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Tuesday, November 15, 2011
Friday, November 11, 2011
मौन बातें - डॉ नूतन गैरोला
बातें बेहिसाब बातें हलचल मचा देतीं हैं नटखट मछलियों सी मन के शांत समंदर में जबकि भीतर गुनगुनाती है, गाती हैं शांत लहरें और शांति की समृद्धि से तर खुशियाँ भरपूर रहती है मेरे शब्द रहते हैं मौन बेसुध मैं अनंत शांत यात्रा में होती हैं मौन बाते खुद के मन से लेकिन जब मन रहता है मौन और शब्द बिन आवाज बोलने लगते हैं कुछ दिमाग अनजान जो खामोश रहस्यों से छिड़ जाता है एक संग्राम उनके कटु शब्दों का मेरे मौन से … तब बलिदानी होता है मौन | और शब्दों को स्याही का आवाज का अम्लिजामा देता है उन अस्थिर अशांत मन में करता है शांति का पुनर्वास और अपने शांत मन का चैन खो उनको चैन देता है |… डॉ नूतन गैरोला लिखी गयी – ११ / ११ /११ ११:११ …बहुत आश्चर्य हुआ जब लिख कर फेसबुक में पोस्ट कर रही थी कम्प्युटर ११:११ am 11-11-11 तारीख दिखा रहा था … याद आती रहेगी ये तारीख ….. हां कविता लिखते समय अन्ना जी के मौन व्रत की याद आई … लेकिन वह अलग था .. |
Sunday, October 30, 2011
कविता और रोटी – डॉ नूतन गैरोला -३०अक्टूबर २०११ १७:४०
Friday, October 21, 2011
नागफनी और गुलाब - डॉ नूतन गैरोला २१-१०-२०११ १६:२५
Monday, October 17, 2011
वह अनजान स्त्री - डॉ नूतन गैरोला
ये सच ही तो है और कितना भयानक सच… एक देह जिसके अरमान थे, जीवन अभी बचपन से उठ कर खिल रहा था - गाँव की वह विवाहित अति सुन्दर बाला की सुंदरता उसे किस कदर हैवानों के आगे लील गयी… आज भी मुझे याद आता है तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं …. उसके जिस्म के टुकड़े होते हुवे देखे.. एम् बी बी एस के तृतीय वर्ष में उस दिन का अनुभव हमारे लिए नया था ..उस के बाद तो आम हो गया| मोर्चुरी का पहला दिन याद आने लगता है मुझे मेडिकल कॉलेज और एम्,बी.ब.एस कोर्स का तीसरा साल / दूसरा प्रोफेसनल … हमें १५ - २० बच्चों के ग्रुप में बाँट लिया जाता था - और स्थान – मोर्चुरी - जहाँ रहस्यमय मौत या सडन डेथ के कारणों का और मौत के समय का पता करने के लिए मरणोपरांत शवपरिक्षण (postmortem) किया जाता है| यह महिला सुन्दर पीली साड़ी में ऐसा लगता था जैसे अभी बोलती हो… बस जरा गले की ओर नजर ना पड़े तो| हम सब का दिल भर आया था| और उसकी बातें कर रहे थे वो हमारे लिए अनजान थी और मात्र एक शव थी जिस में हम जीवन के अंश ढूंढ रहे थे| दूसरा शव एक छोटे बच्चे का था उम्र लगभग ५ साल - बैलगाडी के पहिये के नीचे सर आ जाने से मौत हुवी थी|| तीसरा शव दो हिस्सों में विभाजित दो टुकड़ों में, रेलवे क्रोसिंग पर यह शव मिला था| और चौथा शव - एक प्युट्रीफाइड लाश एक पुरुष की - पेट सडती हुवी गेस से गुब्बारे की तरह फूल गया था - पेट के अंदर गेस का प्रेशर इतना ज्यादा था कि जीभ पूरी मुँह से बाहर निकल कर फूल गयी थी| सड़ी बदबू से बुरे हाल हो रहे थे| हम लोग वहाँ से भागना चाहते थे किन्तु टीचर का डर था| रेजिडेंट्स वहाँ खड़े थे सों बाहर की खुली हवा में जा नहीं सकते थे .. नाक पर रुमाल लिए थे| पेट उलट रहा था | कि दो आदमी बहुत बड़े चाक़ू ले कर आये एक ने उसके पेट पर उलटे चाकू से हल्का निशान लगाया ..ताकि इन्सिजन की लाइन को हम भी समझ सके..तब उसने पेट पर जैसे ही गहरा चाकू घुसाया, पेट से ब्लास्ट करती हुवी सड़ी हवा पुरे वेग से बाहर छत पर टकराई और साथ में कीड़ों / मेगेट्स का फव्वारा खुल गया ..कीड़ों की बारिश सी होने लगी… सभी विद्यार्थी कमरे से बाहर भागे …किन्तु दरवाजे में रेजिडेंट टीचर बाहर से आ कर खड़े हो गए| हुक्मनामा हुवा ..अंदर जाओ -- मेरे सभी साथियों का चेहरा घृणा से लाल और शरीर बदबू से बेहाल हो रखा था … हम लोग कमरे में उल्टियां कर रहे थे और विशेषग्य लोग शव से विसरा के सेम्पल कलेक्ट कर रहे थे --- कैसे थे वो दिन .. -- डॉ नूतन गैरोला १७ – १० – २०११ 23:38 |
Sunday, September 25, 2011
“मास्टर साहब” द्वारा - डॉ नूतन गैरोला
Wednesday, September 21, 2011
एक दर्द -हाईकु - डॉ नूतन गैरोला–१)
Sunday, August 7, 2011
तुम्हारे लिए …. डॉ नूतन गैरोला
Saturday, July 23, 2011
रात में अक्सर - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
Tuesday, July 19, 2011
आंटी रुक्मणि - लघुकथा
Wednesday, July 13, 2011
पुनर्वास - डॉ नूतन गैरोला
Saturday, July 9, 2011
आखिरी लपक–डॉ नूतन गैरोला
Tuesday, June 28, 2011
पुनरावृति - डॉ नूतन गैरोला डिमरी
Wednesday, June 22, 2011
आजन्म कारावास और पेरोल पर कैदी - डॉ नूतन डिमरी गैरोला
सोचती हूँ कितना दर्द होगा उन कैदीयों का, जो कभी बिना अपराध के ही परिस्तिथिजनित, असत्य साक्ष्यों की वजह से मुजरिमकरार किये जाते हैं और वो अपनी सफाई में कोई सबूत तक नहीं पेश कर पाते और भेज दिए जाते हैं कालकोठरी में जीवन बिताने के लिए, फिर उम्र के आखिरी पड़ाव में उनको उनके अच्छे व्यवहार के लिए पेरोल पर छोड़ दिया जाता है| वो किन मानसिक यंत्रणाओं से गुजरते है जबकि उनको शारीरिक आघात भी कम नहीं पहुंचाए जा रहे होते है|| जेल के कैदी मानसिक रोगों से भी पीड़ित होते हैं जो बहुत लंबे समय तक अपना जीवन कैद में बिता रहे होते हैं उनमें “स्टॉकहोम सिंड्रोम” जैसी एक साईकोलोजिकल स्तिथि उत्पन्न हो जाती है और कैदी जेल में दी जा रही यंत्रणाओं को व वहाँ के माहोल को पसंद करने लगता है….मानव मन, कैद की स्तिथि में कैसे प्रतिक्रिया करता है यह उसका उदाहरण है | फिर सोचती हूँ जमींदारी और सामंतवाद में कभी कभी जबरदस्ती दुल्हन बना ली गयी महिलायें भी क्या ऐसा ही महसूस करती थी होंगी……………… नूतन (नीति) |
Thursday, June 16, 2011
चंद्रग्रहण /Lunar Eclipse- 15 june 2011 –My Clicks My Photos- Dr Nutan Gairola
Saturday, June 11, 2011
क्या भटका रहे हैं बाबा और अन्ना - जागो भारत जागो
अरे! जहाँ देखो लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं …क्या इन्हें इतना नहीं पता कि भ्रष्टाचार तो जनता को आसानी से प्राप्त एक बहुत बड़ी सुविधा है जिसके रहते हर काम आसानी से हो जाते हैं | फिर ऐसा क्यूं … क्यूँ उठा रहे हैं ये आवाज … अन्ना जी और बाबा जी भी नाहक ही भूख हड़ताल में बैठे रहे / हैं …. और अपने दस नहीं दस हज़ारों दुश्मन बड़ा रहे हैं … हमें गर्व होना चाहिए के हम ऐसी जगह/ देश में हैं जहाँ हर कठिन से कठिन काम भी इतनी सुगमता से संभव हो जाता है ज्यूं फूंक से तिनका उड़ाना…. लक्ज़री कार फरारी ( अपना देश ) में बैठ कर भ्रष्टाचार के ईधन से हम मक्खन सी रोड ( असंवैधानिक /नाजायज /भ्रष्ट कार्य ) पर फिसलते जा रहे हैं और अपनी सुखद यात्रा पर इतराते हुवे अपनी मंजिल ( अनंत पैसों का जमावडा नितांत निज स्वार्थ के लिए) की ओर बेरोकटोक अग्रसर हैं … फिर ये बाबा जी और अन्ना जी को क्या हो गया जो मक्खन वाली सड़क पर कांच, गारे, पत्थर फैंक कर रोड़ा उत्तपन कर रहे हैं | छी छी छी.. कोई उन्हें समझाए कि एक ही तो सुविधा इस देश में आसानी से मुहैया है … जो भ्रष्ट लोगों को खूब भाती है… और ताकत से भरपूर राजनीती के कुछ नुमाइंदे इस भ्रष्टतंत्र के पोषक हैं …जिनके चलते आप घूंस कहीँ भी ले या दे सकते हैं … फिर भ्रष्टाचार जैसी सुविधा को अन्ना , बाबा , और जनता क्यों देश से हटाने पर तुले हैं… भ्रष्टाचार जैसी सुविधायें तो आम है .. ये सुविधाएँ आपको खड़े खड़े भी प्राप्त हो सकतीं हैं , कभी मेज के नीचे से , कभी लिफाफों के रूप में , कभी मिठाई के डब्बों में बंद, कभी धूप में किसी निर्माण क्षेत्र में , कभी बंद एयरकंडीसन्ड रूम में | भ्रष्टाचार में पैसे का आदान प्रदान तो आम है ..जिसे घूंस कहते है| देखिये मैं इसके कुछ फायदे सिर्फ थोड़े में ही कह पाऊँगी -
घूंस देने के लाभ -
घूंस लेने के फायदे -
जब आप के पास इतनी घूंस की दौलत हो तो कोई पागल कुत्ते ने काटा है क्या जो बाबा जी और अन्ना जी के साथ आंदोलन में बैठें या उनका साथ दें या खुद आवाज उठायें भ्रष्टाचार के खिलाफ|| आराम से घर में बैठेंगे या फिर कही छुपी गोष्ठी कर आंदोलनकारियों पर डंडे बल्लम की मार कर अश्रु गोलों फैंकवायेंगें या उनके कपडे फाड़ेंगे … लोकतंत्र की सरेआम ह्त्या कर भ्रष्टाचार का साथ देंगे और इसके खिलाफ आवाज लगाने वालों के साथियों रिश्तेदारों पर भी डंडा कर देंगे, ताकि वो आवाज दुबारा ना उठा सके या फिर एन वक्त कोई और बेसरपैर की बात का मुद्दा बना लिया जायेगा जैसे नृत्य विवाद- या अमुक इंसान अपने देश का नहीं है ..और भोलीभाली जनता का ध्यान और चिंतन उस ओर मुड जाए , और असली मुद्दे से वो भटक जाएँ - तो हैं ना भ्रष्टाचार में अजब की ताकत
तो आओ क्यूं ना इस भ्रष्टाचार रुपी देवता की आरती उतारें
जय भ्रष्टाचार देवा, जय भ्रष्टाचार देवा जो कोई तुझको पुजत, उसका ध्यान धरे जय भ्रष्टाचार देवा … तुम निशिदिन जनता का गुणी खून पिए भ्रष्ट लोगन को खूब धनधान्य कियो जय भ्रष्टाचार देवा भ्रष्ट लोग जनता पर खूब खूनी वार कियो दुष्ट भ्रष्ट लोगन को तुम असूरी ताकत दियो जय भ्रष्टाचार देवा जो कोई भ्रष्टी मन लगा के तुमरो गुण गावे उनका काला धन विदेश में सुरक्षित हो जावे जय भ्रष्टाचार देवा
बहुत खेद के साथ कटाक्ष के रूप में उपरोक्त बातें लिखी हैं | जब मैंने पाया सत्याग्रहियों और जनता पर आधी रात को इस तरह से आक्रमण किया गया जैसे आजादी से पूर्व अंग्रेजों के हाथ जलियावाला बाग था| तिस पर कई साथी लेखकों ने सत्याग्रह के खिलाफ, बाबा के खिलाफ,आवाज उठायी … और कुछ अजीब से नए मुद्दे बना डाले …मैं उनसे भी कहना चाहूंगी अभी मुद्दा सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ है.. इस पर राजनीति नहीं चाहिए - सिर्फ और सिर्फ देशहित चाहिए |
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जागो भारत जागो देशहित के लिए आह्वाहन करती यह कविता अन्याय के खिलाफ सब को एकजुट होने के लिए प्रेरित करती है और वीररस से भरपूर है | इसके रचियता श्री अशोक राठी जी हैं जिनकी कर्मभूमि कुरुक्षेत्र है| देश भक्ति की भावना से लबरेज , स्त्री विमर्श पर और जीवन मृत्यु जैसे दर्शन पर आपकी कवितायें खासा आकर्षित करतीं हैं | यहाँ पर देशहित के लिए हुंकार भरती अशोक जी की कविता को सबसे साझा कर रही हूँ श्री अशोक राठी जी जागो भारत जागो देखो आ पहुंचा दुश्मन छाती पर पहले हारा था वो हमसे अब फिर भागेगा डरकर शीश चढ़ाकर करो आरती ये धरती अपनी माता है रक्तबीजों को आज बता दो हमें लहू पीना आता है नहीं डरेंगे नहीं हटेंगे हमको लड़ना आता है | काँप उठा है दुश्मन देखो गगनभेदी हुंकारों से डरो न बाहर आओ तुम लड़ना है मक्कारों से आस्तीन में सांप पलें हैं अब इनको मरना होगा उठो जवानों निकलो घर से शंखनाद अब करना होगा देखो घना कुहासा छाया कदम संभलकर रखना होगा वीर शिवा, राणा की ही तो हम सब संतानें हैं कायर नहीं , झुके न कभी हमने परचम ताने हैं | अबलाओं, बच्चों पर देखो लाठी आज बरसती हाथ उठे रक्षा की खातिर उसको नजर तरसती जागो समय यही है फिर केवल पछताना होगा क्या राणा को एक बार फिर रोटी घास की खाना होगा माना मार्ग सुगम नहीं है दुश्मन अपने ही भ्राता हैं लेकिन मीरजाफर, जयचंदों को अब तो सहा नहीं जाता है ले चंद्रगुप्त सा खड्ग बढ़ो तुम गुरु दक्षिणा देनी होगी महलों में मद-मस्त नन्द को वहीँ समाधि देनो होगी |
चढ़े प्रत्यंचा गांडीव पर फिर महाकाली को आना होगा सोये हुए पवन-पुत्रों को भूला बल याद दिलाना होगा बापू के पथ पर चलने वाले हम सुभाष के भी अनुयायी समय ले रहा करवट अब पूरब में अरुण लालिमा छाई आज दधीचि फिर तत्पर है बूढी हड्डियां वज्र बनेंगी और तुम्हारे ताबूत की यही आखिरी कील बनेंगी सावधान ! ओ सत्ता-निरंकुश अफजल-कसाब के चाटुकारों राष्ट्र रहा जीवंत सदा यह तुम चाहे जितना मारो |
जय भारत माता | |