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Saturday, September 11, 2010

एक मीठी नींद के लिए आगाज.... Dr Nutan Gairola


 एक मीठी नींद के लिए आगाज


जब   चाँद   गगन   पर   आने  लगे , 
और रात का अँधेरा शर्माने लगे  |   
तुम एक नीलिमा सी बन फूलों की,  
मेरे सपनो में आ गुनगुनाने   लगे  |  
 पलकों   को  परियां  झुलाने   लगे ,
मीठी निंदिया हिलोरे लगाने लगे ||  


.........by nutan
एक मीठी नींद  के   लिए आगाज .have a sound n soothing sleep.. Good Night...Dr Nutan Gairola...
feb 13 - 2010
फोटो  सौजन्य  -गूगल इमेज  
पोस्टेड इन ब्लॉग ओं   १२ / ०९/ २०१० ...१२ : २५

Wednesday, September 8, 2010

" खतरा है - होशियार ! खबरदार " ...एक लेख ..डॉ नूतन

" खतरा है - होशियार ! खबरदार "

नेट -
जी हां - जिसका नाम ही नेट है मतलब कि जाला - जो इस नेट / जाले में गिरा वो फंसा |
चाहे जाल पक्षी को पकड़ने के लिए फैंका गया हो, या फिर जानवर या कीट पतंगों के लिए - जाल पड़ा नहीं कि फंसा |
मैंने मकड़ियो के जालो में फंसे कीड़ो को तडपते देखा है - फंसते चले जाते है जालों के तानो बानो में और मकड़ी के हाथ काल के ग्रास बन जाते है |
पर इन्टरनेट का जाला इन जालो से भी खतरनाक - स्वयं आदमी द्वारा निर्मित - जहाँ आदमी स्वेच्छा से आता है पर हर एक सरल क्लिक के साथ अलग अलग किस्म के जालो में धंसता चला जाता है |
गनीमत है कि वो वहां अटका ही रहे - बड़ी बात कि वो बाहर निकल जाये - लेकिन वो फंसता ही चला जाता है |
ये जाले एक से एक रंगीन तानो बानो का बुना होता है - बड़ा आकृष्ट करने वाला लुभावना होता है
और सजे रहते है विभिन्न सजावटी सामानों से मसलन कि कहीं जानकारियों का अड्डा, कहीं लेख, कही गाने, कहीं चित्र, कहीं मित्र आदि - लेकिन सभी काल्पनिक , जब तक कि हकीक़त में न हो अपने पास - जैसे कि काल्पनिक गाजर का हलुवा का एक चित्र, लीजिये उड़ा लीजिये मजा नेट के मित्रो के साथ लेकिन काल्पनिक
और अगर मानवीय भावनाओं का रंग चढ़ा कर पेश किया जाए तो ? आदमी इस भूल भुलैया में फंसता चला जाता है और हकीक़त से दूर दूर होता चला जाता है |
काल्पनिक संसार की हकीक़त ही में जीने लगता है |
तब सुख दुःख भी वहाँ सुख दुःख के साथी भी वहाँ |
अच्छे साथी मिले तो काल्पनिक संसार कि वास्तविकता में ख़ुशी आ जाती है और वास्तविक मित्रता भी हो जाती है ,
पर ज्यादातर गाजर के हलुवे के चित्र की हकीक़त जैसे - मुखौटो के संग |
ऐसे में मानवीय भावनाओं का शोषण होने का पूर्ण खतरा , मानसिक उत्पीड़न का भय और दिल टूटने की पीड़ा |
इंसान मुक्ति के लिए हाथ पैर पटकता है पर मोह जाल जैसा ये जाला - जाला भी क्या करे उसने तो नहीं कहा था कि तुम आओ, जो अब कह दे कि अब चले जाओ
और कुछ अदद मकड़े आदमी का मुखौटा लगाये तैयार खड़े इस भोले आदमी का निवाला बनाने l बेचारा आदमी, जालों के चक्रव्यूह को तोड़ कर वापस नहीं लौट पाता - ऐसे में मनोचिकित्सक भी क्या ख़ाक करेंगे इस दर्द का इलाज
दवाइयों का सहारा
कांच फर्श पर गिर जाये तो आवाज होती है पर यहाँ तो बिना आवाज के सब कुछ टूट जाता है - लो बैठे बिठाये घर के कमरे में ही मुसीबत |
टूट जाती है इंसानी फितरत ,यकीन , रिश्ते - पर नहीं टूटता है तो ये जाला |
जाल और दमकता जाता है नित नए नए रंगों के साथ और हर रोज हजारो नए इंसानी कीड़े इस जाले के अन्दर घुसते है और ये सिलसिला बदस्तूर यूं ही चलता रहता है हर क्लिक के साथ
कुटिल समझदार लोगो के लिए है ये दरवाजा - जो दिमाग से बोलते हैं |
जो दिल से बोलते  हैं  और दुसरे पर भी ऐसा ही यकीन करते हैं, ऐसे सीधे सच्चे इंसान नेट / जाल में बैठे मकड़ों का शिकार हो जाते  हैं | 
" खतरा है - होशियार ! खबरदार "

.....Dr Nutan  .. 09/092010 .. 6:30 A:M










Tuesday, September 7, 2010

कृष्ण तुम हो कहाँ ?............ डॉ. नूतन "अमृता "



कृष्ण तुम हो कहाँ ?

तुम कौन ?
तुम कौन जो धीमे सा एक गीत सुना देते  हो  ,
मन के अन्दर एक रोशन  करता दीप जला देते  हो
बंद कर ली मैंने सुननी कानों से आवाजें ,
जब से सुन ली मैंने अपने दिल की ही आवाजें |


तुम भूखे बच्चो के मुंह से निकली क्रंदन वेदना सी,
तुम जर्जर होते अपेक्षित माँ बापू के विस्मय सी
तुम पेट की भूख की खातिर दौड़ते बेरोजगार युवा सी,
तुम खुद को स्थापित करती एक नारी की कोशिश सी,
तुम आतंकियों की भेदी लाशो की निरीह आत्मा सी ...



तुम हो दर्द चहुँ दिशा फैला,
क्यों मन मेरे प्रज्वलित हुवा है,
धधका जाता है मेरे मन में फैला हुवा इक भय सा,
मैंने बंद कर ली है कानो से सुननी वो आवाजें
आत्म चिंतन - मंथन पीड़ा की,
दूर करे जो इस जग से मेरे
वो अवतरित हुवा इस युग का कृष्ण,
तुम हो या तुम हो या -

तुम में कौन ? ...........By Dr Nutan




कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण को पुकार..
आज इस युग में हमें कृष्ण की बहुत जरुरत है समाज में छाई बुराइयों का अंत करने के लिए .. और वो कृष्ण हम में भी विद्वमान है .. जरूरत है अपने अन्दर झाँकने की ..और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने की .. बुराइयों को पराजित करने की और हिम्मत सच का साथ देने की ॥ ... डॉ. नूतन "अमृता " 


by Dr Nutan .. 20:41 ..01 - 09 - 2010

Monday, September 6, 2010

तरोताजा दिन, चाय की चुस्कियों के संग...... nutan amrita


मृदु मंद सुगन्धित शीतल बयार हो,
आशाओं से सिंचित जीवन के तार हो,
कर्म में सृजनता व दिल में लगाव हो,
प्रफुल्लित मन हो खुशियों का संचार हो ..

शुभप्रभात और शुभदिवस की कामनाओं के साथ , आपका दिन अनुकूल हो ..
और हो एक तरोताजा दिन ..


मेरे पेज पर चाय के साथ स्वागत है आपका :))




चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी