सुनना जो चाहा था तुमने हमसे
हमने भी तो चाहा था कुछ मीठा सुनना तुमसे|
ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती
क्या यह भी सुना है तुमने |
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सुनना जो चाहा था तुमने हमसे
हमने भी चाहा था कुछ अच्छा सुनना तुमसे
और हम दोनों ने अपने कान खड़े किये थे
दूरसंचार के श्रृंगिका की तरह
और सुन ली थी धडकनें |
पर मौन लफ्ज़..
दम तोड़ते थे
कुचले गए मन के अन्दर|
आओ मन की बातों को आवाज का जामा दें
इस से पहले कि रिश्ते की डोर कच्ची पड़े, सुनहला आयाम दें
अहं को भुला के कुह मीठा बोलो तुम भी कुछ बोले हम भी|
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