चिंतन एक पागल के मन का |
मन रे पागल मन
कभी इस डाल से बंधता
तो कभी दूर छिटकता
तो कभी इस पात पे होता
तो कभी उस शाख से फंसता
कभी इस डाल से बंधता
तो कभी दूर छिटकता
तो कभी इस पात पे होता
तो कभी उस शाख से फंसता
कभी तुझे सड़कों पे देखा
तो कभी मिट्टी से लोटा
तो कभी मिट्टी से लोटा
मैंने देखा है तुझे नाचते इठलाते
अपनी धुन में गुनगुनाते
तो कभी बुझे मन से चुप
अपनी धुन में खोया
गुमसुम सा किसी
दुकान के नीचे सोया
अपनी धुन में गुनगुनाते
तो कभी बुझे मन से चुप
अपनी धुन में खोया
गुमसुम सा किसी
दुकान के नीचे सोया
कभी किसी मकान के पीछे
कागज के चिथड़े पर
कुछ अंकित करता हुवा
यूँ कि जैसे कोई
ख़त लिखता हुवा
जो दर्द कोई न समझे
उस दर्द को बयाँ करता हुवा
कागज के चिथड़े पर
कुछ अंकित करता हुवा
यूँ कि जैसे कोई
ख़त लिखता हुवा
जो दर्द कोई न समझे
उस दर्द को बयाँ करता हुवा
मन ऐ मन मैंने पाया है
तुझे भीड़ में या कभी सुनसान में
तू चिल्लाता हुवा सड़क पर
कभी किसी राहगीर पर
बेवजह गुर्राता हुवा
तुझे भीड़ में या कभी सुनसान में
तू चिल्लाता हुवा सड़क पर
कभी किसी राहगीर पर
बेवजह गुर्राता हुवा
यह वजह बेवजह नहीं
यह उस घुटन का
यह उस घुटन का
उस तड़पन का
उस छटपटाहट का
उस छटपटाहट का
उस चुभन का
अहसास है जो उस मन की
तुमने कभी सुनी न देखी
अहसास है जो उस मन की
तुमने कभी सुनी न देखी
कभी तेरे दर्द का
किसको अहसास रहा
तू दर्द में रोता रहा
देख यह कोई हँसता रहा
तू जब भी पीड़ा से छटपटाता रहा
देख यह कोई तुझे थप्पड़ लगाता रहा
तू दर्द सारे बीती बाते,
तू दर्द में रोता रहा
देख यह कोई हँसता रहा
तू जब भी पीड़ा से छटपटाता रहा
देख यह कोई तुझे थप्पड़ लगाता रहा
तू दर्द सारे बीती बाते,
बीती यादे दिल में छुपाये
अपने दिल के दर्द के अहसासों को दबाये
गलियों में हँसता गाता रहा है
अपने दिल के दर्द के अहसासों को दबाये
गलियों में हँसता गाता रहा है
तेरी उलझन पीड़ा का उफान
जब हद से पार हुवा है
तेरा क्या कसूर
तुने बहुत रोका
भावनाओं के उन सैलाबों को
अजीबो गरीब ख्यालातों को
जब बांधे नहीं बंधा, तो टूट गया
तूफ़ान हवा में उठ गया,
और फिर तू रोता
हँसता गिड़गिडाता
गली में चीखता चिल्लाता,
कभी डंडा पटकते तो
कभी पत्थर उठाये
एक पांव में जूता तो
दुसरे में मोजा लगाये
अपनी भावनाओं पे
दुसरी भावनाओं को दर्शाता हुवा,
रोता मन तू हँसता गाता हुवा ,
फटे चिथड़ों से
जब हद से पार हुवा है
तेरा क्या कसूर
तुने बहुत रोका
भावनाओं के उन सैलाबों को
अजीबो गरीब ख्यालातों को
जब बांधे नहीं बंधा, तो टूट गया
तूफ़ान हवा में उठ गया,
और फिर तू रोता
हँसता गिड़गिडाता
गली में चीखता चिल्लाता,
कभी डंडा पटकते तो
कभी पत्थर उठाये
एक पांव में जूता तो
दुसरे में मोजा लगाये
अपनी भावनाओं पे
दुसरी भावनाओं को दर्शाता हुवा,
रोता मन तू हँसता गाता हुवा ,
फटे चिथड़ों से
मटमैला तन दर्शाता हुवा,
कभी किसी हास्य नाटक के
कमेडियन पात्र की तरह
तो कभी किसी विरहन वियोगी
या फिर योगी
कभी जेंटलमैन की तरह,
अपने गम को छुपाये
किसी से हाथ मिलाता हुवा
रोता मन तू हँसता गाता हुवा|
सोचो तो तू कौन ?कभी किसी हास्य नाटक के
कमेडियन पात्र की तरह
तो कभी किसी विरहन वियोगी
या फिर योगी
कभी जेंटलमैन की तरह,
अपने गम को छुपाये
किसी से हाथ मिलाता हुवा
रोता मन तू हँसता गाता हुवा|
एक पागल या एक आम इंसान ?