अस्पताल की छत से वह आज चुपचाप महसूस करना चाहती थी-- साँसें जो उखड रहीँ थीं चंद घड़ियों का बस एक प्रश्न था….. लय में बीब करती उपकरणों की आवाजें क्योंकि दिल अभी रुका ना था ……. सहमे से थे लोग सभी उनका अपना जुदा होने को था... एक तीखा दर्द अभी महसूस हुवा था लगा, शरीर सेआत्मा का रिश्ता बचा हुवा था… तभी गडगडाहट शुरू हुवी मशीनों की ऑक्सीजन, डीफ्रिब्लेटर और थपथपाहट सीने में घुपता तीखा दर्द सुई का.. यह बहाना न चलेगा अब कोई और बहाना होगा जाने का फिर कभी वह जिद छोड़ छत से नीचे उतर आई पसर कर फिर से बस गई अपने टूटे घर में क्योंकि समय अभी शेष था देह का |
डॉ नूतन गैरोला … १३ / ०७ /२०११ १६:२४ |