हमने अँधेरा देखा है
एक अहसास बुराई का
ये दोष अँधेरे का नहीं
ये दोष हमारा है
हमने क्यों मन के कोने में
इक आग सुलगाई अँधेरे की
खुद का नाम नहीं लिया हमने
बदनाम किया अँधेरे को.......
एक पक्ष अँधेरे का है गुणी
कुछ गुणगान उसका तुम करो
अँधेरा है तो दीया भी है
अँधेरे सा निर्विकार प्रेम तुम करो |
अँधेरे की प्रीति दीये के संग
दीये के अस्तित्व को लाती है
फिर मिटा देता है खुद को ही
और दीये की रौशनी छाती है ......
पूजा न जाता दीया मगर
बलिदानी न होता तम अगर
खो गया वो उपेक्षित और उपहास लिए ,
गुमनामी के अंधेरो में |
तुम तम सम रोशनी के लिए
कुछ त्याग करके तो देखो
एक चिंगारी सुलगा के तो देखो
तुम दीप जला-के तो देखो
अँधेरा मिटा के तो देखो |
डॉ नूतन गैरोला
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