फोटोग्राफी - डॉ नूतन गैरोला
अकेला मैं
एकटक
निहारता ,
दूर
ये क्षितिज
रात की शांति
तोडती
तड़ित ||
तीव्र ऊष्मा विस्फोट, और हूँ मैं विचलित,
ये धुवां जो घेर रहा है
ये धुवां जो घेर रहा है
रात के सन्नाटे को
सहस्त्र निनादो के संग
चीर रहा है ||
धीरे धीरे मौन,
ये असंख्य
सासों में घुस जायेगा
और अपना व्याधि साम्राज्यवहीं बसायेगा |
रहो होशियार,
सुन लो
तुम इसकी चीख पुकार
सुन लो
तुम इसकी चीख पुकार
न करो तांडव
बम, बारूद,
हथगोलो का
हथगोलो का
बहने दो स्वच्छ शीतल बयार.
खुश्बू सुगन्धित
झोंकों का,
झोंकों का,
न करंज कराल गर्जन हो.
गीत हो मृदुल
संगीत लहरियां का
संगीत लहरियां का
मन में धीमे बज उठते हो, ज्यूं सप्तक वीणा सितार...
न कम्पित होती हो
धरा औ दिल-
धरा औ दिल-
न लौ दीये की ,
निश्छल मन हो
स्वस्थ तन हो
और
लौ
लौ
हो सतत प्रकाशमान,
मन बन दीया, तन रुपी मंदिर का ||
मन बन दीया, तन रुपी मंदिर का ||
नूतन - यूं ही चलते चलते
दीपावली की रात को मैंने खींची थी कुछ तस्वीरें जिसमे ये भी एक है -- एकाकी निहारता मानस आसमान
एक सुन्दर चित्र सन्देश
20 comments:
फोटोग्राफी भी बहुत खूबसूरत है और फोटो पर लिखी कविता भी संदेशात्मक है ...अच्छी प्रस्तुति
बहुत सुंदर संस्मरण डॉ.नूतन!... कमाल की फोटोग्राफी, सुंदर रचना!...मन प्रसन्न हुआ!...ध्न्यवाद एमं अनोको शुभकामनाएं!
हुत सुंदर संस्मरण, कमाल की फोटोग्राफी, सुंदर रचना!...मन प्रसन्न हुआ!...ध्न्यवाद एमं अनोको शुभकामनाएं!
कमाल की फोटोग्राफी्……………बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
धन्यवाद संगीता जी
धन्यवाद अरुणा जी
धन्यवाद वंदना जी..
आप का आना यहाँ अच्छा लगता है और जब टिपण्णी देते है एक संबल मिलता है ब्लॉग में..
बहुत प्यारा संदेश दिया है आपने। बधाई।
बहुत मनोहारी अद्भुत चित्रण
Great pic ! and lovely creation.
नूतन जी आपका पहला चित्र, जिसमे सूरज पेड़ों के पीछे से अपना प्रकाश बिखेर रहा है, क्या कहूँ वो तो वास्तव में कमाल का है.
गजब है न शांति की ख्वाहिश। मन में, समाज में, देश में, संसार में। पर क्या होत है कि हम जितना शांति कि कोशिश करते हैं अशांति उतनी ही तेजी से हमारी ओर आती है। कभी आसपास के लोग तो कभी अनावश्यक तौर पर हिंसा पसंद लोग। दिया खुद जलता है, पर आंखो को दिवाली के दिन असीम शांति देता है। यानि जलना दिया को पड़ता है यानि उसका जलना हमें सुखद अहसास कराता है, सिर्फ इसलिए की वो जलकर भी अंधेरा से मुकाबला करता है। पर हम इंसान जलते हैं तो दुनिया को जलाने निकल पड़ते हैं, या खुद जलकर गल जाते हैं। यही जिदंगी कि विडंबना है, औऱ हकीकत भी। फिर भी शांति की कामना करना उसे निभाना हमारा धर्म है मानवीय धर्म। इसलिए आपकी कविता के माध्यम से अपने पूर्वजों की कामना को दोहराता हूं मन में शांति हो, विश्व में शांति हो, यहां तक की अंतरिक्ष में भी शांति हो। आमीन
सुन्दर कविता और मेरा एक पसंदीदा गीत - आओगे जब तुम साजना... और क्या चाहिये, शुक्रिया नूतन जी
सुंदर फोटोग्राफी और उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति . काश हम प्रकृति की शुद्धता को नजर अंदाज ना करते .
आप द्वारा खींची तस्वीर और उससे सम्बद्ध प्यारी - सी कविता पढ़के मज़ा आ गया.
बहुत खुबसूरत रचना
उतनी ही सुन्दर फोटोग्राफी
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है! हार्दिक शुभकामनाएं!
लघुकथा – शांति का दूत
धीरे धीरे मौन ...
बहुत प्रभावी रचना .... ये मौन एक दिन पूरे संसार को लील लेगा और बाकी रहेगी बी अस बारूद की गंध और धमाकों की आवाज़ .... शशक्त रचना ......
bahut der se aapke blog par on , bahut si rachnaaye padha, aapki photgraphy dekhi .. aap ek sacchi artist hai ji
blog ka colour mera pasandida colour hai ..aur aapki photography bhi gajab ki hai .. aur kavitao ke baare me kuch kya kahun , shabd nahi hai ,, itni acchi abhivyakti ke baare me kya kahun ..
my hats off to you nutan ji ..
mere bhi blogs hai photography par , kabhi dekhe ..aap jitni to acchi nahi , par theek hi hai ..
dhanywaad
vijay
hyderabad
एक संदेशात्मक कविता, चित्र भी खूब!!
Photograph achha laga.Badhai.
kamal ki photography aur kamal ki kavita bhi.......
bahut sundar sandeshatmak rachna aur kavita ke anuroop photograph..
pahlee baar aapka blog dekha.. bahut achha laga....
Haardik shubhkamnayen
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