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Saturday, July 23, 2011

रात में अक्सर - डॉ नूतन डिमरी गैरोला



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रात में अक्सर
मेरी खिडकी से
एक साया उतर
कमरे की हवा में
घुल जाता है|
आने लगती है
गीली माटी की गंध
और आँखे मेरी फ़ैल जाती है छत पर
जहाँ से अपलक निहारता है मुझे
मेरा वृद्ध स्वरुप|


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रात में अक्सर
जब लोग घरों के दरवाजे बंद कर देते हैं
तब खुलता है एक द्वार
कलमबद्ध करता है
कुछ जंग खाए
कुंद दिमाग के जज्बात
और मलिन यादों के चलते
जो अक्सर रह जाते हैं शेष |


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रात में अक्सर
याद आता है वो सफर
जो सफर नहीं था
था एक ठहराव खुशियों का
खिलखिलाती ताज़ी कुछ हंसी
जैसे किसी काले टोटके ने रोक ली हो
और मुस्कुराता चेहरा
धूमिल हो डूब जाता है
आँखों के सागर में |


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रात में अक्सर
जब शिथिल हो कर
गिर जाती है थकान
शांत बिस्तर में
रात उंघने लगती है तब 
पर तन्हाइयां उठ कर जगाने लगती हैं
और कानाफूसी करती है कानों में  
नीलाभ चाँद देर रात तक
खेला करता तारों से|


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द्वारा - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
सभी चित्र नेट से … उनका आभार जिनकी ये तस्वीरें हैं ..

37 comments:

मनोज कुमार said...

जब हम अकेले होते हैं तो हमारे विचार, हमारे चिंतन बहुत स्पष्ट होते हहैं।

Er. सत्यम शिवम said...

bhut sundar....ek chalchitra sa kheench raha hai saamne..kalpnao ka....laazwaab:)

प्रवीण पाण्डेय said...

*सृजनीय एकांत

प्रवीण पाण्डेय said...

रात का सृजीय एकांत, भूत और भविष्य दोनों ही वर्तमान से बतियाने आ जाते हैं तब।

Kunwar Kusumesh said...

मन से की गई अभिव्यक्ति.

sushma 'आहुति' said...

बहुत ही खूबसूरती से रात के एकांत को आपने बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

रात से जुड़ी सारी अभिव्यकतियां एक सच की ओर ईंगित करती हैं
जो हममें से किसी न किसी के साथ पैबंद है।

सागर said...

sunder raat ki abhivaykti....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरती से लिखा है जो शांत मन से अक्सर याद आता है ...

बहुत अच्छी प्रस्तुति

Dorothy said...

रात के सन्नाटे में मन में उभरने वाली अनकही अनसुनी बातों के खामोश आहटों का सूक्ष्म चित्रण...बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

खुबसूरत रचना....
सादर...

Patali-The-Village said...

बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति| आभार|

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब ... नए नए बिम्ब हैं इस लाजवाब नज़्म में .. रात में अक्सर शिथिल हो कर गिर जाती है थकान ... बहुत ही कमाल का बिम्ब है ...

वन्दना said...

यही विचार तो नव सृजन को जन्म देते हैं।

दीपक बाबा said...

खूबसूरत ...

DR. ANWER JAMAL said...

खुबसूरत रचना....
सादर...

Dimple Maheshwari said...

bahut sundar........par akaelapan jhalkta hain...

Anita said...

रात्रि के एकांत में अंतर्मन अपने आप से मिलता है, जो दिन के कोलाहल में संभव नहीं होता, आपने इस कविता में नए प्रतीकों का प्रयोग कर एक सुंदर शब्द चित्र प्रस्तुत कर दिया है... आभार!

ZEAL said...

.

Beautiful imagination but kinda scary as well !

Nice creation !

.

Anonymous said...

शब्दों एवं चित्रों का बेहतरीन सामंजस्य ! सुंदर प्रस्तुति ,
आभार............
पी.एस. भाकुनी

संजय भास्कर said...

बेहद गहन भाव संजोये है रचना…

संजय भास्कर said...

Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.

vidhya said...

sundar

Babli said...

सुन्दर तस्वीरों के साथ सुसज्जित गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

बेहद खूबसूरत ,भावपूर्ण नज्में !
आभार !

सदा said...

गहन भावों का समावेश लिये बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

Rakesh Kumar said...

अदभुत भावपूर्ण प्रस्तुति.
विचारों का द्वंद और भावों की गहनता छाप छोडती है मन पर.

अनुपम अभिव्यक्ति के लिए आभार.

daanish said...

रात का एकांत
और मन की भावनाएं
बहुत ही प्रभावशाली शब्दों में
अभिव्यक्त हो उठीं हैं ....
अनूठा सृजन .

Maheshwari kaneri said...

अनुपम अभिव्यक्ति गहन प्रस्तुति...सुन्दर

डॉ. हरदीप कौर सन्धु said...

बिलकुल यही मनोदशा रहती है इंसान की.
यथार्थपरक सुन्दर संवेदनशील रचना...

सुधीर said...

सुंदर प्रस्तुति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...

बहुत सुन्दर सन्देश देती हुई रचना!

Dr Dwijendra said...

its wonderful.

S.N SHUKLA said...

सुन्दर रचना, खूबसूरत अंदाज़

रश्मि प्रभा... said...

रात के सन्नाटे में गहन उठते एहसास

Vijay Kumar Sappatti said...

क्या कहूँ , आपकी इस नज़्म ने कई कोलाज़ बना दिये है मन के कनवास पर .. मेरे पास इस वक्त शब्द नहीं है .. कुछ कहने के लिये .. बस एक मौन ...इस सुन्दर कविता को धीरे धीरे पिघलते हुए देखने के लिये ..

आभार

विजय

कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish') said...

नूतन जी, बहुत गहरी बातें कह दी आपने कविता के माध्‍यम से। अभिभूत हूं पढकर।

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कम्‍प्‍यूटर से तेज़!
इस दर्द की दवा क्‍या है....