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Thursday, September 2, 2010

कृष्ण तुम हो कहाँ ?




तुम कौन ?




तुम कौन जो धीमे सा एक गीत सुना देता है ,

मन के अन्दर एक रौशन करता दीप जला देता है

बंद कर ली मैंने सुननी कानों से आवाजें ,

जब से सुन ली मैंने अपने दिल की ही आवाजें



तुम भूखे बच्चो के मुंह से निकली क्रंदन वेदना सी,

तुम जर्जर होते अपेक्षित माँ बापू के विस्मय सी

तुम पेट की भूख की खातिर दौड़ते बेरोजगार युवा सी,

तुम खुद को स्थापित करती एक नारी की कोशिश सी,

तुम आतंकियों की भेदी लाशो की निरीह आत्मा सी



तुम हो दर्द चहुँ दिशा फैला,

क्यों मन मेरे प्रज्वलित हुवा है,

धधका जाता है मेरे मन में फैला हुवा इक भय सा,

मैंने बंद कर ली है कानो से सुननी वो आवाजें

आत्म चिंतन - मंथन पीड़ा की,

दूर करे जो इस जग से मेरे

वो अवतरित हुवा इस युग का कृष्ण,

तुम हो या तुम हो या -

तुम में कौन ?..By Dr Nutan Gairola






by Dr Nutan Gairola .. 20:41 ..01 - 09 - 2010

कृष्ण जन्माष्टमी की पूर्व संध्या पर कृष्ण को पुकार..

आज इस युग में हमें कृष्ण की बहुत जरुरत है समाज में छाई बुराइयों का अंत करने के लिए .. और वो कृष्ण हम में भी विद्वमान है .. जरूरत है अपने अन्दर झाँकने की ..और अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने की .. बुराइयों को पराजित करने की और हिम्मत सच का साथ देने की ॥

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3 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

bahut sundar..

Vivek Sharma said...

बहुत ही आशावादी कविता |

Maheshwari kaneri said...

बहुत ही सुन्दर और आशावादी कविता |