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 वो एक कलाकार था और एक चित्रकार भी
 रंग भरता रहा जिन तस्वीरों पर
 यादों के पन्नों पर उकेरी वो आकृतियाँ
 चटख रंगों से
 हर आँखों में असमंजस भरती हुवी
 मन का केनवास नहीं बदला था,
 बदली नहीं थी कुछ हाथ की तूलिकाएं
 बदला था दिल
 बदल गए थे पात्र
 महज कुछ तूलिकाएं जो जुडी थी उस स्त्री की यादों से
 फैंक दी गयीं
 दूर से ही केनवास पे नजरे गाढ़े वह स्त्री
 और उसे जलाता गया वह चित्रकार
 निःशब्द थी वह स्त्री, मौन आवाक
 और उंगलियां चित्रकार की खींचती रही नित नयी कई आकृतियाँ
 निर्वस्त्र रेखाएं, पिघलते रंगों से दहकते ढकते
 और आँखों पे उस स्त्री के कोई किरकिरा चुभता रहा
 साँसों को काटता बरछी सा
 सीने को चाक करता रहा
 और वह मूक जलती रही
 तीव्र प्रेम की वेदना में धुंवा धुंवा होती रही
 जाना था उसने प्यार है
 ये जलना, पिघलना, धुंवा होना, राख होना
 उस स्त्री को रास आने लगा था जलना
 कहती थी वह-
 चित्रकार तू जलाता रह
 तेरी जिद की हद भी मैं जानती हूँ
 अब मैं सिर्फ धुंवा होना राख होना मांगती हूँ
 और बस आखिर में एक और अहसान मांगती हूँ
 मेरी कुछ तस्वीरें जो बोझा होंगी नए चित्रों के रिश्तों में
 और धूल में पड़ी कहीं कूड़े में अपना ठिकाना ढूंढती होंगी,
 बस एक एक कर उन चित्रों को जला दे,
 कर्ज इस स्त्री की वफ़ा का कुछ इस तरह चुका दे
 फिर खुद को स्वछन्द खुली हवा दे,
 और नए रंगों को, नयी आकृतियों को अपने केनवास  में पनाह दे,
 इस जलन को इस आग को खुल के हवा दे|     
 Photo –  My Own Photo Edited in Web.   डॉ नूतन डिमरी गैरोला  
 
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