Followers

Monday, July 12, 2010

तरसती निगाहें




‎.
तेरी याद में दिन इक पल सा ओझल होने को है |
और अब शाम आई नहीं है के सहर होने को है ||
.
मेरे सब्र का थका परिन्दा टूट के गिर पड़ा है |
दीदार को तरसती आंखे और पलकों के परदे गिरने को है ||
.
चिरागों से कह दो न जलाये खुद के दिल को इस कदर |
के रौशनी का इस दिल पर अब ना असर कोई होने को है ||
'
'
मेरी ये पंक्तिया उन थके माता पिता को समर्पित है जिनके बच्चे बड़े होने पर गाँवों में या कही उनेह छोड़ कर चले जाते है अपनी रोजी रोटी के लिए और इस भागमभाग में कहीं बुढे माता - पिता उनकी आस में उनकी यादो के साथ उनका इन्तजार करते रह जाते है.. ..डॉ नूतन गैरोला 12/जूलाई /2010 ..१०:०० बजे रात्री


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

2 comments:

Vivek Sharma said...

करुण वेदना से भरी कविता |

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

चिरागों से कह दो................. अपना दिल न जलाएँ..
अंतर्मन को झकझोरती लगीं ये पंक्तियाँ| बधाई नूतन जी| साथ ही बहुत बहुत शुक्रिया इतने सारे नये लोगों से मेल मिलाप करवाने के लिए|