यूं तो कविताओं में अक्सर जिक्र होता है भूख का और भूखे की रोटी का, लेकिन जब भी मैं रोटी बनाती हूँ मन रसोई की खिड़की से कहीं बहुत दूर होता है और आँख होती है तवे पर रोटी पर ,आदी हूँ ना| मन बीते समय की सड़क पर भागता जाता है आज और दसकों पीछे तक और हर पड़ावों पर रखी पोटली से निकालता है यादों का आटा वेदना और आनंद से पूरित संवेदनाओं से सिंचित कर मन बेलता कविताओं की रोटी कई कई प्रकार की आड़ी तिरछी, फिर चुन लेता है, उनमें से सबसे सुन्दर आकार और उस बेहद सुन्दर आकार को व्याकरण की आंच पर पकाता है जरूरत भर कि कविता की रोटी मन के संग फूल कर फुल्का हो जाती है .. और फिर भावनाओं की चटनी, शहद. दही सब्जी, के साथ परोसी और चखी जाती रोटी का स्वाद लजीज वह रोटी दिल को अजीज .. उधर तवे पर पकी रोटियां परोसती हूँ .. जो सबकी भूख को कर देती है शांत और कविता की बनी सुघड रोटी मन में ही दम तोड़ लेती है पन्ने पर आकार नहीं लेती है, समय नहीं मिलता(बहुत दुख है) कागज़ की थाली पर कलम से रोटी को अतारने का हाँ समय मिलता या दे दिया जाता तभी अगर वह भूखों की भूख को मिटा सकती बेरोजगारी में रोजगार दे सकती तब बड़े बुजुर्ग कहते बेटी तू कविता लिख .. किसी को मुझसे कविता की अपेक्षा भी नहीं लेकिन मुझे दुःख नहीं.. कल फिर चूल्हा जलाऊँगी तवे पर होगी एक रोटी भूख की और मन में एक रोटी बेहतरीन कविता की बनाउंगी|
डॉ नूतन गैरोला |
26 comments:
यादों का आटा...कविता की रोटी, भावनाओं की चटनी...मेरा मन ही बन गया है तवा
इस गोल रोटी में तो सौन्दर्य के दर्शन हो गये।
रोटी की तरह कविता भी सेंकी जाती है भावों के आंच पर...!
विम्बों के माध्यम से गहरी बात अभिव्यक्त की है!
क्या अदभुत कल्पनाएँ की हैं आपने.
तन की भूख मिटानेवाली रोटी की
और मन की भूख के लिए कविता की रोटी की.
नूतन अनुभव हुआ है, नूतन जी.
मन की भूख को आपने कुछ शांत किया है इस अदभुत कविता
की रोटी से,
और रोटियों, अरे नही नही, परांठों का इंतजार है जी.
सुन्दर अमृतरस से पूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
आपने मेरे ब्लॉग पर आकर जो अपनी अनुपम 'टिपण्णी'
का पकवान और मिष्ठान्न प्रस्तुत किया उससे दिल
गदगद और प्रसन्न हो गया है.
अब तो बस यही कहूँगा जी 'अन्न दाता सदा सदा सुखी भवेत्'
तवे पर होगी एक रोटी भूख की
और मन में एक रोटी बेहतरीन कविता की बनाउंगी|
मन में बनी रोटियाँ बेहतरीन कविता ही बनती हैं
सुन्दर अमृतरस से पूर्ण बहुत सुन्दर प्रस्तुति| धन्यवाद|
आप जब भी रोटी या खाना बनाएं तो भगवान् का प्रशाद समझ कर बनाएं.
ईश्वर सुमिरन भी हो जायेगा और खाना भी स्वादिष्ट होगा.
कविता तो खूब होगी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
रोटी पैर लिखी गयी उम्दा रचना ,बहुत सुंदर
क्या बात है।
रोटी पर बेहतरीन रचना गढ दी आपने।
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने रोटी पर! नए अंदाज़ के साथ अनुपम प्रस्तुती!
बहुत अच्छे से आपने ल्पनाओं को शब्दों का जामा पहनाया है,सकारात्मक व भावपूर्ण रचना !
behtareen rachnatmkata...hum vibhinn manobhavo se aap ki kavita ki roti ka swad le rahe hain...
और कविता की बनी सुघड रोटी मन में ही दम तोड़ लेती है
पन्ने पर आकार नहीं लेती है,
सुंदर प्रतीकों से सजी एक बेहतरीन कविता।
अद्भुत बिम्बों/प्रतीकों में गुंथी रचना...
सादर...
अदभुत कल्पना कर रोटी पर लिखी बेहतरीन पोस्ट,...बधाई
भूखे को चांद भी रोटी के समान ही दिखता है॥
बहुत सुंदर और एक नए लोक में ले जाती कविता... वाह अब तो रोटी खाते वक्त आपकी कविता भी याद आ जायेगी...
सबसे पहले हमारे ब्लॉग 'जज्बात....दिल से दिल तक' पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ...........पहली ही पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब...........आज ही आपको फॉलो कर रहा हूँ ताकि आगे भी साथ बना रहे|
कभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए- (अरे हाँ भई, सन्डे को भी)
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
तप्त तवे को कविता सुनाई
रोटी फूली नहीं समाई.
सुंदर भावों की अभिव्यक्ति...............
mam ise padhkar bhukh lag gayi....
jai hind jai bharat
बहुत ही भावपूर्ण रचना....रोटी यादों की हो या भूख की सदा मन को कातर कर जाती है....फिर भी आशाओं की आंच पर फिर बनाउंगी रोटी.......शुभ कामनायें !!!
रोटी के सिकते या फिर और कोई काम करते कई विचार अचानक से आते हैं , या कुछ यादें और कलम कागज़ के अभाव में दम तोड़ देती हैं ...
आपने यादों के आटे से ख़ूबसूरत कविता गूंध ली आखिर !
बहुत सुन्दर रचना|
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है,कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html
रोटी को इस कविता ने अत्यन्त आत्मीय रूप दे दिया नूतन जी । यह आपकी लेखनी और ज़मीन से जुड़े अनुभव के कारण सम्भव हुआ ।
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