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Monday, June 6, 2011

पतंग इच्छाओं की - डॉ नूतन गैरोला

   

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  उसकी पलकों में
सपनों की कीलों पर
इच्छाएं जीवनभर लटकती रहीं
उतरी नहीं जमीं पर
ठीक उसी तरह
जिस तरह
उसके बचपन की पतंग
शाखाओं के सलीब पर  अटकी रही
फड़फड़ाती रही, फटती रही
और बचपन अबोध आँखों से
पेड़ के नीचे इन्तजार करता रहा
डोर का, पतंग का|
कितने ही मौसम बदले
गर्मी आई बारिश आई
और कागज की लुगदी
टुकड़ा टुकड़ा टपकती गयी, बहती गयी
रह गया सिर्फ पंजर
बारिक बेंत का क्रोस
डाल पर झूलता
और वो पेड़ भी तो अब गिरने को है|

०६-०६ –२०११  २२:१५
डॉ नूतन गैरोला  

29 comments:

डॉ॰ मोनिका शर्मा said...

उत्कृष्ट अभिव्यक्ति.... ....एक प्रभावी और संवेदनशील रचना .....

डॉ0 ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Dr. Zakir Ali 'Rajnish') said...

इच्‍छाओं की पतंग का सार्थक चित्रण।

---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
बाबाजी, भ्रष्‍टाचार के सबसे बड़े सवाल की उपेक्षा क्‍यों?

Udan Tashtari said...

गहन भाव..उम्दा बिम्ब!!!

vandana said...

पतंग की संघर्ष यात्रा अच्छी लगी

Kunwar Kusumesh said...

पतंग के सहारे से जीवन की एक सच्चाई बयान कर दी आपने.
क्या बात है.

प्रवीण पाण्डेय said...

पेड़ पर लटकना तो पतंग का ठिकाना नहीं, उसे तो बस उड़ना है, बारिश आने के पहले।

केवल राम : said...

जीवन सन्दर्भों को सामने लाती कविता बहुत सशक्त अर्थ संप्रेषित करती है ....आपका आभार

निर्मला कपिला said...

बचपन के सपनो की पतंग
भविषय की सलीब पर लटकी रही--
मेरे ख्याल से यहाँ शाखाओं की जगह भविशःय होना चाहिये था। बहुत ही अच्छी भावमय प्रस्तुती।

वन्दना said...

बेहद भावमयी प्रस्तुति।

Anita said...

बहुत सुंदर दिल को छूती हुई कविता !

Bhushan said...

बारीक बेंत का क्रॉस
डाल पर झूलता

सुंदर बिंबों से सजी रचना.

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ही मार्मिक ... संवेदनशील अभिव्यक्ति है ... सच है बहुत से बचपन ऐसे ही पिंजरा हो जाते हैं ... उम्र भर अटके रहते हैं ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छे बिम्ब प्रयोग किये हैं ज़िंदगी की सच्चाई बताने के लिए ..सुन्दर रचना

Patali-The-Village said...

बहुत ही अच्छी भावमय प्रस्तुति| धन्यवाद|

राज भाटिय़ा said...

बहुत मार्मिक लेकिन सुंदर रचना, धन्यवाद

Babli said...

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!

रश्मि प्रभा... said...

gahanta se paripurn rachna

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर.. पहली बार आपके ब्लाग को देख रहा हूं। वाकई अच्छा लगा।

अनुपम अभिव्यक्ति said...

अनुपम अभिव्यक्ति..!!

श्यामल सुमन said...

अपने मनोभाव को खूब सुन्दर अंदाज़ में समेटा है आपने डा० नूतन. बहुत खूब.
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

ZEAL said...

wonderful creation . loving the expressions !

सहज साहित्य said...

पतंग इच्छाओं की बहुत भावपूर्ण कविता है , जीवन के यथार्थ को पूरी मार्मिकता और तन्मयता से अभिव्यक्त करती हुई ।

Harsh said...

nice post

vishwagatha said...

उसके बचपन की पतंग
शाखाओं के सलीब पर अटकी रही
फड़फड़ाती रही, फटती रही
और बचपन अबोध आँखों से
पेड़ के नीचे इन्तजार करता रहा
डोर का, पतंग का|

क्या बखूबी वर्णन किया है डॉ. नूतन... बधाई|

अरुण चन्द्र रॉय said...

खूबसूरत कविता... बहुत बढ़िया...

Vivek Jain said...

बहुत ही बढ़िया रचना है,
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Manpreet Kaur said...

बहुत ही अच्छा पोस्ट है ..... आभार ..मेरे नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है !
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Minakshi Pant said...

जीवन के एहसासों को खूबसूरती से परिभाषित करती खुबसूरत रचना |

Anonymous said...

अग्निहोत्री तेरे हसबेंड हैं ..क्या करते हैं वो.. यशवंत