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Tuesday, November 15, 2011

ये रास्ता कितना हसीन है - डॉ नूतन गैरोला


***ये रास्ता कितना हसीन है***

my_way_to_neverwhere_by_Dieffi

तू अपनी खुद्दारी की राहों पे चल निकल
जो ने तूने ठानी थी तू कर अमल|
ना ठुकरा अपनी झोपडी पुरानी ही सही
तू ईमान के बदले में न खरीद महल |
जीना तू गर जीना सर उठा के
बेईमानों का भी दिल ईमान से जाए दहल|
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीने की जरूरत हो जितनी तू उसमें बहल|


तू नवाजिश हो पाकीजा हो पाक पानी सी
खुद को बचा आज फैला है तिश्नगी का दलदल|

जिन दरख्तों पे खिलते हैं फूल ना ईमानी के 
तू चिंगारी बन कर ख़ाक कर दे वो जंगल | 
हो बुलंद इकबाल तेरा जरा तू संभल
नेकी की राहों पर चल के आगे निकल |
समेट ले खुद की इच्छाओं को
जीनेभर की जरूरतों में तू खुश हो बहल ||....
डॉ नूतन गैरोला २३ :४६ १५ -११- २०११

Friday, November 11, 2011

मौन बातें - डॉ नूतन गैरोला









बातें
बेहिसाब बातें
हलचल मचा देतीं हैं
नटखट मछलियों सी
मन के शांत समंदर में
जबकि
भीतर गुनगुनाती है, गाती हैं शांत लहरें
और शांति की समृद्धि से तर खुशियाँ भरपूर रहती है
मेरे शब्द रहते हैं मौन
बेसुध मैं अनंत शांत यात्रा में
होती हैं मौन बाते खुद के मन से
लेकिन जब
मन रहता है मौन
और शब्द बिन आवाज
बोलने लगते हैं कुछ दिमाग
अनजान जो खामोश रहस्यों से
छिड़ जाता है एक संग्राम 
उनके कटु शब्दों का
मेरे मौन से …
तब
बलिदानी होता है
मौन |
और शब्दों को
स्याही का  
आवाज का अम्लिजामा देता है 
उन अस्थिर अशांत मन में
करता है शांति का पुनर्वास
और  
अपने शांत मन का चैन खो
उनको चैन देता है |…



डॉ नूतन गैरोला


लिखी गयी – ११ / ११ /११  ११:११ …बहुत आश्चर्य हुआ जब लिख कर फेसबुक में पोस्ट कर रही थी कम्प्युटर ११:११ am 11-11-11 तारीख दिखा रहा था … याद  आती रहेगी ये तारीख ….. हां कविता लिखते समय अन्ना जी के मौन व्रत की याद आई … लेकिन वह अलग था ..


फेसबुक पर मेरी पोस्ट का हिस्सा


१)

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नफरतों से कह दो हमसे दूर रहें वो
प्रेम से हमें फुर्सत कहाँ
उसमे ही खो कर हमें
खुद को पाना है वहाँ……

 
२)
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जीवन दर्पण कांच का, मोह धूल लग जाए,
धुल जाए ये धूल जो, तुझको तू मिल जाए|.
 
 
३)
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एक दिल हो जो न हो कठोर कभी - दयालू हो
एक स्पर्श हो सदा जो कोमल हो - सहारा बने
अग्नि न बने जो झुलसाये किसी को - छाया हों
भावना हो जो कभी चोट न दे किसी को - मरहम बने |
 
नूतन

Sunday, October 30, 2011

कविता और रोटी – डॉ नूतन गैरोला -३०अक्टूबर २०११ १७:४०


     Roti


यूं तो कविताओं में अक्सर
जिक्र होता है भूख का
और भूखे की रोटी का,
लेकिन जब भी मैं रोटी बनाती हूँ
मन रसोई की खिड़की से कहीं बहुत दूर होता है
और आँख होती है तवे पर रोटी पर ,आदी हूँ ना|
मन बीते समय की सड़क पर
भागता जाता है आज और  दसकों पीछे तक
और हर पड़ावों पर रखी पोटली से निकालता है यादों का आटा
वेदना और आनंद से पूरित संवेदनाओं से सिंचित कर
मन बेलता कविताओं की रोटी कई कई प्रकार की
आड़ी तिरछी,
फिर चुन लेता है, उनमें से सबसे सुन्दर आकार
और उस बेहद सुन्दर आकार को
व्याकरण की आंच पर पकाता है जरूरत भर
कि कविता की रोटी मन के संग फूल कर फुल्का हो जाती है ..
और फिर भावनाओं की चटनी, शहद. दही सब्जी,
के साथ परोसी और चखी जाती
रोटी का स्वाद लजीज वह रोटी दिल को अजीज ..
उधर तवे पर पकी रोटियां परोसती हूँ ..
जो सबकी भूख को कर देती है शांत
और कविता की बनी सुघड रोटी मन में ही  दम तोड़ लेती है
पन्ने पर आकार नहीं लेती है,
समय नहीं मिलता(बहुत दुख  है) कागज़ की थाली पर कलम से रोटी को अतारने का हाँ समय मिलता या दे दिया जाता तभी
अगर वह भूखों की भूख को मिटा सकती
बेरोजगारी में रोजगार दे सकती
तब बड़े बुजुर्ग कहते बेटी तू कविता लिख ..
किसी को मुझसे कविता की अपेक्षा भी नहीं
लेकिन मुझे दुःख नहीं..
कल फिर चूल्हा जलाऊँगी
तवे पर होगी एक रोटी भूख की
और मन में एक रोटी बेहतरीन कविता की बनाउंगी|


डॉ नूतन गैरोला

Friday, October 21, 2011

नागफनी और गुलाब - डॉ नूतन गैरोला २१-१०-२०११ १६:२५

  
नागफनी और गुलाब

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दूर दूर रहते थे नागफनी और गुलाब,
था एक घनिष्ठ मित्र जोड़ा -
एक दिन नागफनी एकांत से झुंझला कर
ईर्ष्या से बोला -
ऐ गुलाब!!
घायल तू भी करता है अपने शूलों के दंश से
फिर भी सबका प्रिय है तू अपने फूलों और गंध से|
तू दुलारा माली का कहते हैं बगिया की तुझसे शान है
लेकिन मुझमे ही ज्यादा ऐब हों ऐसा मुझे  ज्ञान नहीं |
तुम ही बोलो क्या मुझमे ही ढंग से जीने का ढंग नहीं |
जबकि मुझ पर पल्लवित पुष्प भी कुछ गुणी और सुन्दर कम नहीं |
फिर भी मैं निर्वासित हूँ, माली द्वारा परित्यक्त हूँ |
एकांत में जीने के लिए मैं क्यों कर इतना अभिशप्त हूँ|
भूल से उग आया था बगिया के अंदर मैं
तब उखाड बाहर फेंका गया था मैं निर्जन बंजर में|
मेरा ना कोई माली ना मुझको कोई छाँव है
और तू जी रहा है बगिया के भीतर सुन्दर फूलों के गाँव में |
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सुन कर गुलाब ने चुप्पी तोड़ी|                          
धीमे से बोला -
मुझको करता है माली बेहद प्यार, इससे मैं अनभिज्ञ नहीं
फिर भी जाने क्यों  मैं माली का हृदय से कृतज्ञ नहीं |
वो कहतें हैं कि उनकी बगिया की शान हूँ मैं
मुझ बिन उनके गुलदस्ते में आती जान नहीं |
तोड़ लिया जाता है मेरे पल्लवित सुमन को
सौगात बना कर  हर बार लुभाया जाता है प्रेमियों के मन को |
मेरी सुंदरता, मेरी कोमलता को वो करते हैं अर्पण
जहां होते हैं उनके श्रधेय आराध्य के चरण |
भाग्य के मीठे फल की उनकी कामनाओं पर
चढ़ा दिया जाता हूँ देवताओं के शीश पर,
मेरे खिलते सुकुमार सुमन 
चढ़ जाते हैं बलि की भेंट बन श्रद्धा सुमन|
 
इस सबके बीच मुझे बस सिर्फ खोना है |
उनकी इच्छाओं के लिए मुझे तो सिर्फ अर्पित होना है|
मेरी  दुनियाँ की परिधि है सीमित संकुचित इतनी
जैसे मेरे तनों  पर मेरी पत्तियां चिपकी हुवी |
मुझे नहीं मिल पाया मेरा खुला आसमान मेरी जमीन
मैं बंद दीवारों में घुटता रहा हूँ  तू कर  यकीन |
जड़ें मेरी सिमट कर आश्रित हो गयी हैं उनकी दया पे
उनके रखरखाव के बिना लटक कर गिर जाऊँगा धरा पे|
 
ऐ नागफनी !!                   
देख तू ना बंधा है इस सुन्दर दिखने वाली कैद में
मिला तुझे अपना एक विस्तृत संसार माली रुपी मोक्षद से|
खुले आसमान ने जगा दी है तेरे जीने की तीव्र  इच्छा व जीवटता
अकेले ही तू ऋतुवों के आक्रोश से रहा लड़ता खटता|
अब माली के बिना तपिश में जीने के लिए ढल गया है तू 
अपनी हरियाली के भीतर नीर का शीतल समंदर बन गया  है तू|
जुझारू तेरे निहित गुण से ऊर्जस्वी हो गया  है तू
प्रस्फुटित होते पुष्प तुझ पर, खुद मुकुलित हो गया है तू|
पुष्प तेरे भले ही लुभाते हो सभी को
कोई तेरे पुष्पों को तोडेगा, नोचेगा या अर्पित करेगा
इस बात का तुझे डर नहीं
इस विछोह का तुझे कोई भय तो नहीं |
इसलिए हे नागफनी!
तू माली को धन्य कर
अपनी धरती से तू नाता गहरा कर
और बंधनमुक्त जीवन को महसूस कर|
 
गुलाब की बातों पर नागफनी खुशी से मुकुराया
नागफनी को खुश देख गुलाब भी मुस्कुराया |
खुले में मंद बयार चलने लगी, नागफनी आनंद लेने  लगा|
और गुलाब, वापस बगिया के अंदर ठहरी हवा में सिहर कर  सिमट गया|
 
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डॉ नूतन गैरोला    २१- अक्टूबर  - २०११

Monday, October 17, 2011

वह अनजान स्त्री - डॉ नूतन गैरोला

   
                       ghunghat


     आज भी याद आता है
    पोस्टमार्टम कक्ष में
    जब लायी गयी थी वो हमारे सामने
    बेहद खूबसूरत कमसिन थी
    पीली साड़ी उस पर चटख नारंगी फूल
    लावण्यता से भरपूर रूप खूब निखरता था|
     कोंटरास्ट की चोली
     शायद रंग नीला था ..
     माथे पर एक बड़ी लाल गोल बिंदी
     चमकता कुमकुम था|
     भरभर चूड़ी हाथ, मांग भर सिंदूर
     दमकता सुहाग उसका था ..
     पर जैसा दिखता था सबकुछ
     वैसा कुछ भी तो ना था ..
     बात बेहद दुखद थी 
     वह सिर्फ एक ठंडा जिस्म थी ..
     एक दरख़्त पर एक फंदे से  
     फांसी पर झूली थी  ..
     क्या सच था क्या झूठ था
     उसकी ख़ामोशी के संग सच भी निःशब्द था..
     एक चाक़ू बेरहम सा पर जरूरी 
     चीर गया था उसके जिस्म को कई कोनों से
     पेट, आतें, दिल, फेफड़े, गुर्दे, मांसपेशी, चमड़ी सब व्याख्या कर रहे थे     मौत के कारण  का 
      खूबसूरती के नीचे छुपा सत्य उसके उत्तकों के संग बाहर आ कर उघड़ गया था ..
      तब बोले थे ज्यूरिस के प्रोफ़ेसर देखो सच्चाई
      मौत फांसी से नहीं, मौत के बाद फांसी लगाई 
      हाथों की चमड़ी के नीचे जमे खून के थक्के थे
      हैवानों ने उसके हाथों को कितना कस के मरोड़ा था, देख हम हक्के बक्के थे|
      शायद मरने तक उस पर जकड़ा गया था शिकंजा
     और गालों के भीतर  होठो में छपे उसके स्वयं के दांतों के निशान
     बताते थे उसकी साँसों को उसकी आवाजों को जोरों से मुँह दबा के रोका था
     गले पे कसे गए शिकंजे के थे गहरे निशान
     उसकी उखडती साँस को
      बेरहमी से घोटा गया था ….
      महज उन पिशाचों की हवस के लिए
      उसने अपने परिवार अपने शरीर और आत्मा को खोया था और खोया था
      एक माँ ने बेटी, बच्चों ने अपनी माँ और पति ने अपनी चाँद सी पत्नी|
      उसकी आँखों के चमकते सितारों को
      सदा के लिए बुझा दिया गया था
      लाश को उसकी पेड़ पर फांसी पर झुला दिया गया था
      फिर एक नया मोड एक नयी कहानी 
      मौत के बाद भी एक इल्जाम उसके मत्थे मङ दिया गया था |
      कि जिन्दा रहने से वो घबराती थी
      बुजदिल थी वह
      इसलिए वह आत्मघाती बन सबसे नाता तोड़ गयी |

      डॉ नूतन गैरोला – १७- १० - २०११
            

 
   ये सच ही तो है और कितना भयानक सच… एक देह जिसके अरमान थे, जीवन अभी बचपन से उठ कर खिल रहा था - गाँव की वह विवाहित अति सुन्दर बाला की सुंदरता उसे किस कदर  हैवानों के आगे लील गयी… आज भी मुझे याद आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं …. उसके जिस्म के टुकड़े होते हुवे देखे.. एम् बी बी एस के तृतीय वर्ष में उस दिन का अनुभव हमारे लिए नया था ..उस के बाद तो आम हो गया| 

                                         मोर्चुरी का पहला दिन



                 याद आने लगता है मुझे मेडिकल कॉलेज और एम्,बी.ब.एस कोर्स का तीसरा साल / दूसरा प्रोफेसनल … हमें १५ - २० बच्चों के ग्रुप में बाँट लिया जाता था - और स्थान – मोर्चुरी - जहाँ रहस्यमय मौत या सडन डेथ के कारणों का और मौत के समय का पता करने के लिए मरणोपरांत शवपरिक्षण (postmortem) किया जाता है| यह महिला सुन्दर पीली साड़ी में ऐसा लगता था जैसे अभी बोलती हो… बस जरा गले की ओर नजर ना पड़े तो| हम सब का दिल भर आया था| और उसकी बातें कर रहे थे वो हमारे लिए अनजान थी और मात्र एक शव थी जिस में हम जीवन के अंश ढूंढ रहे थे|
     
            दूसरा शव एक छोटे बच्चे का था उम्र लगभग ५ साल - बैलगाडी के पहिये के नीचे सर आ जाने से मौत हुवी थी||
    
             तीसरा शव दो हिस्सों में विभाजित दो टुकड़ों में, रेलवे क्रोसिंग पर यह शव मिला था|

        और चौथा शव - एक प्युट्रीफाइड लाश एक  पुरुष की - पेट  सडती हुवी गेस से  गुब्बारे की तरह फूल गया था - पेट के अंदर गेस का प्रेशर इतना ज्यादा था कि जीभ पूरी मुँह से बाहर निकल कर फूल गयी थी| सड़ी बदबू से बुरे हाल हो रहे थे| हम लोग वहाँ से भागना चाहते थे किन्तु टीचर का डर था| रेजिडेंट्स वहाँ खड़े थे सों बाहर की खुली हवा में जा नहीं सकते थे .. नाक पर रुमाल लिए थे| पेट उलट रहा था | कि दो आदमी बहुत बड़े चाक़ू ले कर आये एक ने उसके पेट पर उलटे चाकू से हल्का निशान लगाया ..ताकि इन्सिजन की लाइन को हम भी समझ सके..तब उसने पेट पर जैसे ही गहरा चाकू घुसाया,  पेट से ब्लास्ट करती हुवी सड़ी हवा पुरे वेग से बाहर छत पर टकराई और साथ में कीड़ों / मेगेट्स का फव्वारा खुल गया ..कीड़ों की बारिश सी होने लगी… सभी विद्यार्थी कमरे से बाहर भागे …किन्तु दरवाजे में रेजिडेंट टीचर बाहर से आ कर खड़े हो गए| हुक्मनामा हुवा ..अंदर जाओ -- मेरे सभी साथियों का चेहरा घृणा से लाल और शरीर बदबू से बेहाल हो रखा था … हम लोग कमरे में उल्टियां कर रहे थे और विशेषग्य लोग शव  से विसरा के सेम्पल कलेक्ट कर रहे थे --- कैसे थे वो दिन .. मुस्‍कान  
-- डॉ नूतन गैरोला १७ – १० – २०११    23:38

Sunday, September 25, 2011

“मास्टर साहब” द्वारा - डॉ नूतन गैरोला

 
                                       मास्टर साहब
                  mastar sahab
सर ! ..फीस तो सिर्फ पिच्चासी  रूपये हैं … मैंने तो आपको पांच सौ रूपये का नोट दिया है … बाकी  रूपये मुझे माँ को वापस करने हैं … प्लीज़ सर वो रूपये जरूरी हैं … पर मास्टर साहब जी थे कि कोई जवाब नहीं दे रहे थे और कॉपी चेक करने में तल्लीन थे … सुधीर अपने मास्टर साहब जी से विनती कर गिङगिङा रहा था, लेकिन गुरु जी के कानों में जूँ भी ना रेंक रही थी …. थकहार कर सुधीर स्टाफ रूम से बाहर निकला जहाँ उसके अन्य मित्र सुएब, रतन, देबोषीश,प्रांजल  खड़े इन्तजार कर रहे थे … सुधीर को देख कर उनकी बांछे खिल आई …
                            “अब आज तो किसी अच्छे रेस्टोरेंट में जा कर स्नेक्स लेंगे| चल यार, चार पीरियड छोड़ देते हैं, आज “सिटी इंट्रो” में नयी रेसीपीस चखेंगे   और वही से गेम पार्लर चले जायेंगे फिर छुट्टी के समय घर पहुँच जायेंगे”- सुएब बोला|  …. सुधीर का चेहरा उतरा हुआ था|  देबोषीश अचंभित हो कर बोला - "क्या बात है सुधीर तेरा चेहरा इतना क्यों उतरा हुआ है |"  सुधीर लंबी सांस ले कर बोला –" देबू, क्या कहूँ यार मास्टर साहब ने तो मेरे पैसे लौटाये ही नहीं| तुम लोग चले जाओ आज मुझे पैसे वसूलने हैं मास्टर साहब से, मैं क्लास में ही हूँ|" वह क्लास की ओर मुड गया|
                             दूसरे दिन स्कूल की प्रार्थना से पहले चारों दोस्त फिर एक थे .. सुधीर उनके ऐश की बातें सुन कर दुखी था कि कल उसको मास्टर साहब की वजह से कितना नुक्सान हुवा| आज मास्टर साहब से रूपये ले कर क्लास बंक कर दूँगा| वह सोच ही रहा था कि तभी पीछे से आवाज आई – “ सुधीर क्या तुने कल की क्लास अटेंड की|” कक्षा का पढाकू चश्मिश( अनुपम) उस से पूछ रहा था| सुधीर बोला – हाँ, बोल क्यों पूछ रहा है? अनुपम बोला - कल तबियत खराब थी सो स्कूल नहीं आ पाया था कल| तू नोट्स साफ़ लिखता है और तेजी से भी पूरा लिख लेता है| तेरे लिखे नोट्स चाहिए| पर हाँ ! अगर तुने क्लास अटेंड की हो तब ना|      सुधीर बोला - हाँ हाँ, कल मैं क्लास में ही था और उसने अपना सीना तान कर अनुपम को नोट्स कॉपी करने के लिए दिए|  वह प्रार्थना के बाद अपने पैसे वसूलने की मंशा से क्लास में जा बैठा -- मास्टर साहब अटेंडेंस लगा रहे थे| उसका  नाम आने पर मास्टर साहब ने  चश्मा चढा  कर एक तीखी नजरों से उसको देखा ..वह डर सा गया पूछने की हिम्मत जवाब सी दे गयी…
                             मरता क्या ना करता आखिरी पीरियड का इन्तजार किया| साथी तो फिर बंक कर चुके थे … उसे मास्टर साहब पर बहुत गुस्सा आ रहा था| उसने मास्टर साहब को आखिरी पीरियड में ढूंढ निकाला| बोला सर मेरे पैसे - मास्टर साहब बोले - कल क्लास में मिलना आज तो पैसे जमा कर चुका हूँ | सुधीर अपना सा मुँह ले कर रह गया|
                              अगले दिन, सुबह एसेम्बली के समय अनुपम सुधीर के पास आया और उसके नोट्स वापस करते हुए बोला, सुधीर तू इतना अच्छा लिखता है और तू तो बहुत इंटेलिजेंट भी है, फिर क्लास से क्यों भागता फिरता है| सुधीर बोला…” अपनी बात छोड़ अनुपम, मुझे तुम सा किताबी कीड़ा नहीं बनना” अनुपम बोला ठीक है तुझे जैसा लगता हो तू वैसा कर, लेकिन परीक्षा  के अभी पन्द्रह  दिन भी शेष नहीं रह गए, आजकल तो बहुत आवश्यक चीजे पढाई जाती हैं जो इम्तिहान के लिहाज से जरूरी है| तेरे नोट्स मेरे लिए बहुत काम के हैं|यह कह उसे  धन्यवाद करता हुआ अनुपम चला गया .. अनुपम की बात से सुधीर को लगा कि  वह भी अच्छा लिखता है.. क्लास के टॉपर को उसका लिखा पसंद आया  है…उसे अपने पर खुशी हुई …और एक ख्याल उसके दिल में लहरा गया कि - वह कक्षा में पढाई के मामले में अब्बल रह सकता है ..अगर वह चाहे तो|
लेकिन अगले ही पल उसके जिगरी दोस्त पहुँच गए बोले - आज मेट्रो में थ्रिलर मूवी रिलीज़ हो रही है, काफी मजा आयेगा ..वही स्कूल के इंटरवल के बाद वहाँ जाएंगे| आज तो सुधीर फाइनेंस करेगा टिकट|
सुधीर बोला – “ ठीक है आज उस खडूस मास्टर साहब से अपने रूपये ले कर रहूँगा| “
वह मास्टर साहब के कमरे के बाहर पहुंचा --- मास्टर साहब बड़ी तेजी से रजिस्टर ले कर क्लास की और बढ़ गए| सुधीर सर सर आवाज लगाता रह गया| खैर, मास्टर साहब के पीछे पीछे वह क्लास में पहुँच गया जहाँ उपस्तिथि दर्ज होने के बाद पाठ्यकर्म शुरू हुआ और रिविजन के लिए कल के पाठ से प्रश्नोत्तरी  की गयी| कल कक्षा में उपस्तिथ रहने की वजह से सुबोध बडचढ कर सही जवाब देने लगा|
मास्टर साहब ने पूरी क्लास के आगे सुधीर की तारीफ की और उसे कहा  कि सुधीर उन छात्रों के लिए भी एक प्रेरणा का स्त्रोत होगा जो अपनी शैतानियों की वजह से सबका सिरदर्द बने है और गन्दी आदतों का शिकार हुए  हैं …समय रहते आप भी सुधीर की तरह पढाई में मन लगाये तो आप भी क्लास मे सही जवाब दे सकते हैं … सुधीर के दोस्तों की चौकड़ी में खलबली मच गयी ….
छूटते ही साथ उन्होंने सुधीर को कहना शुरू किया और मिस्टर पढाकू जी!! तुम कब से किताबी कीड़े बन गए  दोस्तों को भी नहीं बताया … सुधीर बोला- नहीं यार! वो मासाब का दिमाग खराब हो गया है … उन्होंने मेरे रूपये दबा रखे हैं …उनकी नियत में तो मुझे खोट दिखाई देता है .. तभी वह बिन बात मेरी तारीफ़ कर रहे थे ….जब मैं अपने पैसे ले लूँगा तब वो मेरी तारीफ़ कैसे करेंगे,  देखता हूँ| लेकिन दिन यूं ही निकल गया| मासाब ने पैसे को ले कर सुधीर को घास नहीं डाली, सिर्फ यही कहा की क्लास के बाद दूँगा …. लेकिन क्लास के अंत में मासाब नहीं दिखाई दिए वह उन्हें ही ढूँढ रहा था  कि क्लास की लड़कियों का समूह आ गया| वो कह रही थी सुधीर, तुम में तो कमाल की एनालिसिस पावर है, लगता है तुम पढ़ने में मन लगाने लगे हो …क्या कुछ टॉप वोप मारने का इरादा है ( थोडा व्यंग था उस जुबान में )…पर फिर गंभीर हो कर एक लड़की बोली कि अगर तू क्लास में अच्छा निकले तो हम सब को भी खुशी होगी …और आंटी को भी खुशी मिलेगी .. सुधीर बाल झटक कर हुह कहता हुआ  निकल गया किन्तु मन ही मन सुधीर को अच्छा लगा|  उनकी बात सुधीर के मन घर कर गयी … सोचने लगा कि माँ हमेशा उसको ले कर दुखी रहती है … लोगों के कपडे प्रेस करती है दिन भर जहाँ तहां के कपडे धो कर गुजारा भर कमाती है … माँ उसे बहुत प्यारी है  वह भी तो माँ को बेहद प्यार करता लेकिन घर की गरीबी उसे  बिलकुल नहीं सुहाती … इसी लिए तो वह अपने दोस्तों के साथ क्लास से भाग जाता है .. बाहर जा कर उसे दुनिया की लक्जरी इन्जॉय करने का मौका मिलता था और माँ ? माँ चाहती थी की वह पढ़ लिख कर इस काबिल बने की उसे जीवन में आगे कोई कमी ना हो वह माँ के लिए क्लास जाता और अपने लिए क्लास  बंक करता … उसे एहसास सा होने लगा की अगर वह थोड़ी मेहनत करे तो उसकी  माँ की आँखों में खुशियां आ जाएँगी … और अभी तो सिर्फ दस दिन की ही मेहनत है .. इम्तिहान होने के बाद तो मौज ही मौज होगी … वह घर जा कर किताब खोल कर पढ़ने और मनन करने लगा … आज का जो पाठ पढाया था, कल का जो पढ़ा था, उसने पढ़ा| उसे बहुत रोचक लगा| फिर तो वह पन्ने के पन्ने पलटता गया मनन करता, समझता, हल करता, गणित उसे पहेलियों जैसी लगी, जिनके उत्तर ढूंढना मजेदार लगता और वह गणित के फोर्मुले सोचता, अपलाइ करता और गणित की गुत्थियों को सुलझाता … उसे बहुत आनंद आने लगा ..कुछ प्रश्न भी उसके दिमाग में अटके पड़े थे .. उसने ठान ली कि ऐसे इन्हें छोड़ नहीं दूँगा, कल सर से पूछूँगा क्लास में… उसके मन में एक नया उत्साह समावेश कर गया … उसे लगा क्यों नहीं उसने पढाई की ओर पहले ध्यान दिया |
   अब वह स्कूल में एक नए जोश के साथ था उसका पूरा ध्यान पढाई की ओर था …लेकिन दिल में मासाब के द्वारा उसके रूपयों को वापस ना देना बहुत अखर रहा था … आज क्लास में अन्य विषयों के अध्यापक भी उस की विषय को ले कर गहरी रूचि और अध्यन के प्रति झुकाव देख बेहद खुश थे ..और सही जवाब देने पर उसे  यदा कदा शाबास कह रहे थे| उसे बेहद अलग अनुभव हुवा …जहाँ आये दिन उसकी बेंत से पिटाई होती …उसके घर शिकायत जाती …उसकी माँ रोते हुवे आती और जब तब उसे नालायक कहा जाता …वही अपने लिए शाबास सुन कर दिल खुशी से और उर्जा से भर रहा था|
         किन्तु वह अपने रुपयों के लिए आखिरी पीरियड में फिर मासाब के पास गया … मासाब बोले क्या बात है, इस समय मेरे पास कैसे आना हुआ … सुधीर को लगा जैसे मासाब जानबूझ कर उसके रूपयों के बारे में भूल गए हैं …शायद उनके मन में चोर बैठ गया है….वह बोला सर मेरी फीस के बचे रूपये मुझे वापस चाहिए …. मासाब अगले बगले झाँकने लगे …इस जेब में हाथ डाला… उस जेब में हाथ डाला ….   और एक, हज़ार रूपये का नोट निकाला …. बोले आज तो टूटे रूपये  नहीं है मेरे पास| तुम कल शाम को मिलना ….और हाँ तुम जब भी रूपये लेने आओ क्लास अटेंड कर, आखिरी खाली पीरियड में आना … अगर बीच क्लास में पैसे की बात करोगे तो वह रूपया तुम्हें वापस नहीं होगा और अगर किसी भी पीरियड में तुम उपस्थित नहीं दिखे तो समझ लो तुम्हारा रूपया गया  ….     जी सर कह, वह मन मसोस कर वापस आ गया|
             अगले दिन स्कूल में सुधीर का चौकड़ी ग्रुप इकठ्ठा हुवा ..उसके दोस्तों ने उस से पूछा कि क्या हुआ मासाब ने तेरे रूपये वापस किये - सुन सुधीर फट पड़ा - बोला यार ये भी कोई गुरुजन है .. आक्खा भारत का चोर, मेरे रूपये दबा लिए अब वापस करने का कोई इरादा नहीं… तिस पर अगर मैंने क्लास के आगे कभी रूपये की बात करी तो वो कह रहे हैं  कि फिर वो  मुझे पैसे नहीं लौटायेंगे …. मन तो करता है कि इनकी शिकायत प्रिंसिपल से कर दूँ| जब नौकरी जायेगी तब पता चलेगा पैसे की कीमत …. दोस्त बोले फिर देरी किस बात की चलते हैं प्रिंसिपल ऑफिस … सुधीर बोला छोड़ यार आजकल पढाई का जोर चल रहा है…खाम खाम इस लफड़े में नही फंसना … इम्तिहान के बाद जरूर इनकी शिकायत प्रिंसिपल से करेंगे … अभी भी देख लेता हूँ शायद मासाब सुधर जाएँ, शायद उन्हें कुछ समझ आये ..वो मेरे पैसे वापस कर दें| फिर तुम्हें पार्टी दूँगा … दोस्त बोले तो क्या करें आज ….सुधीर बोला तुम जाओ बंक में या मेरे साथ क्लास अटेंड करो लेकिन में बंक कैसे कर सकता हूँ ..पढाई तो जायेगी ही मेरे तो पैसे भी डूब जायेंगे|… दोस्त बोले ठीक है और क्लास की ओर चल दिए | इसके बाद भी सुधीर दो तीन बार अपने मासाब से मिला लेकिन वह हर बार कुछ बहाना बना देते शायद उनके मन में चोर आ गया था|
अब इम्तिहान नजदीक था.. तीन  दिन शेष …सुधीर रात दिन एक कर रहा था सिर्फ और सिर्फ इम्तिहान की तैयारी … उसने सोच लिया कि रूपये नहीं मिलने वाले….जरूरत पडने पर टेडी ऊँगली से घी निकालना पड़ेगा...लेकिन अभी परीक्षा की तैयारी में मन लगाना होगा|
                   माँ भी उसकी मेहनत से अवाक थी और बेहद प्रसन्न …रोज भगवान की पूजा अर्चना कर सुधीर को  तिलक लगाती ..दही चीनी से उसका मुँह मीठा कर  परीक्षा के लिए भेजती| सुधीर भी अपनी परीक्षा से खुश था … उसके हिसाब से पेपर अच्छे हुवे थे ….
                    परीक्षा खतम होने के बाद सुधीर स्कूल गया वो फिर मासाब से पैसे लेने गया … तो पता चला के मासाब छुट्टी ले कर एक महीने के लिए बाहर गए हैं …  सुधीर ने सोचा यह भी एक इम्तिहान है… कुछ दिनों की बात है …इस बीच वह मासाब पर अपनी झींक, उनके लिए बुरा भला कह कर दोस्तों के साथ निकालता है|
              सुधीर का परीक्षा परिणाम आज दिन  में निकलने वाला है| स्कूल से उसकी क्लास के सभी  बच्चों को बुलाया गया है ….उसे चिंता सी हो रही है |  वहाँ बच्चे और रिश्तेदारों की भीड़ रिजल्ट लेने आई हुई  थी| मासाब भी उसे भीड़ में प्रसन्नचित दिखे .. तभी घंटी बजी और सभी बच्चे एसेम्बली हॉल मे एकत्र हुए …प्रिंसिपल महोदय ने आ कर परिणाम की घोषणा की … क्लास में कुछ बच्चे अनुतीर्ण थे …कुछ बच्चे दरमियाना नंबर ले कर उत्तीर्ण हुए थे …और कुछ बच्चे बहुत अच्छे अंकों  से .. प्रिंसिपल बोले मैं कक्षा के प्रथम तीन विद्यार्थियों के नाम की घोषणा करूँगा …बाकी सभी विद्यार्थी अपने कक्षा अध्यापक से रिजल्ट लेंगे ,,, और प्रिंसिपल महोदय ने घोषणा की-“ कक्षा ११ में जो बच्चा प्रथम आया है उसका नाम है  -  अनुपम …सुधीर बहुत खुश हुआ|  वह  तालियाँ जोर जोर से बजा रहा था ….अनुपम ने अपना पुरुस्कार लिया ….तब तक दुसरा नाम घोषित किया गया …वह नाम था - "सुधीर" ….सुधीर को यकीन नहीं हुवा … पुनः पुकारा गया गया सुधीर खंडूरी  …क्या सुधीर खंडूरी को सुनाई दे रहा है उनका नाम ..सुधीर स्टेज पर आये …अपना परीक्षा परिणाम और पुरूस्कार ले जाए …. मासाब ने स्टेज से सुधीर को देखा तो चिल्ला पड़े सुधीर जल्दी आओ…तब तक क्लास के अन्य छात्र भी कहने लगे - सुधीर!  हाँ, तुम्हारा नाम ही पुकारा जा रहा है , जाओ ..जाओ … सुधीर को यकीन नहीं हो रहा था ….उसकी आँखों के आगे  माँ का मुस्कुराता चेहरा नजर आने लगा …वह चाह रहा था कि दौड कर माँ के पास जाए और उसको खबर सुनाये ..  उस से लिपट कर रोये … वह आगे बढता हुवा स्टेज में पहुंचा .. तब तक प्रिंसिपल महोदय कह रहे थे कि  सुधीर अपनी कुछ बुरी आदतों के चलते स्कूल बंक करता था . और कक्षा में अनुपस्तिथ  रहता था, घर में भी उसकी आदतों से उसकी माँ परेशान रहती थी और यहाँ स्कूल में गुरुजन लेकिन  अचानक जिस तरह  उसने खुद में बहुत परिवर्तन किये ..हर क्लास में नियमित उपस्थित होना और मन लगा के पढ़ना …क्यूंकि उसने अपनी गन्दी  आदतों को त्याग कर सही रास्ता चुना और उस पर चल पड़ा| आज उसका परिणाम ही है कि वह कक्षा में दि्वतीय स्थान पर आ सका … वह अनुकरणीय है …अन्य बच्चे भी समझ सकते है कि अपने अंदर निहित दुर्गुणों को त्यागा जा सकता है … और अपने लिए एक अच्छा रास्ता चुन कर अपने भविष्य को सुन्दर बनाया जा सकता है … हॉल तालियों से गूंज गया|
सुधीर दोस्तों के साथ घर जा रहा था कि मास्टर साहब उसे ऑफिस के बाहर दिखाई दिए| मास्टर साहब ने उसे इशारे से बुलाया और अपने ऑफिस में ले गए – बोले – “आज बहुत खुश हो ना तुम,  मैं भी हूँ | मैंने ब्रिलियेंट स्टूडेंट स्टडी फंड में तुम्हारे विषय में सुचना दी थी .. तुम्हारी योग्यता को देख तुम्हारी फीस इस साल से माफ हो जायेगी .. और स्कॉलर स्टुडेंट्स फंड से तुम्हें वजीफा भी मिलेगा जिस से तुम अपनी कॉपी किताब खरीद सकोगे|” ..यह कह कर उन्होंने जेब में हाथ डाला और पांच सौ रूपये का नोट निकाला और बोले यही है ना वो रुपया जिसकी वजह से तुमने कक्षा में नियमित  बैठना शुरू किया था| आज मैं तुम्हें तुम्हारे पैसे लौटा रहा हूँ लेकिन प्रण करो कि अबसे हमेशा क्लास अटेंड करोगे और इसी तरह अच्छा नाम कमाओगे … सुधीर का सिर आदर से झुक गया … फिर मास्टर साहब ने अलमारी से एक मिठाई का डिब्बा निकाला और सुधीर के हाथ में रख दिया, बोले - जाओ बेटा, यह मिठाई का डिब्बा अपनी तरफ से अपनी माँ को देना  और खुशखबरी सुनाना, वह बहुत खुश होंगी  ..सुधीर का ह्रदय खुशी से आह्लादित हो रहा था| वह  आदर, कृतज्ञता और प्रेम से मास्टर साहब के चरणों पर  झुक गया||
                        कहानी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
चित्र नेट से...
कहानी की प्रेरणा मुझे अपने बड़े भाईसाहब श्री श्रीप्रकाश डिमरी जी से मिली... जो कि एक समर्पित शिक्षक हैं....

Wednesday, September 21, 2011

एक दर्द -हाईकु - डॉ नूतन गैरोला–१)



जाना था हीरा,
बेपरखा भरोसा
मिट्टी निकला|


Diamond






तुम बिन है,
संग मेरे विराना,
अकेली नहीं|

lonliness      





अपने थे जो
तोड़ गए दिल को
अपने हैं वो|

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खामोशी बोली
मुझसे बातें करो
चुप्पी ना भली|

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बाद उसके
जाने के जाना था कि
थी वो बहार |

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डॉ नूतन गैरोला

तस्वीरें -नेट से
आभार उनका जिनकी ये तस्वीरें  हैं|
अखिरी पेंटिंग - चित्रकार ग्रेग चेडविक , केलिफोर्निया 


Sunday, August 7, 2011

तुम्हारे लिए …. डॉ नूतन गैरोला

 


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हे पुरुष!
तुम मायासुत जैसे,
मर्यादित..
तन मन की व्यथा भुला कर ..
भूख प्यास से ऊपर उठ कर ..
घर द्वार को पीछे रख कर ..
दंभ हिंसा से कोसों दूर 
दया, प्रेम को अपनाकर
निष्कपट हो कर…
नीतिपथ पर
निर्विकार
सतत कर्म की
मानवसेवा की अलख जगाये हो|


सुन !!
फिर भी तुम
मायासुत ना बन सकोगे …
जानती हूँ कि
यूँ तो
यश की तुम्हें कोई कामना नही|
फिर भी
सत्कर्म कर
नीतिपथ पर चल कर भी
उंगलियां उठती रहेंगी तुम पर कितनी
और तुम उनमें कुछ आभाविहीन उंगिलयों को जर्द जान
प्राण सिंचित कर दोगे
अपनी रक्त  लालिमा से|
और अडिग अपने पथ,
कर्तव्य की बेदी पर
मानवता की सेवा में
अदृश्य ही बलिदानी हो जाओगे|



इसलिए हे पुरुष !!
तुम वन्दनीय हो|
तुम श्रेष्ठ हो|
तुम पूर्ण हो|
तुम ह्रदयकोष्ठ में  हो|


डॉ नूतन डिमरी गैरोला … ७/८/२०११ … २२:४२

फोटो - मेरी खींची हुई

Saturday, July 23, 2011

रात में अक्सर - डॉ नूतन डिमरी गैरोला



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रात में अक्सर
मेरी खिडकी से
एक साया उतर
कमरे की हवा में
घुल जाता है|
आने लगती है
गीली माटी की गंध
और आँखे मेरी फ़ैल जाती है छत पर
जहाँ से अपलक निहारता है मुझे
मेरा वृद्ध स्वरुप|


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रात में अक्सर
जब लोग घरों के दरवाजे बंद कर देते हैं
तब खुलता है एक द्वार
कलमबद्ध करता है
कुछ जंग खाए
कुंद दिमाग के जज्बात
और मलिन यादों के चलते
जो अक्सर रह जाते हैं शेष |


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रात में अक्सर
याद आता है वो सफर
जो सफर नहीं था
था एक ठहराव खुशियों का
खिलखिलाती ताज़ी कुछ हंसी
जैसे किसी काले टोटके ने रोक ली हो
और मुस्कुराता चेहरा
धूमिल हो डूब जाता है
आँखों के सागर में |


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रात में अक्सर
जब शिथिल हो कर
गिर जाती है थकान
शांत बिस्तर में
रात उंघने लगती है तब 
पर तन्हाइयां उठ कर जगाने लगती हैं
और कानाफूसी करती है कानों में  
नीलाभ चाँद देर रात तक
खेला करता तारों से|


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द्वारा - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
सभी चित्र नेट से … उनका आभार जिनकी ये तस्वीरें हैं ..

Tuesday, July 19, 2011

आंटी रुक्मणि - लघुकथा



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रुक्मणि जी जो कि मेरे पड़ोस में रहती हैं, अधेड़ उम्र की भद्र महिला हैं| आज मैं उनके साथ खरीदारी के लिए आयी थी|  खरीदारी के पश्चात दूकान के काउंटर पर खड़े किशोर ने रुक्मणि जी को पुकारा -“ये लीजिए आंटी - पेमेंट हो चुका है | आप अपना सामान ले लीजिए|” किन्तु रुक्मणि जी को जैसे किसी जहरीले भंवरे ने आ कर डंस दिया हो, वह बुरी तरह  आग बबूला हो गयी- “ क्यों लड़के बात करने की तमीज नहीं? जिसे देखो आंटी कह देते हो | दीदी जैसा अपनेपन से भरा कोई शब्द बचा नहीं है क्या?” कहते हुवे गुस्से से अपना सामान लड़के के हाथ से लगभग छीन सा लिया|  लड़का हक्काबक्का रह गया|
                                    मैं पूछ ही बैठी- क्यों रुक्मणि जी! आप इतना नाराज क्यों हो गयी हैं? ऐसा तो उसने कुछ नहीं कहा|. सुनना था कि वो फट पड़ी - “सब्र की भी एक सीमा होती है| आज कल के लोगों को देखिये, क्या आसान शब्द मिल गया है| जिसे देखिये आंटी कह देते हैं जैसे दीदी, भाभी, बहन कोई रिश्ता बचा ही ना हो| अब मुझे ही देखिये सत्रह  साल की हुवी ही ना थी कि शादी हो गयी| पतिदेव में और मुझमे उम्र का फासला भी दस साल का है और साहब कुटुंब में अपने पीडी के सबसे छोटे सदस्य हैं  - सारी भाभियों के सबसे लाडले छोटे देवर हैं| उनकी भाभियाँ उनको आते जाते छेडतीं हैं  खूब मजाक करती हैं वो उनके सामने बच्चे के सामान हैं और मुझे देखिये- माँ, पिता चाचा, मौसी, बुवा की उम्र के लोग ससुराल में मेरे जेठ जेठानियाँ हैं| मेरी उम्र वाले जो मेरी सहेलियां, नन्द ,देवर  जैसे होने चाहिए थे, सभी मुझे चाची कहतें है, मैं उनके साथ हंसी मजाक गपशप करना चाहूँ तो वो बोलते हैं - आप तो चाची हैं, आप बुजुर्गों के साथ जाइये| अब बोलिए जेठ और जेठानियों जो कि मेरी चाचा, चाची की उम्र की हैं, उनसे मैं क्या हँसी मजाक करूं , बस घूँघट किया रहता है| शादी होते ही दादी, नानी बन गयी मैं|   लगा मानों मेरे जीवन में जवानी जैसी कोई चीज आई ही नहीं| मैं बचपन से सीधे बूढी हो गयी| मन में बहुत कोफ़्त होती|
                                            वह आगे बोलीं - पतिदेव  ने एक दिन कहा कि शहर तबादला हो गया है| मुझे  काफी राहत मिली| सोचा अब गाँव के बुड्ढे रिश्तों से छुट्टी मिलेगी, मेरे दिन फिरेंगे, मुझे भी अपनी उम्र के हिसाब के रिश्ते मिलेंगे, लेकिन नहीं, ऐसा होना न था| शहर तो आ गयी, लेकिन गाँव से शहर पढ़ने आये रिश्तेदार विद्यार्थियों ने मेरे सपनों में पानी फेर दिया| वहाँ भी वो मुझे चाची, दादी कहते और उनकी सहेलियां और दोस्त भी यही रिश्ते मुझ पर लगाते| जहाँ भी शादी ब्याह में जाती तो मेरी हमउम्र  को ही नहीं, यहाँ तक की मुझसे काफी बड़ी महिलाओं को लोग दीदी, भाभी कहते और मुझे आंटी| दिल कट कर रह जाता| किस दिन मैं अपनी उम्र के रिश्ते पा सकुंगी|
                                    मैं रुक्मणि जी की बातें सुनती चली जा रही थी| वह भी आज अपने मन की भड़ास मुझसे कह कर हल्का कर रही थी| वह बोल रही थी मैंने अपनी बचपन जवानी आंटी आंटी सुन कर गुजार दी, अब मैं अपने साथ ये अन्याय नहीं होने दूंगी……
और वह बोले जा रहीं थी ………….
   




लेखक - डॉ नूतन डिमरी गैरोला   १९ / ०७ / २०११  २:२० दोपहर                

Wednesday, July 13, 2011

पुनर्वास - डॉ नूतन गैरोला


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                     अस्पताल की छत से वह
                                        आज चुपचाप महसूस करना चाहती  थी--
                     साँसें जो उखड रहीँ थीं
                                       चंद घड़ियों का बस एक प्रश्न था…..
                    लय में  बीब  करती उपकरणों की आवाजें
                                      क्योंकि दिल अभी रुका ना था …….
                    सहमे से थे लोग सभी
                                      उनका अपना जुदा होने को था...
                   एक तीखा दर्द अभी महसूस हुवा था
                                     लगा, शरीर सेआत्मा का रिश्ता बचा हुवा था…
                    तभी गडगडाहट शुरू हुवी मशीनों की
                                     ऑक्सीजन, डीफ्रिब्लेटर और थपथपाहट
                                                     सीने में घुपता तीखा दर्द सुई का..
                    यह बहाना न चलेगा अब
                                      कोई और बहाना होगा जाने का फिर कभी 
                    वह जिद छोड़ छत से नीचे उतर आई
                                     पसर कर फिर से बस गई अपने टूटे घर में
                   
क्योंकि समय अभी शेष था देह का |



डॉ नूतन गैरोला … १३ / ०७ /२०११   १६:२४

Saturday, July 9, 2011

आखिरी लपक–डॉ नूतन गैरोला



          10-02-MonachofLove



स्थिर थी वो
जो रक्स करती
रोशनियों के संग इठलाती|
आज चंचल बनी, कुलबुलाती है लौ|
कंपकंपाती है, थरथराती है लौ |
है घड़ी अंतिम बिदाई की
लपक आखिरी यूं लपलपाती है |
आत्मा की परी
लंबी उड़ान के लिए
ज्यूं पंख फडफडाती है |
कुछ चिंगारियां है शेष
धूमिल आखिरी धुवें का अवशेष
आँधियों का शोर जोरों पे है,
कालरात्रि का भंवर भोर पे है|
कमजोर अँधेरे उठ खड़े हुवे हैं
लुप्त होता जान लौ को
एक शीत मुस्कराहट के संग
अपने उजले भविष्य पर दंग
स्वागत गीत गाते हैं वो|
समय का खेल
जल चुका है तेल|
माटी से गढा दीया
माटी में पड़ा दीया
अब माटी होने को है|
रे कुम्हार!
सुन मेरी आखिरी विनती पुकार
कर सृजन अगण्य दीयों का|
जिनसे हार चुका उजाला
उस तमस को दूर करना
|

 

डॉ. नूतन गैरोला .. ९ जुलाई २०११



   

Tuesday, June 28, 2011

पुनरावृति - डॉ नूतन गैरोला डिमरी

 नुत


 
जीती रही जन्म जन्म,
पुनश्च मरती रही,
मर मर जीती रही पुनः,
चलता रहा सृष्टिक्रम,
अंतविहीन पुनरावृति क्रमशः|

 

                        डॉ नूतन डिमरी गैरोला

 

 

Wednesday, June 22, 2011

आजन्म कारावास और पेरोल पर कैदी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला


                      आजन्म कारावास और पेरोल पर कैदी
 
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जब आशाएं बिखर जाती है

उम्मीद भी तार तार हुवे फटे दामन को सिकोड़ लेती हैं

तब वही निरपराध कैदी

जो बंधक बनते समय

हाथ पैर पटकता है

चिल्लाता है

कहता है

मेरा ये घर नहीं, मेरी ये जगह नहीं

और जेल में तमाम दूसरे कैदी उसकी मजाक बनाते हैं

कैसे कैसे उस पर वार करते हैं

अपने भाग्य पर रोता वह पुरजोर कोशिश करता है बाहर जाने की

खुली हवा में उड़ जाने की

वह देखता है नफरत भरी निगाहों से कैद की दीवारों को

जेलर को, जेल के नुमाइंदों को

और उन बदसलूक साथियों को जो जरूर अपराधी होंगे

या उसकी तरह बेवजह सबूतों के अभाव में बेड़ियों में जकड़े होंगे|

पर जेल में कैदी पर कितने ही जुल्म ढ़‌‍ाए

मानसिक शारीरिक सामाजिक अवसादों से घिर गया वो

और इतनी यंत्रणा दी गयी और प्रताड़ित किया गया कि

उसकी आवाज गले में फंस उसके लिए फांसी का फंदा हो गयी|

और तब वह हार जाता है अपनी ही आवाजों से

हार जाती हैं आशाएं,  उम्मीदें तिनका तिनका हवाओं में उड़ जाती है

तब वह

स्वीकार कर लेता है अपना आजन्म कारावास

मान लेता है उस जेल को अपना घर

और वहाँ की कडुवाहट घुटन ये उसके अपने जीने के सामान हो जाते है

वह जीने लगता है मरने के लिए

या मर मर के भी मरता है, रोज जीने के लिए

दसकों बाद उसका सदाचार सनैः सनैः हो जाता है उजागर

और फिर मुनादी होती है,आता है हुक्मनामा

कैदी के, पेरोल का |

कैदी असमंजस में

अब बाहर उसका कोई अपना नहीं

टूट चुके शीशों के किरचो सा, सपना भी कोई बचा नहीं

पहले उसे बदनाम किया था, अब कहीं उसका नाम नहीं

शीशे में खुद की सूरत भी तो बदल चुकी है

और अब तो बाहर की दुनियां भी अजनबी हो चली है

बाहर जाना मतलब बिना दीवारों की कैद में होना

सभ्य अजनबी चेहरों में अपने चहेते क्रूर बंदियों का अभाव का होना

और फिर पतझड़ में मुरझाया फूल गुजरे बसंतों में खिल नहीं सकता

इसलिये

गुहार करता है कैदी , हुक्मरानो से

पेरोल उसकी खारिज करो

बंद कैद में ही उसको सड़ने दो, मरने दो|




                                     डॉ नूतन डिमरी गैरोला      २२ – ०६ - २०११

              
              सोचती हूँ कितना दर्द होगा उन कैदीयों का, जो कभी बिना अपराध के ही परिस्तिथिजनित, असत्य साक्ष्यों की वजह से मुजरिमकरार किये जाते हैं और वो अपनी सफाई में कोई सबूत तक नहीं पेश कर पाते और भेज दिए जाते हैं कालकोठरी में जीवन बिताने के लिए, फिर उम्र के आखिरी पड़ाव में  उनको उनके अच्छे व्यवहार के लिए पेरोल पर छोड़ दिया जाता है| वो किन मानसिक यंत्रणाओं से गुजरते है जबकि उनको शारीरिक आघात भी कम नहीं पहुंचाए जा रहे होते है||
                 जेल के कैदी मानसिक रोगों से भी पीड़ित होते हैं जो बहुत लंबे समय तक अपना जीवन कैद में बिता रहे होते हैं उनमें “स्टॉकहोम सिंड्रोम  जैसी एक साईकोलोजिकल स्तिथि उत्पन्न  हो जाती है  और  कैदी जेल में दी जा रही यंत्रणाओं को व वहाँ के माहोल को पसंद करने लगता है….मानव मन, कैद की स्तिथि में कैसे प्रतिक्रिया करता है यह उसका उदाहरण है |
                       फिर  सोचती हूँ जमींदारी और सामंतवाद में कभी कभी जबरदस्ती दुल्हन बना ली गयी महिलायें भी  क्या ऐसा ही महसूस करती थी होंगी………………


                                              नूतन (नीति)

Thursday, June 16, 2011

चंद्रग्रहण /Lunar Eclipse- 15 june 2011 –My Clicks My Photos- Dr Nutan Gairola


                 

                     आज के दिन

                                                      ( सोलह जून २०११ )

 

आज के दिन न मुझसे पूछो तुम

कितने अंधेरों ने बढ़ कर

मेरे दिन को सियह रातों में बदल दिया है|

मेरी खुशियों में पसर गए हैं कितने

दुःख भरे आंसू के बादल…….

आज के दिन छा रहे

घोर मायूसियों के सायों ने-

सितम के कितने नस्तरों से

मुस्कुराहटों का हक बींध लिया है|

आज के दिन पूर्णिमा को

ग्रहण के अंधेरों ने

बिन अपराध निगल लिया है|

हो कितना भी घना अँधेरा

 न हो निराश, वादा है

मिटा कर इन अंधेरों को,

चमकुंगा मैं फिर फलक पर

और मिल जाऊंगा धरा से

पाकिजा चांदनी बन कर |

 

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                आज की रात जब शुरू हुवी थी, पहाड़ पर चाँद यूं चढ़ने लगा| कल रात का ग्रहण भुला कर और चांदनी बिखेरता हुवा| दिन भर की धुप से झुलसा हुआ जंगल, शीतल चांदनी में नहा कर मुस्कुराने लगा, लहराना लगा |

 

       DSC_1670



                                                        डॉ नूतन गैरोला




                                            पन्द्रह जून २०११



१५ जून की अर्धरात्रि को पूर्णमासी के दिन चंद्रग्रहण लगा था| मैंने कुछ तस्वीरें खींचीं थी| अगर किसी ने यह नजारा ना देखा हो तो  मैं उनमें से कुछ तस्वीरें यहाँ शेयर कर रही हूँ| पहली तस्वीर मैंने ००:१२ बजे से आखिरी १:३५ पर २ बजे पूर्ण चंद्रग्रहण था| मैंने देखा की चाँद पर बाई ओर से ग्रहण बढता हुआ दाई ओर फैलता गया और पूरी छाया ने चाँद को घेर लिया किन्तु ऐसा भी आभास हुवा कि इस बीच जब चाँद पर पूरी छाया थी तीन बार चाँद पर दाहिनी ओर से हल्का उजाला फ़ैल गया ..फिर बायीं ओर से अँधेरा .. ऐसा क्रम चल रहा था .. २ बजे बिलकुल अँधेरा था और उसके बाद मैं भी सोने चली गयी| ००:१२ से २:०० बजे तक के कुछ फोटो जो मेरे खींचे हुवे हैं…  


                  DSC_1577 

                                                  ००:१२ पर चाँद  .. बायीं ओर से फैलती छाया

                  DSC_1585 
                            
                                                                    00: १७ पर


                   DSC_1591 

                                                             ००:३७ पर लगभग 

                     DSC_1604 

                                                                   १:१५ पर


                         DSC_1615

                                                             चाँद नहीं दिखा १:२५ 

                        
                                            


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                                          दाहिनी ओर से बढते प्रकाश में चाँद कभी हल्का भूरा सा दिखता था|
फिर दो बजे चाँद नहीं दिखा और शायद उसके बाद गहरा ग्रहण लगा हो|


                                         सभी तस्वीरें मेरी खींची - डॉ नूतन डिमरी गैरोला 
                                                       शटर १/४००० से १/२००

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                                                    नाईटमोड में खींची फोटों   

     
                                    सभी तस्वीरें मेरी खींची – डॉ नूतन डिमरी गैरोला            

 

Saturday, June 11, 2011

क्या भटका रहे हैं बाबा और अन्ना - जागो भारत जागो

 

                               india

 

       अरे!

                  जहाँ देखो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं …क्या इन्हें इतना नहीं पता कि भ्रष्टाचार तो जनता को आसानी से प्राप्त एक बहुत बड़ी सुविधा है जिसके रहते हर काम आसानी से हो जाते हैं | फिर ऐसा क्यूं … क्यूँ उठा रहे हैं ये आवाज … अन्ना जी और बाबा जी भी नाहक ही भूख हड़ताल में बैठे रहे / हैं  …. और अपने दस नहीं दस हज़ारों  दुश्मन बड़ा रहे हैं … हमें गर्व होना चाहिए के हम ऐसी जगह/ देश में  हैं जहाँ हर कठिन से कठिन काम भी इतनी सुगमता से संभव हो जाता है ज्यूं फूंक से तिनका उड़ाना…. लक्ज़री कार फरारी ( अपना  देश ) में बैठ कर भ्रष्टाचार के ईधन से हम मक्खन सी रोड ( असंवैधानिक /नाजायज /भ्रष्ट  कार्य ) पर फिसलते जा  रहे हैं और अपनी सुखद यात्रा पर इतराते हुवे अपनी मंजिल ( अनंत पैसों का जमावडा नितांत निज स्वार्थ के लिए)  की ओर बेरोकटोक अग्रसर हैं … फिर ये बाबा जी और अन्ना जी को क्या हो गया जो मक्खन वाली सड़क पर कांच, गारे, पत्थर  फैंक कर रोड़ा उत्तपन कर रहे हैं |

                                   छी छी छी.. कोई उन्हें समझाए कि एक ही तो सुविधा इस देश में आसानी से मुहैया है … जो भ्रष्ट लोगों को खूब भाती है… और ताकत से भरपूर राजनीती के कुछ नुमाइंदे इस भ्रष्टतंत्र के पोषक हैं  …जिनके चलते  आप घूंस कहीँ भी ले या दे सकते हैं … फिर भ्रष्टाचार जैसी सुविधा को अन्ना , बाबा , और जनता क्यों देश से हटाने पर तुले हैं… भ्रष्टाचार जैसी सुविधायें तो आम है .. ये सुविधाएँ आपको खड़े खड़े भी प्राप्त हो सकतीं हैं , कभी मेज के नीचे से , कभी लिफाफों के रूप में , कभी मिठाई के डब्बों में  बंद, कभी धूप में  किसी निर्माण क्षेत्र में , कभी बंद एयरकंडीसन्ड रूम में |
                                  

भ्रष्टाचार में पैसे का आदान प्रदान तो आम है ..जिसे घूंस कहते है| देखिये मैं इसके कुछ फायदे सिर्फ थोड़े में ही कह पाऊँगी -

 

                  घूंस देने के लाभ -

  • आप बीच सड़क में कचड़ा फैंक सकते हैं,
  • आप किसी को भी नाहक बेवजह पीट सकतें हैं,
  • आप योग्य नहीं है तो क्या इसके रहते आप बहुत योग्य लोगों को पछाड कर उनको ठेंगा दिखा सकतें है,
  • आपको किसी राशन की, किसी टिकट लेने की खिडकी पर  क्यू / पंक्ति कितनी भी बड़ी हो आप आगे ही रहेंगे … आपका काम पीछे के दरवाजे / खिडकी से हो जायेगा ..
  • आपके बच्चे नशे में गाडी चला कर राहगीरों को कुचल सकतें हैं ..पर उनका बाल बांका भी नहीं होगा .. 
  • आपके सौ खून भी माफ हो सकते हैं .. इतनी ताकत है इस सुविधा में
  • आप खाद्यपदार्थ में मनमानी चीजे मिला सकते हो ..दूध में चूना .. धनिया पाउडर में बजरी ..फल असमय ही पक जायेंगे और रंग उनका होगा ऐसा की दूर से ही मुंह में पानी आ जाए .. पर जांच पड़ताल कर भी आपको कोई कुछ ना कहेगा
  • आप कीमतों को अपनी मर्जी से बड़ाचढा  सकतें है |
  • बिना पढ़े ही आप डिग्री हासिल कर सकते हो|
  • लिखने लगूंगी तो पूरा ना होगा क्यूंकि हर क्षेत्र में घूंस आपको सुविधा देता है …इस लिए सुविधा लेने के फायदे भी अनंत हैं |
  • - - - - - - - - - - - - - - - -  - - - - - - - -  रिक्त स्थान की पूर्ती करो - यानि हर वह काम जो निकृष्ट है, अमानवीय है, अवैधानिक है, आप इस रिक्त स्थान में डाल सकते हैं…. भ्रष्टाचार में वो ताकत है जो इन कामो को बना ले…

 

 

        घूंस लेने के फायदे -

  • लोगों के बीच -  आप देवता बन सकते हैं - लोग कहेंगे देखो वह कितना अच्छा इंसान है कम से कम काम करवा तो देता है |
  • आप अच्छे नेता बन सकते हैं - जनता को बड़ी बड़ी योजनाओं का आश्वासान दें - बदले में मिलेगा योजनाओं से रिसता अकूत धन
  • आप जिस भी क्षेत्र में हैं ( जैसे घोड़े वाला, स्टोक वाला, टीचिंग वाला, निर्माण वाला, ऑफिस वाला मेज कुर्सी वाला या बस कंडकट्री वाला, इत्यादि)  आप ऐसी युक्ति अपनाइए की लोग घुंस देने के लिए बाध्य हों -- फिर आप अपनी तिजोरी देखिएगा ..दिन दुनी रात चौगुनी
  • रिश्तेदारों में, आस पड़ोस में  और देश में बड़ा नाम होगा ..लोग झुक झुक कर सलाम करेंगे|
  • घर में भी बहुत प्रेम मिलेगा , सुख सुविधा तो बेमिसाल होगी  ही आने वाली पीडियों के भी तारणहार होंगे आप ….   
  • समय कम है मेरे पास इस लिए ज्यादा नहीं लिखूंगी - आप भी वाकिफ होंगे फायदे से .. घर घर में घूंस की दौलत होगी तो देश का तो अपने आप जीर्णोद्धार हो जायेगा .. उसके नागरिक फलेंगे फुलेगे | … ४०० लाख करोड जैसी धनराशि विदेशों तक नाम कमाएगी …
  • आप के पास ताकत का साम्राज्य होगा जिस के रहते आप किसी से कुछ भी करवा या मनवा सकतें है या किसी पर भी डंडा चलवा सकतें है |

 

    जब आप के पास इतनी घूंस की दौलत हो तो  कोई पागल कुत्ते ने काटा है क्या जो बाबा जी  और अन्ना जी के साथ आंदोलन में बैठें या उनका साथ दें या खुद आवाज उठायें भ्रष्टाचार के खिलाफ|| आराम से घर में बैठेंगे या फिर कही छुपी गोष्ठी कर आंदोलनकारियों पर डंडे बल्लम की मार कर  अश्रु गोलों फैंकवायेंगें या उनके कपडे फाड़ेंगे … लोकतंत्र की सरेआम ह्त्या कर भ्रष्टाचार का साथ देंगे और इसके खिलाफ आवाज लगाने वालों के साथियों रिश्तेदारों पर भी डंडा कर देंगे, ताकि वो आवाज दुबारा ना उठा सके या फिर एन वक्त कोई और बेसरपैर की बात का  मुद्दा बना लिया जायेगा जैसे नृत्य विवाद- या अमुक इंसान  अपने देश का नहीं है ..और भोलीभाली जनता का ध्यान और चिंतन उस ओर मुड जाए , और असली मुद्दे से वो भटक जाएँ - तो हैं ना भ्रष्टाचार में अजब की ताकत

 

                        तो आओ क्यूं ना इस भ्रष्टाचार रुपी देवता की आरती उतारें   

 

 

जय भ्रष्टाचार देवा, जय भ्रष्टाचार देवा

जो कोई तुझको पुजत, उसका ध्यान धरे 

जय भ्रष्टाचार देवा …

तुम निशिदिन जनता का गुणी खून पिए

भ्रष्ट लोगन को खूब धनधान्य कियो

जय भ्रष्टाचार देवा

भ्रष्ट लोग जनता पर खूब खूनी वार कियो

दुष्ट भ्रष्ट लोगन को तुम असूरी ताकत दियो

जय भ्रष्टाचार देवा

जो कोई भ्रष्टी मन लगा के तुमरो गुण गावे

उनका काला धन विदेश में सुरक्षित हो जावे

जय भ्रष्टाचार देवा 

 


बहुत खेद के साथ कटाक्ष के रूप में उपरोक्त बातें  लिखी हैं | जब मैंने पाया सत्याग्रहियों और जनता पर आधी रात को इस तरह से आक्रमण किया गया जैसे आजादी से पूर्व अंग्रेजों के हाथ जलियावाला बाग था| तिस पर कई साथी लेखकों ने सत्याग्रह के खिलाफ, बाबा के खिलाफ,आवाज उठायी … और कुछ अजीब से नए मुद्दे बना डाले …मैं उनसे भी कहना चाहूंगी अभी मुद्दा  सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ है.. इस पर राजनीति नहीं चाहिए - सिर्फ और सिर्फ देशहित चाहिए |

 

  
जागो भारत जागो
देशहित के लिए आह्वाहन करती यह कविता अन्याय के खिलाफ सब को एकजुट होने के लिए प्रेरित करती है और वीररस से भरपूर है | इसके रचियता श्री अशोक राठी जी हैं  जिनकी कर्मभूमि कुरुक्षेत्र है| देश भक्ति की भावना से लबरेज  , स्त्री विमर्श पर और जीवन मृत्यु जैसे  दर्शन पर आपकी कवितायें खासा आकर्षित करतीं हैं | यहाँ पर देशहित के लिए हुंकार भरती अशोक जी की कविता को सबसे साझा कर रही हूँ 
 
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                                                  श्री अशोक राठी जी 

  

जागो भारत जागो देखो

आ पहुंचा दुश्मन छाती पर

पहले हारा था वो हमसे

अब फिर भागेगा डरकर  

शीश चढ़ाकर करो आरती

ये धरती अपनी माता है

रक्तबीजों को आज बता दो

हमें लहू पीना आता है

नहीं डरेंगे नहीं हटेंगे

हमको लड़ना  आता  है |

काँप उठा है दुश्मन देखो

गगनभेदी हुंकारों से

डरो न बाहर आओ तुम

लड़ना है मक्कारों से

आस्तीन में सांप पलें हैं

अब इनको मरना होगा

उठो जवानों निकलो घर से

शंखनाद अब करना होगा

देखो घना कुहासा छाया

कदम संभलकर रखना होगा

वीर शिवा, राणा की ही

तो हम सब संतानें हैं

कायर नहीं , झुके न कभी 

हमने परचम ताने हैं |

अबलाओं, बच्चों पर देखो

लाठी आज बरसती

हाथ उठे रक्षा की खातिर

उसको नजर तरसती

जागो समय यही है

फिर केवल पछताना होगा

क्या राणा को एक बार फिर

रोटी घास की खाना होगा

माना मार्ग सुगम नहीं है

दुश्मन अपने ही भ्राता हैं

लेकिन मीरजाफर, जयचंदों को

अब तो सहा नहीं जाता है

ले चंद्रगुप्त सा खड्ग बढ़ो तुम

गुरु  दक्षिणा देनी होगी

महलों में मद-मस्त नन्द को

वहीँ समाधि देनो होगी |

 

चढ़े प्रत्यंचा गांडीव पर फिर

महाकाली को आना होगा

सोये हुए पवन-पुत्रों को

भूला बल याद दिलाना होगा

बापू के पथ पर चलने वाले

हम सुभाष के भी अनुयायी

समय ले रहा करवट अब

पूरब में अरुण लालिमा छाई

आज दधीचि फिर तत्पर है

बूढी हड्डियां वज्र बनेंगी

और तुम्हारे ताबूत की

यही आखिरी कील बनेंगी

सावधान ! ओ सत्ता-निरंकुश

अफजल-कसाब के चाटुकारों

राष्ट्र  रहा जीवंत सदा यह

तुम चाहे जितना मारो | 

 


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जय भारत माता |