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Sunday, April 4, 2010

दिल है छोटा सा साझा .... 20 अक्टूबर 2009 को 23:23 बजे


दिल है छोटा सा
20 अक्टूबर 2009 को 23:23 बजे





आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है
हंसी मुझको भाति है लेकिन,
इस हंसी के हजारो दुश्मन हुवे है


याद आती है बीती वो बाते
जब हम बच्चो सा खेला किये थे
दिल जो छोटा रह गया है
अपनों की दुहाई है चुप हुवे है

क्यों आती है जवानी क्यों आता बुडापा,
क्यों खिलते है फूल, क्यों झड़ता मुरझाता,
क्यों मिलता है जीवन, क्यों मिटता है जीवन,
क्यों ना अमर होते सभी, है ये ख्याल सिमट आता

आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है

Nutan 04- 09- 09




Translation by my Facebook Friend and a great Poet " Tanha Azmeri"

AN INNOCENT HEART
Today I’m tearful once again, tear droplets
As if my heart broke into a thousand fragments
Laughter does suit me but alas!
My laughter is envied by many an enemy.
Those days of yore I fondly remember
Like children so playful we were
This heart now reduced to a naught
Is the handiwork of the so-called ‘our lot’.
Why is there ‘youth’ n why the ‘old age’
Why does a flower blossom only to wilt n wither
Why are we given life only to be taken away
Why isn’t everyone immortal,this thought forever lingers.
Today I’m tearful once again....


दिल है छोटा सा साझा .... 20 अक्टूबर 2009 को 23:23 बजे


दिल है छोटा सा
20 अक्टूबर 2009 को 23:23 बजे





आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है
हंसी मुझको भाति है लेकिन,
इस हंसी के हजारो दुश्मन हुवे है


याद आती है बीती वो बाते
जब हम बच्चो सा खेला किये थे
दिल जो छोटा रह गया है
अपनों की दुहाई है चुप हुवे है

क्यों आती है जवानी क्यों आता बुडापा,
क्यों खिलते है फूल, क्यों झड़ता मुरझाता,
क्यों मिलता है जीवन, क्यों मिटता है जीवन,
क्यों ना अमर होते सभी, है ये ख्याल सिमट आता

आज फिर मेरी आँखों से आंशू बहे है ,
कतरा कतरा दिल के हजारो गिरे है

Nutan 04- 09- 09






AN INNOCENT HEART
Today I’m tearful once again, tear droplets
As if my heart broke into a thousand fragments
Laughter does suit me but alas!
My laughter is envied by many an enemy.
Those days of yore I fondly remember
Like children so playful we were
This heart now reduced to a naught
Is the handiwork of the so-called ‘our lot’.
Why is there ‘youth’ n why the ‘old age’
Why does a flower blossom only to wilt n wither
Why are we given life only to be taken away
Why isn’t everyone immortal,this thought forever lingers.
Today I’m tearful once again....


संवेदनाओं की मौत - एक कहानी नहीं एक हकीक़त !!! लेख-द्वारा-- डॉ नूतन गैरोला

और इस तरह सम्मोहन के हाथो संवेदनाओं की मौत हो गयी

हमारी संवेदनाये जाने कहाँ खो गईं .. उन्नति के इस दौर में जबकि हर कोई भाग रहा है ..जीतने के लिए नहीं .. साथ दौड़ते साथियों को पिछाड़ने के लिए .. तो मानवीय संवेदनाएं तो खुद-ब-खुद विलुप्त होती जा रही है मानव जेहेन से .. समय की मांग है . be practical .. तो प्रेक्टिकल बनने के लिए कई बार मानवीय संवेदनाओं की बलि दे दी जाती है... और देनी पड़ती है ..
एक कंक्रीट के जंगल के बगल में एक हरभरा उपवन कितना भी जरूरी हो .. वहां के बच्चों के लिए खेलने की जगह और सभी को सैर सपाटा .. घुमाने की जगह .. स्वच्छ- शुद्ध वायु..चिडियों की चहचहाट बच्चो की किलकारियों से भरा उपवन ..उसके दाम बढ़ जाते हैं .. और मालिक उसे हाथोहाथ बेच देता है... लोगो की निगाहें उस संपदा से आई खुशहाली पर नहीं उसकी व्यावसायिक मूल्य पर पड़ती है .. और बड़े बड़े बिल्डर और धनी लोग इसको खरीदकर उसे एक व्यावसायिक और आवासीय कालोनी में तब्दील करते हुए .. एक विराट कंक्रीट के सूखे जंगल में बदल जाता है वह लहलहता उपवन .. वह सुंदर बाग़ीचा


एक मरीज जो कि आखिरी सांस ले रहा है .. उसकी मौत का ठीकरा डॉक्टर पर न फूटे- डॉ को लाचारी ( consumer court की ) है उसे रेफेर कर दिया जाता है .. और चाहे वह उस जगह तक पहुंचने तक सांस ना रोक पाए ... कैसे डॉ का हाथ उस मरीज के इलाज के लिए खुजलाता है पर संवेदनाएं ..ताक में रखो बच्चू पहले अपनी सुध लो.... नहीं तो कहीं जूतमपैजार की नौबत ना आ जाये .. हैरान न हों- यही है माहौल .. काम करते हाथों को भी रोक लिया जाता है... क्योंकि रिश्ते की पवित्रता मिट चुकी है... आदमी का विश्वास डांवाडोल हो चुका है... Doctor Patient relaionship पर एक डॉक्टर की नियत पर भी शक़ किया जाता है... क्योंकि ज़माना ही ख़राब है... पर इसका भुक्तभोगी भी जडमाना है अविश्वास से पैदा हुआ complication ..और उसकी नियति एक और बड़ी संवेदनहीनता को जन्म देती हूई
ऐसे ही एक रेल दुर्घटना ग्रस्त हो जाती है .. आनन् फानन में रेल में सवार एक यात्री जो की दुर्घटना की चपेट में आ जाता है.. अपनी परेशानी और दुःख व सहायता के लिए अपने सबसे नजदीकी मित्र को ( जो कि पेशे से एक पत्रकार है और उस वक़्त अपने कार्यालय में है को ) फ़ोन करता है और बताता है की कि अभी अभी यहाँ अमुक जगह पर रेल दुर्घटना हूवी और मैं उसमे फंसा हूँ ..पर पत्रकार मित्र जो कि रोज बुरी से बुरी खबर सुनने का आदी हो चुका है..चिल्ला कर अपने ऑफिस में इत्त्ल्ला करता है कि नोट करो अमुक जगह रेल दुर्घटना हूवी है और कार्यालय में इस सन्दर्भ में आदेश देने लगता है की खबर कही और ना छपे पहले यही से ... और मित्र को कहता है कि ज़रा बाद में फ़ोन करता हूँ .. मित्र चुपचाप अपनी व्यथा पर रोता है .. और अन्य जगह पर फ़ोन मिलाता है.. तो देक्खा .. कैसे आगे बढ़ने की दौड़ में मित्र कि परेशानी नजरअंदाज हो गयी और संवेदना अपनी मौत पर अकुला गयी ....

उसी तरह एक परिवार जो कि अपने कुलपुरोहित का बहुत सम्मान और प्रेम करता है... हर सुख दुःख में अपने पुरोहित को याद करता है | और पुरोहित के हर सुख दुःख में उसका पूरा साथ निभाता है... वही महिला जो कि अपने हाथो पुरोहित के पाँव पगारती है..भोजन करवाती है... पुत्रिया और पुत्र भी उनकी खातिर में कोई कमी नहीं छोड़ते .. एक तो पुरोहित .. दूसरा अपने पडोसी .. तीसरा कई वर्षो से साथ साथ परिवारों ने हर ऋतुवो को आते जाते देखा तो एक अपनापन अच्छाखासा .. कम से कम बाहरी तौर पर दिखाई देता .. और उसी महिला कि मौत पर तथाकथित कुलपुरोहित को अचानक आना परता है ..मृत्योपुरांत किये जाने वाले संस्कारों के लिए... पंडित जी को अपने अन्या जजमान दिखाई दे रहे है... जिनको मोटी मुर्गी कहा जा सकता है.. जो कि इस अचानक के संस्कारो की वजह से हाथो से छूट सकते है ..पुत्रिया जिनके जीने का सहारा जिनका सहारा और जिनकी माँ रुपी सबसे प्यारी सहेली इस दुनिया को छोड़ कर जा चुकी .. इस गम से व्याथित अपने जीवन को त्यागने का तक विचार करती हूवी.. जिनके लिए माँ कभी मर नहीं सकती... अभी अभी का एक दम ताज़ा घाव जिसको वो स्वीकार नहीं पा रही हैं .. फिर भी आखिरी बार अपनी सुहागवती माँ को सोलह श्रिंगार कराती हूवी.. और तभी जजमान मोटी मुर्गी का ख्याल आया पुरोहित को .. और उसने कफ़न एकदम लडकियों के ऊपर से फैंका और कहा .. शव को इस कफ़न के अन्दर डालो .. अचंभित सी लडकिया ..जो कि अभी माँ कि मृत्यू पर भी विश्वास नहीं कर पा रही है .. पूछती है क्या कहा आपने .. पुरोहित कहता है ..शव को धीरे धीरे कफ़न के अन्दर खिसकाओ .. दौड़ती भागती दुनिया में संवेदनाओं का होता इतना गहरा ह्रास .. वो बच्चिया उस पुरोहित की बात पर बहुत व्याकोल हो उठती है... वो देह एक मिनट में ही शव के अलावा कुछ नहीं रहती उस पुरोहित के लिए जो उस महिला के घर यदा कदा आ कर, भोजन चट कर जाता था | यह भी ना सोचा जा सका उस पुरोहित से कि ये तो बेटिया है उस मां की ..और इनसे , उनके लिए शव कहना कहा तक शोभा देगा.. .. क्या यही संवेदनाये है मानव की... कितना स्वार्थी हो गया है इंसान .. क्या होगा इस स्वार्थी समाज का .. ........

.................जहाँ एक बचपन का मित्र नए मित्रो की चाह में अपने जिगर के टुकड़े जैसे मित्र को अपने से अलग कर दुनिया की भीड़ में यह कह के चला जाता है की उसे नए मित्र मिल जायेंगे .... और उस से सम्बन्ध विच्छेद कर देता है बिना किसी अपराध के .. कितना प्रक्टिकल है ये समाज .. ऐसे समाज में अगर संवेदनाये ही ना हो तो लगता है ज्यादा अच्छा होता होगा .. जिनकी संवेदनाये शून्य है ..न्याय भी उन्ही को मिलता है... क्या ऐसे समाज में न्याय की कामना भी की जा सकती है??... जो न्याय भी संवेदनहीन हो .. ..

लुत्फ़ बीमारी के..DR Nutan NiTi

हाय रे- जब भी मै रात्री इमरजेंसी करती हूँ .. घर जाती हूँ सुबह का उजाला दिल जला रहा होता है और में गृह कार्यो में अपना हाथ  बंटाने  लगती हूँ फिर दिन की OPD करती हूँ और आते जाते कोरिडोर से वार्ड पर निगाहें जाती है तो मेरा दिल बैठने लगता है ..अभी परसों की ही तो बात है एक नेता जी की बीबी को थोडा सा हल्का बुखार था और सारा हॉस्पिटल दौड़ाया हुवा था ..बाकी के मरीज भी नेता जी के हल्ले के आगे अपनी तकलीफ को हल्का पा रहे थे ... और मै तो उस लुत्फ़ का अंदाजा ले रही थी जो  महोतर्मा साहिबा को मिल रहा था .. हम एक पैर पर उनके सिरहाने पर थे खड़े सर झुकाए ..जैसे कोई गुनाह हमने ही किया हो .. ये बुखार उनको हुवा नहीं मानों हमने दिया हो और अब हम को ही सजा भुगतनी है... हाय रे विधाता ! क्या यही विधान है ..मै इतनी स्वस्थ क्यों ..कब मेरा नंबर आये और हो जाऊं मैं  बीमार .. भगवान् को लड्डू चढ़ाउंगी .. हे प्रभू ! हे दीनो के नाथ !! कुछ तो रहम कर और कर दो हमें भी बीमार .. हो जाये हल्का सा बुखार .. आये एक दो उलटिया .. और हो जाये लाल आँख .. यूं तो हम ज्यादा न हो बीमार पर दिखे जैसे हो हम अत्यंत बीमार .. कुछ साहस हमें भी देना प्रभो कि आये न हमें पर हम चक्करघिन्नी खाए और जहाँ बहुत भीड़ हो वहीँ पर गिर जाये और जमीन पर लोटपोट जाये.. तब क्या आनंद होगा .. हम को भी इधर उधर से लोगो ने पकड़ा होगा.. कोई पंखा झलता होगा .. कोई चिल्लाता होगा हटो हटो ..रास्ता छोड़ो ..लगता होगा कि आये है किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री .. और होगा मेरा भी वैसा ही राजसी आव -भगत, सेवा - सुश्रुषा .. कोई निम्बू पानी लाता होगा .. कोई गाड़ी में हमें सहारे से लिटाता होगा .. अस्पताल कि घंटिया घनघनायेंगी मानों कि टाए टाए कर मंत्री की गाड़ी की लाल बत्ती झिलमिलाई .. डॉक्टर भी अदब से नब्ज देखते होंगे... और डर डर के प्रश्न करते होंगे बीमारी का इतिहास रिकॉर्ड करते होंगे और खून जांच के लिए सेम्पल निकालने वाले के होश फाकता हो रहे होंगे लगता होगा मानों वो सुई नहीं चुभा रहा वरन कोई नस्तर घोप रहा हो खून की  नदियाँ  बहा रहा हो २ मिली खून निकालाना ऐसा लग रहा हो जैसे २ लीटर खून ज़ाया कर दिया हो ..डर से उसका रंग पीला पड रहा हो मानो अभी अभी टेक्निसियन ही दो यूनिट रक्तदान कर खड़ा हो .. मै सर उठाऊ तो घर वाले कहेंगे लेटे रहो लेटे रहो... मेरी एक आह पर सारा हॉस्पिटल दौड़ता होगा ..... कई कहेंगे अरे हुवा .क्या......डॉक्टर के चेहरे पर घबराहट होगी कहने में भी असमर्थ कि इन्हें ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसमे इन्हें अस्पताल भर्ती किया जाए .. मै हाथ उठाऊँ तो लोग कहे अरे अरे जरा धीमे से... कोई मेरे हाथ के नीचे तकिया लगाये ..कोई मेरी सिरहाने पे तकिया को सही लगाएगा.. कोई चम्मच से मुझे फलो का रस पिलाएगा कोई अंगूर लाये कोई जूस .. और बड़े प्रेम से सब मुझे खिलाने की कोशिश .. अरे वाह क्या ठाट होंगे लेटे लेटे ही चीलमची में दन्त मंजन होगा .. गुनगुने तोलिये से कोई मुह पौंछता होगा.. पाऊडर , सेंट, डी - ओडो छिडकता होगा , फिर आएगी बारी तेल की...मेरे सर पर तेल डाल कोई सर दबाता होगा.... कोई रिश्तेदार कहती होंगी कि क्या पैर दबा दूं .. दूर दूर से लोग मुझे मिलने आते होंगे ..मित्र और रिश्तेदार ग्रीटिंग कार्ड लाते होंगे ..झुक झुक कर कहते होंगे - गेट वेल सून .. किसी के हाथ में फूल तो कोई बुक्के लाते होंगे .. मेरे एक हाथ में फोन होगा और रिश्तेदारों और मित्रो के फोन आते होंगे कैसी हो ..जल्दी ठीक हो जाओ .. और लोग शुभकामनाये देते होंगे .. और दुसरी तरफ मेरे  मुंह  में अनार के दाने मेरी भाभी डाल रही हो .. मेरा तो मन बाग़ बाग़ हो जायेगा.. मन कि बगिया में फूल खिल जायेंगे.. और मै फूल लेने खड़ी हो जाऊंगी..ख़ुशी से नाच उठूँगी ...डॉक्टर देख लेगा खुशी से कहेगा मरीज चंगा हो गया है..अब इन्हें कर देते है हम डिस्चार्ज ( मानों उनका सर दर्द जल्दी चला जाए ) ...तब तक आएगी आवाज धढ़ाम और मै फिर गिर जाऊंगी....... चुपके से एक आँख से देखूँगी कि कोई मुझे उठाने आया... और नहीं तो लगूंगी करहाने जोर जोर से... अरे...अरे समझा करो बीमारी के भी होते है अपने लुत्फ़ ...आराम का आराम और वी-वी-आई-पी ट्रीटमेंट चाहे कोई बीमारी हो न हो ...... " डॉ साहब  औप्रेसन  थीअटर कि तैयारी हो गयी मरीज शिफ्ट कर दिया... स्टाफ नर्स सामने खड़ी थी .. इतना आनंददाई क्षण था ये - अफ़सोस ख्वाब भी नहीं देखने देते ये मुझे ...अभी अब जाना  पड़ रहा है....ड्यूटी जो बजानी है कर्त्तव्य - परायणता ..ओपरेशन थीएटर के बाहर लोगो के हाथ में बुक्के -मरीज के लिए .....काश कि चक्कर आ जाते .. जाना है काम पर , जा रही हूँ... बाई बाई .. जरा मेरे लिए शुभकामनाये दे दीजिये ..मेरे बीमार होने के लिए नहीं ..मेरे मरीज की जल्दी खुशहाली के लिए .........

Created by ॥ Dr Nutan Gairola 04/ April /2010
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लुत्फ़ बीमारी के

हाय रे- जब भी मै रात्री इमरजेंसी करती हूँ .. घर जाती हूँ सुबह का उजाला दिल जला रहा होता है और में गृह कार्यो में अपना हाथ बांटने लगती हूँ फिर दिन की OPD करती हूँ और आते जाते कोरिडोर से वार्ड पर निगाहें जाती है तो मेरा दिल बैठने लगता है ..अभी परसों की ही तो बात है एक नेता जी की बीबी को थोडा सा हल्का बुखार था और सारा हॉस्पिटल दौड़ाया हुवा था ..बाकी के मरीज भी नेता जी के हल्ले के आगे अपनी तकलीफ को हल्का पा रहे थे ... और मै तो उस लुत्फ़ का अंदाजा ले रही थी जो मोहोतार्मा साहिबा को मिल रहा था .. हम एक पैर पर उनके सिरहाने पर खड़े सर झुकाए ..जैसे कोई गुनाह हमने ही किया हो .. ये बुखार उनको हुवा नहीं मानों हमने दिया हो और अब हम को ही सजा भुगतनी है... हाय रे विधाता क्या यही विधान है ..मै इतनी स्वस्थ क्यों ..कब मेरा नंबर आये और हो जाऊं मै बीमार .. भगवान् को लड्डू चढ़ाउंगी .. हे प्रभू ! हे दीनो के नाथ !! कुछ तो रहम कर और कर दो हमें भी बीमार .. हो जाये हल्का सा बुखार .. आये एक दो उलटिया .. और हो जाये लाल आँख .. यूं तो हम ज्यादा न हो बीमार पर दिखे जैसे हो हम अत्यंत बीमार .. कुछ साहस हमें भी देना प्रभो कि आये ना हमें पर हम चक्करघिन्नी खाए और जहाँ बहुत भीड़ हो वहीँ पर गिर जाये और जमीन पर लोटपोट जाये.. तब क्या आनंद होगा .. हम को भी इधर उधर से लोगो ने पकड़ा होगा.. कोई पंखा झलता होगा .. कोई चिल्लाता होगा हटो हटो ..रास्ता छोड़ो ..लगता होगा कि आये है किसी प्रदेश के मुख्यमंत्री .. और होगा मेरा भी वैसा ही राजसी आव -भगत, सेवा - सुश्रुषा .. कोई निम्बू पानी लता होगा .. कोई गाड़ी में हमें सहारे से लिटाता होगा .. अस्पताल कि घंटिया घनघनायेंगी मानों कि टाए टाए कर मंत्री की गाड़ी की लाल बत्ती झिलमिलाई .. डॉक्टर भी अदब से नब्ज देखते होंगे... और डर डर के प्रश्न करते होंगे बीमारी का इतिहास रिकॉर्ड करते होंगे और खून जांच के लिए सेम्पल निकालने वाले के होश फाकता हो रहे होंगे लगता होगा मानों वो सुई नहीं चुभा रहा वरन कोई नस्तर घोप रहा हो खून की नदिया बहा रहा हो २ मिली खून निकालाना ऐसा लग रहा हो जैसे २ लीटर खून जाया कर दिया हो ..डर से उसका रंग पीला पड रहा हो मानो अभी अभी टेक्निसियन ही दो यूनिट रक्तदान कर खड़ा हो .. मै सर उठाऊ तो घर वाले कहेंगे लेटे रहो लेटे रहो... मेरी एक आह पर सारा हॉस्पिटल दौड़ता होगा ..... कई कहेंगे अरे हुवा .क्या......डॉक्टर के चेहरे पर घबराहट होगी कहने में भी असमर्थ कि इन्हें ऐसी कोई बीमारी नहीं जिसमे इन्हें अस्पताल भर्ती किया जाए .. मै हाथ उठाऊँ तो लोग कहे अरे अरे जरा धीमे से... कोई मेरे हाथ के नीचे तकिया लगाये ..कोई मेरी सिरहाने पे तकिया को सही लगाएगा.. कोई चम्मच से मुझे फलो का रस पिलाएगा कोई अंगूर लाये कोई जूस .. और बड़े प्रेम से सब मुझे खिलाने की कोशिश .. अरे वाह क्या ठाट होंगे लेटे लेटे ही चीलमची में दन्त मंजन होगा .. गुनगुने तोलिये से कोई मुह पौंछता होगा.. पाऊडर , सेंट, डी - ओडो छिडकता होगा , फिर आएगी बारी तेल की...मेरे सर पर तेल डाल कोई सर दबाता होगा.... कोई रिश्तेदार कहती होंगी कि क्या पैर दबा दूं .. दूर दूर से लोग मुझे मिलने आते होंगे ..मित्र और रिश्तेदार ग्रीटिंग कार्ड लाते होंगे ..झुक झुक कर कहते होंगे - गेट वेल सून .. किसी के हाथ में फूल तो कोई बुक्के लाते होंगे .. मेरे एक हाथ में फोन होगा और रिश्तेदारों और मित्रो के फोन आते होंगे कैसी हो ..जल्दी ठीक हो जाओ .. और लोग शुभकामनाये देते होंगे .. और दुसरी तरफ मेरे मुह में अनार के दाने मेरी भाभी डाल रही हो .. मेरा तो मन बाग़ बाग़ हो जायेगा.. मन कि बगिया में फूल खिल जायेंगे.. और मै फूल लेने खड़ी हो जाऊंगी..ख़ुशी से नाच उठूँगी ...डॉक्टर देख लेगा खुशी से कहेगा मरीज चंगा हो गया है..अब इन्हें कर देते है हम डिस्चार्ज ( मानों उनका सर दर्द जल्दी चला जाए ) ...तब तक आएगी आवाज धढ़ाम और मै फिर गिर जाऊंगी....... चुपके से एक आँख से देखूँगी कि कोई मुझे उठाने आया... और नहीं तो लगूंगी करहाने जोर जोर से... अरे...अरे समझा करो बीमारी के भी होते है अपने लुत्फ़ ...आराम का आराम और वी-वी-आई-पी ट्रीटमेंट चाहे कोई बीमारी हो ना हो ...... " डॉ साहब ओपरेशन थीअटर कि तैयारी हो गयी मरीज शिफ्ट कर दिया... स्टाफ नर्स सामने खड़ी थी .. इतना आनंददाई क्षण था ये - अफ़सोस ख्वाब भी नहीं देखने देते ये मुझे ...अभी अब जाना पढ़ रहा है....ड्यूटी जो बजानी है कर्त्तव्य - परायणता ..ओपरेशन थीएटर के बाहर लोगो के हाथ में बुक्के .....काश कि चक्कर आ जाते .. जाना है पर , जा रही हूँ... बाई बाई .. जरा मेरे लिए शुभकामनाये दे दीजिये ..मेरे बीमार होने के लिए नहीं ..मेरे मरीज की जल्दी खुशहाली के लिए .........


Created by ॥ Dr Nutan Gairola 04/ April /2010

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