करवाचौथ पर एक लघु कथा ( आपबीती- जगतबीती )  
करवाचौथ में उन बिन जी घबराया 
छत पे चंदा तू भी आया 
सजना मेरे किसके द्वारे 
जल्दी से उनको मेरी राह दिखा दे |
ये कैसा करवाचौथ था ?
                          यूं तो पहाड़ों में करवाचौथ की परंपरा नहीं रही है फिर भी ये पति के लिए रखा जाने वाला व्रत सुहागवती स्त्रियों को खासा पसंद आया है अतः अब पहाड़ो में भी मनाया जाने लगा है | इंदु ने भी करवाचौथ का व्रत लिया था|
                       इंदु ने  छुट्टी ली थी | हॉस्पिटल में वार्ड आया का काम करती थी | गरीबी  में जैसे तैसे दिन बीत रहे थे  उसके  | मजबूरी में नौकरी करनी पड़ी | छोटे  छोटे तीन बच्चे और पति की नौकरी नहीं | उस पर नौकरी न मिलने के गम में पति  शराब  पीता | रोटी पानी के लिए रोज आये दिन घर में खिट-पिट होती | सो नौकरी  की तलाश में निकल पड़ी| पढ़ी  लिखी थी , एक प्राइवेट  हॉस्पिटल में काम  मिल गया - काम वोर्ड आया का था| मैं  भी वहीं कार्यरत थी | इंदु से पहचान  हो गयी | अच्छी सभ्रांत महिला थी | मरीजों  की सेवा में तत्पर रहती थी | पर  कभी बात होती तो  बच्चों  के भविष्य के लिए बहुत चिंतित, उनकी चिंता उसे  खाए जाती थी | 
                        उस  दिन मैं जब ओ पी डी  में  मरीज देख रही थी मरीज के घाव की पट्टी करनी थी |  इंदु को आवश्यक हिदायत देने के लिए मैंने बुलाया तो पता चला कि वह आई नहीं  है | मैंने पूछा क्यूं ? पता चला कि उसका करवाचौथ का व्रत है अतः आज  छुट्टी  ली  है | पूरे चार  दिन और बीत गए बिना किसी छुट्टी के वह आई नहीं |
                     पांचवे दिन पता चला कि वह आज आई है | मैंने  उसे बुलवाया  | वह सामने आई  तो उसने एक तरफ मुंह   ढका हुवा था | पहले सोचा यूंही ढका होगा | बाद में  कहा - इंदु क्या बात है आज चेहरा क्यों ढका है, पल्ला  हटाओ  चेहरे के ऊपर  से | तो बड़े शर्म के साथ उसने पल्ला हटाया | देख के मेरा दिल धक् हो गया |  सुन्दरता की मूरत इंदु की एक आँख ही नहीं दिखाई दे रही थी एक तरफ मुंह   सूजा और काला पड़ा हुवा था , आँखे काली फूली हुवी.. उसके माथे  और आँख पे  गहरी चोट लगी थी जिस से रिस कर खून अन्दर ही अन्दर गालों में भी फ़ैल गया था  | मैंने पूछा -इंदु ये क्या हो गया तुझे ? वह बहुत रुवान्शी हो गयी..फिर  बताया कि उसे पड़ोस  की महिलायें ले कर आई है | उसके पैर हाथो में भी काफी  चोट आई है | 
                        तब तक  एक पड़ोस की महिला आ गयी | उसने बताया कि डॉक्टर  साहब  चार दिन से  ये घर में इस हालत में पड़ी है, राजू (इंदु का पति ) कोई दवा नहीं लाया तो  हम इसे यहाँ ले कर आ गए है | मैंने पूछा कि हुवा कैसे - तब इंदु ने बताया  कि उसने उस दिन करवाचौथ का व्रत रखा था | बहुत खुश थी वह आज छुट्टी  ले कर  बच्चों और पति के बीच में रहेगी | सुबह खाना बनाया बच्चो और पति को खाना  खिला कर खुद निर्जल उपवास रखा | पति कि दीर्घायु की कामना की और नयी साडी  पहनी, खूब भर भर हाथ चूड़ियाँ पहनी, मेहँदी रचाई, पैरो पे कुमकुम -  दुल्हन  जैसा श्रींगार किया | पूजा की पूरी तैयारी की | करवा सजाया |  वर्तकथा पढ़ी , पर इन सब के बीच जो कमी उसे खल रही थी वो थी पति की | पति घर  पे नहीं थे | 
                        दिन  में खाना खाने के बाद कही जा रहा हूँ , कह कर घर से निकल गए थे |देर रात  हो आई थी |शारीरिक रूप से कमजोर इंदु को कमजोरी भी आने लगी पर जो नहीं आया  वो था पति | सारी महिलायें महोल्ले की पूजा करने लगी  और सबके पति साथ थे|  रात के  ग्यारह  बज चुके थे सब चाँद देख रहे थे छन्नी से .. और फिर पति को  .. और वह छत पे खड़ी खाली सड़क पे पति का चेहरा तलाश रही थी | लेकिन उस अजगर  सी लम्बी सड़क पर समय यूं फिसलता जा रहा था ज्यो एक पल ..पर पति का कहीं  नामो निशान नहीं था.. पड़ोस  से नीलम दीदी ने आवाज लगायी -'क्या करेगी तू '  .. इंदु को  समझ नहीं आ रहा था क्या करे .. उसने कहा, जरा भाईसाहब को  भेज  दीजिये इनकी तलाश के लिए क्या पता बाजार में किसी दोस्त की   दुकान  में बैठे हों| नीलम  ने कहा ठीक है.. और फिर  एक  घंटा और बीत गया |  बच्चे सो चुके थे | भूख और कमजोरी और पानी की कमी से उसका   मुंह  सूखने लगा उसपर वह खड़े खड़े इंतजारी करती चिंतित भी और आक्रोशित  भी| उसका शरीर  जवाब देने लगा .. मन की विश्वास की शक्तियां भी कुछ क्षीण  पड़ने लगीं| सोचा की ऐसा कौनसा जरूरी काम आ पड़ा जो मेरा ख्याल भी नहीं आ  रहा है .. वैसे पहले भी घर से गायब हो जाते थे जब दोस्तों के साथ कुछ  ज्यादा पी लेते तो घर नहीं आ पाते थे  तो उनके ही यहाँ ठहर जाते थे .. तब  रात्री  एक  बजे नीलम आई कहने लगी की भैया  जी कहीं  नहीं मिले सुना की आज  वो दुसरे गाँव, अपने दोस्त रमेश के यहाँ गए है .. नीलम ने कहा की इंदु तू  पूजा कर के खाना खा ले.. इंदु भी कमजोरी महसूस कर रही थी और फिर सोचा और  दिन जैसे कई बार हुवा है पति शायद कल सुबह आएंगे | 
                  उसने  पूजा की भगवान् से प्रार्थना की कि हे  भगवान् , वो जहाँ  कहीं  भी हो  कुशल मंगल हो और उन्हें  दीर्घायु स्वस्थ रखना . फिर उसने भगवान् को टीका  लगाया .. पति  की एक फ्रेम वाली तस्वीर ले आई और उस पर टीका लगाया और उस  तस्वीर पर पति को माला पहनाई | फिर खाना पति की तस्वीर पर लगाया तब खुद  खाने बैठी ..     
इस करमजली को देखो - मेरी फोटो पे माला पहनाई - साली ने मुझे जीते जी मार डाला है|
कई प्रश्न एक साथ मेरे मन में उठ खड़े हुवे .. उनका जिक्र न करुँगी .. चाहूंगी की हर रिश्ते मे प्रेम, स्नेह, सम्मान हो और रिश्तों की मर्यादा बनी रहे |
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चूड़ी छनकी बिंदिया चमकी 
पैरों पे महावर  लगाया |
कुमकुम, महेंदी की ताज़ी खुश्बू संग 
पिया पिया तेरा नाम आया |
गजरा महका,   मन  पगला  बहका 
पायल छनकी मृदु  गीत सुनाया | 
तेरी यादों की  जब   हवा चली तो  
फ़र-फ़र -फ़र मेरा आँचल लहराया |
पल पल बिन तेरे, मेरा  हर पल  बोझिल 
और  तू न  आया, मेरा गजरा मुरझाया | 
 विकल मन की क्रूर आंधियां ने 
कोमल  अभिलाषाओं  को भरमाया | 
 छत पर  अकेला चंदा जब  आया 
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 उन बिन करवाचौथ में जी घबराया |
दीपक पूजन  का   बुझने  दूं  न मैं 
चंदा  को  है पैगाम भिजवाया  |
सजना मेरे सौतन के  द्वारे 
जल्दी से उन्हें  मेरी राह दिखा दे |
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यह पोस्ट  उस  महिला  को समर्पित  है जिसके जीवन की घटना को एक रूप दिया है|
डॉ नूतन गैरोला  
२५ / १० / २०१० ( 21 :00 )
२५ / १० / २०१० ( 21 :00 )
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