मेरे जिस्म में जिन्नों का डेरा है |
कभी ईर्ष्या उफनती,
कभी लोभ, क्षोभ
कभी मद - मोह,
लहरों से उठते
और फिर गिर जाते ||
पर न हारी हूँ कभी |
सर्वथा जीत रही मेरी,
क्योंकि रोशन दिया
रहा संग मन मेरे,
मेरी रूह में ,
ईश्वर का बसेरा है ||
स्वरचित - द्वारा - डॉ नूतन गैरोला 11-09-2010 17:32