फोटोग्राफी - डॉ नूतन गैरोला
अकेला मैं
एकटक
निहारता ,
दूर
ये क्षितिज
रात की शांति
तोडती
तड़ित ||
तीव्र ऊष्मा विस्फोट, और हूँ मैं विचलित,
ये धुवां जो घेर रहा है
ये धुवां जो घेर रहा है
रात के सन्नाटे को
सहस्त्र निनादो के संग
चीर रहा है ||
धीरे धीरे मौन,
ये असंख्य
सासों में घुस जायेगा
और अपना व्याधि साम्राज्यवहीं बसायेगा |
रहो होशियार,
सुन लो
तुम इसकी चीख पुकार
सुन लो
तुम इसकी चीख पुकार
न करो तांडव
बम, बारूद,
हथगोलो का
हथगोलो का
बहने दो स्वच्छ शीतल बयार.
खुश्बू सुगन्धित
झोंकों का,
झोंकों का,
न करंज कराल गर्जन हो.
गीत हो मृदुल
संगीत लहरियां का
संगीत लहरियां का
मन में धीमे बज उठते हो, ज्यूं सप्तक वीणा सितार...
न कम्पित होती हो
धरा औ दिल-
धरा औ दिल-
न लौ दीये की ,
निश्छल मन हो
स्वस्थ तन हो
और
लौ
लौ
हो सतत प्रकाशमान,
मन बन दीया, तन रुपी मंदिर का ||
मन बन दीया, तन रुपी मंदिर का ||
नूतन - यूं ही चलते चलते
दीपावली की रात को मैंने खींची थी कुछ तस्वीरें जिसमे ये भी एक है -- एकाकी निहारता मानस आसमान
एक सुन्दर चित्र सन्देश