सोचती हूँ कितना दर्द होगा उन कैदीयों का, जो कभी बिना अपराध के ही परिस्तिथिजनित, असत्य साक्ष्यों की वजह से मुजरिमकरार किये जाते हैं और वो अपनी सफाई में कोई सबूत तक नहीं पेश कर पाते और भेज दिए जाते हैं कालकोठरी में जीवन बिताने के लिए, फिर उम्र के आखिरी पड़ाव में उनको उनके अच्छे व्यवहार के लिए पेरोल पर छोड़ दिया जाता है| वो किन मानसिक यंत्रणाओं से गुजरते है जबकि उनको शारीरिक आघात भी कम नहीं पहुंचाए जा रहे होते है|| जेल के कैदी मानसिक रोगों से भी पीड़ित होते हैं जो बहुत लंबे समय तक अपना जीवन कैद में बिता रहे होते हैं उनमें “स्टॉकहोम सिंड्रोम” जैसी एक साईकोलोजिकल स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और कैदी जेल में दी जा रही यंत्रणाओं को व वहाँ के माहोल को पसंद करने लगता है….मानव मन, कैद की स्तिथि में कैसे प्रतिक्रिया करता है यह उसका उदाहरण है | फिर सोचती हूँ जमींदारी और सामंतवाद में कभी कभी जबरदस्ती दुल्हन बना ली गयी महिलायें भी क्या ऐसा ही महसूस करती थी होंगी……………… नूतन (नीति) |
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Wednesday, June 22, 2011
आजन्म कारावास और पेरोल पर कैदी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
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