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Sunday, October 31, 2010

पहाड़ / उत्तराखंड/ गढ़वाल ( गाँव ) की एक दीपावली - २००९ Dr Nutan Gairola

  पहाड़ / उत्तराखंड/ गढ़वाल ( गाँव ) की एक दीपावली - २००९

घर की सफाई, रंग-रोगन कुछ दिन पहले से शरू हो जाता है | फिर दीपावली के दिन सुबह सवेरे स्नान ध्यान के बाद बनती हैं फूल मालाएं | बच्चे लोग फूलों की मालाएं बनाते है और दीये के लिए बाती | माँ पिता घर की सफाई करते है और रसोई में बनती है -पूड़ी पकौड़ी .. इसके साथ ख़ास बनता है " पिण्डा " - पिण्डा गाये, बैल, बछिया को खिलाने के लिए पके हुवे चावल / भात , झंगोरा / ज्वार और आटे का हाथ से बनाये हुवे बड़े बड़े लड्डू होते हैं | पिण्डे की थाली भी विशेष रूप से सजाई जाती है ..हर पिण्डे पर एक फूल रोपा हुवा होता है |गाय की पूजा की जाती है| फूल मालाएं पहनाई जाती हैं | तिलक लगा के उनके सींगों पर तेल या घी की मालिश करते हैं .. और फिर उन्हें  " पिण्डा" खिलाया जाता है |

गौ पूजन और पिण्डा खिलाते हुव

दरवाजों के चौखटों को और लकड़ी के खम्बों को सुन्दर पीले, लाल और सफ़ेद रंगों से क्रमशः हल्दी, रोली और आटे के बिंदियो से सजाते ( बिर्याते ) हैं | दरवाजे के दोनों कोनों पर थोडा सा गोबर लगा कर उसे रंगों से बिर्याते है और जौ से सजाते है व दरवाजे और पूजा घर को फूल मालाओं से सजाते है |

दिन में लडकियां और महिलाएं घर की सजावट में गेरू से रंग कर, पिसे चावल से रंगोली सजाते है | रंगीन मिट्टी भी कहीं कहीं पर इस्तेमाल करते है | या फूलों की रंगोली भी | और लक्ष्मी के पैरों के निशान घर के बाहर से भीतर जाते पूजाघर या अनाजघर तक जाते हुवे अंकित करते हैं |



दीये से सुसज्जित रंगोली, पूजा और घर


शाम को पूड़ी ( स्वाल ), पकौड़ी, हलवा बनता है| लजीज व्यंजन बनाये जाते है | पानी की धारा ( मंगरा ), हल के फल और जोल की व ओखली और मुसल ( गंज्याला ) को भी सजाया/ बिर्याया जाता है | इनकी पूजा की जाती है क्यूंकि किसानों के लिए गाय बैल हल, पानी और अनाज को कूटने वाला ओखल बहुत महत्वपूर्ण हैं |

पूड़ी, पकौड़ी, खील, बताशे, मिठाइयाँ और दीयों के थाल सज जाते है| पूजा की सामग्री के साथ पैसा या जेवर, सोना आदि भी रखा जाता है | गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा होती है |


 जगमग दीये और गणेश लक्ष्मी की पूजा


फिर दीप मालाएं सजाई जाती हैं | घर का कोना कोना दीपज्योति से जगमगाने लगता है| आज कल फुलझड़िया, अनार, बम-पटाखे भी फोडे जाते है |





फूलझड़ी, अनार जलाते हुवे बच्चे  



किन्तु गाँवो में भेल्लो / भेलो खेलते है | जिसमें लकड़ियों का एक छोटा गट्ठा बाँध कर घुमातें हैं | गाँववासी इसका बहुत आनंद लेते है | दुसरे गाँव वाले भी, और सभी गाँव से बाहर इकठ्ठा हो कर नाचते हैं  और रोशनी का त्यौहार भेल्लो के साथ मानते है और " भेल्लो रे भेल्लो " गीत भी गातें हैं |




पारंपरिक भेल्लो खेलते हुवे

घर में बनी पूड़ी, पकौड़ी , खील- बतासे, मिष्ठान आदि का आदान प्रदान करतें हैं और दिवाली मिलन करते है | बच्चो को ये त्यौहार खासा पसंद आता है |

 दीपावली पर हार्दिक शुभकामनाएं  

प सभी का त्यौहार मंगलमय हो | खुशियों को लाने वाला, मन के अंधेरो, राग द्वेश को मिटाने वाला और आपसी प्रेम को बढाने वाला हो | दीपमालाएं प्रज्वलित कीजियेगा किन्तु नाहक बारूद को जला जला कर वातावरण प्रदूषित न किया जाये तो हम सबके लिए और हमारी पृथ्वी के लिए बेहतर होगा | आग से, बारूद से बचें और एक सुरक्षित, पर्यावरण संरक्षित और सौहार्दपूर्ण दीपावली मनाएं -
 
                  शुभकामनाएं सहित - डॉ नूतन गैरोला

     सभी फोटो मेरी निजी एल्बम से सिर्फ आखिरी फोटो को छोड़ कर - डॉ नूतन गैरोला

11 comments:

Barthwal Pratibimba said...

नूतन जी अपने रीति रिवाज़ो से रुबरु कराता आपका ये लेख और चित्र बहुत ही अच्छा लगा। दीपावली की शुभकामनाओ सहित आप परिवार एवम सभी मित्रो को एवम ब्लागर साथियो को

अनुपमा पाठक said...

shubh deepawali!
jagmagati hui sundar post!
sabhi chitra behtareen!

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Dhanyvaad Pratibimb ji..

Dhanyvaad Anupama ji..

उस्ताद जी said...

6/10

दीपावली पर्व पर विशेष.
हमारी संस्कृति, रीति-रिवाज के करीब ले जाती दर्शनीय पोस्ट.
प्रस्तुति मनमोहक है ... आपकी मेहनत नजर आती है.
आखिर में सन्देश देकर भी आपने पोस्ट की महत्ता बढा दी है.

shanno said...

नूतन, दिवाली के चित्र व लेख सभी बहुत पसंद आये. गढ़वाल के रीति-रिवाज बहुत दिलचस्प लगे. तुम्हें सपरिवार दिवाली की बहुत शुभकामनायें.

निर्मला कपिला said...

बहुत बढिया जानकारी मिली। चलो एक दिन ही सही गाय की सेवा तो हो जाती है। पूरे देश के रस्मो रिवाज जान कर भारत की संस्कृ्ति पर गर्व होता है। दीपावली की आपको भी मंगल कामनायें।

हरि जोशी said...

आलेख पढ़कर आनंद आ गया। दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

आप सभी को मेरी भी शुभकामनायें .. और धन्यवाद आप मेरी पोस्ट में आये ..

योगेन्द्र मौदगिल said...

are wah, aapne to aaj hi deepawali manva di.....wahwa...

Anonymous said...

Uttarakhand ki bagwal(deepwali) per bahut hi sundar lekh......regards, pankaj rawat

Renu Mehra said...

आज आपका ये लेख पढ़ने का अवसर मिला ..बहुत बदिया लिखा आपने ...पुरे रीति रिवाजो से परिचित करवा दिया जोकि हम यहाँ शहरी जिंदगी में भूलते से जा रहे हैं ...आपको सादर नूतन जी ....