut bahut hi achhi rachna
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना.. अँधेरे के दर्द की लाजवाब प्रस्तुति...दीपावली की हार्दिक शुभ कामनायें
आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना ! बधाई!
दीपावली पर सम्यक् संदेश। अंधेरा बनना सहज है,उसके लिए कुछ करना नहीं पड़ता। दीप बनना एक चुनौती।
सुन्दर पोस्ट .बधाई !
अँधेरे का दर्द उकेरती इस कविता के भावपक्ष का नयापन लेखिका की व्यापक सोंच का परिचायक है.
AApke udgar bahut hi satik hain.Full of emotion. Good MOrning.
दिल मे उतर जाने वाले भाव्……………बेहद उम्दा रचना। गज़ब की बात कह दी।
अंधेरे और रोशनी के अंतर्संबधों को नई व्याख्या देती एक खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
bahut ni sundar post dr.nootanji
मर्मस्पर्शी रचना के लिये मुबारक बाद।
नूतन जैसा कि मैने पहले भी लिखा है इस कविता के सन्दर्भ में कि जब सभी जगह रोशनी की ही चर्चा छिड़ी हो, ऐसे में अंधेरे की हिमाकत बहुत हिम्मत की बात है| और अंत में 'एक चिंगारी' का उद्घोष इस कविता को पूर्णता भी प्रदान करता है| फिर से बधाई स्वीकार करें|
सभी ब्लोगर साथियों को धन्यवाद और शुभकामनायें ..|
sundar deepon se jagmagti rachna. bahut achha laga..aabhar
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