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Monday, October 25, 2010

ये कैसा करवाचौथ था - ( आपबीती- जगतबीती ) - dr nutan gairola

करवाचौथ पर एक लघु कथा ( आपबीती- जगतबीती )  
करवाचौथ में उन बिन जी घबराया
छत पे चंदा तू भी आया
सजना मेरे किसके द्वारे
जल्दी से उनको मेरी राह दिखा दे |

ये कैसा करवाचौथ था ?
                         
          यूं तो पहाड़ों में करवाचौथ की परंपरा नहीं रही है फिर भी ये पति के लिए रखा जाने वाला व्रत सुहागवती स्त्रियों को  खासा  पसंद  आया है अतः अब पहाड़ो में भी मनाया जाने लगा है | इंदु ने भी करवाचौथ का व्रत लिया था|
              
                      इंदु ने  छुट्टी ली थी | हॉस्पिटल में वार्ड आया का काम करती थी | गरीबी में जैसे तैसे दिन बीत रहे थे  उसके  | मजबूरी में नौकरी करनी पड़ी | छोटे छोटे तीन बच्चे और पति की नौकरी नहीं | उस पर नौकरी न मिलने के गम में पति शराब  पीता | रोटी पानी के लिए रोज आये दिन घर में खिट-पिट होती | सो नौकरी की तलाश में निकल पड़ी| पढ़ी  लिखी थी , एक प्राइवेट  हॉस्पिटल में काम मिल गया - काम वोर्ड आया का था| मैं  भी वहीं कार्यरत थी | इंदु से पहचान हो गयी | अच्छी सभ्रांत महिला थी | मरीजों  की सेवा में तत्पर रहती थी | पर कभी बात होती तो  बच्चों  के भविष्य के लिए बहुत चिंतित, उनकी चिंता उसे खाए जाती थी |
                    
                        उस दिन मैं जब ओ पी डी  में  मरीज देख रही थी मरीज के घाव की पट्टी करनी थी | इंदु को आवश्यक हिदायत देने के लिए मैंने बुलाया तो पता चला कि वह आई नहीं है | मैंने पूछा क्यूं ? पता चला कि उसका करवाचौथ का व्रत है अतः आज छुट्टी  ली  है | पूरे चार  दिन और बीत गए बिना किसी छुट्टी के वह आई नहीं |
                      
                    
                    पांचवे दिन पता चला कि वह आज आई है | मैंने  उसे बुलवाया  | वह सामने आई तो उसने एक तरफ मुंह   ढका हुवा था | पहले सोचा यूंही ढका होगा | बाद में कहा - इंदु क्या बात है आज चेहरा क्यों ढका है, पल्ला  हटाओ  चेहरे के ऊपर से | तो बड़े शर्म के साथ उसने पल्ला हटाया | देख के मेरा दिल धक् हो गया | सुन्दरता की मूरत इंदु की एक आँख ही नहीं दिखाई दे रही थी एक तरफ मुंह  सूजा और काला पड़ा हुवा था , आँखे काली फूली हुवी.. उसके माथे  और आँख पे गहरी चोट लगी थी जिस से रिस कर खून अन्दर ही अन्दर गालों में भी फ़ैल गया था | मैंने पूछा -इंदु ये क्या हो गया तुझे ? वह बहुत रुवान्शी हो गयी..फिर बताया कि उसे पड़ोस  की महिलायें ले कर आई है | उसके पैर हाथो में भी काफी चोट आई है |
                       
                       तब तक  एक पड़ोस की महिला आ गयी | उसने बताया कि डॉक्टर  साहब  चार दिन से ये घर में इस हालत में पड़ी है, राजू (इंदु का पति ) कोई दवा नहीं लाया तो हम इसे यहाँ ले कर आ गए है | मैंने पूछा कि हुवा कैसे - तब इंदु ने बताया कि उसने उस दिन करवाचौथ का व्रत रखा था | बहुत खुश थी वह आज छुट्टी  ले कर बच्चों और पति के बीच में रहेगी | सुबह खाना बनाया बच्चो और पति को खाना खिला कर खुद निर्जल उपवास रखा | पति कि दीर्घायु की कामना की और नयी साडी पहनी, खूब भर भर हाथ चूड़ियाँ पहनी, मेहँदी रचाई, पैरो पे कुमकुम - दुल्हन  जैसा श्रींगार किया | पूजा की पूरी तैयारी की | करवा सजाया | वर्तकथा पढ़ी , पर इन सब के बीच जो कमी उसे खल रही थी वो थी पति की | पति घर पे नहीं थे | 
                      
                        दिन में खाना खाने के बाद कही जा रहा हूँ , कह कर घर से निकल गए थे |देर रात हो आई थी |शारीरिक रूप से कमजोर इंदु को कमजोरी भी आने लगी पर जो नहीं आया वो था पति | सारी महिलायें महोल्ले की पूजा करने लगी  और सबके पति साथ थे| रात के  ग्यारह  बज चुके थे सब चाँद देख रहे थे छन्नी से .. और फिर पति को .. और वह छत पे खड़ी खाली सड़क पे पति का चेहरा तलाश रही थी | लेकिन उस अजगर सी लम्बी सड़क पर समय यूं फिसलता जा रहा था ज्यो एक पल ..पर पति का कहीं नामो निशान नहीं था.. पड़ोस  से नीलम दीदी ने आवाज लगायी -'क्या करेगी तू ' .. इंदु को  समझ नहीं आ रहा था क्या करे .. उसने कहा, जरा भाईसाहब को भेज  दीजिये इनकी तलाश के लिए क्या पता बाजार में किसी दोस्त की  दुकान  में बैठे हों| नीलम  ने कहा ठीक है.. और फिर  एक  घंटा और बीत गया | बच्चे सो चुके थे | भूख और कमजोरी और पानी की कमी से उसका  मुंह  सूखने लगा उसपर वह खड़े खड़े इंतजारी करती चिंतित भी और आक्रोशित भी| उसका शरीर  जवाब देने लगा .. मन की विश्वास की शक्तियां भी कुछ क्षीण पड़ने लगीं| सोचा की ऐसा कौनसा जरूरी काम आ पड़ा जो मेरा ख्याल भी नहीं आ रहा है .. वैसे पहले भी घर से गायब हो जाते थे जब दोस्तों के साथ कुछ ज्यादा पी लेते तो घर नहीं आ पाते थे  तो उनके ही यहाँ ठहर जाते थे .. तब रात्री  एक  बजे नीलम आई कहने लगी की भैया  जी कहीं  नहीं मिले सुना की आज वो दुसरे गाँव, अपने दोस्त रमेश के यहाँ गए है .. नीलम ने कहा की इंदु तू पूजा कर के खाना खा ले.. इंदु भी कमजोरी महसूस कर रही थी और फिर सोचा और दिन जैसे कई बार हुवा है पति शायद कल सुबह आएंगे |
                          
                  उसने पूजा की भगवान् से प्रार्थना की कि हे  भगवान् , वो जहाँ  कहीं  भी हो कुशल मंगल हो और उन्हें  दीर्घायु स्वस्थ रखना . फिर उसने भगवान् को टीका लगाया .. पति  की एक फ्रेम वाली तस्वीर ले आई और उस पर टीका लगाया और उस तस्वीर पर पति को माला पहनाई | फिर खाना पति की तस्वीर पर लगाया तब खुद खाने बैठी ..     
              
                      अभी एक निवाला नहीं खा पाई थी कि दरवाजे पर दस्तक हुवी  उसने दरवाजा खोला तो पतिदेव खड़े थे| शराब  की दुर्गन्ध भक्क उसके  मुंह  पर आई .. पुछा  कहाँ  थे आप आज .. राजू ने जवाब नही दिया  उल्टे कहा  कि खाना चल रहा है तेरा .. खाना खा रही है तू .. तेरी इतनी हिम्मत .. आज करवाचौथ में पति के बगैर खाना .. इंदु ने  कहा - आप नहीं  पहुंचे  जब और  कमजोरी भी आने लगी  इसलिए  पूजा कर के खाना खाने लगी थी | पति ने पूजा घर की ओर देखा और देखा कि उसकी तस्वीर पर फूलमाला  चढ़ी  हुवी है| उसने पुछा - ये माला किसने पहनाई तस्वीर पर .. भोलीभली इंदु ने कहा कि मैंने आपको तस्वीर में माला पहनाई है .. और ये सुनना ही था कि राजू का गुस्सा सातवें  आकाश चढ़ गया .. उसने आव देखा न  ताव एक घूंसा सीधे इंदु के मुंह  पर जड़ दिया - इंदु यूहीं  कमजोरी महसूस कर रही थी चक्करा कर गिर गयी और राजू बेत ले आया और इंदु की पिटाई शुरू हो गयी .. मोहल्ले वाले घर के दरवाजे पर आ गए - राजू चिल्ला  चिल्ला  के सबको बता रहा था - 
इस करमजली को देखो - मेरी फोटो पे माला पहनाई - साली ने मुझे जीते जी  मार  डाला   है|                                      
                      
                                                     


कई प्रश्न एक साथ मेरे मन में उठ खड़े हुवे .. उनका जिक्र न  करुँगी .. चाहूंगी की हर रिश्ते मे प्रेम, स्नेह, सम्मान हो और रिश्तों की मर्यादा बनी  रहे |
                                

                                            ~~~~~*~~*~~*~~*~~*~~~~~


चूड़ी छनकी बिंदिया चमकी
पैरों पे महावर  लगाया |
कुमकुम, महेंदी की ताज़ी खुश्बू संग
पिया पिया तेरा नाम आया |
गजरा महका,   मन  पगला  बहका 
पायल छनकी मृदु  गीत सुनाया | 
तेरी यादों की  जब   हवा चली तो  
फ़र-फ़र -फ़र मेरा आँचल लहराया |
पल पल बिन तेरे, मेरा  हर पल  बोझिल
और  तू न  आया, मेरा गजरा मुरझाया | 
 विकल मन की क्रूर आंधियां ने
कोमल  अभिलाषाओं  को भरमाया | 
 छत पर  अकेला चंदा जब  आया
 उन बिन करवाचौथ में जी घबराया |
दीपक पूजन  का   बुझने  दूं  न मैं
चंदा  को  है पैगाम भिजवाया  |
सजना मेरे सौतन के  द्वारे
जल्दी से उन्हें  मेरी राह दिखा दे |

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यह पोस्ट  उस  महिला  को समर्पित  है जिसके जीवन की घटना को एक रूप दिया है|

डॉ नूतन गैरोला 
२५ / १० / २०१० ( 21 :00 ) 
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36 comments:

मनोज कुमार said...

मार्मिक वर्णन।
दुखद घटना।

shanno said...

नूतन, तुम एक डाक्टर होते हुये भी इतनी अच्छी लेखिका हो जानकर बहुत आश्चर्य होता है...करवाचौथ पर अभी मैंने तुम्हारा ये लेख व कविता पढ़ी...बहुत सुन्दर ! धन्यबाद.

shanno said...

नूतन, तुम एक डाक्टर हो और साथ में इतनी अच्छी लेखिका भी. करवा चौथ पर तुम्हारा ये लेख पढ़ा और कविता भी...लेख दिल को छू गया. बहुत धन्यबाद. ब्लाग बहुत अच्छा लगा..शुभकामनायें.

Barthwal Pratibimba said...

नूतन जी आपने बहुत ही श्रद्धापूर्ण इस घटना को लिखा है अपने शब्दो में। येसी घटनाये होती है जंहा शिक्षा की कमी हो,कुछ आम जीवन मे भी है।
आपको शुभकामनाये करवा चौथ पर

डा. अरुणा कपूर. said...

नूतन जी!...जहां स्त्रियों को पुरुष के बराबर हक मिले...इस संदर्भ में कोशिशे हो रही है,वहां ऐसे जानवरों जैसी मानसिकता वाले पुरुष भी मौजूद है!... यह कहानी समाज का दर्पण है!...धन्यवाद!नूतन जी!...जहां स्त्रियों को पुरुष के बराबर हक मिले...इस संदर्भ में कोशिशे हो रही है,वहां ऐसे जानवरों जैसी मानसिकता वाले पुरुष भी मौजूद है!... यह कहानी समाज का दर्पण है!...धन्यवाद, शुभकामनाएं!

जयकृष्ण राय तुषार said...

bahut sundar dr.nootanji badhai

Navin C. Chaturvedi said...

रोंगटे खड़े हो गये इस भयावह दास्तान वाली कहानी को पढ़ कर| सच ये हमारे समाज का वो चेहरा है, जो है तो हमारे बीच ही मौजूद - फिर भी सब इस से आँखें फेर लेते हैं| बहुत ही संवेदनात्मक कहानी प्रस्तुत की है नूतन जी| बधाई|

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...

मार्मिकता से परिपूर्ण पोस्ट!
--
करवा चौथ के अवसर पर बहुत बहुत सटीक!
--
इस अवसर पर बहुत ही सार्थक रचना!
--
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
आपकी पोस्ट को बुधवार के
चर्चा मंच पर लगा दिया है!
http://charchamanch.blogspot.com/

mahendra verma said...

मार्मिक प्रसंग...पढ़कर दिल भर आया।

हास्यफुहार said...

बहुत मार्मिक

डॉ॰ मोनिका शर्मा said...

marmik prasand hai.... aapka is tarah se sochan man ko bha gaya....

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Shastri ji .. aapne is post ko charchamanch ke liye chuna .. hriday se aabhaar..

उस्ताद जी said...

6.5/10

आपका सहज लेखन बरबस ही मन को छू जाता है.
यह पोस्ट मार्मिक होने के साथ ही जहन में कई सवाल भी उठाती है कि आखिर यह किस समाज की बात है. क्या यह हमारा ही समाज है ?

एक बात और अवश्य कहना चाहूँगा कि मैं इस प्रकार के लेखन को अत्यंत महत्वपूर्ण मानता हूँ. यही वास्तविक ब्लागिंग है. जहाँ निज अनुभव है--जहाँ कृत्रिमता नहीं है--जहाँ सहजता है--सरलता है--अपना सा कुछ है.

उस्ताद जी said...

असंगत फांट कलर ख़त्म करने के बाद आपकी पोस्ट अब बहुत सुन्दर लग रही है. बस एक बात और .... पूरी पोस्ट को 'बोल्ड' से लिखने का अभिप्राय होता है कि आप चीख कर दूसरों को अपनी बात सुना रहे हैं. ध्यानाकर्षण के लिए कुछ शब्द बोल्ड किये जा सकते हैं या पोस्ट के बीच की कोई पंक्ति--कोई कविता--कोई शेर. किन्तु पूरी पोस्ट बोल्ड की हुयी बहुत ही अजीब लगती है.. उसमें सोबरनेस नहीं रहती.
मेरी बात पर ध्यान देने के लिए आपका बहुत शुक्रिया

Kunwar Kusumesh said...

किसी घटना का ऐसा हृदयविदारक चित्रण यह साबित करता है की आप एक डॉक्टर होने के साथ साथ एक अच्छी लेखिका और एक अच्छी इंसान भी हैं.
कुँवर कुसुमेश

रंजना said...

बहुत सार्थकता से बात उठाई है आपने....

असंख्य जीवन की यह दुखद गाथा है,जिन्हें प्रकाश में लाकर ही हम संबंधों की गरिमा पर लोगों को सोचने के लिए बाध्य कर सकते हैं ...

Coral said...

बहुत सुन्दर ...पहली बार आपके ब्लॉग पे आना सार्थक हुआ ...

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फिर से हरियाली की ओर........support Nuclear Power

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

मार्मिक। अफसोस कि यह दुखद घटनायें न जाने कितने लोगों के जीवन में रोज़मर्रा की बातें हैं।

Anu Joshi said...

Nutan, bahut marmik varnan kiya hai aapne is ghatna ka ..... hamare samaj mein ek tabka aisa hai , jahan aisi ghatnayein aam hain .....
shiksha aur striyon ki aarthik swatantrata ke sath shayad samaj ki mansikta mein kuchh badlav aayega ...
aisi sundar rachna ke liye dhanyawad .....

ताऊ रामपुरिया said...

घटना बहुत ही कष्ट दायक है पर सच यही है. आपने बहुत ही सहज रूप से घटना को कलमबद्ध किया है, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

अनुपमा पाठक said...

maarmik!!!

निर्मला कपिला said...

घटना पढ कर मन दुखी हो गया ऐसी न जाने कितनी घटनायें हुयी होंगी। हाय रे नारी तेरा जीवन भी क्या है। तुम्हारे शब्दों ने और कविता ने मन पर गहरा प्रभाव डाला है। कुछ कहते नही बन रहा। शुभकामनायें।

रश्मि प्रभा... said...

bahut ajeeb sa ho gaya mann ... dukh hi jivan ki vyatha rahi

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

dhanyvaad..
Ustaad ji
kunwar kushmesh ji
Ranjana Ji..
Coral.. ji.
Smart Indian ..se aap..
Anu joshi ji..

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

mai apne kuch anya mitro kee tippaniya bhi yaha par sahej rahi hoon...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Aapka Shukriya.....
Anupama Ji.
Nirmala ji
Rashmi ji..
shubhsandhya .

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Naveen Singh Rana keep writin mam tnx
October 25 at 11:57pm

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Naveen Singh Rana nutan mam u r gr8 writer nd a great human too. ....m nw bcm a big fan of u.....tnx 4 acept me as ur frnd

ur article,story shws d truth nd depicts d reality.......i lik d pahadi touch wich u shws in ur each stry
October 25 at 11:56pm

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Chandan Singh Bhati vah sa
October 25 at 11:41pm · UnlikeLike · 1 person
You like this.

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Manjula Singh sad to read this...thanks for posting
October 26 at 8:58am ·

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

प्रतिबिम्ब बडथ्वाल नूतन जी आपने बहुत ही श्रद्धापूर्ण इस घटना को लिखा है अपने शब्दो में। येसी घटनाये होती है जंहा शिक्षा की कमी हो,कुछ आम जीवन मे भी है।
October 26 at 7:28am

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

S P Singh एस.पी.सिंह Events by looking at human nervous. Think that his confidence waver. Dark night saw a ray of morning person forgets. Keeping in mind that every event, no matter how many negative why do not we keep holding our faith. Start - beginning when a person takes to become a positive thinker, the center - is bound to come between a negative view
Thursday at 12:36am

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Garima Sanjay बहुत ही दुखद घटना का खूबसूरती से वर्णन किया है, नूतन जी! संवेदनाओं के सफल मार्मिक चित्रण के लिए बधाइयां!
October 26 at 5:51pm · UnlikeLike

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Nutan नूतन Ya it is really sad but it is true as Prati ji mentioned it only happens when there is illiteracy and lack of mutal understanding and respect.
October 26

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Nutan नूतन Good morning ... n thanks Sathyajit ji, Chandan Ji, Naveen Ji, Pratibimb ji , Manjula ji...
October 26 at 9:38am

कुमार राधारमण said...

पति और पत्नी की दुनिया अगर अलग हो,तो करवा चौथ न सही,कभी न कभी यह दिन देखना ही पड़ता है। यद्यपि स्थितियां आज की तारीख में ठीक वैसी नहीं रह गई हैं जैसा कि कथा में चित्रित किया गया है,यह स्वीकारने में संकोच नहीं कि पुरुष का अहं अब भी घर को नियंत्रित करता है।