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Tuesday, March 29, 2011

न यूँ होता - डॉ नूतन डिमरी गैरोला

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दर्दे  जख्म  को तुमने पल भर जो सहलाया होता,

ठंडी मलहम बन मरहम घाव भी भर आया होता |

  न ये पीड़ा होती कि काश मेरा भी कोई अपना होता,

दर्द भी जाता, चराग आशनाई का न बुझ रहा होता |

 

जल न रही होती चिताएं मासूम सी तम्मनाओं की,

फाख्ता ए वफ़ा  न अपने आसमां से गिर रहा होता|

दवा लगती नहीं, लाइलाज बन गया जो नासूर मेरा,

हमनवाँ होता तू तो अंदाजे-इलाज पे यकीं रहा होता|

 

मलाल होता है तोडी क्यों जंजीरें गुफ्तगूं की तूने

इख्तलाफ का गुलशन  भी न  यूँ आबाद होता|

रफ्ता  रफ्ता खिलखिलाता  गुल मुहब्बत का,

जश्ने  बर्बादी  का  न सिलसिला जुड़ा  होता |

 

हर रात न सही, तू चाँद ईद का होने को तो आता,

तेरे दीद को तरसती रही,न तू गैर के साये में छुपा होता|

बेदर्द, बेवफाई  तेरी  मेरी मौत  का सामां हो गयी

वर्ना तू भी न मेरे हिज्र पर इस कदर तड़प रहा होता |

 

                                             डॉ नूतन गैरोला डिमरी

                               २९-०३-२०११

Monday, March 21, 2011

Tuesday, March 8, 2011

अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस (१००वर्ष पूरे –सन् २०११)पर

                                k-1_thumb[1]
बच्चे के जन्म से ले कर उसकी परवरिश और उसे देश का एक उत्तम नागरिक बनाने में महिला के  योगदान से कोई इनकार नहीं कर सकता .. और महिला की यही खूबी उसको समाज में श्रेष्ठ स्थान देती है - एक महिला ही है जो समाज की स्तिथि की निर्धारक है, समाज की नींव है | और आज के दिन ही नहीं मैं सदा यही कहूँगी कि समाज में स्त्री और पुरुष एक दूसरे के कन्धों से कंधे मिला कर चलें, एक दूसरे का पूर्ण सम्मान करें और एक दूसरे की महत्ता को समझें - क्यूंकि पुरुष और स्त्री के बिना समाज की परिकल्पना भी नहीं की जा सकती - दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे है, और दोनों एक दूसरे के पूरक हैं  | जहाँ पुरुष ताकत का पर्याय है वही स्त्री कोमलता का -- प्रेम, भावनाएं दोनों में होतीं हैं किन्तु अभिव्यक्ति के तरीके अलग अलग होते हैं , जिसको न समझने पर भ्रम और गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं  ... तो मैं क्या कह रही थी - हाँ मैं कह रही थी कि प्रेम और भावनाएं दोनों में हैं - फिर ऐसा क्यों हुवा कि समाज में स्त्री का वो मान नहीं  जैसा रहना चाहिए था ..

  • क्यों जगत जननी स्त्री को जिसकी कोख से हर मानव (स्त्री / पुरुष ) जन्म लेता है, उस स्त्री को उसी की कोख में जन्म से पहले कुचल कर खत्म किया जाता रहा है …
  • क्यों वो पैदा नहीं हुवी ….
  • क्यों पैदा होने पर उन्हें बोझ की संज्ञा दे दी जाती है|
  • क्यों खाने, कपडे, शिक्षा प्राप्ति में उनका स्थान लड़कों से पीछे रखा जाता रहा  है ....
  • क्यों नहीं वंश वृक्ष में लड़कियों, बेटी, बहुवों का नाम दर्ज किया जाता  है ....
  • क्यों थी सतीप्रथा,
  • क्यों पर्दाप्रथा स्त्रियों के लिए - आज भी कई जगह मुस्लिम महिलाएं इसका अनुपालन न करें तो दंडनीय हैं
  • क्यों बाँझ दंपत्ति में सारा दोष स्त्री पर मढ़ा जाता है और स्त्री को  ताने सुनने पड़ते हैं..जबकि बच्चे के जन्म के लिए स्त्री पुरुष दोनों का योगदान होता है |
  • क्यों पुत्रीयों को जन्म देने वाली माताएं अपने ही परिवार में, अपने समाज में लोगों से प्रताड़ित होतीं हैं - वैज्ञानिक आधार पर पुरुष से ही, बच्चा, लड़का है या लड़की होगी, निर्धारित होता है, हालांकि ये तो पुरुष भी नियंत्रित नहीं कर सकता - ये भगवान की देन है.. ..  या नास्तिक कहे तो कहेगा ये होना था या संयोग से हुवा ..
  • क्यों नहीं विधवा विवाह कर पुनः स्थापित हो सकती है, जबकि विधुर बहुत सुन्दर सज धज बारात ले जा कर  कर पुनः विवाह कर लेते हैं |
  • क्यों दहेज प्रथा बनी, जैसे लड़कियों को अपनी शादी करने के लिए जुरमाना ..या दूसरे के घर का बोझा अब दूसरे के घर दिया जा रहा है तो जुर्माने के तौर पर दहेज दिया जाता रहा है -
  • महिला अगर कामकाजी है तो भी घर के काम की पूरी जिम्मेदारी महिला की है- घर अगर गन्दा है तो सवालिया निशां महिला पर होगा|
  • पति पत्नी कमाने वाले हों तो लड़की खुल कर यह नहीं कह सकती कि वह घर के निर्माण व्यवस्था के लिए खर्चा करती है -अगर कहें तो ससुराल में बवाला खडा हो जाये|
  • क्यों नारी को भोग की वस्तु समझ हर बाजारू चीज के विज्ञापन में उसे असम्मानित रूप से प्रस्तुत किया जाता है …
  • ..आदि आदि .. ऐसे कई प्रश्न हैं ..  

 

                                  तभी समाज की इस स्तिथि पर लिखा गया

           अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी,आँचल में है दूध और आँखों में पानी 
              


        २१ वीं सदी का पुरुष समझदार है और वह अपने से पूर्ण कोशिश में है कि वह समाज में व्याप्त इस असमानता को मिटा दे, किन्तु युगों युगों से चली आ रही ऐसे कुसंस्कारों की जड़ें इतनी गहरी पैठी हैं कि वो मस्तिष्क से विचार करता है और स्त्री पुरुष की समानता को स्वीकारता है ..पर खून के रंग के साथ बहते इन स्त्री पुरुष के भेद के रंग छूटते नहीं .. पुरुष भी इस सोच से निजाद पाना चाहता है, पर पार नहीं पाता - इसके लिए उन्हें समय की आवश्यकता है - जिसमे उनका साथ उनकी पत्नी, माता, बहन दें तो बहुत जल्दी ही नारी बराबरी के मुकाम में पहुँच जायेगी|
         किन्तु ज्यादा तर देखा गया है कि स्त्री ही स्त्री का पूर्ण सम्मान नहीं करती| सास बहु की बहु सास की , पड़ोसन पड़ोसन की टांग खींचते देर नहीं करती| गर्भ में पुत्री तो नहीं इसके लिए सास और स्वयं गर्भवती महिला ( होने वाली माँ ) जाती है अल्ट्रासाउंड करवाने जाते हैं |  स्त्री स्त्री का सम्मान करें | माँ बेटी का आपसी प्रेम , सास बहु का बहु सास का, माँ अपने कोख से जन्मे बच्चों में फर्क न करे …न ही कोख में आये बच्चे का सेक्स डिटरमिनेसन करवाने की सोंचें…

    और इन सब के पीछे है समाज की सोच - जो एक दिमाग की नहीं अनेक दिमागों की देन है .. और इस समाज से जहाँ महिला की समाज में दोयम दर्जे की स्तिथि रही है, उस समाज से  डर कर ही यह भेद-भाव और बढ़ता गया है| तो हम सब मिल कर अपनी सोच के उन स्याह धब्बों को धो डालें जो समाज में पुरुष महिला में भेदभाव की नीव हों |

हम मिल कर एक सुन्दर समाज की रचना करें जहाँ हमारे भाई के साथ हमारी बहनें, हमारे बेटे के साथ साथ हमारी बेटियाँ और हमारी माताएं भी स्वस्थ खुश स्वछन्द हों और उनके अधिकारों में समानता हो …

दादी, नानी का प्यार, माँ के प्रेम, बहन का प्यार , प्रेयशी का प्रेम, पत्नी का प्यार, सखी का प्रेम और बेटी का प्यार .. कितना प्यार हैं इनमे, ये हमारी देखभाल में कभी कमी नहीं करतीं और हमेशा हमारी खुशहाली के लिए प्रार्थना करतीं हैं ,..

                      तभी नारी के लिए जयशंकर प्रसाद जी ने लिखा था -

                  नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग पगतल में
                   पीयूष स्त्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में

  
                  आज अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर मैं एक कहानी लेख शेयर कर रही हूँ जो कहानी कम और हकीकत ज्यादा है, एक महिला रोग विशेषग्य होने की वजह से मैंने स्त्रियों का बहुत दुःख देखा है, किस स्तिथि में वो आती हैं, अक्सर एनीमिया की शिकार गाँव की महिलायें, काम पर काम करती रहतीं है बीमारी में भी काम और बहुत सीरियस होने पर ही अस्पताल में लायी जाती हैं .. बांझपन का इलाज लेने आई महिलाएं समाज द्वारा बहुत प्रताड़ित होती हैं.. यहाँ पर मैं अपनी एक आपबीती कहानी “ एक चीख” प्रस्तुत कर रही हूँ जो मैंने पिछले साल अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर लिखी थी |

           " एक चीख " एक सच्ची घटना .. अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवसपर 

 

             ये कैसा महिला का महिला के प्रति प्यार ? अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस पर


                                     

                                       मैं ( डॉ नूतन ) मरीज की तीमारदारी करती हुवी

एक चीख मेरे कानो में गूंजती है ..बात छह महीने पहले की है ..जबकि एक चीख की आवाज पर मैं  अपने चेम्बर से बाहर निकली तो पाया - दर्द में पीड़ित महिला को, जो आठ माह के गर्भ से थी काफी रक्तस्त्राव की वजह से पीली पड़ी हुवी  थी | मैं  स्त्रीरोग विशेषज्ञ होने की वजह से इमरजेंसी के समय अल्ट्रासाउंड भी करती हूँ | उसका अल्ट्रासाउंड करते समय मन में विचार आ रहे थे और चिंता थी  कि  किस तरह से रक्तस्त्राव को रोका जाये तभी उसकी सास और खुद मरीज की आवाज कान में आई कि  जरा ध्यान से करियेगा अल्ट्रासाउंड  | मैंने कहा कि  आप चिंता न करिएगा कहीं कोई कमी नहीं  की जाएगी | सास ने कुछ फुसफुसाने के अंदाज में कहा ..जरा ध्यान से देखिएगा .. मुझे आश्चर्य हुवा कि  ये कौन से ध्यान की बात कर रहे है .. मैंने पूछा क्या चाहते है आप मुझसे .. तो वो बोली की देखिये की पेट में शिशु लड़का है कि लड़की .. मैं हतप्रभ रह गयी .. मैंने कहा जो है वो भगवान् का दिया है आप ऐसी अमानवीय बातें  न करें  .. मरीज की और बच्चे की स्तिथि खराब है किस तरह से उन्हें  ठीक किया जाये बस अभी यही सवाल है .. आप देख रहीं हैं कि मरीज तकलीफ में है .. फिर भी आप ऐसी बात कर रहीं  हैं  .. तभी मरीज भी बोली..नहीं डॉक्टर साहब हाथ जोडती हूँ ..बताइए की ( पेट की और इशारा कर ) ये क्या है ? .....ओह .. तो आप लोगो को अपने और बच्चे के स्वास्थ से कोई मतलब नहीं | मैंने अपना काम किया | अल्ट्रासाउंड का प्रोब वापस मशीन पर रखा और स्टाफ को आर्डर देने लगी की ये इंजेकशन लगाओ .. और दवाई का परचा बनाया .. मरीज की सास जी को बुलाया गया .. वह मुझसे लड़ पड़ी कि  आप बतायें  कि वो  क्या है..? मैंने उन्हें  बताया कि यह कार्य मैं नहीं करती हूँ | मैंने दवाई का परचा बनाया चुपचाप परचा सरकाया और कहा मरीज की हालत ठीक नहीं है कृपया ये दवाई उसे दिलवा दे और अस्पताल में भरती करवा दें...उन्हें सघन चिकित्सीय संरक्षण की जरुरत है .... वह (सास ) बोली आप बता नहीं रही हैं  क़ि क्या है .. हमने पहले भी कहीं  बाहर से अल्ट्रासाउंड करवाया है.. उन डॉक्टर ने बताया है क़ि लड़का है तब हमने इस बच्चे को रखा है..और देखिये मैंने देवी से मनौती  भी मांगी है पुरे नौ दिन का नवरात्रि का व्रत रखा है .. पर आप चुप हैं  तो इसका मतलब है क़ि पेट में लड़की है.. फिर हम क्यों इस के लिए दवाई लें |..मैंने कहा - मैं मरीज की  बीमारी की डाइग्नोसिस  और उस हिसाब से इलाज हेतु  अल्ट्रासाउंड करती हूँ |लड़का लड़की को देखने के लिए नहीं और आपने पूर्व में किसी डाक्टर से दिखवाया है ..ये आप और वो समझ सकते है पर मुझे तो मरीज को और पेट के शिशु को ठीक करना है और यह भी कि लड़की की कितनी जरूरत है समाज को कितना महत्व है लड़की का ..समझाया ..लड़की को पढाया लिखाया जाये तो वो प्रेम स्नेह की प्रतिमूर्ति होगी और  लडकों से कम न होगी किसी भी क्षेत्र में  और ये भी बताया कि तुमने जिस देवी का व्रत लिया है वह भी स्त्री है .....पर वो मरीज और उसकी सांस कहने लगे की चाहे कुछ भी हो इलाज तभी लेंगे जब की ये गर्भ में शिशु पुत्र हो.. सास कहने लगी की मैं  तो अपने बेटे की दूसरी शादी करवा दूंगी किन्तु आश्चर्य यह भी हुवा कि खुद बहु भी सास का साथ देती रही कि लड़की होगी तो मैं  नदी में कूद लगा दूंगी | मेरे लिए बड़ी असमंजश की स्तिथि थी  | मैंने कहा इन्हें  भर्ती कर दो आप हॉस्पिटल में .. सास और बहु साथ साथ बोले लड़का होगा तभी भर्ती.... ..यह एक बहुत दुःख भरी शर्मनाक सामाजिक सोच थी... जिसका मैं  सामना कर रही थी | किसी तरह से मैंने फिर उन्हें  सेम्पल से मुफ्त की दवाई दिलवाई ताकि महिला और बच्चा बिना दवाई के गंभीर न हो जाये और वो सास बहु वापस घर चले गए | मैं  समाज में लोगो की इतनी संकुचित मानसिकता पर दुखी हो गयी...

                  

                      Foetal Monitoring during labour – Dr Nutan Gairola

एक चीख - चार दिन बाद फिर वही चीख और हो हल्ला ..अबकी बार देखा बहुत सारे लोग महिला को घेरे हुवे थे और वह दर्द से बेहाल चिल्ला रही थी ..मुझे देखते ही साथ चिल्लाई डॉक्टर मुझे बचा लो मुझे बचा लो . यह वही मरीज थी जो चार दिन पहले सुरक्षित तरीके से इलाज लेने के लिए तैयार न हुई थी ...

                                                        उसकी वही रुढ़िवादी सास भी साथ थी .. बहुत स्तिथि गंभीर थी .. घर में चार दिन से दाई काफी प्रयाश कर चुकी थी और खून भी काफी जाया हो चुका था .. वह एक जटिल  केस में तब्दील हो चुका था ..तुरंत ऑपरेशन थीएटर में शिफ्ट किया गया और बहुत तेज़ी से इलाज  किया गया सधे हाथों से और औजारों से और दवाई से और चाक से और वह एक नीला पड़ा हुवा शिशु था जो की शिथिल पड़ चूका था ..सांस नहीं ले रहा था और कोई आवाज नहीं थी उसकी | वह उस महिला के इच्छाओ के अनुरूप पुत्र ही था | लेकिन एकदम निस्तेज और शिथिल इतना कि  बच्चे का शरीर झूल रहा था | नवजात को बचाना था .. कार्डियक मसाज की, ऑक्सीजन दी गयी, नाभि से दवाइयां इंजेक्ट की गयी , मुंह और श्वास नली से पानी खिंचा गया और कृत्रिम शवास दी गयी,तथा वातानुकूलन का सम्पूर्ण ख्याल रखते हुवे कोशिश की गयी और बाल रोग विशेषज्ञ की बुला दिया गया ..तभी हमारी मेहनत सफल हुवी और बच्चा खुल के रोने लगा | और उसका रंग भी गुलाबी होने लगा | मेरे और मेरे साथ कार्यरत अन्य सभी लोगो क चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी |
एक चीख के साथ हमारा मुस्कुराना रुक गया | मरीज कह रही थी की ये बच्चा मुझे नहीं चाहिए इसे आप लोग अपने पास रखिये | स्टाफ नर्स बोली शुभशुभ बोलो बच्चा बड़ी मेहनत के बाद रो पाया है और आपकी इच्छा के मुताबिक बेटा हुवा है | मरीज बोली इस तरह की आवाज लड़की की होती है | आप लोग मुझसे झूठ बोल रहे है | इसे नाली में फैंक दो .. हम एक दुसरे का मुंह देखते रह गए | मन तो किया की एक तमाचा जड़ दो किस तरह से हम मेहनत कर रहे हैं , किस तरह से जीवन मिल पाया और यह उसको नाली  में फैंकने की बात कर रही है ..उसको चुप करना जरूरी था क्यूंकि वह ४ दिन से स्ट्रेस में थी | बच्चे को उसके हाथ में दिया और वह फिर ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगी | मरीज को शिफ्ट करना था .. सो बच्चे को अच्छी तरह से कपडे में लपेटा गया और मैं ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकली और बधाई कहते हुवे जैसे ही बच्चा, बच्चे की दादी के हाथ पकड़ाना चाहा वह छिटक कर दूर जा खड़ी हुई |

एक चीख गूंजी की ये बच्चा हमें नहीं चाहिए .. हम इसे गोद नही लेंगे .. मैंने कहा आपके लिए ख़ुशी की बात है ..सब कुछ अंत में ठीक हो गया ..बच्चे में जान आ गयी .. आप इसे अपनी गोद में ले लें .आपका नाती हुवा | वह बोली - आप झूठ बोल रही है | इस बच्चे को हम न पालेंगे इसे आप ही रखिये | मैं भौचक्की रह गयी | मैंने बच्चे के चाचा को आवाज लगायी ..बच्चे को पकड़ो तो वह भी न आगे आया | तब मैंने कठोर आवाज में कहा के अगर इस तरह से करोगे तो मुझे आपके विरूद्ध कठोर कदम उठाने पड़ेंगे और यह आपका भतीजा है मैंने खुलासा किया दुबारा | तो चाचा जैसे ही बच्चे को पकड़ने के लिए आगे बड़ा ..दादी चिल्लाई ..पकड़ना मत पहले देख कि  क्या है | उनकी बातों से मेरा सर शर्म झुक गया | जब उन्होंने बच्चा नहीं पकड़ा तो मैं उनके कमरे के बिस्तर में बच्चे को रख आई और सोचा की देखती हूँ अब क्या करते हैं  | मैंने देखा की वो दूर दूर से ही बच्चे के पास गए और दूर से नफरत से बच्चे के कपडे पलटने लगे और जब उन्होंने देखा की यह एक पुत्ररत्न है ..ख़ुशी से वहाँ गूंज उठी ...

 

                 

और इस एक चीख के साथ मेरे दिमाग में हजारो प्रश्न दौड़ने लगे | क्या यह समाज का दर्पण है ? आज भी हमारे समाज में ऐसे लोगो की कमी नहीं जो इन मनोविकारों  से त्रस्त हैं ... पुरुष और महिलाओ में भेद है .. समाज में रहने वाले कई लोग ऐसे है जिन्हें  पुत्र चाहिए.. पुत्री हो या ना हो.. पुत्री को गर्भ में ही कुचलने की साजिशें रची जाती हैं   और पैदा हो जाये तो क्या ठिकाना कि कहाँ नाली में फैंक दी जाये  और पाली भी जाये तो पुत्री होने का खामियाजा भुगतती रहे जिंदगी भर ....उपेक्षित और तानों के बीच ..... कब होगा यहाँ समानता का व्यवहार .. ऐसा नहीं की आज सभी की सोच ऐसी है | फिर भी अभी ऐसा सोचने वालो का अनुपात कुछ कम नहीं ..... यह चीख आज भी मेरे मन मस्तिष्क में गूंजती है ..कि अगर वह नवजात शिशु बच्ची होती तो क्या मिलता उसको जीवन में.. ऐसे परिवार में कन्या होने पर जीवन भर यंत्रणा .. और महिला ही महिला पर ऐसे अत्याचार क्यों करती है ? सास बहु पर और माँ गर्भ में पल रही कन्या शिशु पर ...और ये भी कि देवी कि पूजा तो करते है जो कि नारी का स्वरुप है फिर इस स्वरुप को अपनाने में हिचकते क्यों है...और कहते है कि " यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते , रम्यनते तत्र देवता "

           मेरी डायरी से - अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर लिखी .. एक कहानी लेख

 


                                                         एक कविता
                               मैं एक घडी हूँ - महिला दिवस पर



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बाँध  सका न जिसको कोई,
रोक  सका न जिसको कोई ,
मैंने बाँधा है और रोका है
समय के चरखे को परिधि में |
टिक टिक चलती जाती हूँ मै
दिन हो या हो रात ,
चलती चक्की की तरह
अनवरत घिसती जात |


कान ऐंठ कर कहते वो,
उठा देना जगा देना .
अपना अलार्म बजा देना,
दुनियाँ काम में हो
या आराम में मशगूल,
मैं पल पल चलती जाती हूँ |
खुद के लिए नहीं उनके लिए हूँ
आवाज लगाती -
बाबू उठ जाओ भोर भयी ,
मालिक उठ जाओ ऑफिस की देर भई
बच्चे उठ जाओ, पढ़ लो परीक्षा आ गयी
उठो मुसाफिर तेरी मंजिल आ गयी

देखो न दिन दोपहरी बीत गयी
और तुम भी कुछ थके अकुलाए
सो जाओ आधी रात बीत गयी ,
मुझे तो  कर्मों पे अपने जुते रहना है
रात और न ही दिन कहना है
सुई की नोक के संग ढलते रहना है |


शिशु नवजात का जन्मसमय बताती
और जीवन को बांधती जन्मकुंडली में
बड़े बड़े ज्योतिषी करेंगे तब ताल ठोक कर
बड़ी बड़ी भविष्यवाणी
और खुद का भविष्य कभी मैं समझ नहीं पाती |

पुरानी पड़ जाऊँगी
तो घर के किसी कोने में फैंक दी जाऊँगी ,
या किसी नए इलेक्ट्रोनिक उपकरण के बदले
बदल दी जाऊँगी |
मुझे इस्तेमाल करते हैं बेहिसाब
बात करते समय के हिसाब से,
और मैंने वादा निभाया साथ निभाया
हर पल की टिक टिक के साथ
अब आप ही बताये कि
मै एक घडी हूँ ..या हूँ मैं एक स्त्री ?

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एक पुरानी कविता - महिला दिवस पर

डॉ नूतन गैरोला

Wednesday, March 2, 2011

ओम् नमः शिवाय् - डॉ नूतन गैरोला

आज महाशिवरात्रि पर शिव भगवान की आराधना वंदना करते हैं| वो भोले भगवान जो देवादिदेवों की रक्षा के लिए विषपान करते हैं  और विष की तीव्रता से नीलकंठ हो जाते हैं- जिनके गले में सर्प, माला जैसे विराजते हैं, भस्म का लेप  कर भंगोडी भी कहलाते हैं, भूत जिनके गण हैं  और बैल जिनकी सवारी है| कर में त्रिशूल और डमरू धारण करते हैं| जिनके केश सघन जटाओं से हैं और जिन्होंने संसार की रक्षा के लिए असीम जल राशि को अपनी जटाओं में बाँध के रखा है और जिसकी एक धार जग के कल्याण के लिए और सृजन के लिए पृथ्वी पर छोड़ी है, वो जलधार  पवित्र पावन गंगा बन सहस्त्र प्राणियों के जीवन का आधार बन बहती है| और जिनके सर पर अर्धचंद्र मंद मंद मुस्कुराते हुवे अपने भाग्य पर इठला रहा है,  जो प्रभु  भोले हैं, त्रिपुरारी है, त्रिपुरांतकारी हैं, पृथ्वी में पापियों की और पाप की वृद्धि को रोकने के लिए क्रोधावस्था में तांडव करते हैं किन्तु भक्तों पर कृपा दृष्टि रखते हैं और उनका हर कष्ट हर लेते हैं ऐसे अविनाशी उमापति भोले शंकर को मेरा वन्दन
         
                                                       ओम् नमः शिवाय्

मेरी पूजा स्वीकार करो प्रभु

                         


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हे सर्वज्ञ
त्रिनेत्री
 हे श्रेष्ठ नर्तक नटराज!
तुम रूद्र भी हो
प्रलयंकारी हो तुम
शून्य से सम्पूर्ण ब्रह्मांड हो तुम
निराकार हो आकार हो तुम 
आदि हो तुम अनादि हो 
तुम शिव भी हो  
तू आनंद रूप  दिखा|
डमडम डमडम डमडमा
मधुर मधुर
डमरू   तू बजा|
 ज्ञान प्रेम साहित्य कला
कल्याण भरी विधा के,
सृष्टि में सृजन से
अनुपम पुष्प खिला| 
दुःख क्षोभ दरिद्रता व्याधि
प्रभु क्षण में तू मिटा|
न खोलो त्रिचक्षु को
प्रभु न रौद्र रूप   दिखा|
धरती आकाश कम्पित
डिगम डिगम डिगडिग डोले
विनाशी तांडव के
प्रभु न पद-थाप तू  बजा|
मोहिनी ध्यान मुद्रा में
प्रेम में ब्रह्मांड की
प्रभु  मोहनी रूप दिखा
मंद मंद  मुस्कुरा|  
पशुत्व भरी दुर्भावनाओं को
प्रभु जग से तू मिटा|
कुदृष्टि कामदेव सी
भस्मासुर नरों  की
दुष्ट भावनाओं को
प्रभु भस्म कर तू जला|

ज्यूं हो स्याह घन
जटामंडल
 वृत्त सघन
थामें विनाशकारी
अथाह जलपुंज|
समेटे उन्मादी
प्रबल प्रवाह प्रचंड |
छोड़ दी एक लट
जन-जन के कल्याण को
बहा दी पवित्र गंगा की
धरा में अमृतरसधार को|

हे जग रक्षक मृत्युंजय!
तुमने किया था हलाहल पान 
दिया था अभयदान
देव ऋषि नर मुनियों को|
प्रभु चरणों में तेरे करते हैं वंदन
पापों का जग से कर दे तू मर्द्दन|
 भवसागर के तारणहार!
मार्ग मोक्ष के प्रशस्त करो
हे जगपालनहार!
कल्याण जग का करो
कृपालु करुणावतार!
कृपा दृष्टि हम पर करो|
हे 
शरणान्गत भक्त वत्सल!
  हे दीनानाथ!

डॉ नूतन डिमरी गैरोला

ओम् नमः शिवाय
यह नृत्य खासकर टीवी सीरियल में जिस तरह इसे शिव के अंदर व्याप्त  अग्नि के साथ दिखाया गया है मुझे बहुत पसंद आया तांडव नृत्य का यह अंदाज
आप भी देखें

 महाशिवरात्रि पर हार्दिक  मंगलकामनाएं 

डॉ नूतन डिमरी गैरोला 

Friday, February 11, 2011

मेरी दो कविताएँ - बसंत की पूर्वसंध्या पर - डॉ नूतन गैरोला

बसंत की पूर्वसंध्या पर जब मौसम फिर कडाके की ठण्ड का दुबारा उद्घोष करने लगा| बहुत तेज ठंडी हवाओं ने, बादलों ने घुमड़ घुमड़ कर काला घना रूप ले लिया और दामिनी उस अंधियारी रात को अट्टहास करती अपने तीखी दन्त पंक्तियों को रात के अन्धकार में कड़क कड़क कर चमकाने लगी| आकाश से गिरती तेज बारिश ने रात के स्याह आँचल को बर्फीला बना दिया | बसंत के आगमन पर सर्दी का ये भयंकर लगने वाला तांडव नृत्य दिल को कंपा गया | तब गिरती बूंदों के साथ विचारों के कुछ बुलबुले मनमस्तिष्क  पर उभरने लगे  कि क्यों ये बसंत देर कर रहा है आने में - और  तब लिखीं कुछ पंक्तियाँ 

बसंत की पूर्वसंध्या - मेरी कविता और  मेरी फोटोग्राफी - डॉ नूतन गैरोला

          
यहाँ बसंत की पूर्वरात्री को हुवी शीतल वर्षा- चित्र मेरे छत का                         DSC06842 - Copy

सभी कहते हैं कि बसंत पंचमी आई   है …पर यहाँ मुड-मुड के शीत ऋतू लौट आयी है,  हवा सर्द सरसराती हैं घन गरजे, बरसे जोर .कहीं हुवा है हिमपात, ये संदेशा लायी है ||
 
 बसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर .... यह फोटो खींची थी मैंने -- जबकि बसंत का सूरज ५-६ घंटे में उगने वाला था ... सर्द हवाओं और तेज बारिश ने जाती हुवी शीत ऋतू को पुनः स्थापित कर  यूं याद दिलाया ज्यूं बुझने से पहले दीये की लौ तेज हो कर थरथराती है.... और शीत ऋतू का जाना बसंत का उद्गम है|
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कितनी सर्द थी वो रात|
हवा के तीव्र शीतल बवंडर
तड़ित तोडती सन्नाटा |
हिम शिखर की नोंक पर
विस्फोटित होता बज्र भाला|
लिहाफों के भीतर बस्ती
ठिठुरी, सिमटी, सकुचाई|
कुछ जीव ओट की तलाश में
भटके थे उस रात भर |
और दूर कहीं शुरू हुवा भोर
रंग लिए रुपहला बासंती |

स्वागत करें इस बसंत का ... खुशहाली से भरपूर सुकून लाये जिंदगी में ...
डॉ नूतन गैरोला - ८ फरवरी २०११
फोटो - रात्री ११ बजे, दिनांक ७ फरवरी २०११ - डॉ नूतन गैरोला

बसंत तुम देर से क्यूं आये - डॉ नूतन गैरोला



ये पतझड़ भी कैसा था
अबके बहुत लंबा
और शीत ?
घनी गहरी बरफ में
हर फूल दबे मुरझाये|
बसंत! तुमने क्यों कर न देखा
मिट्टी में घुटते वो नन्हें बीज
अंकुरित होने को जो थे व्याकुल |
जिन्हें खा गयी
मौन हिमशिला सर्द|
और उस शीत का प्रेम देखो
पुनः पुनः वापस आया|
ज्यूं नवयोवना की प्रीति में

हो उसका सुकुमार मर्द |
विडंबना तुम आये पर
आये देर से आये|
क्या खिल सकेगा
वो अंकुर
इन्तजारी में जो
दफ़न हुवा
भूमि के अंदर
एक अथाह भारी हिमखंड से
कुचला मृत प्रायः |
अबके बसंत में

क्या वो पतझड का मुरझाया फूल
फिर  खिलेगा,
खिलेगा तो अबकी खूब लड़ेगा कि
बसंत तुम देर से क्यों आये ?


डॉ नूतन गैरोला - ७ फरवरी २०११ २१:०३

Friday, February 4, 2011

एक लड़का और सेब का पेड़- डॉ नूतन डिमरी गैरोला ‘नीति’

यह बहुत ही मार्मिक, शिक्षाप्रद कहानी चित्र मुझे नेट पर मिला था जिसे मैंने फेसबुक में शेयर किया था | आज यहाँ मैं हिंदी अनुवाद के साथ चित्रों को लगा रही हूँ | और कुछ अपने विचारों को रख रही हूँ | उम्मीद है, कहानी  आप सब को भी उसी तरह पसंद आएगी जिस तरह मुझे आई थी ………

 

लड़का और सेब का पेड़ 


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बहुत समय पहले एक बहुत बड़ा पेड़ था |


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वह एक छोटे लड़के को बहुत प्यार करता था, लड़का भी रोज वहाँ आना और पेड़ के इर्दगिर्द खेलना पसंद करता था | 

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वह पेड़ के ऊपर चढ़ता

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सेब खाता

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पेड़ के नीचे आराम करता

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वह पेड़ को प्यार करता था , पेड़ बहुत खुश था |

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समय गुजरता गया

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एक दिन लड़का पेड़ के पास वापस आया | पेड़ ने कहा “आओ और मेरे साथ खेलो |” 

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“मैं अब बच्चा नहीं रहा,अब मै पेड़ का चारो ओर नहीं खेलने वाला”

“मुझे खिलौने चाहिए और मुझे उन्हें खरीदने के लिए पैसों की जरूरत है |”



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    माफ़ी चाहूँगा. लेकिन मेरे पास पैसे                      लड़का बहुत खुश हुवा उसने

नहीं ..किन्तु तुम मेरे सारे सेब तोड़ कर                      तुरंत सारे सेब निकाल लिए                                                                             लिए

उन्हें बेच सकते हो| तब तुम्हारे पास पैसे हो जायेंगे|            और खुशी खुशी                                                                                           चल दिया|      

                                                                पेड़ बहुत खुश  था |



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लड़का सेब तोड़ने के बाद कभी वापस नहीं आया |

पेड़ दुखी था | 


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एक दिन, लड़का जो अब बड़ा हो गया था और आदमी बन गया था, वापस आया उसे देख पेड़ बहुत खुश और उत्साहित हो गया| “आओ आओ मेरे साथ खेलो “ पेड़ बोला |


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मेरे पास खेलने के लिए समय नहीं है| मुझे परिवार के लिए काम करने हैं |

हमें घर की जरूरत है “क्या तुम मेरी मदद कर सकते हो ?” 


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“माफ करना,मेरे पास कोई घर नहीं है|
किन्तु तुम मेरी शाखाओं को काट कर अपना घर बना सकते हो|”


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तब आदमी ने पेड़ की सारी शाखाएं काट कर खुशी खुशी घर चल दिया|

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पेड़ यह उसे खुश देख कर बहुत प्रसन्न हुवा किन्तु वह आदमी उसके बाद कभी वापस नहीं आया|

पेड़ दुबारा फिर अकेला हो गया और दुखी हो गया |

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एक गर्मी में आदमी वापस आया और पेड़ बहुत खुश हुवा और  बोला - “आओ, आओ और मेरे साथ खेलो|“

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मैं बुढा हो रहा हूँ| मैं समुद्री यात्रा पर जाना चाहता हूँ ताकि मुझे कुछ आराम मिले | “क्या तुम मुझे एक नाव दे सकते हो?”  आदमी ने कहा|



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“ मेरे तने का इस्तेमाल कर तुम नाव बना लो|”  पेड़ बोला | “तुम समुद्री यात्रा में दूर तक जा सकते हो और खुश रहो| ”


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तब आदमी ने नाव बनाने के लिए पेड़ का तना काटा| वह समुद्री यात्रा पर निकल गया और फिर काफी समय तक वापस नहीं आया |

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आखिरी में एक दिन, काफी सालों बाद वह आदमी वापस आया|

“माफ करना मेरे बेटे| अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं बचा | तुम्हें देने के लिए कोई सेब भी नहीं मेरे पास ..”पेड़ बोला
“कोई बात नहीं अब मेरे सेब खाने के लिए दांत नहीं हैं” - आदमी ने जवाब दिया

 
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“अब कोई शाखा या टहनी भी नहीं जिस पर तुम चढ सको |”

“अब मै बहुत बुढा हो चला हूँ ऐसा नहीं कर सकता हूँ अब”- आदमी बोला


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“ अरे हाँ ! पुराने पेड़ की जड़ें पसरने और आराम करने के लिए बहुत अच्छी जगह होती हैं”

आओ, आओ मेरे साथ बैठ जाओ और आराम करो |


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और आदमी जड़ पर बैठ गया पेड़ बहुत खुश हो गया और उसके खुशी के आंसूं बहने लगे ..


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जिस तरह वह पेड़, उस लड़के  को उसके बाल्यकाल से ले कर उसके बुढ़ापे तक अपना सर्वस्य परित्याग कर समर्पित करता रहा - इस एकमात्र इच्छा के लिए कि वह बच्चे को हर स्तिथि में खुशी दे सके चाहे इस खुशी देने के लिए उसे अपने शरीर के टुकड़े ही क्यों न करने पड़े हों, जबकि वह लड़का बहुत ज्यादा स्वार्थी था और पेड़ के पास सिर्फ काम पड़ने पर आता था और पेड़ अकेले उदास हो जाता था किन्तु पेड़ फिर भी अपने पास कुछ ना होते हुवे भी अपने बचे अंशो से ही उसे खुशी और आराम देने के साधन जुटाता रहा |

 

उसी तरह हम सबके जीवन में हमारा एक सेब का पेड़ है जो हमें हर हाल में खुश देखना चाहता है और वो हमारे बुडापे तक भी, अगर वो है तो अपनी हर सांस भी हमें देने के लिए तैयार रहता है चाहे हम कितने भी स्वार्थी और लालची क्यों ना हो, चाहे हम उस सेब के पेड़ की बेकदरी क्यों ना करे, लेकिन उसकी आत्मा तो सिर्फ हमारी खुशियों को देख कर खुश और संतुष्ट होती है |

और

वह सेब का पेड़ और कोई नहीं, हमारे माँ  -पिता हैं

जो बच्चों की खुशी के लिए खुद का सब कुछ लुटा देते हैं| स्वयं  जब वो बूढ़े हो जाते है तब भी अपनी बची-खुची उर्जा अपने बच्चों के लिए सहेज, उन्हें देने के लिए तैयार रहते हैं चाहे बच्चे उन्हें उपेक्षित रखते हों, इस बात का दर्द वो दिल में दबा लेते हैं और निस्वार्थ भाव से बच्चों और उनके बच्चों की भी  देखभाल करते हैं और सदा उन्हें खुश देखना चाह्तें हैं |

 

ध्यान रहे कि हम कहीं इस कहानी के बच्चे की तरह स्वार्थी तो नहीं हो रहे| कहीं हमारे माँ पिता अकेले और उपेक्षित तो नहीं हो रहे हैं|

 

आज हमारे माता पिता जिस जगह पर हैं कल हम वहाँ होंगे .

आज हम जिस जगह पर है कल हमारे बच्चे उस जगह पर होंगे |

और जो हम करेंगे उन्हीं संस्कारों का बच्चे वहन करेंगे |

 

यूं तो दिल शरीर के अंदर धडकता है किन्तु बच्चे, माँ पिता के शरीर से निकला हुवा उनका वो दिल है जो बाहरी दुनिया में धडकता है - माता पिता के लिए बच्चे उनका कलेजे का टुकड़ा, आँखों का तारा होते हैं इसी लिए इन मुहावरों की उत्पत्ति हुवी | …………. यूं तो बच्चे को जिंदगी माता पिता देते हैं  किन्तु बच्चे के जन्म के बाद माता पिता अपनी जिंदगी बच्चे को दे देते हैं | …………  उनका अपने बच्चों से  जो निर्विकार, निस्वार्थ, अविरल, अविरत प्रेम है उसकी सम्पूर्ण व्याख्या कोई ग्रन्थ भी नहीं कर पाया …………ये प्रेम सिर्फ महसूस होता है …..… हम अपनी संवेदनाओं को ना खो कर अपने माता पिता के प्रेम को महसूस करें | उनको अपना साथ दें, उनका मान रखें , उनकी जरूरत का ख्याल करें |…….. उन्होंने हमें बड़ा बनाने के लिए हमारी साफ़ सफाई, सुरक्षा, भोजन, भाषा, रहन सहन, कपडे लत्ते, पढाई लिखाई, शिक्षा घर क्या नहीं उपलब्ध करवाए और हमें काबिल बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहे| हमारी भावनाओं का भी ख्याल रखा, अपने प्रेम से हमें सिंचित किया   और हमें बड़ा बनाने के लिए किन किन कठिनाइयों का सामना किया होगा, वो बातें भी हमें ज्ञात ना होंगी| अब हम बड़े हो गए हैं, समझने लगें है  …………वो वृद्ध हो चले हो और थोडा देर से समझते हों, आँख कम देखते हों, कान कम सुनते हों, याददाश्त कमजोर हो, या जल्दी चिढते हों या शारीरिक कमजोरी हो, जो भी तकलीफ हो उन्हें, सहनशील हो कर उनका सहारा बन कर न सिर्फ हमें एक तृप्ति का अहसास होगा, बल्कि हम कर्तव्य के मार्ग में भी चल रहे होंगें |…………. बच्चे मूक दर्शक होते हैं वह इन सब बातों को चुपचाप समझते हैं और आत्मसात करते हैं क्यूंकि माता पिता उनके लिए आदर्श होते है अतः  हम अपने बच्चों को जिस मार्ग पर ले जाना चाहते है, हमें स्वयं उस मार्ग पर चलना होगा|  
 

 

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आप कितने भी व्यस्त हों, कुछ समय आप अपने माता पिता के साथ जरूर बिताएं |

 

डॉ. नूतन गैरोला

Wednesday, January 26, 2011

आओ जश्ने आजादी मनाएं- एक व्यंग बाण - डॉ नूतन गैरोला २६-जनवरी २०११

          
                     सभी ने लिखी देश पर, वीरता पर, प्रेम पर गद्य या पद्य
                                            और वो बैठे कतराए
 
                    corruption
उन लोगो का क्या जो देश के लिए इतना जोखिम भरा काम कर रहे हैं | घूंस, चोरबाजारी, रिश्वतखोरी, साम्प्रदायिकवाद , दंगे, झूठ, धोखा- बोल लिख और करके देश के साथ गद्दारी करके खुद को निशाने की शूली में टांग देते हैं | बेचारे कोई उन पर दया भी नहीं करता | वो बेचारे तो नकारात्मक भूमिका निभाते हैं , कितना ख्याल रखते हैं  हमारा ताकि हमारी गुणवत्ता को लोग तुलनात्मक पहलू से  पहचान सकें | वो जमाखोरी करते हैं, महंगाई बढ़ाते है तो कोई खुद के लिए नहीं , हमारे लिए, हम जो लग्जरी में जीने के आदी हो चुके हैं, हमारे लिए पैगाम है उनका – भाई थोड़ी थोड़ी दूर के लिए कार या गाड़ी ही क्यों ? क्या भगवान के दिए हुवे दो पैर नहीं है चलने के लिए, न कोई पेट्रोल डीज़ल भरवाने का झमेला ना कोई धुंवा-पोल्युसन |  फिर रशोई में कौन कहता है कि दो दो प्याज डालो  और बनाओ सब्जी, प्याज हमारी कोई मूलभूत जरूरत तो नहीं- मत खाओ कुछ दिन प्याज तो जमा गोदाम में अनाज / प्याज सड़ने लगेगा वो बेचारे खुद कम कीमत पर हमारे लिए प्याज उपलब्ध करवा देंगे | ( हां जरा किसानो की सोचती हूँ तो डर लगता है - वो बेचारे दो धारी तलवार पर खड़े ) और फिर देखो न हिम्मत उनकी - उन्हें तो सजा ही मिलेगी , ना मिलेगा कोई तग्मा- पुरुस्कार – उनकी हौंसला  अफजाई के लिए भी कोई नहीं | हम लोग अच्छा काम भी डर डर के बच बच के करते हैं, अच्छे काम के लिए जल्दी से आगे आ कर स्वीकार नहीं करते और वो सजाओं की शूली पर लटकते हुवे भी, कितने बहादुर हैं, निर्भीक हैं, कैसे कैसे घपलों  को अंजाम देते है, बिना किसी सरकारी मदद के और सरकारी मदद मिले तो वो भी कोई बड़ा भारी घपला का अंजाम होगा - देनी पड़ेगी उनको दाद | कुछ तो नेताओं की सफ़ेद वर्दी में करते है बड़े बड़े ऐलान ...आहा क्या मज़ा आता है उनकी बड़ी बड़ी बातों में ..काश की वैसा होता जैसा उन्होंने कहा .. नहीं जी इधर ऐलान हुवा उधर पैसों का खिसकान / फिसलना शुरू हुवा उनकी तरफ | उन्हें तो जनता जनार्दन का भी डर नहीं, कितने बहादुर हैं ये, क्यों नहीं वो बड़े बड़े घपलों के लिए बड़े बड़े एवार्ड घोषित करते है, एवार्ड भी मिलेगा और एवार्ड के बिकने पर पैसा भी, और एवार्ड की फेरहिस्त में हेरा फेरी करने पर भी आमदनी  ..एवार्ड का नाम क्या होगा तब - श्री उपद्रवी, घपलाबाज नंबर -१ एवार्ड ,श्री श्री रिश्वतखोर कामचोर भारत श्री एवार्ड, बिना डकारे भूसा खाए शेर एवार्ड, आदी आदी – कुछ नाम में मदद आप लोग भी कीजियेगा| हां श्री शब्द का गलत इस्तेमाल नहीं होना चाहिए इसका भी ख्याल रखूंगी  | और तिस पर जो पैसा आएगा वो भारत के किसी भी काम का नहीं क्यूंकि भ्रष्टाचारी जी उसे स्विस बैंक में पहुंचा देगा| देश में पैसा कम तो लोग निर्माण, खरीद फरोख्त कम करेंगे, कुछ लोग भूखे रहना सीख लेंगे और जब पैसों का लेन देन कम होगा तो घूंसखोरी कम होगी ..तो अप्रत्यक्ष रूप में ये भ्रष्टाचारी  देश के लिए काम कर रहे है.. संविधान बना, लेकिन विधानों से बचने बचाने के उपाय तो ये खूब जानते हैं बस जरा जेब गरम .. और जहाँ ना लागू हो वहाँ जोरजबर्दस्ती लागू करवाया जाता है ताकि आप बचने के लिए टूट जाएँ और आप घूंस देने जैसा बड़ा अपराध करें और बड़ा नाम कमाएँ ... जय हो इन भ्रष्टाचारी भाई बहनों की



आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं
आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं
संविधान बना क़ानून बने
क़ानून के नाम पर कुछ अतिरिक्त कमाएँ |
 
आओ आओ जश्न ऐ आजादी मनाएं
आओ आओ फिर एक नया गुल खिलाएं |
 
फूल होंगे बीमारी के भ्रष्टाचार के
राजनीति में पैंठे रिश्वतखोर चोरचकार के
जय जयकार करते घुंसखोर चमचे
अपराधी कातिल अपहरणकरता धूर्त आचार के |
आओ आओ फिर नवनिर्माण करवाएं
कुछ नयी भवन सड़के पुल बनवाएं
उद्घाटन तक न जो टिके कुछ इस कदर कमाएँ |
 
आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं
आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं |
 
आओ आओ सट्टेबाजी में धन लगाएं
एक नहीं अनेकों स्विस बैंक में खाते खुलवाएं |
किसी के पास झोपडी नहीं तो क्या, झूठे ऐलान कर तो  दो 
बहते पैसों से खुद के घर भरवाएं
अपने देश दुनियाँ में फ्लेटों की संख्या बढाएं
महंगाई, चोरबाजारी, जमाखोरी की दुकानें खुलवाएं
 
आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं
आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं
 
आओ आओ हर रोज कुछ नए क़ानून बनाए|
भोली भाली जनता अकबक, कल तक मार्ग यही था
आज वन वे कैसे हुवा
खौफ क़ानून का पुलिस का उन पर हो
जो भोली है, निश्छल जनता है
आओ कानून का डंडा उनके सर पर जोर से घुमाएँ
चलती गाड़ियों को रुकवाएं
कोने ले जा कर अपनी जेबें गरम करवाएं |
 
आओ आओ जश्ने आजादी मनाएं
आओ आओ फिर कुछ नया गुल खिलाएं
संविधान बना क़ानून बने
क़ानून के नाम पर कुछ अतिरिक्त कमाएँ |
अपनी भारत माता का नाक कटवाएं |
 

मेरे वचन कडुवे बहुत लग रहे होंगे क्यूंकि मै कडुवी  हकीकत के खिलाफ कडुवे तरीके से बोल रही हूँ | किन्तु मेरी भावनाएं साफ़ हैं | मैं  समाज में निहित भ्रष्टाचार के खिलाफ हूँ ( आप भी होंगे पूरा यकीन है ) और आज गणतंत्र दिवस पर चाहती हूँ कि सभी लोग इसके खिलाफ हो जाएँ |
                                                   न घूस लें न दें | संकल्प लें |
 
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क्या ये सब पढ़ कर भी इन भ्रष्टाचारियों की आँखे नहीं खुलेंगी | क्या हमारा प्यारा भारत देश, इन बीमार, लचर, भ्रष्टतंत्र से मुक्त हो कर, सही मायनों  में आजादी की खुली साँस ले सकेगा | क्या हम सब एक जुट हो कर इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा सकते | मेरा सरोकार किसी आन्दोलन से नहीं बल्कि  अपने कर्तव्यों का पालन से है हम जहाँ भी कार्य करते हैं अपने कर्तव्यों का पालन इमान् और निष्ठापूर्वक कर  अपने देश को गौरवान्वित कर प्रगतिशील बना सकते हैं |

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दो    जोक – अभी अभी बनाएं
मम्मी – राज बेटा ! लड़की वालों को देखने जा रहे हैं | खूब पैसे वाले हैं | जरा हमारी अच्छी छाप बन जाये | ढंग से तैयार होना |
राज – जी मम्मी! मैं तैयार हो गया हूँ पूरी तरह से | चलिये
मम्मी – अरे रुक , तुने प्याज वाला इत्र तो डाला ही नहीं |
 
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ग्राम प्रधान ( नेता जी से ) – साहेब पिछली गरीबी उन्मूलन के लिए जो पैसे आये थे, आपने पूरे डकार लिए थे| अब मनमोहन जी गाँव भ्रमण में आ रहे है | क्या करूं?
नेता जी – ये लो ये एक शीशी  ,मैंने ये प्याज के इत्र अपने भण्डार में जमा किये हुवे हैं, ठीक समय पे इस एक शीशी से  तुम  गाँववासियों पर एक एक पफ्फ़ छिडक देना|
                                              डॉ नूतन गैरोला - २६ जनवरी २०११
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और अंत में अपनी
प्यारी भारत माता की जय
                   जय हिंद - सभी का गणतंत्र दिवस अच्छा रहा होगा | इस उम्मीद के साथ
 
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       लहर लहर ओ
भारतीय राष्ट्र पताका
तू आज गगन को छू ले |
( ये पंक्तियाँ स्कूल के दिनों में गाये देश भक्ति के गीतों में से हैं जो मुझे पसंद था |)
 
 
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