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Tuesday, March 29, 2011
Monday, March 21, 2011
Tuesday, March 8, 2011
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस (१००वर्ष पूरे –सन् २०११)पर
एक कविता मैं एक घडी हूँ - महिला दिवस परबाँध सका न जिसको कोई,
देखो न दिन दोपहरी बीत गयी
पुरानी पड़ जाऊँगी एक पुरानी कविता - महिला दिवस पर डॉ नूतन गैरोला |
Wednesday, March 2, 2011
ओम् नमः शिवाय् - डॉ नूतन गैरोला
आज महाशिवरात्रि पर शिव भगवान की आराधना वंदना करते हैं| वो भोले भगवान जो देवादिदेवों की रक्षा के लिए विषपान करते हैं और विष की तीव्रता से नीलकंठ हो जाते हैं- जिनके गले में सर्प, माला जैसे विराजते हैं, भस्म का लेप कर भंगोडी भी कहलाते हैं, भूत जिनके गण हैं और बैल जिनकी सवारी है| कर में त्रिशूल और डमरू धारण करते हैं| जिनके केश सघन जटाओं से हैं और जिन्होंने संसार की रक्षा के लिए असीम जल राशि को अपनी जटाओं में बाँध के रखा है और जिसकी एक धार जग के कल्याण के लिए और सृजन के लिए पृथ्वी पर छोड़ी है, वो जलधार पवित्र पावन गंगा बन सहस्त्र प्राणियों के जीवन का आधार बन बहती है| और जिनके सर पर अर्धचंद्र मंद मंद मुस्कुराते हुवे अपने भाग्य पर इठला रहा है, जो प्रभु भोले हैं, त्रिपुरारी है, त्रिपुरांतकारी हैं, पृथ्वी में पापियों की और पाप की वृद्धि को रोकने के लिए क्रोधावस्था में तांडव करते हैं किन्तु भक्तों पर कृपा दृष्टि रखते हैं और उनका हर कष्ट हर लेते हैं ऐसे अविनाशी उमापति भोले शंकर को मेरा वन्दन ओम् नमः शिवाय् |
हे सर्वज्ञ त्रिनेत्री हे श्रेष्ठ नर्तक नटराज! तुम रूद्र भी हो प्रलयंकारी हो तुम शून्य से सम्पूर्ण ब्रह्मांड हो तुम निराकार हो आकार हो तुम आदि हो तुम अनादि हो तुम शिव भी हो तू आनंद रूप दिखा| डमडम डमडम डमडमा मधुर मधुर डमरू तू बजा| ज्ञान प्रेम साहित्य कला कल्याण भरी विधा के, सृष्टि में सृजन से अनुपम पुष्प खिला| दुःख क्षोभ दरिद्रता व्याधि प्रभु क्षण में तू मिटा| न खोलो त्रिचक्षु को प्रभु न रौद्र रूप दिखा| धरती आकाश कम्पित डिगम डिगम डिगडिग डोले विनाशी तांडव के प्रभु न पद-थाप तू बजा| मोहिनी ध्यान मुद्रा में प्रेम में ब्रह्मांड की प्रभु मोहनी रूप दिखा मंद मंद मुस्कुरा| पशुत्व भरी दुर्भावनाओं को प्रभु जग से तू मिटा| कुदृष्टि कामदेव सी भस्मासुर नरों की दुष्ट भावनाओं को प्रभु भस्म कर तू जला| ज्यूं हो स्याह घन जटामंडल वृत्त सघन थामें विनाशकारी अथाह जलपुंज| समेटे उन्मादी प्रबल प्रवाह प्रचंड | छोड़ दी एक लट जन-जन के कल्याण को बहा दी पवित्र गंगा की धरा में अमृतरसधार को| हे जग रक्षक मृत्युंजय! तुमने किया था हलाहल पान दिया था अभयदान देव ऋषि नर मुनियों को| प्रभु चरणों में तेरे करते हैं वंदन पापों का जग से कर दे तू मर्द्दन| भवसागर के तारणहार! मार्ग मोक्ष के प्रशस्त करो हे जगपालनहार! कल्याण जग का करो कृपालु करुणावतार! कृपा दृष्टि हम पर करो| हे शरणान्गत भक्त वत्सल! हे दीनानाथ! डॉ नूतन डिमरी गैरोला ओम् नमः शिवाय यह नृत्य खासकर टीवी सीरियल में जिस तरह इसे शिव के अंदर व्याप्त अग्नि के साथ दिखाया गया है मुझे बहुत पसंद आया तांडव नृत्य का यह अंदाज आप भी देखें महाशिवरात्रि पर हार्दिक मंगलकामनाएं डॉ नूतन डिमरी गैरोला |
Friday, February 11, 2011
मेरी दो कविताएँ - बसंत की पूर्वसंध्या पर - डॉ नूतन गैरोला
बसंत की पूर्वसंध्या पर जब मौसम फिर कडाके की ठण्ड का दुबारा उद्घोष करने लगा| बहुत तेज ठंडी हवाओं ने, बादलों ने घुमड़ घुमड़ कर काला घना रूप ले लिया और दामिनी उस अंधियारी रात को अट्टहास करती अपने तीखी दन्त पंक्तियों को रात के अन्धकार में कड़क कड़क कर चमकाने लगी| आकाश से गिरती तेज बारिश ने रात के स्याह आँचल को बर्फीला बना दिया | बसंत के आगमन पर सर्दी का ये भयंकर लगने वाला तांडव नृत्य दिल को कंपा गया | तब गिरती बूंदों के साथ विचारों के कुछ बुलबुले मनमस्तिष्क पर उभरने लगे कि क्यों ये बसंत देर कर रहा है आने में - और तब लिखीं कुछ पंक्तियाँ |
![]() ये पतझड़ भी कैसा था अबके बहुत लंबा और शीत ? घनी गहरी बरफ में हर फूल दबे मुरझाये| बसंत! तुमने क्यों कर न देखा मिट्टी में घुटते वो नन्हें बीज अंकुरित होने को जो थे व्याकुल | जिन्हें खा गयी मौन हिमशिला सर्द| और उस शीत का प्रेम देखो पुनः पुनः वापस आया| ज्यूं नवयोवना की प्रीति में हो उसका सुकुमार मर्द | विडंबना तुम आये पर आये देर से आये| क्या खिल सकेगा वो अंकुर इन्तजारी में जो दफ़न हुवा भूमि के अंदर एक अथाह भारी हिमखंड से कुचला मृत प्रायः | अबके बसंत में क्या वो पतझड का मुरझाया फूल फिर खिलेगा, खिलेगा तो अबकी खूब लड़ेगा कि बसंत तुम देर से क्यों आये ? डॉ नूतन गैरोला - ७ फरवरी २०११ २१:०३ |
Friday, February 4, 2011
एक लड़का और सेब का पेड़- डॉ नूतन डिमरी गैरोला ‘नीति’
यह बहुत ही मार्मिक, शिक्षाप्रद कहानी चित्र मुझे नेट पर मिला था जिसे मैंने फेसबुक में शेयर किया था | आज यहाँ मैं हिंदी अनुवाद के साथ चित्रों को लगा रही हूँ | और कुछ अपने विचारों को रख रही हूँ | उम्मीद है, कहानी आप सब को भी उसी तरह पसंद आएगी जिस तरह मुझे आई थी ……… |
लड़का और सेब का पेड़
एक दिन लड़का पेड़ के पास वापस आया | पेड़ ने कहा “आओ और मेरे साथ खेलो |”
“मुझे खिलौने चाहिए और मुझे उन्हें खरीदने के लिए पैसों की जरूरत है |”
माफ़ी चाहूँगा. लेकिन मेरे पास पैसे लड़का बहुत खुश हुवा उसने नहीं ..किन्तु तुम मेरे सारे सेब तोड़ कर तुरंत सारे सेब निकाल लिए लिए उन्हें बेच सकते हो| तब तुम्हारे पास पैसे हो जायेंगे| और खुशी खुशी पेड़ बहुत खुश था |
पेड़ दुखी था |
मेरे पास खेलने के लिए समय नहीं है| मुझे परिवार के लिए काम करने हैं | हमें घर की जरूरत है “क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो ?”
पेड़ दुबारा फिर अकेला हो गया और दुखी हो गया |
“ मेरे तने का इस्तेमाल कर तुम नाव बना लो|” पेड़ बोला | “तुम समुद्री यात्रा में दूर तक जा सकते हो और खुश रहो| ” तब आदमी ने नाव बनाने के लिए पेड़ का तना काटा| वह समुद्री यात्रा पर निकल गया और फिर काफी समय तक वापस नहीं आया | आखिरी में एक दिन, काफी सालों बाद वह आदमी वापस आया| “माफ करना मेरे बेटे| अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं बचा | तुम्हें देने के लिए कोई सेब भी नहीं मेरे पास ..”पेड़ बोला “अब कोई शाखा या टहनी भी नहीं जिस पर तुम चढ सको |” “ अरे हाँ ! पुराने पेड़ की जड़ें पसरने और आराम करने के लिए बहुत अच्छी जगह होती हैं” आओ, आओ मेरे साथ बैठ जाओ और आराम करो | और आदमी जड़ पर बैठ गया पेड़ बहुत खुश हो गया और उसके खुशी के आंसूं बहने लगे ..
उसी तरह हम सबके जीवन में हमारा एक सेब का पेड़ है जो हमें हर हाल में खुश देखना चाहता है और वो हमारे बुडापे तक भी, अगर वो है तो अपनी हर सांस भी हमें देने के लिए तैयार रहता है चाहे हम कितने भी स्वार्थी और लालची क्यों ना हो, चाहे हम उस सेब के पेड़ की बेकदरी क्यों ना करे, लेकिन उसकी आत्मा तो सिर्फ हमारी खुशियों को देख कर खुश और संतुष्ट होती है | और वह सेब का पेड़ और कोई नहीं, हमारे माँ -पिता हैं जो बच्चों की खुशी के लिए खुद का सब कुछ लुटा देते हैं| स्वयं जब वो बूढ़े हो जाते है तब भी अपनी बची-खुची उर्जा अपने बच्चों के लिए सहेज, उन्हें देने के लिए तैयार रहते हैं चाहे बच्चे उन्हें उपेक्षित रखते हों, इस बात का दर्द वो दिल में दबा लेते हैं और निस्वार्थ भाव से बच्चों और उनके बच्चों की भी देखभाल करते हैं और सदा उन्हें खुश देखना चाह्तें हैं |
ध्यान रहे कि हम कहीं इस कहानी के बच्चे की तरह स्वार्थी तो नहीं हो रहे| कहीं हमारे माँ पिता अकेले और उपेक्षित तो नहीं हो रहे हैं|
आज हमारे माता पिता जिस जगह पर हैं कल हम वहाँ होंगे . आज हम जिस जगह पर है कल हमारे बच्चे उस जगह पर होंगे | और जो हम करेंगे उन्हीं संस्कारों का बच्चे वहन करेंगे |
यूं तो दिल शरीर के अंदर धडकता है किन्तु बच्चे, माँ पिता के शरीर से निकला हुवा उनका वो दिल है जो बाहरी दुनिया में धडकता है - माता पिता के लिए बच्चे उनका कलेजे का टुकड़ा, आँखों का तारा होते हैं इसी लिए इन मुहावरों की उत्पत्ति हुवी | …………. यूं तो बच्चे को जिंदगी माता पिता देते हैं किन्तु बच्चे के जन्म के बाद माता पिता अपनी जिंदगी बच्चे को दे देते हैं | ………… उनका अपने बच्चों से जो निर्विकार, निस्वार्थ, अविरल, अविरत प्रेम है उसकी सम्पूर्ण व्याख्या कोई ग्रन्थ भी नहीं कर पाया …………ये प्रेम सिर्फ महसूस होता है …..… हम अपनी संवेदनाओं को ना खो कर अपने माता पिता के प्रेम को महसूस करें | उनको अपना साथ दें, उनका मान रखें , उनकी जरूरत का ख्याल करें |…….. उन्होंने हमें बड़ा बनाने के लिए हमारी साफ़ सफाई, सुरक्षा, भोजन, भाषा, रहन सहन, कपडे लत्ते, पढाई लिखाई, शिक्षा घर क्या नहीं उपलब्ध करवाए और हमें काबिल बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहे| हमारी भावनाओं का भी ख्याल रखा, अपने प्रेम से हमें सिंचित किया और हमें बड़ा बनाने के लिए किन किन कठिनाइयों का सामना किया होगा, वो बातें भी हमें ज्ञात ना होंगी| अब हम बड़े हो गए हैं, समझने लगें है …………वो वृद्ध हो चले हो और थोडा देर से समझते हों, आँख कम देखते हों, कान कम सुनते हों, याददाश्त कमजोर हो, या जल्दी चिढते हों या शारीरिक कमजोरी हो, जो भी तकलीफ हो उन्हें, सहनशील हो कर उनका सहारा बन कर न सिर्फ हमें एक तृप्ति का अहसास होगा, बल्कि हम कर्तव्य के मार्ग में भी चल रहे होंगें |…………. बच्चे मूक दर्शक होते हैं वह इन सब बातों को चुपचाप समझते हैं और आत्मसात करते हैं क्यूंकि माता पिता उनके लिए आदर्श होते है अतः हम अपने बच्चों को जिस मार्ग पर ले जाना चाहते है, हमें स्वयं उस मार्ग पर चलना होगा|
आप कितने भी व्यस्त हों, कुछ समय आप अपने माता पिता के साथ जरूर बिताएं |
डॉ. नूतन गैरोला |
Wednesday, January 26, 2011
आओ जश्ने आजादी मनाएं- एक व्यंग बाण - डॉ नूतन गैरोला २६-जनवरी २०११
सभी ने लिखी देश पर, वीरता पर, प्रेम पर गद्य या पद्य और वो बैठे कतराए उन लोगो का क्या जो देश के लिए इतना जोखिम भरा काम कर रहे हैं | घूंस, चोरबाजारी, रिश्वतखोरी, साम्प्रदायिकवाद , दंगे, झूठ, धोखा- बोल लिख और करके देश के साथ गद्दारी करके खुद को निशाने की शूली में टांग देते हैं | बेचारे कोई उन पर दया भी नहीं करता | वो बेचारे तो नकारात्मक भूमिका निभाते हैं , कितना ख्याल रखते हैं हमारा ताकि हमारी गुणवत्ता को लोग तुलनात्मक पहलू से पहचान सकें | वो जमाखोरी करते हैं, महंगाई बढ़ाते है तो कोई खुद के लिए नहीं , हमारे लिए, हम जो लग्जरी में जीने के आदी हो चुके हैं, हमारे लिए पैगाम है उनका – भाई थोड़ी थोड़ी दूर के लिए कार या गाड़ी ही क्यों ? क्या भगवान के दिए हुवे दो पैर नहीं है चलने के लिए, न कोई पेट्रोल डीज़ल भरवाने का झमेला ना कोई धुंवा-पोल्युसन | फिर रशोई में कौन कहता है कि दो दो प्याज डालो और बनाओ सब्जी, प्याज हमारी कोई मूलभूत जरूरत तो नहीं- मत खाओ कुछ दिन प्याज तो जमा गोदाम में अनाज / प्याज सड़ने लगेगा वो बेचारे खुद कम कीमत पर हमारे लिए प्याज उपलब्ध करवा देंगे | ( हां जरा किसानो की सोचती हूँ तो डर लगता है - वो बेचारे दो धारी तलवार पर खड़े ) और फिर देखो न हिम्मत उनकी - उन्हें तो सजा ही मिलेगी , ना मिलेगा कोई तग्मा- पुरुस्कार – उनकी हौंसला अफजाई के लिए भी कोई नहीं | हम लोग अच्छा काम भी डर डर के बच बच के करते हैं, अच्छे काम के लिए जल्दी से आगे आ कर स्वीकार नहीं करते और वो सजाओं की शूली पर लटकते हुवे भी, कितने बहादुर हैं, निर्भीक हैं, कैसे कैसे घपलों को अंजाम देते है, बिना किसी सरकारी मदद के और सरकारी मदद मिले तो वो भी कोई बड़ा भारी घपला का अंजाम होगा - देनी पड़ेगी उनको दाद | कुछ तो नेताओं की सफ़ेद वर्दी में करते है बड़े बड़े ऐलान ...आहा क्या मज़ा आता है उनकी बड़ी बड़ी बातों में ..काश की वैसा होता जैसा उन्होंने कहा .. नहीं जी इधर ऐलान हुवा उधर पैसों का खिसकान / फिसलना शुरू हुवा उनकी तरफ | उन्हें तो जनता जनार्दन का भी डर नहीं, कितने बहादुर हैं ये, क्यों नहीं वो बड़े बड़े घपलों के लिए बड़े बड़े एवार्ड घोषित करते है, एवार्ड भी मिलेगा और एवार्ड के बिकने पर पैसा भी, और एवार्ड की फेरहिस्त में हेरा फेरी करने पर भी आमदनी ..एवार्ड का नाम क्या होगा तब - श्री उपद्रवी, घपलाबाज नंबर -१ एवार्ड ,श्री श्री रिश्वतखोर कामचोर भारत श्री एवार्ड, बिना डकारे भूसा खाए शेर एवार्ड, आदी आदी – कुछ नाम में मदद आप लोग भी कीजियेगा| हां श्री शब्द का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए इसका भी ख्याल रखूंगी | और तिस पर जो पैसा आएगा वो भारत के किसी भी काम का नहीं क्यूंकि भ्रष्टाचारी जी उसे स्विस बैंक में पहुंचा देगा| देश में पैसा कम तो लोग निर्माण, खरीद फरोख्त कम करेंगे, कुछ लोग भूखे रहना सीख लेंगे और जब पैसों का लेन देन कम होगा तो घूंसखोरी कम होगी ..तो अप्रत्यक्ष रूप में ये भ्रष्टाचारी देश के लिए काम कर रहे है.. संविधान बना, लेकिन विधानों से बचने बचाने के उपाय तो ये खूब जानते हैं बस जरा जेब गरम .. और जहाँ ना लागू हो वहाँ जोरजबर्दस्ती लागू करवाया जाता है ताकि आप बचने के लिए टूट जाएँ और आप घूंस देने जैसा बड़ा अपराध करें और बड़ा नाम कमाएँ ... जय हो इन भ्रष्टाचारी भाई बहनों की आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं संविधान बना क़ानून बने क़ानून के नाम पर कुछ अतिरिक्त कमाएँ | आओ आओ जश्न ऐ आजादी मनाएं आओ आओ फिर एक नया गुल खिलाएं | फूल होंगे बीमारी के भ्रष्टाचार के राजनीति में पैंठे रिश्वतखोर चोरचकार के जय जयकार करते घुंसखोर चमचे अपराधी कातिल अपहरणकरता धूर्त आचार के | आओ आओ फिर नवनिर्माण करवाएं कुछ नयी भवन सड़के पुल बनवाएं उद्घाटन तक न जो टिके कुछ इस कदर कमाएँ | आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं | आओ आओ सट्टेबाजी में धन लगाएं एक नहीं अनेकों स्विस बैंक में खाते खुलवाएं | किसी के पास झोपडी नहीं तो क्या, झूठे ऐलान कर तो दो बहते पैसों से खुद के घर भरवाएं अपने देश दुनियाँ में फ्लेटों की संख्या बढाएं महंगाई, चोरबाजारी, जमाखोरी की दुकानें खुलवाएं आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं आओ आओ हर रोज कुछ नए क़ानून बनाए| भोली भाली जनता अकबक, कल तक मार्ग यही था आज वन वे कैसे हुवा खौफ क़ानून का पुलिस का उन पर हो जो भोली है, निश्छल जनता है आओ कानून का डंडा उनके सर पर जोर से घुमाएँ चलती गाड़ियों को रुकवाएं कोने ले जा कर अपनी जेबें गरम करवाएं | आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं संविधान बना क़ानून बने क़ानून के नाम पर कुछ अतिरिक्त कमाएँ | अपनी भारत माता का नाक कटवाएं | मेरे वचन कडुवे बहुत लग रहे होंगे क्यूंकि मै कडुवी हकीकत के खिलाफ कडुवे तरीके से बोल रही हूँ | किन्तु मेरी भावनाएं साफ़ हैं | मैं समाज में निहित भ्रष्टाचार के खिलाफ हूँ ( आप भी होंगे पूरा यकीन है ) और आज गणतंत्र दिवस पर चाहती हूँ कि सभी लोग इसके खिलाफ हो जाएँ | न घूस लें न दें | संकल्प लें | *=====*=====*=====*=====*=====*=====*=====*=====**=====*=====*=====* क्या ये सब पढ़ कर भी इन भ्रष्टाचारियों की आँखे नहीं खुलेंगी | क्या हमारा प्यारा भारत देश, इन बीमार, लचर, भ्रष्टतंत्र से मुक्त हो कर, सही मायनों में आजादी की खुली साँस ले सकेगा | क्या हम सब एक जुट हो कर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते | मेरा सरोकार किसी आन्दोलन से नहीं बल्कि अपने कर्तव्यों का पालन से है हम जहाँ भी कार्य करते हैं अपने कर्तव्यों का पालन इमान् और निष्ठापूर्वक कर अपने देश को गौरवान्वित कर प्रगतिशील बना सकते हैं | *=====*=====*=====*=====*=====*=====*=====*=====**=====*=====*=====* दो जोक – अभी अभी बनाएं मम्मी – राज बेटा ! लड़की वालों को देखने जा रहे हैं | खूब पैसे वाले हैं | जरा हमारी अच्छी छाप बन जाये | ढंग से तैयार होना | राज – जी मम्मी! मैं तैयार हो गया हूँ पूरी तरह से | चलिये मम्मी – अरे रुक , तुने प्याज वाला इत्र तो डाला ही नहीं | *-*-*-*-* ग्राम प्रधान ( नेता जी से ) – साहेब पिछली गरीबी उन्मूलन के लिए जो पैसे आये थे, आपने पूरे डकार लिए थे| अब मनमोहन जी गाँव भ्रमण में आ रहे है | क्या करूं? नेता जी – ये लो ये एक शीशी ,मैंने ये प्याज के इत्र अपने भण्डार में जमा किये हुवे हैं, ठीक समय पे इस एक शीशी से तुम गाँववासियों पर एक एक पफ्फ़ छिडक देना| डॉ नूतन गैरोला - २६ जनवरी २०११ *=====*=====*=====*=====*=====*=====*=====*=====**=====*=====*=====* और अंत में अपनी प्यारी भारत माता की जय जय हिंद - सभी का गणतंत्र दिवस अच्छा रहा होगा | इस उम्मीद के साथ लहर लहर ओ भारतीय राष्ट्र पताका तू आज गगन को छू ले | ( ये पंक्तियाँ स्कूल के दिनों में गाये देश भक्ति के गीतों में से हैं जो मुझे पसंद था |) सभी फोटो गूगल से सभार |