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Sunday, November 21, 2010

"एक दरखास्त " - डॉ नूतन गैरोला

जिस तरह जनम अपनी इच्छा से नहीं लिया जाता है, मौत भी एक अकाट्य सत्य है - जो चाह  कर भी नहीं आती और न चाहते हुवे भी मिलती है | बचपन में मौत को कदाचित स्वीकार नहीं कर पाती थी  और मौत की बात पर, मौत  पर बेहद क्रोध आता था  और भगवान पर भी  | लेकिन अब इस सत्य को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि रोज आये दिन रोग पीड़ित दुखी लोगो को देखा है - महसूस किया है कभी कितने बेवक्त पे आती है और कभी कितना दुखी कर जाती है.. और कभी बहुत तडपाती भी है ..और तब इंसान इस जन्म मौत के जाल से मुक्ति चाहता है | ये बाते मेरी बहुत कडुवी भी लग रही होंगी तो यही सत्य है | हमें इस कडुवाहट के साथ जीना भी पड़ता है | उस वक़्त प्रार्थना होती कि हे प्रभु ! तू मौत को सरल कर दे | बिना कष्ट के इस रास्ते को आसान कर दे |
                  मेरी सदा यही दुवा है और प्रार्थना है कि प्रभु ! सबको दीर्घायु रख , स्वस्थ रख , और अकाल मृत्यु को हर ले , और एक पूर्ण खुशियों से भरी स्वस्थ जिंदगी हो |
                                                                                              डॉ नूतन गैरोला

      
                                                       "एक दरखास्त "

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मुझे डर नहीं
कब पैरों तले
धरती खिसक
दलदल में मुझको फंसा देगी |
 
मुझे खौफ नहीं
कौनसा लम्हा
मुड़ के मुझे
मौत की नींद सुला देगा |
 
खुद पे यकीं है,
'उस' की ताकत के परों पे सवार
ऊपर उठ जाऊँगा मैं |
जीने की मजबूरी में
इस दुनिया को जी जाउंगा मैं |
 
मिन्नते- ए- जिंदगी कर
पशेमानी में न रहूँगा मैं |
शब् -ए हिजराँ में ऐ मौत
तू खिद्दमत कर रही होगी |
 
रस्में मुहब्बत के तू
फिर मुझसे निभा देगी |
दर्द की बेड़ियाँ काट के
होलें से हाथ मेरा थाम लेगी |
 
अर्ज करता  हूँ
ख्याल बस इतना रखना
नाजुक कलाई है मेरी ,
उठा लेना तू मुझे
बड़ी हिफाज़त से |
 
तनहा रहे ता- उम्र 'उस'के बिना
मिला देना तू मुझे
'उस' खुदा से ||
 
डॉ नूतन गैरोला

एक अद्भुत चित्र देखा था - जिसमे एक सारस मगरमच्छ के पीठ पर बैठ के  मछली की तलाश में बीच पानी में है , वो कितना बेख़ौफ़ है और उसे अपने पंखों पे भरोसा है | इस चित्र को मैंने उन भावनाओ के साथ जोड़ कर देखा है जो ऊपर लिखी हैं | 

38 comments:

Udan Tashtari said...

सुन्दर भाव!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...

चित्र, रचना और कामना का सुन्दर समन्वय!
--
यह कामना तो डॉ. नूतन गैरोला ही कर सकती है!

ज़मीर said...

बहुत ही सुन्दर कविता साथ में आपकी दुआ सबको किले यहीं प्रार्थना करुंगा. धन्यवाद.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शाश्वत सत्य को कहती अच्छी रचना है ....

रचना दीक्षित said...

बहत खूबसूरत, बेमिसाल

M VERMA said...

मुझे खौफ नहीं
कौनसा लम्हा
मुड़ के मुझे
मौत की नींद सुला देगा |

बहुत सुन्दर भाव

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति |

आशा जोगळेकर said...

अर्ज करता हूँ
ख्याल बस इतना रखना
नाजुक कलाई है मेरी ,
उठा लेना तू मुझे
बड़ी हिफाज़त से |

तनहा रहे ता- उम्र 'उस'के बिना
मिला देना तू मुझे
'उस' खुदा से ||
बहुत सुंदर ।

ZEAL said...

ek behad sundar aur masoom si rachna--badhaaii

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

शबे हिज्रां में ऐ मौत तू ख़िदमत कर रही होगी।
ख़ूबसूरत पंक्ति, अच्छी रचना बधाई।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

प्रार्थना स्वीकार होगी :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना मंगलवार 23 -11-2010
को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


http://charchamanch.blogspot.com/

Anita said...

आपका ब्लॉग बहुत सुंदर है, और कविता भी, बधाई स्वीकारें !

वन्दना said...

गज़ब का चिन्तन और भाव दोनो ही लाजवाब ………………उम्दा प्रस्तुति।

Dorothy said...

मौत की घाटियों से गुजरते वक्त भी परमेश्वर हमारे हाथों को थामे रखता है, जैसे वो जीवन भर हमारे साथ रहता है और हर हाल में हमें निर्भय बने रहने की प्रेरणा देता है. पर मानव मन की दुर्बलताएं हमें इस सत्य को स्वीकारने से कई बार रोक देती है. दिल को गहराई से छूने वाली खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

विनोद कुमार पांडेय said...

नूतन जी, संभवतः आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है...आपकी प्रस्तुत रचना पढ़ी जो बहुत अच्छी लगी...निसंदेह शब्द चयन और भाव दोनों लाज़वाब है....बधाई .स्वीकारें.

डॉ॰ मोनिका शर्मा said...

बहुत ही सुंदर.... मनोभावों को खूब प्रस्तुत किया.... बधाई

अजय कुमार झा said...

मैं सोच रहा हूं कि अब तक मैं था कहां और यहां तक कैसे नहीं पहुंचा । आपके ब्लॉग का कलेवर गजब ढा रहा है तिस पर आपकी रचना ने तो कयामत का मंज़र ला दिया है । बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको

दिगम्बर नासवा said...

हाथ थामने वाला तो ब्स एक ईश्वर ही है ... और ऐसे में ईश्वर मिल जाए तो जीवन भी सफल है ...
गहरे भाव समेटे प्रभावी रचना ....

budh.aaah said...

kaash k hum iss akaatya satya se nahi haarte aur issey itni aasaani se swikaar kar patey :(

sameer inamdar said...

बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने.

निर्मला कपिला said...

बेहतरीन रचना। बधाई।

वाणी गीत said...

भयानक मृत्यु का सुन्दर स्वागत ...
कुछ कुछ गीतांजलि जैसे भाव ...
सुन्दर !

Sadhana Vaid said...

बहुत सुन्दर भाव और बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ! एक अद्भुत विश्वास और आस्था से परिपूर्ण आपकी यह रचना बहुत अच्छी लगी ! बधाई एवं शुभकामनाएं !

Kunwar Kusumesh said...

चित्र और कविता का तालमेल बेहतरीन है

abhi said...

कितनी खूबसूरती से आपने चित्र और कविता को जोड़ दिया है..बहुत बहुत सुन्दर..

देर से आया हूँ आपके ब्लॉग पे, अब आना बना रहेगा..

सतीश सक्सेना said...

पहली बार आपको पढ़ रहा हूँ !निस्संदेह आप अपना प्रभाव छोड़ने में समर्थ रही हैं ! आज से आपको भविष्य में पढने के लिए फालो कर रहा हूँ !
हार्दिक शुभकामनायें !

Dr Varsha Singh said...

really excellent!congratulation!

जयकृष्ण राय तुषार said...

khoobsurat likh dena hi paryapt hai sundar kavita ke saath sundar gajab ka sanyog

Babli said...

बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! चित्र भी बहुत सुन्दर है!

Pankaj Trivedi said...

नूतनजी,
खुद पे यकीं है,
'उस' की ताकत के परों पे सवार
ऊपर उठ जाऊँगा मैं |
जीने की मजबूरी में
इस दुनिया को जी जाउंगा मैं |
बहुत ही भावनात्मक रचना के साथ चित्र संयोजन है | दोनों के तालमेल से ईश्वर पर भरोसा और आपकी रचना के अर्थ भी अपनाप खुलते हैं | बधाई |

boletobindas said...

सही कहा है आपने। दुख इस बात का नहीं कि कब आकर जमीन पैरो तले से निकल जाए। सच में दुख तब होता है जब हम कोशिश करके भी स्थिति को संभाल नहीं पाते। दुख तब भी होता है जब देखते हैं कि महज चंद हजार के लिए 14 किसान एक ही दिन में खुदकुशी कर लेते हैं और एक शादी में करोड़ो रुपये खर्च हो रहे होते हैं। अगर कुछ लोग चाहें तो हजारों कि जिंदगी बच सकती है। पर यही तो किस्मत है हम सब कि। रोज ब रोज मर्मांतक सच से रुबरु होना पड़ता है क्या करें। आपके पेशे में तो खासकर।

anu said...

वाह, बहुत सुंदर प्रस्तुति एवं खूबसूरत चित्र .........

डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish') said...

मन के तारों को झंकृत करती रचना। बधाई।


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ईश्‍वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्‍होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

नूतन जी
बहुत प्रेरक विचार और , ख़ूबसूरत कविता के लिए आभार ! … और बधाई !!
मिला देना तू मुझे उस ख़ुदा से …
आख़िरकार सबको मिलना ही है …

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

अनामिका की सदायें ...... said...

पहली बार पढ़ा आपको...बहुत अच्छी कल्पना कर के बहुत सुंदर शब्दों से सजाया भावों को.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

डॉ. नूतन जी,
बहुत ही प्रेरणादायक पोस्ट है !
आसमान तो बस उसी का होता है जिसके पास हौसलों के पंख होते हैं !
साधुवाद !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

दीपांकर कुमार पाण्डेय (दीप) said...

सुन्दर प्रस्तुति
बहुत बहुत शुभकामना