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Wednesday, September 8, 2010

" खतरा है - होशियार ! खबरदार " ...एक लेख ..डॉ नूतन

" खतरा है - होशियार ! खबरदार "

नेट -
जी हां - जिसका नाम ही नेट है मतलब कि जाला - जो इस नेट / जाले में गिरा वो फंसा |
चाहे जाल पक्षी को पकड़ने के लिए फैंका गया हो, या फिर जानवर या कीट पतंगों के लिए - जाल पड़ा नहीं कि फंसा |
मैंने मकड़ियो के जालो में फंसे कीड़ो को तडपते देखा है - फंसते चले जाते है जालों के तानो बानो में और मकड़ी के हाथ काल के ग्रास बन जाते है |
पर इन्टरनेट का जाला इन जालो से भी खतरनाक - स्वयं आदमी द्वारा निर्मित - जहाँ आदमी स्वेच्छा से आता है पर हर एक सरल क्लिक के साथ अलग अलग किस्म के जालो में धंसता चला जाता है |
गनीमत है कि वो वहां अटका ही रहे - बड़ी बात कि वो बाहर निकल जाये - लेकिन वो फंसता ही चला जाता है |
ये जाले एक से एक रंगीन तानो बानो का बुना होता है - बड़ा आकृष्ट करने वाला लुभावना होता है
और सजे रहते है विभिन्न सजावटी सामानों से मसलन कि कहीं जानकारियों का अड्डा, कहीं लेख, कही गाने, कहीं चित्र, कहीं मित्र आदि - लेकिन सभी काल्पनिक , जब तक कि हकीक़त में न हो अपने पास - जैसे कि काल्पनिक गाजर का हलुवा का एक चित्र, लीजिये उड़ा लीजिये मजा नेट के मित्रो के साथ लेकिन काल्पनिक
और अगर मानवीय भावनाओं का रंग चढ़ा कर पेश किया जाए तो ? आदमी इस भूल भुलैया में फंसता चला जाता है और हकीक़त से दूर दूर होता चला जाता है |
काल्पनिक संसार की हकीक़त ही में जीने लगता है |
तब सुख दुःख भी वहाँ सुख दुःख के साथी भी वहाँ |
अच्छे साथी मिले तो काल्पनिक संसार कि वास्तविकता में ख़ुशी आ जाती है और वास्तविक मित्रता भी हो जाती है ,
पर ज्यादातर गाजर के हलुवे के चित्र की हकीक़त जैसे - मुखौटो के संग |
ऐसे में मानवीय भावनाओं का शोषण होने का पूर्ण खतरा , मानसिक उत्पीड़न का भय और दिल टूटने की पीड़ा |
इंसान मुक्ति के लिए हाथ पैर पटकता है पर मोह जाल जैसा ये जाला - जाला भी क्या करे उसने तो नहीं कहा था कि तुम आओ, जो अब कह दे कि अब चले जाओ
और कुछ अदद मकड़े आदमी का मुखौटा लगाये तैयार खड़े इस भोले आदमी का निवाला बनाने l बेचारा आदमी, जालों के चक्रव्यूह को तोड़ कर वापस नहीं लौट पाता - ऐसे में मनोचिकित्सक भी क्या ख़ाक करेंगे इस दर्द का इलाज
दवाइयों का सहारा
कांच फर्श पर गिर जाये तो आवाज होती है पर यहाँ तो बिना आवाज के सब कुछ टूट जाता है - लो बैठे बिठाये घर के कमरे में ही मुसीबत |
टूट जाती है इंसानी फितरत ,यकीन , रिश्ते - पर नहीं टूटता है तो ये जाला |
जाल और दमकता जाता है नित नए नए रंगों के साथ और हर रोज हजारो नए इंसानी कीड़े इस जाले के अन्दर घुसते है और ये सिलसिला बदस्तूर यूं ही चलता रहता है हर क्लिक के साथ
कुटिल समझदार लोगो के लिए है ये दरवाजा - जो दिमाग से बोलते हैं |
जो दिल से बोलते  हैं  और दुसरे पर भी ऐसा ही यकीन करते हैं, ऐसे सीधे सच्चे इंसान नेट / जाल में बैठे मकड़ों का शिकार हो जाते  हैं | 
" खतरा है - होशियार ! खबरदार "

.....Dr Nutan  .. 09/092010 .. 6:30 A:M










7 comments:

Udan Tashtari said...

होशियार हो गये.

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) said...

बहुत सुन्दर एवं सामायिक लेख...अंतर्जाल पर हम सबकी एक virtual personality है इसलिए दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार भी कभी कभी virtual अपनेपन जैसा हो जाता है| जो नासमझ हैं उनका लोग गलत फायदा भी उठा लेते है...इसलिए आंख और कान खुले रख कर ही इस अंतर्जाल की दुनिया में मित्र बनाने चाहिए|
आगाह करने के लिए शुक्रिया|
ब्रह्माण्ड

वन्दना said...

बिल्कुल सही कहा………………ये तो सबसे बडा जाल है इससे बचना इतना आसान नही जब तक दिमाग के दरवाज़े खुले न रखे जायें।

ZEAL said...

.
Yes, I agree with you. This virtual networking has ruined many lives. Still , it's part and parcel of our lives now. We have to live with it's side effects as well.

Thanks for warning us.

It's better to be safe than sorry.

zealzen.blogspot.com

ZEAL:
.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

sameer ji dhanyvaad...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

वंदना जी .. हां दिमाग के दरवाजे खुले भी रखने होते है और लत बन ना जाये ये भी ध्यान.. आपका शुक्रिया ...आप आई .. :))

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

कौशल जी धन्यवाद... बस कोशिश जारी है..