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Sunday, September 25, 2011

“मास्टर साहब” द्वारा - डॉ नूतन गैरोला

 
                                       मास्टर साहब
                  mastar sahab
सर ! ..फीस तो सिर्फ पिच्चासी  रूपये हैं … मैंने तो आपको पांच सौ रूपये का नोट दिया है … बाकी  रूपये मुझे माँ को वापस करने हैं … प्लीज़ सर वो रूपये जरूरी हैं … पर मास्टर साहब जी थे कि कोई जवाब नहीं दे रहे थे और कॉपी चेक करने में तल्लीन थे … सुधीर अपने मास्टर साहब जी से विनती कर गिङगिङा रहा था, लेकिन गुरु जी के कानों में जूँ भी ना रेंक रही थी …. थकहार कर सुधीर स्टाफ रूम से बाहर निकला जहाँ उसके अन्य मित्र सुएब, रतन, देबोषीश,प्रांजल  खड़े इन्तजार कर रहे थे … सुधीर को देख कर उनकी बांछे खिल आई …
                            “अब आज तो किसी अच्छे रेस्टोरेंट में जा कर स्नेक्स लेंगे| चल यार, चार पीरियड छोड़ देते हैं, आज “सिटी इंट्रो” में नयी रेसीपीस चखेंगे   और वही से गेम पार्लर चले जायेंगे फिर छुट्टी के समय घर पहुँच जायेंगे”- सुएब बोला|  …. सुधीर का चेहरा उतरा हुआ था|  देबोषीश अचंभित हो कर बोला - "क्या बात है सुधीर तेरा चेहरा इतना क्यों उतरा हुआ है |"  सुधीर लंबी सांस ले कर बोला –" देबू, क्या कहूँ यार मास्टर साहब ने तो मेरे पैसे लौटाये ही नहीं| तुम लोग चले जाओ आज मुझे पैसे वसूलने हैं मास्टर साहब से, मैं क्लास में ही हूँ|" वह क्लास की ओर मुड गया|
                             दूसरे दिन स्कूल की प्रार्थना से पहले चारों दोस्त फिर एक थे .. सुधीर उनके ऐश की बातें सुन कर दुखी था कि कल उसको मास्टर साहब की वजह से कितना नुक्सान हुवा| आज मास्टर साहब से रूपये ले कर क्लास बंक कर दूँगा| वह सोच ही रहा था कि तभी पीछे से आवाज आई – “ सुधीर क्या तुने कल की क्लास अटेंड की|” कक्षा का पढाकू चश्मिश( अनुपम) उस से पूछ रहा था| सुधीर बोला – हाँ, बोल क्यों पूछ रहा है? अनुपम बोला - कल तबियत खराब थी सो स्कूल नहीं आ पाया था कल| तू नोट्स साफ़ लिखता है और तेजी से भी पूरा लिख लेता है| तेरे लिखे नोट्स चाहिए| पर हाँ ! अगर तुने क्लास अटेंड की हो तब ना|      सुधीर बोला - हाँ हाँ, कल मैं क्लास में ही था और उसने अपना सीना तान कर अनुपम को नोट्स कॉपी करने के लिए दिए|  वह प्रार्थना के बाद अपने पैसे वसूलने की मंशा से क्लास में जा बैठा -- मास्टर साहब अटेंडेंस लगा रहे थे| उसका  नाम आने पर मास्टर साहब ने  चश्मा चढा  कर एक तीखी नजरों से उसको देखा ..वह डर सा गया पूछने की हिम्मत जवाब सी दे गयी…
                             मरता क्या ना करता आखिरी पीरियड का इन्तजार किया| साथी तो फिर बंक कर चुके थे … उसे मास्टर साहब पर बहुत गुस्सा आ रहा था| उसने मास्टर साहब को आखिरी पीरियड में ढूंढ निकाला| बोला सर मेरे पैसे - मास्टर साहब बोले - कल क्लास में मिलना आज तो पैसे जमा कर चुका हूँ | सुधीर अपना सा मुँह ले कर रह गया|
                              अगले दिन, सुबह एसेम्बली के समय अनुपम सुधीर के पास आया और उसके नोट्स वापस करते हुए बोला, सुधीर तू इतना अच्छा लिखता है और तू तो बहुत इंटेलिजेंट भी है, फिर क्लास से क्यों भागता फिरता है| सुधीर बोला…” अपनी बात छोड़ अनुपम, मुझे तुम सा किताबी कीड़ा नहीं बनना” अनुपम बोला ठीक है तुझे जैसा लगता हो तू वैसा कर, लेकिन परीक्षा  के अभी पन्द्रह  दिन भी शेष नहीं रह गए, आजकल तो बहुत आवश्यक चीजे पढाई जाती हैं जो इम्तिहान के लिहाज से जरूरी है| तेरे नोट्स मेरे लिए बहुत काम के हैं|यह कह उसे  धन्यवाद करता हुआ अनुपम चला गया .. अनुपम की बात से सुधीर को लगा कि  वह भी अच्छा लिखता है.. क्लास के टॉपर को उसका लिखा पसंद आया  है…उसे अपने पर खुशी हुई …और एक ख्याल उसके दिल में लहरा गया कि - वह कक्षा में पढाई के मामले में अब्बल रह सकता है ..अगर वह चाहे तो|
लेकिन अगले ही पल उसके जिगरी दोस्त पहुँच गए बोले - आज मेट्रो में थ्रिलर मूवी रिलीज़ हो रही है, काफी मजा आयेगा ..वही स्कूल के इंटरवल के बाद वहाँ जाएंगे| आज तो सुधीर फाइनेंस करेगा टिकट|
सुधीर बोला – “ ठीक है आज उस खडूस मास्टर साहब से अपने रूपये ले कर रहूँगा| “
वह मास्टर साहब के कमरे के बाहर पहुंचा --- मास्टर साहब बड़ी तेजी से रजिस्टर ले कर क्लास की और बढ़ गए| सुधीर सर सर आवाज लगाता रह गया| खैर, मास्टर साहब के पीछे पीछे वह क्लास में पहुँच गया जहाँ उपस्तिथि दर्ज होने के बाद पाठ्यकर्म शुरू हुआ और रिविजन के लिए कल के पाठ से प्रश्नोत्तरी  की गयी| कल कक्षा में उपस्तिथ रहने की वजह से सुबोध बडचढ कर सही जवाब देने लगा|
मास्टर साहब ने पूरी क्लास के आगे सुधीर की तारीफ की और उसे कहा  कि सुधीर उन छात्रों के लिए भी एक प्रेरणा का स्त्रोत होगा जो अपनी शैतानियों की वजह से सबका सिरदर्द बने है और गन्दी आदतों का शिकार हुए  हैं …समय रहते आप भी सुधीर की तरह पढाई में मन लगाये तो आप भी क्लास मे सही जवाब दे सकते हैं … सुधीर के दोस्तों की चौकड़ी में खलबली मच गयी ….
छूटते ही साथ उन्होंने सुधीर को कहना शुरू किया और मिस्टर पढाकू जी!! तुम कब से किताबी कीड़े बन गए  दोस्तों को भी नहीं बताया … सुधीर बोला- नहीं यार! वो मासाब का दिमाग खराब हो गया है … उन्होंने मेरे रूपये दबा रखे हैं …उनकी नियत में तो मुझे खोट दिखाई देता है .. तभी वह बिन बात मेरी तारीफ़ कर रहे थे ….जब मैं अपने पैसे ले लूँगा तब वो मेरी तारीफ़ कैसे करेंगे,  देखता हूँ| लेकिन दिन यूं ही निकल गया| मासाब ने पैसे को ले कर सुधीर को घास नहीं डाली, सिर्फ यही कहा की क्लास के बाद दूँगा …. लेकिन क्लास के अंत में मासाब नहीं दिखाई दिए वह उन्हें ही ढूँढ रहा था  कि क्लास की लड़कियों का समूह आ गया| वो कह रही थी सुधीर, तुम में तो कमाल की एनालिसिस पावर है, लगता है तुम पढ़ने में मन लगाने लगे हो …क्या कुछ टॉप वोप मारने का इरादा है ( थोडा व्यंग था उस जुबान में )…पर फिर गंभीर हो कर एक लड़की बोली कि अगर तू क्लास में अच्छा निकले तो हम सब को भी खुशी होगी …और आंटी को भी खुशी मिलेगी .. सुधीर बाल झटक कर हुह कहता हुआ  निकल गया किन्तु मन ही मन सुधीर को अच्छा लगा|  उनकी बात सुधीर के मन घर कर गयी … सोचने लगा कि माँ हमेशा उसको ले कर दुखी रहती है … लोगों के कपडे प्रेस करती है दिन भर जहाँ तहां के कपडे धो कर गुजारा भर कमाती है … माँ उसे बहुत प्यारी है  वह भी तो माँ को बेहद प्यार करता लेकिन घर की गरीबी उसे  बिलकुल नहीं सुहाती … इसी लिए तो वह अपने दोस्तों के साथ क्लास से भाग जाता है .. बाहर जा कर उसे दुनिया की लक्जरी इन्जॉय करने का मौका मिलता था और माँ ? माँ चाहती थी की वह पढ़ लिख कर इस काबिल बने की उसे जीवन में आगे कोई कमी ना हो वह माँ के लिए क्लास जाता और अपने लिए क्लास  बंक करता … उसे एहसास सा होने लगा की अगर वह थोड़ी मेहनत करे तो उसकी  माँ की आँखों में खुशियां आ जाएँगी … और अभी तो सिर्फ दस दिन की ही मेहनत है .. इम्तिहान होने के बाद तो मौज ही मौज होगी … वह घर जा कर किताब खोल कर पढ़ने और मनन करने लगा … आज का जो पाठ पढाया था, कल का जो पढ़ा था, उसने पढ़ा| उसे बहुत रोचक लगा| फिर तो वह पन्ने के पन्ने पलटता गया मनन करता, समझता, हल करता, गणित उसे पहेलियों जैसी लगी, जिनके उत्तर ढूंढना मजेदार लगता और वह गणित के फोर्मुले सोचता, अपलाइ करता और गणित की गुत्थियों को सुलझाता … उसे बहुत आनंद आने लगा ..कुछ प्रश्न भी उसके दिमाग में अटके पड़े थे .. उसने ठान ली कि ऐसे इन्हें छोड़ नहीं दूँगा, कल सर से पूछूँगा क्लास में… उसके मन में एक नया उत्साह समावेश कर गया … उसे लगा क्यों नहीं उसने पढाई की ओर पहले ध्यान दिया |
   अब वह स्कूल में एक नए जोश के साथ था उसका पूरा ध्यान पढाई की ओर था …लेकिन दिल में मासाब के द्वारा उसके रूपयों को वापस ना देना बहुत अखर रहा था … आज क्लास में अन्य विषयों के अध्यापक भी उस की विषय को ले कर गहरी रूचि और अध्यन के प्रति झुकाव देख बेहद खुश थे ..और सही जवाब देने पर उसे  यदा कदा शाबास कह रहे थे| उसे बेहद अलग अनुभव हुवा …जहाँ आये दिन उसकी बेंत से पिटाई होती …उसके घर शिकायत जाती …उसकी माँ रोते हुवे आती और जब तब उसे नालायक कहा जाता …वही अपने लिए शाबास सुन कर दिल खुशी से और उर्जा से भर रहा था|
         किन्तु वह अपने रुपयों के लिए आखिरी पीरियड में फिर मासाब के पास गया … मासाब बोले क्या बात है, इस समय मेरे पास कैसे आना हुआ … सुधीर को लगा जैसे मासाब जानबूझ कर उसके रूपयों के बारे में भूल गए हैं …शायद उनके मन में चोर बैठ गया है….वह बोला सर मेरी फीस के बचे रूपये मुझे वापस चाहिए …. मासाब अगले बगले झाँकने लगे …इस जेब में हाथ डाला… उस जेब में हाथ डाला ….   और एक, हज़ार रूपये का नोट निकाला …. बोले आज तो टूटे रूपये  नहीं है मेरे पास| तुम कल शाम को मिलना ….और हाँ तुम जब भी रूपये लेने आओ क्लास अटेंड कर, आखिरी खाली पीरियड में आना … अगर बीच क्लास में पैसे की बात करोगे तो वह रूपया तुम्हें वापस नहीं होगा और अगर किसी भी पीरियड में तुम उपस्थित नहीं दिखे तो समझ लो तुम्हारा रूपया गया  ….     जी सर कह, वह मन मसोस कर वापस आ गया|
             अगले दिन स्कूल में सुधीर का चौकड़ी ग्रुप इकठ्ठा हुवा ..उसके दोस्तों ने उस से पूछा कि क्या हुआ मासाब ने तेरे रूपये वापस किये - सुन सुधीर फट पड़ा - बोला यार ये भी कोई गुरुजन है .. आक्खा भारत का चोर, मेरे रूपये दबा लिए अब वापस करने का कोई इरादा नहीं… तिस पर अगर मैंने क्लास के आगे कभी रूपये की बात करी तो वो कह रहे हैं  कि फिर वो  मुझे पैसे नहीं लौटायेंगे …. मन तो करता है कि इनकी शिकायत प्रिंसिपल से कर दूँ| जब नौकरी जायेगी तब पता चलेगा पैसे की कीमत …. दोस्त बोले फिर देरी किस बात की चलते हैं प्रिंसिपल ऑफिस … सुधीर बोला छोड़ यार आजकल पढाई का जोर चल रहा है…खाम खाम इस लफड़े में नही फंसना … इम्तिहान के बाद जरूर इनकी शिकायत प्रिंसिपल से करेंगे … अभी भी देख लेता हूँ शायद मासाब सुधर जाएँ, शायद उन्हें कुछ समझ आये ..वो मेरे पैसे वापस कर दें| फिर तुम्हें पार्टी दूँगा … दोस्त बोले तो क्या करें आज ….सुधीर बोला तुम जाओ बंक में या मेरे साथ क्लास अटेंड करो लेकिन में बंक कैसे कर सकता हूँ ..पढाई तो जायेगी ही मेरे तो पैसे भी डूब जायेंगे|… दोस्त बोले ठीक है और क्लास की ओर चल दिए | इसके बाद भी सुधीर दो तीन बार अपने मासाब से मिला लेकिन वह हर बार कुछ बहाना बना देते शायद उनके मन में चोर आ गया था|
अब इम्तिहान नजदीक था.. तीन  दिन शेष …सुधीर रात दिन एक कर रहा था सिर्फ और सिर्फ इम्तिहान की तैयारी … उसने सोच लिया कि रूपये नहीं मिलने वाले….जरूरत पडने पर टेडी ऊँगली से घी निकालना पड़ेगा...लेकिन अभी परीक्षा की तैयारी में मन लगाना होगा|
                   माँ भी उसकी मेहनत से अवाक थी और बेहद प्रसन्न …रोज भगवान की पूजा अर्चना कर सुधीर को  तिलक लगाती ..दही चीनी से उसका मुँह मीठा कर  परीक्षा के लिए भेजती| सुधीर भी अपनी परीक्षा से खुश था … उसके हिसाब से पेपर अच्छे हुवे थे ….
                    परीक्षा खतम होने के बाद सुधीर स्कूल गया वो फिर मासाब से पैसे लेने गया … तो पता चला के मासाब छुट्टी ले कर एक महीने के लिए बाहर गए हैं …  सुधीर ने सोचा यह भी एक इम्तिहान है… कुछ दिनों की बात है …इस बीच वह मासाब पर अपनी झींक, उनके लिए बुरा भला कह कर दोस्तों के साथ निकालता है|
              सुधीर का परीक्षा परिणाम आज दिन  में निकलने वाला है| स्कूल से उसकी क्लास के सभी  बच्चों को बुलाया गया है ….उसे चिंता सी हो रही है |  वहाँ बच्चे और रिश्तेदारों की भीड़ रिजल्ट लेने आई हुई  थी| मासाब भी उसे भीड़ में प्रसन्नचित दिखे .. तभी घंटी बजी और सभी बच्चे एसेम्बली हॉल मे एकत्र हुए …प्रिंसिपल महोदय ने आ कर परिणाम की घोषणा की … क्लास में कुछ बच्चे अनुतीर्ण थे …कुछ बच्चे दरमियाना नंबर ले कर उत्तीर्ण हुए थे …और कुछ बच्चे बहुत अच्छे अंकों  से .. प्रिंसिपल बोले मैं कक्षा के प्रथम तीन विद्यार्थियों के नाम की घोषणा करूँगा …बाकी सभी विद्यार्थी अपने कक्षा अध्यापक से रिजल्ट लेंगे ,,, और प्रिंसिपल महोदय ने घोषणा की-“ कक्षा ११ में जो बच्चा प्रथम आया है उसका नाम है  -  अनुपम …सुधीर बहुत खुश हुआ|  वह  तालियाँ जोर जोर से बजा रहा था ….अनुपम ने अपना पुरुस्कार लिया ….तब तक दुसरा नाम घोषित किया गया …वह नाम था - "सुधीर" ….सुधीर को यकीन नहीं हुवा … पुनः पुकारा गया गया सुधीर खंडूरी  …क्या सुधीर खंडूरी को सुनाई दे रहा है उनका नाम ..सुधीर स्टेज पर आये …अपना परीक्षा परिणाम और पुरूस्कार ले जाए …. मासाब ने स्टेज से सुधीर को देखा तो चिल्ला पड़े सुधीर जल्दी आओ…तब तक क्लास के अन्य छात्र भी कहने लगे - सुधीर!  हाँ, तुम्हारा नाम ही पुकारा जा रहा है , जाओ ..जाओ … सुधीर को यकीन नहीं हो रहा था ….उसकी आँखों के आगे  माँ का मुस्कुराता चेहरा नजर आने लगा …वह चाह रहा था कि दौड कर माँ के पास जाए और उसको खबर सुनाये ..  उस से लिपट कर रोये … वह आगे बढता हुवा स्टेज में पहुंचा .. तब तक प्रिंसिपल महोदय कह रहे थे कि  सुधीर अपनी कुछ बुरी आदतों के चलते स्कूल बंक करता था . और कक्षा में अनुपस्तिथ  रहता था, घर में भी उसकी आदतों से उसकी माँ परेशान रहती थी और यहाँ स्कूल में गुरुजन लेकिन  अचानक जिस तरह  उसने खुद में बहुत परिवर्तन किये ..हर क्लास में नियमित उपस्थित होना और मन लगा के पढ़ना …क्यूंकि उसने अपनी गन्दी  आदतों को त्याग कर सही रास्ता चुना और उस पर चल पड़ा| आज उसका परिणाम ही है कि वह कक्षा में दि्वतीय स्थान पर आ सका … वह अनुकरणीय है …अन्य बच्चे भी समझ सकते है कि अपने अंदर निहित दुर्गुणों को त्यागा जा सकता है … और अपने लिए एक अच्छा रास्ता चुन कर अपने भविष्य को सुन्दर बनाया जा सकता है … हॉल तालियों से गूंज गया|
सुधीर दोस्तों के साथ घर जा रहा था कि मास्टर साहब उसे ऑफिस के बाहर दिखाई दिए| मास्टर साहब ने उसे इशारे से बुलाया और अपने ऑफिस में ले गए – बोले – “आज बहुत खुश हो ना तुम,  मैं भी हूँ | मैंने ब्रिलियेंट स्टूडेंट स्टडी फंड में तुम्हारे विषय में सुचना दी थी .. तुम्हारी योग्यता को देख तुम्हारी फीस इस साल से माफ हो जायेगी .. और स्कॉलर स्टुडेंट्स फंड से तुम्हें वजीफा भी मिलेगा जिस से तुम अपनी कॉपी किताब खरीद सकोगे|” ..यह कह कर उन्होंने जेब में हाथ डाला और पांच सौ रूपये का नोट निकाला और बोले यही है ना वो रुपया जिसकी वजह से तुमने कक्षा में नियमित  बैठना शुरू किया था| आज मैं तुम्हें तुम्हारे पैसे लौटा रहा हूँ लेकिन प्रण करो कि अबसे हमेशा क्लास अटेंड करोगे और इसी तरह अच्छा नाम कमाओगे … सुधीर का सिर आदर से झुक गया … फिर मास्टर साहब ने अलमारी से एक मिठाई का डिब्बा निकाला और सुधीर के हाथ में रख दिया, बोले - जाओ बेटा, यह मिठाई का डिब्बा अपनी तरफ से अपनी माँ को देना  और खुशखबरी सुनाना, वह बहुत खुश होंगी  ..सुधीर का ह्रदय खुशी से आह्लादित हो रहा था| वह  आदर, कृतज्ञता और प्रेम से मास्टर साहब के चरणों पर  झुक गया||
                        कहानी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
चित्र नेट से...
कहानी की प्रेरणा मुझे अपने बड़े भाईसाहब श्री श्रीप्रकाश डिमरी जी से मिली... जो कि एक समर्पित शिक्षक हैं....

Tuesday, July 19, 2011

आंटी रुक्मणि - लघुकथा



               old_lady_paint

रुक्मणि जी जो कि मेरे पड़ोस में रहती हैं, अधेड़ उम्र की भद्र महिला हैं| आज मैं उनके साथ खरीदारी के लिए आयी थी|  खरीदारी के पश्चात दूकान के काउंटर पर खड़े किशोर ने रुक्मणि जी को पुकारा -“ये लीजिए आंटी - पेमेंट हो चुका है | आप अपना सामान ले लीजिए|” किन्तु रुक्मणि जी को जैसे किसी जहरीले भंवरे ने आ कर डंस दिया हो, वह बुरी तरह  आग बबूला हो गयी- “ क्यों लड़के बात करने की तमीज नहीं? जिसे देखो आंटी कह देते हो | दीदी जैसा अपनेपन से भरा कोई शब्द बचा नहीं है क्या?” कहते हुवे गुस्से से अपना सामान लड़के के हाथ से लगभग छीन सा लिया|  लड़का हक्काबक्का रह गया|
                                    मैं पूछ ही बैठी- क्यों रुक्मणि जी! आप इतना नाराज क्यों हो गयी हैं? ऐसा तो उसने कुछ नहीं कहा|. सुनना था कि वो फट पड़ी - “सब्र की भी एक सीमा होती है| आज कल के लोगों को देखिये, क्या आसान शब्द मिल गया है| जिसे देखिये आंटी कह देते हैं जैसे दीदी, भाभी, बहन कोई रिश्ता बचा ही ना हो| अब मुझे ही देखिये सत्रह  साल की हुवी ही ना थी कि शादी हो गयी| पतिदेव में और मुझमे उम्र का फासला भी दस साल का है और साहब कुटुंब में अपने पीडी के सबसे छोटे सदस्य हैं  - सारी भाभियों के सबसे लाडले छोटे देवर हैं| उनकी भाभियाँ उनको आते जाते छेडतीं हैं  खूब मजाक करती हैं वो उनके सामने बच्चे के सामान हैं और मुझे देखिये- माँ, पिता चाचा, मौसी, बुवा की उम्र के लोग ससुराल में मेरे जेठ जेठानियाँ हैं| मेरी उम्र वाले जो मेरी सहेलियां, नन्द ,देवर  जैसे होने चाहिए थे, सभी मुझे चाची कहतें है, मैं उनके साथ हंसी मजाक गपशप करना चाहूँ तो वो बोलते हैं - आप तो चाची हैं, आप बुजुर्गों के साथ जाइये| अब बोलिए जेठ और जेठानियों जो कि मेरी चाचा, चाची की उम्र की हैं, उनसे मैं क्या हँसी मजाक करूं , बस घूँघट किया रहता है| शादी होते ही दादी, नानी बन गयी मैं|   लगा मानों मेरे जीवन में जवानी जैसी कोई चीज आई ही नहीं| मैं बचपन से सीधे बूढी हो गयी| मन में बहुत कोफ़्त होती|
                                            वह आगे बोलीं - पतिदेव  ने एक दिन कहा कि शहर तबादला हो गया है| मुझे  काफी राहत मिली| सोचा अब गाँव के बुड्ढे रिश्तों से छुट्टी मिलेगी, मेरे दिन फिरेंगे, मुझे भी अपनी उम्र के हिसाब के रिश्ते मिलेंगे, लेकिन नहीं, ऐसा होना न था| शहर तो आ गयी, लेकिन गाँव से शहर पढ़ने आये रिश्तेदार विद्यार्थियों ने मेरे सपनों में पानी फेर दिया| वहाँ भी वो मुझे चाची, दादी कहते और उनकी सहेलियां और दोस्त भी यही रिश्ते मुझ पर लगाते| जहाँ भी शादी ब्याह में जाती तो मेरी हमउम्र  को ही नहीं, यहाँ तक की मुझसे काफी बड़ी महिलाओं को लोग दीदी, भाभी कहते और मुझे आंटी| दिल कट कर रह जाता| किस दिन मैं अपनी उम्र के रिश्ते पा सकुंगी|
                                    मैं रुक्मणि जी की बातें सुनती चली जा रही थी| वह भी आज अपने मन की भड़ास मुझसे कह कर हल्का कर रही थी| वह बोल रही थी मैंने अपनी बचपन जवानी आंटी आंटी सुन कर गुजार दी, अब मैं अपने साथ ये अन्याय नहीं होने दूंगी……
और वह बोले जा रहीं थी ………….
   




लेखक - डॉ नूतन डिमरी गैरोला   १९ / ०७ / २०११  २:२० दोपहर                

Saturday, November 13, 2010

हम भी कभी बच्चे थे | बाल दिवस के अवसर पर |

बच्चे छल कपट से दूर भगवान का नन्हा रूप है और किसी भी समाज और देश का आधार हैं |आज का बच्चा कल का नागरिक है देश का सूत्रधार है | माँ पिता का सहारा है |  बचपन के इस रूप को ,चिल्ड्रेंस डे - बाल दिवस के रूप में  विश्व भर में अलग अलग तारीखों में मनाया जाता है | इंटरनेशनल – अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस १ जून को, यूनिवर्शल – विश्वव्याप्त बाल दिवस  नवंबर  २० तारीख को मनाया जाता है | किन्तु हमारे देश भारत में बाल दिवस बड़ी धूम-धाम से १४ नवम्बर को मनाया जाता है ..कारण.. इस दिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्मदिन है जो कि बच्चो को बेहद प्यार करते थे और बच्चे भी उनेह बहुत प्रेम और सम्मान देते रहे ..वो बच्चो के प्रिय चाचा नेहरु थे | उनकी मौत के बाद 1964 से उनकी  जयंती  “ बाल दिवस “  के रूप में मनाई  जाती है चाचा नेहरु को हमारी श्रधांजली और बच्चों को प्यार |

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बचपन के संस्मरण

आज बाल दिवस पर मैं अपने बचपन के एक दो किस्से आप सभी से शेयर कर रही हूँ |
 क्यूंकि हम भी कभी बच्चे थे |


माथे का  दाग -


                    Crying, for a Child in War
बालमन - कहीं देखा सर्कस में रस्सी पर झूलती लड़की- मैंने चाहा की मै भी उस लड़की के जैसा कारनामा करूँ| तब में LKG में पढ़ती थी | उम्र लगभग तीन साल से चार साल के बीच | माँ ने हम दोनों बहनों को तैयार किया स्कूल जाने के लिए | मेरी कंघी पहले की और छोटी बहन के वो बाल बना ही रही थी कि मै बाहर बरामदे में आ गयी | ८-१० सीढ़ी  नीचे सड़क थी और  बरामदे में एक गोल स्तंभ था | उस स्तंभ के पास खड़ी नीचे सीढियाँ को देख जाने क्यों वो सर्कस के करतब याद आये .. और अपने ऊँगली में मैंने बदरीनाथ भगवान की अंगूठी देखी सोचा क्यों ना इसे खम्बे में अटका कर झूला झूलूँ  जोर जोर से जैसे सर्कस में  हतप्रभ करने वाले करतब देखे, उनकी तरह  | और मैंने अपनी ऊँगली सीधी  की और अंगूठी को खम्बे में फ़साने का जत्न करते हुवे लटक गयी और झूलने लगी - अरे ये क्या ! मै तो धडाम से उंचाई से १० सीढ़ी नीचे गिर पड़ी | सीधे  सीढ़ी के कोने से सर जा टकराया |जाने क्यों दर्द नहीं हुवा मुझे | सड़क पर आते जाते लोग ठिठक गए | और मैंने चाहा दिखाना कि मै कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ | सीधे खड़ी हुवी और  सीढ़ी की ओर मुडी |सीढ़ी चढ़ने लगी कि नजर गयी ऊपर वाली सीढ़ी पर जहाँ पर मेरे सर से खून का फव्वारा झड रहा था |माथे के बायीं ओर से तेज खून की  धारा फव्वारे के रूप में निकल रही थी| तब तो चोट की डर नहीं माँ की डांट के डर से सिहरन उठने लगी | दरवाजे से अंदर पहुंचते  ही माँ ने मेरे चेहरे की जगह बहती खून की धारा देखी तो घबरा गयीं | हाथ से उन्होंने मेरा माथा दबाया पूछा ये क्या हो गया , कैसे हो गया .. बड़े भाईसाहब को आवाज लगाने लगी | एक साफ़ साडी को चीर कर माथे पे पट्टी बाँधी भाईसाहब और माँ ने | छोटी बहन थी घर में और माँ ने किचन में खाना भी चढाया था अतः भैया को आवश्यक हिदायत दे कर खुद मुझे गोद में ले बहुत तेज क़दमों से पास के क्लिनिक, जो की शायद आधा किलोमीटर दूर था ले गयी|
मैं माँ की गोद में थी और मेरा सर माँ के कंधे पर था, माँ के खुले बालो से टपकता खून मुझे आज भी दिखाई देता है| दौड़ती भागती माँ डॉक्टर के पास पहुची तो डॉक्टर किसी अन्य केस में व्यस्त था  और मेरा इलाज शुरू होने में  देर हो गयी | जब मेरा नंबर आया तो डॉक्टर को टांके मारने /सिलने के लिए सुई ही नहीं मिली | और कहा कि सुई  लाने तक बच्ची के शरीर से काफी खून बह जायेगा| अतः उन्होंने मेरे घाव की पेकिंग कर दी और ऊपर से पट्टी कर दी | जिसकी वजह से उस समय मेरा खून तो रुक गया पर मेरे माथे पर एक गहरी चोट का निशान रह गया |अब आई पूछताछ की बारी, जब शाम को घर पे पूछा गया कि कैसे गिरी | मेरी गिग्घी बंध गयी| ऐसा लगा कि इस तरह से झूला झुलना और मूर्खता करना अपराध था |जाने कौन सा भय मुझे कचोटने लगा कि मार अब पड़ी तब पड़ी|
          और भय में मैंने अपने को बचाने की एक युक्ति निकली | कह दिया किसी ने मेरा हाथ खिंचा था | ये कहना क्या था कि माँ डर गयी | बोली किसने खिंचा था बता | याद कर | कहने लगे सूरत किस से मिलती जुलती थी | अब तो झूठ  बोल चुकी थी अब बचने की और सूरतें भी खतम हो गई| कह दिया कोई  देखा देखा सा है | पूछा किसके जैसा उस बच्ची ने कहा दूध वाले के बेटे जैसा | बोला कि झूट तो नहीं बोल रही है | वैसे झूठ बोलना आदतों में सुमार ना था| झूट बोला मैंने कांपते दिल से| कुछ कुछ उसके जैसा था | नहीं चाहती थी कि बात आगे बढे पर बात थी कि रुकी नहीं | और उस छोटी बच्ची को अगले दिन दूध वाले के घर ले जाया गया | धुंधली यादें है कि आँगन में उनके बच्चे खड़े थे और मैं माँ से चिपकी रो रही थी अब डर था कि उन बच्चो को मेरी वजह से मार न पड़े | जब जब वो पूछे की पहचानो मैं और डर कर जोर जोर से रोने लगती | आखिरी में दो तीन बच्चो के बीच मैंने कहा कि इनके जैसा था पर ये नहीं और उन बच्चो को भी राहत मिल गयी |
        उस दिन का वो झूठ जो अनायास  बोला, मै जिंदगी भर झूठ बोलने से डर गयी | तीन साल की थी डर ऐसा व्याप्त था कि इसे कभी भुला नहीं सकी | मै खुद को उन बच्चो का गुनाहगार मानती रही और ये सर की चोट सदा याद दिलाती रही हादसे की और आज भी मुझे झूठ से सख्त नफरत है |


दीदी का खून पीते तो मोटे होते |


                  imagination
ये जो माथे की चोट का संस्मरण लिखा मैंने, उसी सन्दर्भ में - मेरी छोटी बहन ने ऐसा खून बहते कभी नहीं देखा | शायद डरी होगी, किन्तु रात को जब पिता जी ड्यूटी से घर वापस आये तो माँ ने उन्हें मेरे बारे में बताया | मेरे सर पर लगी चोट देख कर वो बहुत व्यथित और दुखी हुवे | और मुझे गोद में ले कर बैठ गए| तभी छोटी बहन पीछे से दौड़ती हुवी आई और पिता जी पर लिपट गयी | बोली पिता जी | आप दिन में क्यों नहीं आये | दीदी को चोट लगी थी | कितना खून बहा - उसने हाथ फैला कर कहा इत्नाआआ साअराआअ बाल्टी भर के| आप होते तो आप कितना खून पीते और कितने मोते हो जाते | खून पीते ?? पिता जी की एक नाराजी से भरी  थपकी उसके सर पर - याद है


  मुर्दे की खीर 


               crying_child

बचपन कितना सरल और भोला होता है..झूठ सच नहीं जानता || जिसने जैसा बताया मानता है  | विस्मित होता है किन्तु विश्वास करता है  क्यूंकि उसके लिए दुनिया की हर चीज नयी और विस्मय से भरी होती है |

एक रोज घर में, छुट्टी पर पिताजी और सभी  थे | किन्तु दिन में  ( र ) भाईसाहब जी, जो कि तब पांच साल के रहे होंगे बाहर खेलने गए |थोड़ी देर बाद किसी बच्चे कि हृदयविदारक चीख और रोने कि आवाज से सब चौंक गए | भाईसाहब (र) रोते हुवे घर आ रहे थे | उनका मुँह खुला का खुला था | पिता जी ने कहा, क्या हुवा ? क्यों रो रहे हो ? किन्तु भाईसाहब और जोर जोर  से रोने लगे - बेहद भयभीत थे और उनका सारा शरीर अकडा हुवा था पिता जी ने जैसे ही  (र) को छुवा वो पैर भी पटकने लगे | सब घबरा गए कि कही सांप ने तो नहीं काटा होगा ? क्या हुवा होगा ? पूछते रहे पर वो सुन भी नहीं रहे थे, अब तो मुँह  भी खुला था और पैर भी पटक रहे थे  और पूरा शरीर ऐंठा जा रहा था और डर से पसीने भी छूट रहे थे - पिताजी ने फिर गुस्से में कहा  ताकि वो अपनी समस्या के बारे में बताएं  बोल क्या हुवा | तो (र)भाईसाहब  के मुंह से एक वाकया फूटा – “ मुर्दे की खीर “ |मुर्दे की खीर जैसे शब्द  से सभी नावाकिफ  थे, सब घबरा गए - भैया ने बाहर की तरफ इशारा कर के बताया मुर्दे की खीर | बहुतेरी कोशिश की गयी कि वो बताएं कि क्या हुवा उनके साथ  ..लेकिन डर के मारे उनका शरीर  अकडा हुवा था बस अब एक ही शब्द बोल कर चिल्ला रहे थे - मुर्दे की खीर - फिर एक जोर की थपकी पडी गाल पे | एक दम भाईसाहब को होश आया | माँ भी बोली कि  बताओ क्या हुवा क्यों इतना रो रहा है | भाईसाहब ने बाहर इशारा किया मुर्दे की खीर और डर के मारे माँ की गोद में छुप गए जैसे अब मुर्दे की खीर से कोई अनर्थ होने वाला है और चिल्ला रहे थे मुझे बचाओ |
               पिता जी बाहर गए कुछ बच्चे  वहाँ पर भयभीत थे | पिता जी ने उनसे पूछा क्या बात है बच्चो क्यों डर रहे हो | तब एक बच्चा फटी फटी आँखों से बोला अंकल जी, अभी यहाँ से लोग एक मुर्दे को उठा कर ले जा रहे थे और  उस पर चावल डाल रहे थे |
                   तब पिता जी ने सड़क पर देखा तो बहुत चावल के दाने फैले हुवे थे | चावलों को देख पिता जी ने  कहा तो क्या हुवा चावल के दानो से ? बच्चो ने बताया की एक बहुत बड़े भाईसाहब यहाँ पर खड़े थे उन्होंने कहा की बच्चो ये चावल के दाने मुर्दे की खीर हैं | ये मुर्दे का खाना है | इस लिए इस बात का ख्याल रखना कि इस पर पैर न लगे नहीं तो मुर्दा उस बच्चे को खा जायेगा  | ( किसी ने बच्चो के साथ मजाक की थी ) बच्चों ने बताया कि उस समय वो लोग सड़क के उस  पार खड़े थे | सड़क को पार करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी | एक एक कदम उन्होंने सड़क पर बैठ बैठ कर चावल के दानो को देख कर कर रखा जो कि बहुत कठिन था | किन्तु बेचारे ( र )का पैर एक चावल के दाने पर छू गया था ..उसके साथ रास्ता पार करते उसके दोस्त (म ) ने भी देखा | म चिल्लाया और र घबरा गया वह चीखता हुवा  घर भागा |बच्चे बोले - अंकल  हमने तो सड़क पार कर दी पर र का अब क्या होगा?  पिता जी के हँसते हंसते बुरे हाल हो गये | किन्तु र भाईसाहब को मुर्दे की खीर के भय से आजाद करने में समय लगा |

घटना के समय मैं बहुत छोटी थी | जो सुना वो बताया |
 
बुढ़िया और झोपड़ी

जब मैं छोटी  थी -मेरी बचपन में लिखी एक कविता |


 
               teenage
अरे ! वो जलते दीये
किसने बुझा दिये हैं ?..
वह वृद्धा उस झोपडी में
उस घुप्प अन्धकार में ?
जिसने कल्याण किये हैं ..||


वो अट्टालिका वो इमारते
जगमगाती रोशनी है जिसमे,
असंख्य विद्युत बल्ब हैं , पराया
रक्त चूस कर जिसमें ||


वह वृद्धा उस अन्धकार में
उठती कुछ टटोलती |
गोद में ले एक रोग पीड़ित
परोपकार का बच्चा ||


उठती वह खांस कर,
कुछ कदम लड़खड़ा कर |
वापस लौट आती है वो
इमारत में झाँक कर ||


आज अब वो झोपड़ी
निरंग और सुनसान है |
बुढ़िया का न बच्चे का
उस झोपड़ी में कहीं
नाम और निशान है ||


काश !ऐ इमारत वालो तुम में
कुछ दया भाव होता |
तुमने बंद खिड़की को खोल
कुछ प्रकाश पुंज बिखेरा होता |
तो आज इस धरती पर एक
पवित्र आत्मा का तो निवास होता ||


द्वारा .. Miss Nutan Dimri / डॉ नूतन गैरोला


यह कविता मै, जब १५ साल की थी, तब लिखी थी 
पुरानी डायरी के पन्नो से उतारी है |
और डायरी के वो पेज भी मैंने फोटो में डाले हैं 
पुराने यादे - कविता बचपन की  


 बाल दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें और बधाइयाँ

 


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Monday, October 25, 2010

ये कैसा करवाचौथ था - ( आपबीती- जगतबीती ) - dr nutan gairola

करवाचौथ पर एक लघु कथा ( आपबीती- जगतबीती )  
करवाचौथ में उन बिन जी घबराया
छत पे चंदा तू भी आया
सजना मेरे किसके द्वारे
जल्दी से उनको मेरी राह दिखा दे |

ये कैसा करवाचौथ था ?
                         
          यूं तो पहाड़ों में करवाचौथ की परंपरा नहीं रही है फिर भी ये पति के लिए रखा जाने वाला व्रत सुहागवती स्त्रियों को  खासा  पसंद  आया है अतः अब पहाड़ो में भी मनाया जाने लगा है | इंदु ने भी करवाचौथ का व्रत लिया था|
              
                      इंदु ने  छुट्टी ली थी | हॉस्पिटल में वार्ड आया का काम करती थी | गरीबी में जैसे तैसे दिन बीत रहे थे  उसके  | मजबूरी में नौकरी करनी पड़ी | छोटे छोटे तीन बच्चे और पति की नौकरी नहीं | उस पर नौकरी न मिलने के गम में पति शराब  पीता | रोटी पानी के लिए रोज आये दिन घर में खिट-पिट होती | सो नौकरी की तलाश में निकल पड़ी| पढ़ी  लिखी थी , एक प्राइवेट  हॉस्पिटल में काम मिल गया - काम वोर्ड आया का था| मैं  भी वहीं कार्यरत थी | इंदु से पहचान हो गयी | अच्छी सभ्रांत महिला थी | मरीजों  की सेवा में तत्पर रहती थी | पर कभी बात होती तो  बच्चों  के भविष्य के लिए बहुत चिंतित, उनकी चिंता उसे खाए जाती थी |
                    
                        उस दिन मैं जब ओ पी डी  में  मरीज देख रही थी मरीज के घाव की पट्टी करनी थी | इंदु को आवश्यक हिदायत देने के लिए मैंने बुलाया तो पता चला कि वह आई नहीं है | मैंने पूछा क्यूं ? पता चला कि उसका करवाचौथ का व्रत है अतः आज छुट्टी  ली  है | पूरे चार  दिन और बीत गए बिना किसी छुट्टी के वह आई नहीं |
                      
                    
                    पांचवे दिन पता चला कि वह आज आई है | मैंने  उसे बुलवाया  | वह सामने आई तो उसने एक तरफ मुंह   ढका हुवा था | पहले सोचा यूंही ढका होगा | बाद में कहा - इंदु क्या बात है आज चेहरा क्यों ढका है, पल्ला  हटाओ  चेहरे के ऊपर से | तो बड़े शर्म के साथ उसने पल्ला हटाया | देख के मेरा दिल धक् हो गया | सुन्दरता की मूरत इंदु की एक आँख ही नहीं दिखाई दे रही थी एक तरफ मुंह  सूजा और काला पड़ा हुवा था , आँखे काली फूली हुवी.. उसके माथे  और आँख पे गहरी चोट लगी थी जिस से रिस कर खून अन्दर ही अन्दर गालों में भी फ़ैल गया था | मैंने पूछा -इंदु ये क्या हो गया तुझे ? वह बहुत रुवान्शी हो गयी..फिर बताया कि उसे पड़ोस  की महिलायें ले कर आई है | उसके पैर हाथो में भी काफी चोट आई है |
                       
                       तब तक  एक पड़ोस की महिला आ गयी | उसने बताया कि डॉक्टर  साहब  चार दिन से ये घर में इस हालत में पड़ी है, राजू (इंदु का पति ) कोई दवा नहीं लाया तो हम इसे यहाँ ले कर आ गए है | मैंने पूछा कि हुवा कैसे - तब इंदु ने बताया कि उसने उस दिन करवाचौथ का व्रत रखा था | बहुत खुश थी वह आज छुट्टी  ले कर बच्चों और पति के बीच में रहेगी | सुबह खाना बनाया बच्चो और पति को खाना खिला कर खुद निर्जल उपवास रखा | पति कि दीर्घायु की कामना की और नयी साडी पहनी, खूब भर भर हाथ चूड़ियाँ पहनी, मेहँदी रचाई, पैरो पे कुमकुम - दुल्हन  जैसा श्रींगार किया | पूजा की पूरी तैयारी की | करवा सजाया | वर्तकथा पढ़ी , पर इन सब के बीच जो कमी उसे खल रही थी वो थी पति की | पति घर पे नहीं थे | 
                      
                        दिन में खाना खाने के बाद कही जा रहा हूँ , कह कर घर से निकल गए थे |देर रात हो आई थी |शारीरिक रूप से कमजोर इंदु को कमजोरी भी आने लगी पर जो नहीं आया वो था पति | सारी महिलायें महोल्ले की पूजा करने लगी  और सबके पति साथ थे| रात के  ग्यारह  बज चुके थे सब चाँद देख रहे थे छन्नी से .. और फिर पति को .. और वह छत पे खड़ी खाली सड़क पे पति का चेहरा तलाश रही थी | लेकिन उस अजगर सी लम्बी सड़क पर समय यूं फिसलता जा रहा था ज्यो एक पल ..पर पति का कहीं नामो निशान नहीं था.. पड़ोस  से नीलम दीदी ने आवाज लगायी -'क्या करेगी तू ' .. इंदु को  समझ नहीं आ रहा था क्या करे .. उसने कहा, जरा भाईसाहब को भेज  दीजिये इनकी तलाश के लिए क्या पता बाजार में किसी दोस्त की  दुकान  में बैठे हों| नीलम  ने कहा ठीक है.. और फिर  एक  घंटा और बीत गया | बच्चे सो चुके थे | भूख और कमजोरी और पानी की कमी से उसका  मुंह  सूखने लगा उसपर वह खड़े खड़े इंतजारी करती चिंतित भी और आक्रोशित भी| उसका शरीर  जवाब देने लगा .. मन की विश्वास की शक्तियां भी कुछ क्षीण पड़ने लगीं| सोचा की ऐसा कौनसा जरूरी काम आ पड़ा जो मेरा ख्याल भी नहीं आ रहा है .. वैसे पहले भी घर से गायब हो जाते थे जब दोस्तों के साथ कुछ ज्यादा पी लेते तो घर नहीं आ पाते थे  तो उनके ही यहाँ ठहर जाते थे .. तब रात्री  एक  बजे नीलम आई कहने लगी की भैया  जी कहीं  नहीं मिले सुना की आज वो दुसरे गाँव, अपने दोस्त रमेश के यहाँ गए है .. नीलम ने कहा की इंदु तू पूजा कर के खाना खा ले.. इंदु भी कमजोरी महसूस कर रही थी और फिर सोचा और दिन जैसे कई बार हुवा है पति शायद कल सुबह आएंगे |
                          
                  उसने पूजा की भगवान् से प्रार्थना की कि हे  भगवान् , वो जहाँ  कहीं  भी हो कुशल मंगल हो और उन्हें  दीर्घायु स्वस्थ रखना . फिर उसने भगवान् को टीका लगाया .. पति  की एक फ्रेम वाली तस्वीर ले आई और उस पर टीका लगाया और उस तस्वीर पर पति को माला पहनाई | फिर खाना पति की तस्वीर पर लगाया तब खुद खाने बैठी ..     
              
                      अभी एक निवाला नहीं खा पाई थी कि दरवाजे पर दस्तक हुवी  उसने दरवाजा खोला तो पतिदेव खड़े थे| शराब  की दुर्गन्ध भक्क उसके  मुंह  पर आई .. पुछा  कहाँ  थे आप आज .. राजू ने जवाब नही दिया  उल्टे कहा  कि खाना चल रहा है तेरा .. खाना खा रही है तू .. तेरी इतनी हिम्मत .. आज करवाचौथ में पति के बगैर खाना .. इंदु ने  कहा - आप नहीं  पहुंचे  जब और  कमजोरी भी आने लगी  इसलिए  पूजा कर के खाना खाने लगी थी | पति ने पूजा घर की ओर देखा और देखा कि उसकी तस्वीर पर फूलमाला  चढ़ी  हुवी है| उसने पुछा - ये माला किसने पहनाई तस्वीर पर .. भोलीभली इंदु ने कहा कि मैंने आपको तस्वीर में माला पहनाई है .. और ये सुनना ही था कि राजू का गुस्सा सातवें  आकाश चढ़ गया .. उसने आव देखा न  ताव एक घूंसा सीधे इंदु के मुंह  पर जड़ दिया - इंदु यूहीं  कमजोरी महसूस कर रही थी चक्करा कर गिर गयी और राजू बेत ले आया और इंदु की पिटाई शुरू हो गयी .. मोहल्ले वाले घर के दरवाजे पर आ गए - राजू चिल्ला  चिल्ला  के सबको बता रहा था - 
इस करमजली को देखो - मेरी फोटो पे माला पहनाई - साली ने मुझे जीते जी  मार  डाला   है|                                      
                      
                                                     


कई प्रश्न एक साथ मेरे मन में उठ खड़े हुवे .. उनका जिक्र न  करुँगी .. चाहूंगी की हर रिश्ते मे प्रेम, स्नेह, सम्मान हो और रिश्तों की मर्यादा बनी  रहे |
                                

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चूड़ी छनकी बिंदिया चमकी
पैरों पे महावर  लगाया |
कुमकुम, महेंदी की ताज़ी खुश्बू संग
पिया पिया तेरा नाम आया |
गजरा महका,   मन  पगला  बहका 
पायल छनकी मृदु  गीत सुनाया | 
तेरी यादों की  जब   हवा चली तो  
फ़र-फ़र -फ़र मेरा आँचल लहराया |
पल पल बिन तेरे, मेरा  हर पल  बोझिल
और  तू न  आया, मेरा गजरा मुरझाया | 
 विकल मन की क्रूर आंधियां ने
कोमल  अभिलाषाओं  को भरमाया | 
 छत पर  अकेला चंदा जब  आया
 उन बिन करवाचौथ में जी घबराया |
दीपक पूजन  का   बुझने  दूं  न मैं
चंदा  को  है पैगाम भिजवाया  |
सजना मेरे सौतन के  द्वारे
जल्दी से उन्हें  मेरी राह दिखा दे |

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यह पोस्ट  उस  महिला  को समर्पित  है जिसके जीवन की घटना को एक रूप दिया है|

डॉ नूतन गैरोला 
२५ / १० / २०१० ( 21 :00 ) 
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Wednesday, October 20, 2010

मेला कर्फ्यू का --एक पहाड़ी लघुकथा - Dr Nutan Gairola

यह कहानी सत्य  घटना  पर  आधारित  है | ये घटना तब की है जब उत्तराखंड आन्दोलन होने पर कर्फ्यू लगा दिया गया था | मैंने उसका विस्तार अपनी सोच से किया है पर मूल में सच्चाई है..पहाड़ की एक सीधी साधी  वृद्ध महिला कर्फ्यू लगा है, कर्फ्यू एक मेला   होता है ऐसा समझ -----                                   

  
पहाड़ के लोग सीधे साधे .. और तब और ज्यादा जब  कि वो दूर-दराज के रहने वाले हो -- ऊपर से जब कोई वृद्धा की बात हो | ऐसी ही एक सीधे साधे पहाड़ी वृद्ध माता ( रुक्मा - काल्पनिक नाम )  की बात  लिख रही हूँ .. ,, बात तब की है जब उत्तराखंड आन्दोलन जोर पे था  | पहाड़ में माहोल बहुत शांतिमय रहा करता था .. लोगो ने दंगा फसाद नहीं जाना ना देखा था ... और फिर कर्फ्यू का क्या मतलब ? लोग गाँव के खेती किसानी में  व्यस्त और कभी मेला ठेला  होता तो वहां चरखी में घूमना .. सर्कस देखना .. तब चाट गोलगप्पे खाना .. रंगबिरंगी चूड़िया पहनती महिलाये, बालों के लिए  चुटिया खरीदती .मेले में बिकते  बुडिया के बाल खाती ...यही मौका होता जब काम से दूर सहेलियों के साथ हंसी  ख़ुशी मनाते..  या फिर कही देवी भाग्वत होता, कथा प्रवचन होता तो खेत से आने के बाद नहा धो कर कथा सुनने जाते और प्रसाद पा कर धन्य हो जाते ...
                                                ऐसे भोले भाले लोग जिन्होंने टेढ़ी बात देखी ना सोची, ... एक दिन वहां के छोटे छोटे शहरों  में कर्फ्यू का ऐलान हो गया | लोग घरों  में बंद .. रुक्मा  विधवा वृद्धा .. खेतों में काम करते समय बातो बातों में सुना कि आज शहर में कर्फ्यू लगा है |जैसे कोई मेला लगा हो | रुक्मा  ने पूछा  अन्य  महिलाओ से कि ये कर्फ्यू क्या होता है... महिलाओं ने बताया कि हमने सुना है पर देखा नहीं... सुना है उधर शहर में जाने नहीं दे रहे है... रुक्मा के मन में भाँती भाँती की मिठाइयों की दुकाने,  झूले , प्रदर्शनी, मेला ,सर्कस, कथा  प्रवचन घुमने लगे .. शायद कर्फ्यू ऐसा ही कुछ होता होगा .. फिर उसने पूछा कि कोई मेरे साथ कोई चलेगा देखने .. वहां  पर काम करती महिलाओं ने कहा बच्चे अभी घर पर  रो रहे होंगे हमें तो घर जाना जरूरी है .. घर गए तो फिर बाजार नहीं जा सकेंगे .. देर हो जाएगी .. गाँव खेत से दुसरी तरफ है शहर  बाजार दुसरी तरफ .. फिर उन महिलाओं ने मिल कर वृद्धा को कहा -बोडी ( ताई ) तू चली जा ना - घर में कौनसे कोई तेरा इन्तजार कर रहा है.. और बताना कैसा था कर्फ्यू .. कल हम भी साथ चलेंगे .. आज कपडे भी अच्छे नहीं पहने हैं .. . रुक्मा जो गाँव के सहयोग में आगे रहती थी सोचा कि चलो आज मैं चली जाउंगी ..कल इन लोगो के साथ मैं फिर चली जाउंगी... और फिर रुक्मा ठहरी अकेली घर में, बच्चे भी बहुत दूर कहीं देश ( पहाड़ से दूर ) में .. कोई पूछने वाला भी नहीं.. सो वह कथा प्रवचन , रामलीला , मेले में जाना पसंद करती .. इस तरह से वो अपना बुडापा काट रही थी |
                                 रुक्मा शहर की ओर चली | खेतों को पार करके जंगल और फिर शहर  की ओर जाता तीखा ढलान | ढलान को पार कर के वो जंगल के दुसरे छोर  जा  निकली ... वहां स्कूल को पार किया तो किसी ने पूछा माता जी कहाँ  जा रही हो ? वह बोली बेटा कर्फ्यू देखने जा रही हूँ | व्यक्ति बोला वहां  मत जाना ..मनाही है पुलिस  भी लगी है | ठीक है बेटा ..  मैंने तो कोई अपराध नहीं किया मुझे क्यों पुलिस पकड़ेगी ..पुलिस का कुछ नहीं बिगाड़उंगी | किसी का बुरा नहीं करुँगी .. चुपके से कर्फ्यू देख कर लौट आउंगी ..
                          बुडी रुक्मा पुलिस और कर्फ्यू का आपसी सम्बन्ध न  समझ पाई | ये आखिरी ढलान थी जहाँ  दोनों ओर बेतरतीबी से बिखरे पहाड़ी शहर के मकान थे | खिड़की से एक औरत ने आवाज लगायी - ए बड़ी जी  ( ए ताई जी ) कहाँ  जा रही हो ? वहां मत जा बडी- पुलिस लगी  है | बड़ी( रुक्मा )  ने कहा सिर्फ कर्फ्यू देखने जा रही हूँ | महिला बोली बड़ी हिम्मत है - लोग तो नहीं जा रहे |
            रुक्मा ने सोचा एक तो आज तक कभी कर्फ्यू नहीं लगा यहाँ " पहली बार लगा है .. कैसे सोये लोग हैं ये जो मेला तो देख लेते है जो साल में दो बार लगता है...और कर्फ्यू पुलिस की डर से नहीं देख रहे है ...पुलिस वाले भी तो हमारे बेटे ही है... गाँव का रग्घू भी तो पुलिस वाला है ... कितना अच्छा बच्चा है ...  और फिर मैंने तो पूरी उम्र ही बिता  दी पर कभी कर्फ्यू नहीं लगा .... इतना ख़ास है ये कर्फ्यू - सुना है कि बाहर से पुलिस  भी आई है... फिर क्यों ना देखें - कल तो मेरे गाँव की महिलायें भी आएँगी -
                  रुक्मा बाजार पहुँच  गयी - अरे ये क्या ?  बाजार बंद है लोग भी नहीं दिख रहे है... रुक्मा सोचने लगी -- हाँ~~~~ ये कर्फ्यू का कमाल है |  इतना सुन्दर प्रोग्राम होगा तो सभी दुकाने बंद कर कर्फ्यू देखने गए है.. रुक्मा तेज़ी से कदम बड़ा कर कर्फ्यू वाली जगह ढूंढने लगी | तभी एक पुलिस वाले की कर्कश आवाज कान में गूंजी - ऐ बुडी कहाँ  जा रही है - रुक्मा बोली - बेटे ! कर्फ्यू देखने - कहाँ  है वो ? पुलिस वाले ने और सख्त और कर्कस आवाज में कहा - चुपचाप घर फौरन चली जा | जाउंगी जाउंगी .. पुलिस वाला बोला ठीक है | रुक्मा तेज कदम से आगे बढने लगी  पुलिस वाला भी दुसरी राह हो लिया... रुक्मा सोच रही थी इतनी दूर से थक हार के यहाँ आई हूँ अब ऐसा कैसे हो कि कर्फ्यू ना देखूं | फिर कोई बताने वाला भी नहीं कि कहाँ  पर कर्फ्यू का पंडाल सजा है | .. थोड़ी दूर पर एक पुलिस वाला दिखाई   दिया रुक्मा सड़क की दुसरी तरफ जाने लगी तो पुलिस वाला बोला - माता जी कहाँ  जा रही हो - वापस घर जाओ -  रुक्मा बोली कर्फ्यू देखने - पुलिस वाला बोला क्या मजाक है - सीधे सीधे वापस जा - रुक्मा  बोली नहीं जाउंगी - कर्फ्यू  कहाँ है ? कैसा होता है ? सब लोग कर्फ्यू देख रहे है यहाँ ..आज तो मैं कर्फ्यू देखे बगैर नहीं जाउंगी| पुलिस वाले ने कहा कहना नहीं मानेगी तू ... और यह कह कर एक बहुत तेज़ डंडे का  वार रुक्मा  की पीठ पर कर दिया | रुक्मा  पीड़ा से चिल्लाई .. दर्द से करहाते हुवे बोली यह क्या है क्यों मारा तुने  ? पुलिस वाला बोला यही कर्फ्यू है अब ले कर्फ्यू का मजा यह कह कर उसने रुक्मा  के पैरों पर तेजी से डंडे के प्रहार किये ... रुक्मा का  बुड्ढा शरीर इन अप्रत्याशित वारों को झेल ना पाया -एक तीखी चीख के साथ उसकी उसकी आवाज गले में फंस गयी ...  उसकी आँखों  के आगे अन्धेरा छाने लगा    ........................................    

लेखक - डॉ नूतन गैरोला - २०/१०/२०१०  १८ : ४५