| ***ये रास्ता कितना हसीन है***
 
 
  
 तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
 जो ने तूने ठानी थी तू कर अमल|
 ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
 तू ईमान के बदले में न खरीद महल |
 जीना तू गर जीना सर उठा के
 बेईमानों का भी दिल ईमान से जाए दहल|
 समेट ले खुद की इच्छाओं को
 जीने की जरूरत हो जितनी तू उसमें बहल|
 
 
 तू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
 खुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|
 जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के
 तू चिंगारी बन कर ख़ाक कर दे वो जंगल |
 हो बुलंद इकबाल तेरा जरा तू संभल
 नेकी की राहों पर चल के आगे निकल |
 समेट ले खुद की इच्छाओं को
 जीनेभर की जरूरतों में तू खुश हो बहल ||....डॉ नूतन गैरोला २३ :४६ १५ -११- २०११
 
 
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