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Tuesday, November 15, 2011

ये रास्ता कितना हसीन है - डॉ नूतन गैरोला


***ये रास्ता कितना हसीन है***

my_way_to_neverwhere_by_Dieffi

तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
जो ने तूने ठानी थी तू कर अमल|
ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
तू ईमान के बदले में न खरीद महल |
जीना तू गर जीना सर उठा के
बेईमानों का भी दिल ईमान से जाए दहल|
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीने की जरूरत हो जितनी तू उसमें बहल|


तू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
खुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|

जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के 
तू चिंगारी बन कर ख़ाक कर दे वो जंगल | 
हो बुलंद इकबाल तेरा जरा तू संभल
नेकी की राहों पर चल के आगे निकल |
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीनेभर की जरूरतों में तू खुश हो बहल ||....
डॉ नूतन गैरोला २३ :४६ १५ -११- २०११

15 comments:

अनुपमा पाठक said...

प्रेरक प्रस्तुति!

प्रवीण पाण्डेय said...

जो मिला है, उसी में ही प्रसन्न रहना सीख लें।

रश्मि प्रभा... said...

khoobsurat dua

सदा said...

बहुत खूब कहा है आपने ।

Anita said...

नेकी के रास्ते पर चलने का बहुत सुंदर संदेश देती हुई पंक्तियाँ !

Amrita Tanmay said...

बेहद खुबसूरत लिखा है.

इमरान अंसारी said...

बहुत खूबसूरत.......स्वाभिमान को दर्शाती ये पंक्तियाँ शानदार हैं|

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 16-- 11 - 2011 को यहाँ भी है

...नयी पुरानी हलचल में आज ...संभावनाओं के बीज

वन्दना said...

स्वाभिमान को दर्शाती शानदार प्रस्तुति।

सहज साहित्य said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति डॉ नूतन जी । ये पंक्तियाँ तो मन को छू गई -तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
जो तुने ठानी थी तू कर अमल|
ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
तू ईमान के बदले में न खरीद महल |

यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur) said...

मनोबल बढ़ाती है यह प्रस्तुति।

सादर

Human said...

सकारात्मक व भावपूर्ण रचना ।
बहुत अच्छा लिखा है ।

अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ ।

औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता

Reena Maurya said...

very encouraging poem
very beautiful../...

shikha varshney said...

बेहद प्रेरक ..सत्मार्ग की तरफ ले जाती हुई रचना.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वाह यह तो बड़ी सुन्दर रचना है...
सादर बधाई