Followers

Sunday, January 9, 2011

अपना हाथ जगन्नाथ - डॉ नूतन गैरोला

                                 
                beautiful_monarch_butterfly_on_a_flower_print-p228144073290486355vsu7_325

                फूल भी लुभाता है और तितलियों के रंगीन पंख देख बच्चे उसके पीछे दौड़ते उछलते है | सभी के अंदर एक नैसर्गिक चाहत होती है  खूबसूरती की - खूबसूरत होने की लेकिन ये सुंदरता तभी बनी रहती  है या तभी लुभाती  जब एक स्वस्थ शरीर हो, स्वस्थ मन हो |
                                 मैं प्रार्थना करुँगी कि हम सब का स्वास्थ उत्तम हो और ताकत से भरपूर हमारे हाथ हो, सोच में भलाई हो - ताकि हम अपने लिए स्वस्थ, सुखी, सुरक्षित,  समाज का सृजन कर सकें |
  
hand

गोवर्धन था
जिनकी कनिष्ठ ऊँगली पर
वो तो भवसागर का तारनहार 
श्री कृष्ण था 
छत्रछाया में उनकी 
 दुनियां-जन जन नतमस्तक था   ,
पर मेरे
ये दो हाथ
जिसमे समायी थी दुनियां मेरी
जो देते थे सहारा
हजारों हाथों को बढ़ बढ़ कर,
आज जब चाहा सहारा मैंने तो
वो हजार हाथ भीड़ में
खो गए
और दूसरे हजारों को सहारा देते
और मैं ?
अपनी मौन आहों को
खुद के भीतर समेटे
मुस्कुराती रही अपने गम पर
इस अकेले कमरे में
और साथ हैं हाथ मेरे
किये मेरा मस्तक ऊँचा गर्वित
नाज है आखिर
ये दो बेहतरीन हाथ तो मेरे हैं
नतमस्तक  तेरी इस सौगात पर
बनाये रखना, ताकत भरना
इन हाथों में   
हे जगदीश्वर!
जग के नाथ
क्यूंकि
होता  भी हैं ना
अपना हाथ जगन्नाथ |
 
 
डॉ नूतन गैरोला  ०८-०१-२०११



Friday, December 31, 2010

नववर्ष अभिनन्दन - डॉ नूतन गैरोला (२०११)


26966_1284321802509_1664044845_667603_5549028_n
 
सांझ यूँ ढली.
अँधेरे उजाले की
लुक्काछिप्पी के
उतार चढाव के मध्य..
सूरज गगन में
नववर्ष की शुभकामना 
देता मुस्कुराने लगा |
आओ नवप्रभात, नववर्ष का
स्वागत है,
तिलक है, है अभिनन्दन |

वर्ष २०१० की भावभीनी विदाई के साथ नववर्ष का स्वागत है |

 
जाने वाले जो अच्छा दिया तुने उसे गुन लिया मैंने
जो बुरा था, वो भला था उससे सबक लिया है मैंने |
आने वाला तू अपनी झोली में भरभर खुशहाली लाएगा,
इसी विश्वास के संग तेरा स्वागत किया है मैंने |

एक इच्छा है, एक कामना है, एक आशा है, एक विश्वास है, एक दुवा है - हम और हम सबका आने वाला साल शुभ और मंगलमयी हो खुशियों से भरा हो | हम खुद में निहित बुराइयों को बाय बाय कह सकें और अच्छे गुणों का स्वागत कर सकें | उन्हें अपना सकें और अमल में ला सकें  |हमारा घर, परिवार, मित्र, समाज, देश, दुनिया हर जगह खुशिया हो, सभी सुरक्षित स्वस्थ हो |
मंगलकामनाये
सभी को नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं
डॉ नूतन गैरोला


New Year Glitters : Forward This Picture


Wednesday, December 29, 2010

क्यूंकि वह वहसी दरिंदा था - डॉ नूतन गैरोला

एक निरीह बेजुबान को  किस तरह एक चतुर दरिंदे के आगे उसके अभिमान के लिए अपने प्राणों को गंवाना पड़ा या बेघर होना पड़ा .. और यह कोई नहीं जानता की वह इस दुनिया में है भी की नहीं ? 
 
 
                                        
 
 
वह वहसी दरिंदा था | उसकी पूंछ थी जो प्रेम में हिलती थी और जब डर जाता तो दब जाती थी | चार नुकीले दांत थे जो खाना कुतरते थे | और जब कोई उसको बहुत धमकाता या तंग करता तो बचाव में डराते भी थे | एक लंबी जीभ थी जो गर्मियों में लटकती थी शरीर को वातानुकूलित करती या प्यार में अपने मालिक और प्रेमी लोगो को चाटने के लिए किन्तु भाषा बोलने में अक्षम सिर्फ गले से भों-भों की आवाज क्यूंकि वह एक बेजुबान कुत्ता था ..
और वह ? उसकी एक पूंछ नहीं थी | आगे के चार नुकीले दांत भी ना थे | ना सर पर सिंग थे | एक मीठी जुबान थी जो समझने सकने वाली भाषा बोलती थी | और एक शातिर दिमाग था, जो समय के हिसाब से अपने बचाव में सच को झूठ में बदलने में सक्षम था क्यूंकि वह एक चालाक आदमजात था | वहसी दरिंदा ?
एक नन्ही लड़की के पड़ोस में वह आदमजात रहता था और उस नन्ही लड़की ने एक बेजुबान कुत्ता पाला था | वह बच्ची उस छोटे से पिल्ले को बहुत प्यार करती और खुद को उसकी मम्मी कहती और अपनी मम्मी को उस पिल्ले की नानी | पिल्ला भी जब अपने घर के सदस्यों के चारों ओर उछलता रहता और आने जाने वालों को खूब प्यार करता | उसकी खूबी थी की वो दो पैरों पे खड़े हो कर नमस्ते नमस्ते करता कभी बोलने का भी प्रयास करते हुवे अपने मालिक की भाषा का नक़ल करने की पूरी कोशिश करता |
    अब पिल्ला कुछ कुछ बड़ा होने लगा और पिल्ले से एक प्यारा कुत्ता बनने लगा | जब लड़की ट्यूसन जाती तो वह भी पीछे जाता और घर आ कर दरवाजे पर उसकी इन्तजार करता| सुबह का घूमना भी खुद करता, घर से बाहर जाता तो पांच मिनट में घर आ जाता | लेकिन इस बीच अचानक वो छोटा कुत्ता जो कि अब लगभग एक साल का हो चला था रात को घूमते समय गायब हो जाता .. नन्ही लड़की आवाज लगा लगा के थक जाती पर कुत्ता वापस ना आता | फिर सुबह वहीं पर पूंछ हिलाता हुवा दिख जाता | घर वाले परेशान हो जाते की वह कहाँ गायब हो जाता है | एक रात को जब कुत्ता गायब हो गया तो घर वाले ढूंढते ढूंढते परेशान हो गए, तब एक पहचान के लड़के को कुत्ते को ढूंढने भेजा .. काफी जद्दोजहद के बाद वो कुत्ता मिल गया .. वो भी अप्रत्याशित रूप से ..जब उस लड़के ने तथाकथित आदमजात की रजाई खींची तो वो कुत्ता उसके पैरों के बीच में दबा हुवा मिला और उस बेजुबान कुत्ते के मुँह को उस आदमजात ने कस के दबाया हुवा था ताकि वो आवाज ना निकाल सके | कुत्ता बेहद डरा हुवा था, उस लड़के ने उस कुत्ते को आदमजात से छुडाया और घर लाया गया | ऐसा दो तीन बार हुवा की कुत्ता उस आदमजात की गिरफ्त में होता
               |अब दिसम्बर के महीने में वो एक साल का हो चला था | दिसम्बर को जिस दिन उसका जन्मदिन था, जाड़ा ज्यादा था वो लड़की उस कुत्ते के लिए कोट ले आई | कभी घर में कोई उस नन्ही लड़की को पढाने या शैतानी में मारता तो वो कुत्ता रोता और मारने वालो को गुस्से में दांत भी दिखाता | घर वाले कुत्ते से नाराज हो जाते कि यह तो हमें दांत दिखा रहा है | कुत्ता कुछ चिडचिडा हो चला .. खास कर वो आदमजात आता तो चिढचिढाने लगता | और एक अजीब सी तीखी चिढचिढ़ी आवाज में चिल्लाता | और वो आदमजात भी दिन में कहता कि इसे संभालो ये मुझसे चिढता है | फिर ऐसा हुवा कि उस लड़की के माँ पिता जी को बाहर जाना पड़ा तब फिर अचानक दो रात को कुत्ता गायब हो गया .. दिन में घर होता और रात को अचानक गायब ..उस दिन कुत्ता एक साल और आठ दिन का हुवा था, सुबह जब कुत्ता घर में था वो आदमजात उनके घर आया और कुत्ते पर हाथ लगाने लगा तो कुत्ता दूर हो कर गुर्राया तो आदमजात ने उसे एक लात मारी.. कुत्ता अचानक भड़क गया .. और एक खरोंच उस आदमजात पर लग गयी.. और फिर आदमजात ने क्रोध से उस कुत्ते को देखा और कहा देख लेना तुझे अब बताता हूँ .. लड़की ने सोचा मजाक होगा ..फ़ौरन आदमजात के लिए टीके लाये गए और टीका लगाया गया ..
                     किन्तु थोड़ी देर बाद ध्यान गया फिर कुत्ता गायब हो चूका था, शाम तक जब ढूंढने पर भी कुत्ता नहीं मिला तो वो नन्ही लड़की घर की छत से उस कुत्ते को आवाज लगाती रही.. बहुत रोई जब याद आया कि आदमजात ने कुत्ते को धमकी दी थी ..फिर उसने अपनी माँ को फोन किया पर वहाँ से हजार किलोमीटर के फासले से माँ क्या बताती या करती | रात भर रोते रोते लड़की की आँखे पकोडा हो गयी..अगले दिन भी कुत्ते की खोज की गयी.. तब पता चला की वह आदमजात कुत्ते को ट्रक के नीचे ३-४ बार फैंक कर मारने की कोशिश कर रहा था जो कि वहाँ पर खड़े लोगो ने देखा और बताया .. फिर जब ट्रक के नीचे नहीं आया तो कंधे में उठा के उस कुत्ते को कहीं ले गया और कुत्ता यह सोचता रहा कि शायद घुमाने ले जा रहा है .. और उस दिन के बाद वो कुत्ता कही नहीं नजर आया .. शायद उसे पास बहती नदी में फैंका गया, या फिर किसी दूर गाड़ी के नीचे कुचल कर पहाड़ी से नीचे फैंका गया .. या फिर किसी ट्रक में डाल कर दूर किसी और शहर में बेघर कर दिया गया .. उस लड़की के प्राण छटपटा रहे थे कि मेरे बेटे का क्या हुवा .. मेरा बेटे मेरे प्यारे  कुत्ते ने ऐसा क्या बिगाड़ दिया था कि उसे इस कदर मार दिया गया ..हर आहट पर उसे लगता था कि उसका प्यारा कुत्ता वापस उसकी बाट जोह रहा है और उस लड़की की आँखों से आंशू धार धार बह कर जमीन को भिगोते रहे कि कोई तो मेरे उस बेटे को वापस कर दे और जब उस आदमजात से पूछने की कोशिश की गयी तो उसने बात करने से इनकार कर दिया और फिर अचानक नन्ही लड़की के घर फोन कर कहा कि आप मुझसे पूछने की कोशिश ना करें , मैं अगर आत्महत्या कर दूँ तो इल्जाम आप पर चढ जायेगा, आप मुँह बंद रखें | आदमजात की क्रूरता और चालाकी देखे नहीं बनती थी | एक बेजुबान पर कितना भी जुर्म हो किन्तु अगर वह इसका विरोध करे तो क्या उस को अपने प्राण की आहुति दे कर इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी ?


वह मारा गया क्यूंकि वह वहसी दरिंदा था -आपका मानना क्या ?  वहसी दरिंदा कौन ? वह कुत्ता या वह आदमजात |


Monday, December 13, 2010

तुम बदले ? न हम … डॉ नूतन

आभासीय दुनिया में खूब खाए लड्डू पकौड़े , पाई गिफ्ट , और बने अच्छे मित्र .. .. फिर ऐसा क्या कि सब कुछ बदला बदला सा लगने लगा … सब वैसा ही था फिर क्यों सब बदल गया था

     long-friends.


समय का पहियां
घूमता, फैलता, खींचता, समय..
बढती उमर ...

पकवान जो लुभाते थे ख्यालो में कभी
क्यों कर स्वाद फीका हो चला है..
और वो कोरे कागजों  के फूल 
इत्र उड़ा, मिटती सुगंध..

ज्यूं खट खट टक टक के संग 
आभासीय दोस्ती,
जो साथ थे पास थे
फासले समय के साथ
कितने बड़े
कि नदी के किनारे भी ना हुवे
जो मिलते कभी नहीं थे
समान्तर चलते भी ना रहे ...

तुम वही हो,
पर कितने बदल गए हो
और तुम्हारा नजरिया बदल गया है |
कभी लगता है मुझे
क्यूं तुम बदले ?
पर
खुद को समझी नहीं मैं ..
शायद नजरिया मेरा ही बदल गया है
धुंधला रही हैं नजरे मेरी,
एक झुर्रि भी इठला रही  माथे पर मेरे
और मुझे मोटा चश्मा चढ़ गया है ||


डॉ नूतन गैरोला ..१३=१२=२०१० १९ :५५
==============================

Sunday, November 21, 2010

"एक दरखास्त " - डॉ नूतन गैरोला

जिस तरह जनम अपनी इच्छा से नहीं लिया जाता है, मौत भी एक अकाट्य सत्य है - जो चाह  कर भी नहीं आती और न चाहते हुवे भी मिलती है | बचपन में मौत को कदाचित स्वीकार नहीं कर पाती थी  और मौत की बात पर, मौत  पर बेहद क्रोध आता था  और भगवान पर भी  | लेकिन अब इस सत्य को स्वीकार ही नहीं किया बल्कि रोज आये दिन रोग पीड़ित दुखी लोगो को देखा है - महसूस किया है कभी कितने बेवक्त पे आती है और कभी कितना दुखी कर जाती है.. और कभी बहुत तडपाती भी है ..और तब इंसान इस जन्म मौत के जाल से मुक्ति चाहता है | ये बाते मेरी बहुत कडुवी भी लग रही होंगी तो यही सत्य है | हमें इस कडुवाहट के साथ जीना भी पड़ता है | उस वक़्त प्रार्थना होती कि हे प्रभु ! तू मौत को सरल कर दे | बिना कष्ट के इस रास्ते को आसान कर दे |
                  मेरी सदा यही दुवा है और प्रार्थना है कि प्रभु ! सबको दीर्घायु रख , स्वस्थ रख , और अकाल मृत्यु को हर ले , और एक पूर्ण खुशियों से भरी स्वस्थ जिंदगी हो |
                                                                                              डॉ नूतन गैरोला

      
                                                       "एक दरखास्त "

                       securedownloadCA0H43A5



मुझे डर नहीं
कब पैरों तले
धरती खिसक
दलदल में मुझको फंसा देगी |
 
मुझे खौफ नहीं
कौनसा लम्हा
मुड़ के मुझे
मौत की नींद सुला देगा |
 
खुद पे यकीं है,
'उस' की ताकत के परों पे सवार
ऊपर उठ जाऊँगा मैं |
जीने की मजबूरी में
इस दुनिया को जी जाउंगा मैं |
 
मिन्नते- ए- जिंदगी कर
पशेमानी में न रहूँगा मैं |
शब् -ए हिजराँ में ऐ मौत
तू खिद्दमत कर रही होगी |
 
रस्में मुहब्बत के तू
फिर मुझसे निभा देगी |
दर्द की बेड़ियाँ काट के
होलें से हाथ मेरा थाम लेगी |
 
अर्ज करता  हूँ
ख्याल बस इतना रखना
नाजुक कलाई है मेरी ,
उठा लेना तू मुझे
बड़ी हिफाज़त से |
 
तनहा रहे ता- उम्र 'उस'के बिना
मिला देना तू मुझे
'उस' खुदा से ||
 
डॉ नूतन गैरोला

एक अद्भुत चित्र देखा था - जिसमे एक सारस मगरमच्छ के पीठ पर बैठ के  मछली की तलाश में बीच पानी में है , वो कितना बेख़ौफ़ है और उसे अपने पंखों पे भरोसा है | इस चित्र को मैंने उन भावनाओ के साथ जोड़ कर देखा है जो ऊपर लिखी हैं | 

Monday, November 15, 2010

दीपावली और धुंवा


फोटोग्राफी  - डॉ नूतन गैरोला


अकेला  मैं 
एकटक
निहारता ,
दूर
ये क्षितिज
रात की शांति
तोडती
तड़ित ||
तीव्र ऊष्मा विस्फोट, और  हूँ मैं विचलित,
ये धुवां जो घेर रहा है
रात के सन्नाटे को
सहस्त्र निनादो के संग
चीर रहा है ||
धीरे धीरे मौन,
ये असंख्य
सासों में घुस जायेगा
और अपना व्याधि साम्राज्यवहीं बसायेगा |
रहो होशियार, 
सुन लो 
तुम इसकी चीख पुकार
न करो तांडव
बम, बारूद, 
हथगोलो का
बहने दो स्वच्छ शीतल बयार.
खुश्बू सुगन्धित 
झोंकों का,
न करंज कराल गर्जन हो.
गीत हो मृदुल 
संगीत लहरियां का
मन में धीमे बज उठते हो, ज्यूं सप्तक वीणा सितार...
न कम्पित होती हो 
धरा औ दिल-
न लौ दीये की ,
निश्छल मन हो 
स्वस्थ तन हो 
और
लौ 
हो सतत प्रकाशमान, 
 मन बन दीया, तन रुपी मंदिर का  ||


नूतन - यूं ही चलते चलते

दीपावली की रात को मैंने खींची थी कुछ तस्वीरें जिसमे ये भी एक है -- एकाकी निहारता मानस आसमान 




एक सुन्दर चित्र सन्देश

Orkut Scraps Diwali Greetings

Saturday, November 13, 2010

हम भी कभी बच्चे थे | बाल दिवस के अवसर पर |

बच्चे छल कपट से दूर भगवान का नन्हा रूप है और किसी भी समाज और देश का आधार हैं |आज का बच्चा कल का नागरिक है देश का सूत्रधार है | माँ पिता का सहारा है |  बचपन के इस रूप को ,चिल्ड्रेंस डे - बाल दिवस के रूप में  विश्व भर में अलग अलग तारीखों में मनाया जाता है | इंटरनेशनल – अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस १ जून को, यूनिवर्शल – विश्वव्याप्त बाल दिवस  नवंबर  २० तारीख को मनाया जाता है | किन्तु हमारे देश भारत में बाल दिवस बड़ी धूम-धाम से १४ नवम्बर को मनाया जाता है ..कारण.. इस दिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्मदिन है जो कि बच्चो को बेहद प्यार करते थे और बच्चे भी उनेह बहुत प्रेम और सम्मान देते रहे ..वो बच्चो के प्रिय चाचा नेहरु थे | उनकी मौत के बाद 1964 से उनकी  जयंती  “ बाल दिवस “  के रूप में मनाई  जाती है चाचा नेहरु को हमारी श्रधांजली और बच्चों को प्यार |

childrens-day-celebration

बचपन के संस्मरण

आज बाल दिवस पर मैं अपने बचपन के एक दो किस्से आप सभी से शेयर कर रही हूँ |
 क्यूंकि हम भी कभी बच्चे थे |


माथे का  दाग -


                    Crying, for a Child in War
बालमन - कहीं देखा सर्कस में रस्सी पर झूलती लड़की- मैंने चाहा की मै भी उस लड़की के जैसा कारनामा करूँ| तब में LKG में पढ़ती थी | उम्र लगभग तीन साल से चार साल के बीच | माँ ने हम दोनों बहनों को तैयार किया स्कूल जाने के लिए | मेरी कंघी पहले की और छोटी बहन के वो बाल बना ही रही थी कि मै बाहर बरामदे में आ गयी | ८-१० सीढ़ी  नीचे सड़क थी और  बरामदे में एक गोल स्तंभ था | उस स्तंभ के पास खड़ी नीचे सीढियाँ को देख जाने क्यों वो सर्कस के करतब याद आये .. और अपने ऊँगली में मैंने बदरीनाथ भगवान की अंगूठी देखी सोचा क्यों ना इसे खम्बे में अटका कर झूला झूलूँ  जोर जोर से जैसे सर्कस में  हतप्रभ करने वाले करतब देखे, उनकी तरह  | और मैंने अपनी ऊँगली सीधी  की और अंगूठी को खम्बे में फ़साने का जत्न करते हुवे लटक गयी और झूलने लगी - अरे ये क्या ! मै तो धडाम से उंचाई से १० सीढ़ी नीचे गिर पड़ी | सीधे  सीढ़ी के कोने से सर जा टकराया |जाने क्यों दर्द नहीं हुवा मुझे | सड़क पर आते जाते लोग ठिठक गए | और मैंने चाहा दिखाना कि मै कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ | सीधे खड़ी हुवी और  सीढ़ी की ओर मुडी |सीढ़ी चढ़ने लगी कि नजर गयी ऊपर वाली सीढ़ी पर जहाँ पर मेरे सर से खून का फव्वारा झड रहा था |माथे के बायीं ओर से तेज खून की  धारा फव्वारे के रूप में निकल रही थी| तब तो चोट की डर नहीं माँ की डांट के डर से सिहरन उठने लगी | दरवाजे से अंदर पहुंचते  ही माँ ने मेरे चेहरे की जगह बहती खून की धारा देखी तो घबरा गयीं | हाथ से उन्होंने मेरा माथा दबाया पूछा ये क्या हो गया , कैसे हो गया .. बड़े भाईसाहब को आवाज लगाने लगी | एक साफ़ साडी को चीर कर माथे पे पट्टी बाँधी भाईसाहब और माँ ने | छोटी बहन थी घर में और माँ ने किचन में खाना भी चढाया था अतः भैया को आवश्यक हिदायत दे कर खुद मुझे गोद में ले बहुत तेज क़दमों से पास के क्लिनिक, जो की शायद आधा किलोमीटर दूर था ले गयी|
मैं माँ की गोद में थी और मेरा सर माँ के कंधे पर था, माँ के खुले बालो से टपकता खून मुझे आज भी दिखाई देता है| दौड़ती भागती माँ डॉक्टर के पास पहुची तो डॉक्टर किसी अन्य केस में व्यस्त था  और मेरा इलाज शुरू होने में  देर हो गयी | जब मेरा नंबर आया तो डॉक्टर को टांके मारने /सिलने के लिए सुई ही नहीं मिली | और कहा कि सुई  लाने तक बच्ची के शरीर से काफी खून बह जायेगा| अतः उन्होंने मेरे घाव की पेकिंग कर दी और ऊपर से पट्टी कर दी | जिसकी वजह से उस समय मेरा खून तो रुक गया पर मेरे माथे पर एक गहरी चोट का निशान रह गया |अब आई पूछताछ की बारी, जब शाम को घर पे पूछा गया कि कैसे गिरी | मेरी गिग्घी बंध गयी| ऐसा लगा कि इस तरह से झूला झुलना और मूर्खता करना अपराध था |जाने कौन सा भय मुझे कचोटने लगा कि मार अब पड़ी तब पड़ी|
          और भय में मैंने अपने को बचाने की एक युक्ति निकली | कह दिया किसी ने मेरा हाथ खिंचा था | ये कहना क्या था कि माँ डर गयी | बोली किसने खिंचा था बता | याद कर | कहने लगे सूरत किस से मिलती जुलती थी | अब तो झूठ  बोल चुकी थी अब बचने की और सूरतें भी खतम हो गई| कह दिया कोई  देखा देखा सा है | पूछा किसके जैसा उस बच्ची ने कहा दूध वाले के बेटे जैसा | बोला कि झूट तो नहीं बोल रही है | वैसे झूठ बोलना आदतों में सुमार ना था| झूट बोला मैंने कांपते दिल से| कुछ कुछ उसके जैसा था | नहीं चाहती थी कि बात आगे बढे पर बात थी कि रुकी नहीं | और उस छोटी बच्ची को अगले दिन दूध वाले के घर ले जाया गया | धुंधली यादें है कि आँगन में उनके बच्चे खड़े थे और मैं माँ से चिपकी रो रही थी अब डर था कि उन बच्चो को मेरी वजह से मार न पड़े | जब जब वो पूछे की पहचानो मैं और डर कर जोर जोर से रोने लगती | आखिरी में दो तीन बच्चो के बीच मैंने कहा कि इनके जैसा था पर ये नहीं और उन बच्चो को भी राहत मिल गयी |
        उस दिन का वो झूठ जो अनायास  बोला, मै जिंदगी भर झूठ बोलने से डर गयी | तीन साल की थी डर ऐसा व्याप्त था कि इसे कभी भुला नहीं सकी | मै खुद को उन बच्चो का गुनाहगार मानती रही और ये सर की चोट सदा याद दिलाती रही हादसे की और आज भी मुझे झूठ से सख्त नफरत है |


दीदी का खून पीते तो मोटे होते |


                  imagination
ये जो माथे की चोट का संस्मरण लिखा मैंने, उसी सन्दर्भ में - मेरी छोटी बहन ने ऐसा खून बहते कभी नहीं देखा | शायद डरी होगी, किन्तु रात को जब पिता जी ड्यूटी से घर वापस आये तो माँ ने उन्हें मेरे बारे में बताया | मेरे सर पर लगी चोट देख कर वो बहुत व्यथित और दुखी हुवे | और मुझे गोद में ले कर बैठ गए| तभी छोटी बहन पीछे से दौड़ती हुवी आई और पिता जी पर लिपट गयी | बोली पिता जी | आप दिन में क्यों नहीं आये | दीदी को चोट लगी थी | कितना खून बहा - उसने हाथ फैला कर कहा इत्नाआआ साअराआअ बाल्टी भर के| आप होते तो आप कितना खून पीते और कितने मोते हो जाते | खून पीते ?? पिता जी की एक नाराजी से भरी  थपकी उसके सर पर - याद है


  मुर्दे की खीर 


               crying_child

बचपन कितना सरल और भोला होता है..झूठ सच नहीं जानता || जिसने जैसा बताया मानता है  | विस्मित होता है किन्तु विश्वास करता है  क्यूंकि उसके लिए दुनिया की हर चीज नयी और विस्मय से भरी होती है |

एक रोज घर में, छुट्टी पर पिताजी और सभी  थे | किन्तु दिन में  ( र ) भाईसाहब जी, जो कि तब पांच साल के रहे होंगे बाहर खेलने गए |थोड़ी देर बाद किसी बच्चे कि हृदयविदारक चीख और रोने कि आवाज से सब चौंक गए | भाईसाहब (र) रोते हुवे घर आ रहे थे | उनका मुँह खुला का खुला था | पिता जी ने कहा, क्या हुवा ? क्यों रो रहे हो ? किन्तु भाईसाहब और जोर जोर  से रोने लगे - बेहद भयभीत थे और उनका सारा शरीर अकडा हुवा था पिता जी ने जैसे ही  (र) को छुवा वो पैर भी पटकने लगे | सब घबरा गए कि कही सांप ने तो नहीं काटा होगा ? क्या हुवा होगा ? पूछते रहे पर वो सुन भी नहीं रहे थे, अब तो मुँह  भी खुला था और पैर भी पटक रहे थे  और पूरा शरीर ऐंठा जा रहा था और डर से पसीने भी छूट रहे थे - पिताजी ने फिर गुस्से में कहा  ताकि वो अपनी समस्या के बारे में बताएं  बोल क्या हुवा | तो (र)भाईसाहब  के मुंह से एक वाकया फूटा – “ मुर्दे की खीर “ |मुर्दे की खीर जैसे शब्द  से सभी नावाकिफ  थे, सब घबरा गए - भैया ने बाहर की तरफ इशारा कर के बताया मुर्दे की खीर | बहुतेरी कोशिश की गयी कि वो बताएं कि क्या हुवा उनके साथ  ..लेकिन डर के मारे उनका शरीर  अकडा हुवा था बस अब एक ही शब्द बोल कर चिल्ला रहे थे - मुर्दे की खीर - फिर एक जोर की थपकी पडी गाल पे | एक दम भाईसाहब को होश आया | माँ भी बोली कि  बताओ क्या हुवा क्यों इतना रो रहा है | भाईसाहब ने बाहर इशारा किया मुर्दे की खीर और डर के मारे माँ की गोद में छुप गए जैसे अब मुर्दे की खीर से कोई अनर्थ होने वाला है और चिल्ला रहे थे मुझे बचाओ |
               पिता जी बाहर गए कुछ बच्चे  वहाँ पर भयभीत थे | पिता जी ने उनसे पूछा क्या बात है बच्चो क्यों डर रहे हो | तब एक बच्चा फटी फटी आँखों से बोला अंकल जी, अभी यहाँ से लोग एक मुर्दे को उठा कर ले जा रहे थे और  उस पर चावल डाल रहे थे |
                   तब पिता जी ने सड़क पर देखा तो बहुत चावल के दाने फैले हुवे थे | चावलों को देख पिता जी ने  कहा तो क्या हुवा चावल के दानो से ? बच्चो ने बताया की एक बहुत बड़े भाईसाहब यहाँ पर खड़े थे उन्होंने कहा की बच्चो ये चावल के दाने मुर्दे की खीर हैं | ये मुर्दे का खाना है | इस लिए इस बात का ख्याल रखना कि इस पर पैर न लगे नहीं तो मुर्दा उस बच्चे को खा जायेगा  | ( किसी ने बच्चो के साथ मजाक की थी ) बच्चों ने बताया कि उस समय वो लोग सड़क के उस  पार खड़े थे | सड़क को पार करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी | एक एक कदम उन्होंने सड़क पर बैठ बैठ कर चावल के दानो को देख कर कर रखा जो कि बहुत कठिन था | किन्तु बेचारे ( र )का पैर एक चावल के दाने पर छू गया था ..उसके साथ रास्ता पार करते उसके दोस्त (म ) ने भी देखा | म चिल्लाया और र घबरा गया वह चीखता हुवा  घर भागा |बच्चे बोले - अंकल  हमने तो सड़क पार कर दी पर र का अब क्या होगा?  पिता जी के हँसते हंसते बुरे हाल हो गये | किन्तु र भाईसाहब को मुर्दे की खीर के भय से आजाद करने में समय लगा |

घटना के समय मैं बहुत छोटी थी | जो सुना वो बताया |
 
बुढ़िया और झोपड़ी

जब मैं छोटी  थी -मेरी बचपन में लिखी एक कविता |


 
               teenage
अरे ! वो जलते दीये
किसने बुझा दिये हैं ?..
वह वृद्धा उस झोपडी में
उस घुप्प अन्धकार में ?
जिसने कल्याण किये हैं ..||


वो अट्टालिका वो इमारते
जगमगाती रोशनी है जिसमे,
असंख्य विद्युत बल्ब हैं , पराया
रक्त चूस कर जिसमें ||


वह वृद्धा उस अन्धकार में
उठती कुछ टटोलती |
गोद में ले एक रोग पीड़ित
परोपकार का बच्चा ||


उठती वह खांस कर,
कुछ कदम लड़खड़ा कर |
वापस लौट आती है वो
इमारत में झाँक कर ||


आज अब वो झोपड़ी
निरंग और सुनसान है |
बुढ़िया का न बच्चे का
उस झोपड़ी में कहीं
नाम और निशान है ||


काश !ऐ इमारत वालो तुम में
कुछ दया भाव होता |
तुमने बंद खिड़की को खोल
कुछ प्रकाश पुंज बिखेरा होता |
तो आज इस धरती पर एक
पवित्र आत्मा का तो निवास होता ||


द्वारा .. Miss Nutan Dimri / डॉ नूतन गैरोला


यह कविता मै, जब १५ साल की थी, तब लिखी थी 
पुरानी डायरी के पन्नो से उतारी है |
और डायरी के वो पेज भी मैंने फोटो में डाले हैं 
पुराने यादे - कविता बचपन की  


 बाल दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें और बधाइयाँ

 


99galleries.com | Forward This Picture To Your Friends