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 दर्दे  जख्म  को तुमने पल भर जो सहलाया होता,  ठंडी मलहम बन मरहम घाव भी भर आया होता |    न ये पीड़ा होती कि काश मेरा भी कोई अपना होता,   दर्द भी जाता, चराग आशनाई का न बुझ रहा होता |     जल न रही होती चिताएं मासूम सी तम्मनाओं की,  फाख्ता ए वफ़ा  न अपने आसमां से गिर रहा होता|  दवा लगती नहीं, लाइलाज बन गया जो नासूर मेरा,   हमनवाँ होता तू तो अंदाजे-इलाज पे यकीं रहा होता|     मलाल होता है तोडी क्यों जंजीरें गुफ्तगूं की तूने   इख्तलाफ का गुलशन  भी न  यूँ आबाद होता|  रफ्ता  रफ्ता खिलखिलाता  गुल मुहब्बत का,   जश्ने  बर्बादी  का  न सिलसिला जुड़ा  होता |     हर रात न सही, तू चाँद ईद का होने को तो आता,   तेरे दीद को तरसती रही,न तू गैर के साये में छुपा होता|   बेदर्द, बेवफाई  तेरी  मेरी मौत  का सामां हो गयी   वर्ना तू भी न मेरे हिज्र पर इस कदर तड़प रहा होता |      
                                              डॉ नूतन गैरोला डिमरी                                  २९-०३-२०११  |